कालू राम शर्मा
सुर्खाब पक्षी को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चाएं आम हैं। चित्र, वीडियो और फोटो के साथ एक संक्षिप्त नोट भी होता है: “सुर्खाब का यह वीडियो बड़ी मुश्किल से बनाया गया है।” ज्योतिषियों के मुताबिक “सुर्खाब के दर्शन मात्र से और इसके परों को घर में रखने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।” और तो और, ज्योतिषियों ने असली सुर्खाब को पहचाने बिना ही चटख रंग के पक्षियों की ओर इशारा करते हुए सुझाव दे दिया है कि “दंपतियों के लिए इसे देखना शुभ होता है। उनका दांपत्य जीवन सुखमय होता है। सुर्खाब के परों को तिजोरी में रखने से सुख-समृद्धि बनी रहती है।” अलबत्ता, जिस सुर्खाब का ज़िक्र ज्योतिषी कर रहे हैं वह असल में सुर्खाब नहीं है।
वैसे अगर आप हिंदी में इंटरनेट देखते हैं तो भ्रम और गहरा हो जाता है। सुर्खाब नाम से अनेक पक्षियों का ज़िक्र हुआ है। समझ में नहीं आता कि आखिर किसे सुर्खाब माना जाए? किसे नहीं?
सुर्खाब के नाम पर
सुर्खाब एक फारसी शब्द है। इसका अर्थ है “अनोखा, विलक्षण”। जिन पक्षियों को सुर्खाब माना जा रहा है वे वाकई में खूबसूरत हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। हालांकि उनमें से कुछ भारत में नहीं पाए जाते हैं।
मसलन, हमिंगबर्ड की एक प्रजाति है जिसे सुर्खाब बताया गया है। दरअसल, यह एना हमिंगबर्ड है जो उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट का मूल निवासी है। इसका जीव शास्त्रीय नाम है Calypte anna और यह ट्रोकिलिडी कुल का सदस्य है। इसके बारे में वीडियो के साथ कुछ इस तरह की जानकारी वायरल हुई है। वीडियो एक नन्हे-से पक्षी का है जिसमें वह अपने सिर का रंग बदलता हुआ दिखाई देता है। इसे सुर्खाब कहा गया है। इसके बारे में लिखा गया है: “इस पक्षी का नाम सुर्खाब है। कीमत 25 लाख है। 19 फोटोग्राफर्स 62 दिनों के परिश्रम के बाद यह शूटिंग करने में कामयाब हुए। ...हर सेकंड में कलर बदलने वाला।”
एना हमिंगबर्ड काफी छोटा, लगभग 10 सेंटीमीटर लंबा होता है। रंग चटख इंद्रधनुषी होता है। जब इसके सिर और गर्दन पर धूप गिरती है तो यह धीरे-धीरे रंग बदलती है। कारण यह है कि सूर्य की रोशनी एक खास कोण से पड़ने पर किसी चीज़ में रंग दिखाई देने लगते हैं। आपने बरसात के दिनों में देखा होगा कि अगर डीजल या पेट्रोल की बूंदें सड़क व इसके आसपास डबरे में गिर जाए और उसे अलग-अलग कोण से देखा जाए तो वह रंग-बिरंगी दिखाई देती है। ऐसा ही बीटल्स की कुछ प्रजातियों में भी होता है। जब इन पर रोशनी पड़ती है तो इनके शरीर पर कड़ा कवच चटख, चमकीला रंग-बिरंगा दिखाई पड़ता है।
एना हमिंगबर्ड के साथ भी कुछ ऐसा ही है। एना हमिंगबर्ड में नर का सिर और गर्दन मेंजेंटा रंग के होते हैं। जब यह चिड़िया अपनी गर्दन को घुमाती है और इस पर सामने से रोशनी गिरती है तो चमकदार लाल-गुलाबी आभा बिखेरती है। अंधेरे में या जब रोशनी नहीं गिरती तो यह हल्के भूरे रंग की दिखाई देती है।
अगर हमिंगबर्ड के पर भीग जाएं तो चाहे सूरज की रोशनी गिरे मगर यह रंग-बिरंगापन दिखाई नहीं देता। एना हमिंगबर्ड के रंग बदलते वीडियो गूगल पर आसानी से मिल जाते हैं। इसके रंग बदलने के कारण इस पर सुर्खाब नाम चस्पा कर दिया गया। इतना अवश्य है कि फोटोग्राफर का हुनर है कि जैसे ही रोशनी गिरे और लाल-गुलाबी आभा बने तब वह शूटिंग कर ले।
इसी प्रकार, हिमालय में विचरण करने वाले कुछ सुंदर पक्षियों को भी सोशल मीडिया ने सुर्खाब का दर्जा दे दिया। एक है वेस्टर्न ट्रेगोपैन या जजुराना (Tragopan melanocephalus)। यह मध्यम आकार का पक्षी है जिसे हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी माना जाता है। इनके नर और मादा में काफी फर्क होता है। नर की गर्दन और छाती लाल-नारंगी और सिर पर मुकुट काले रंग का होता है। चोंच के नीचे ठोड़ी नीला रंग लिए होती है। मादा हल्के भूरे कत्थई रंग की होती है जिस पर सफेद धब्बे होते हैं। इसलिए शायद इनके नर और मादा के नाम स्थानीय स्तर पर अलग-अलग मिलते हैं। यह फेसिनिडी कुल का सदस्य है जिसमें तीतर, मुर्गे और बटेर भी आते हैं। इसी समूह में एक पक्षी हिमालयी मोनाल (Lophophorus impejanus) भी है जिसका नर जामुनी-नीला होता है। इसके सिर पर हरे रंग की कलगी होती है। इसकी मादा भूरे रंग की होती है। ये हिमालय के प्रसिद्ध शिकारी पक्षियों में से हैं। शिकारियों ने इनका बेतहाशा शिकार किया है। अब ये विलुप्तशील पक्षियों की सूची में हैं।
एक और चिड़िया है जिसे सुर्खाब बताया जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला लायरबर्ड एक विशाल पक्षी है। लायरबर्ड में नर की पूंछ वीणा के आकार की होती है। नर काफी सुंदर होता है और यह कुत्तों के भोंकने, कारों के हार्न और कैमरे के शटर की आवाज बखूबी निकाल सकता है। मादा नर से लंबी और बड़ी होती है। नर, मादा को रिझाने के लिए पंखों को फैलाकर नाचते हुए तरह-तरह की आवाज़ें निकालता है। ऑस्ट्रेलिया का यह पक्षी भी सुर्खाब नहीं है।
असली सुर्खाब सामने आए
प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ सालिम अली द्वारा लिखित भारत के पक्षी नामक पुस्तक में ब्राह्मणी बतख को सुर्खाब कहा गया है। इसके और भी नाम मिलते हैं जैसे चक्वा-चक्वी। अंग्रेजी में यह रूडी शेल डक कहलाता है। इसका जीव वैज्ञानिक नाम है टैर्डोना फेरूजिनिआ (Tadorna ferruginea) जो ऐनाटिडी कुल का सदस्य है। इस कुल में बत्तख, कलहंस और हंस आदि आते हैं। हिंदी समिति, सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित ‘शिकारी पक्षी’ नामक पुस्तक में इसके कुछ और नाम भी मिलते हैं। मसलन चक्रवाक, कोक-कोकी, चकवा, मूंग। ग्रामीण इलाकों में इस पक्षी को स्थानीय किसान और आम बत्तख के नाम से ही जानते हैं। वे इसे सुर्खाब के नाम से नहीं जानते।
सुर्खाब पालतू बतख के आकार का नारंगी-भूरे रंग का पक्षी है, जिसका सिर और गर्दन का रंग कुछ फीका सा होता है। नर के गले में एक काली धारी होती है। पंख सफेद, काले और चमकीले हरे होते हैं। मादा, नर से थोड़ी छोटी होती है। मादा के शरीर में गहरे-हल्के भूरे धब्बे या चित्तियां होती है। चोंच काली और आंखें गहरी भूरी होती है। आम तौर पर ये जोड़े में रहते हैं।
सुर्खाब हमारे यहां की प्रसिद्ध बतख है। तालाबों, झीलों और खारे पानी की झीलों के खुले तटों और आसपास ये जाड़ों में आसानी से देखे जा सकते हैं। ये बड़ी नदियों के रेतीले तटों पर भी देखे जा सकते हैं। नदियों में बड़ी धारा से कटकर जो छिछली पानी की धाराएं बनती हैं उनमें इनके जोड़े अक्सर देखे गए हैं। ये इंसानों के निकट पहुंचने पर सिर उठाकर कर्कश आवाज पैदा करते हैं और उड़ जाते हैं। गांव के किनारे पर तालाबों में आने वाले सुर्खाब इंसानों की चहलकदमी से उतने परेशान नहीं होते मगर जब इन्हें खतरे का अहसास होता है तो ये उड़ जाते हैं।
सुर्खाब प्रवासी पक्षी है जो शीतकाल के दौरान अपने मूल प्रजनन स्थल, दक्षिण पूर्वी यूरोप व मध्य एशिया से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में फैल जाते हैं और यहां आकर शीत ऋतु बिताते हैं। गर्मियों की शुरुआत में फिर अपने प्रजनन स्थल की ओर लौट जाते हैं। यहां से लौटते हुए ये चीन, जापान, मंगोलिया, अफगानिस्तान, ईरान आदि देशों में फैल जाते हैं। इनमें से कुछ सुर्खाब काश्मीर और लद्दाख की झीलों और तालाबों में रह जाते हैं और यहीं पर प्रजनन करते हैं। सितंबर के अंत या अक्टूबर के आरंभ में इनका आगमन प्रारंभ हो जाता है। प्रवास करके ये काश्मीर की झीलों व नेपाल की घाटियों में पहुंच जाते हैं और फिर यहां से उत्तर भारत में अक्टूबर में तथा नवंबर में दक्षिण के प्रांतों में फैल जाते हैं।
सालिम अली के अनुसार सुर्खाब, समूचे भारत में पाए जाते हैं, कहीं कम तो कहीं अधिक। दक्षिण भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, लंका तथा बर्मा में बहुत ही कम देखे गए हैं। राजस्थान व काठियावाड़ के रेगिस्तानों में भी बहुत ही कम दिखाई देते हैं। सुर्खाब मैदानों में ही मिलते हैं, ऐसा नहीं है। ये हिमालय में 6-7 हजार फीट की ऊंचाई पर भी शीत ऋतु में देखे गए हैं।
सुर्खाब, भारत में लद्दाख और तिब्बत में अप्रैल से जून के दरम्यान प्रजनन करते हैं। इनका घोंसला सामान्य सा होता है जो पानी के स्रोतों से दूर पहाड़ों के सुराखों में पिच्छों की गद्दी से बनाया जाता है। मादा छह से दस तक अंडे देती है। अंडों-बच्चों की परवरिश मादा अकेली करती है। इस दौरान नर आसपास ही होता है जो खतरे की आहट होने पर आवाज़ करके मादा को आगाह करता है।
बौद्ध समुदाय के लोग सुर्खाब को पवित्र पक्षी मानते हैं। एशिया व तिब्बत के बौद्ध बहुल क्षेत्रों में जब यह शीत काल में वहां आता है तो इसे संरक्षण प्राप्त है। इन इलाकों में इसका शिकार भी वर्जित रहा है। इस वजह से मध्य और पूर्वी एशिया, जहां बौद्ध धर्म के अनुयायी अधिक हैं, वहां इसकी तादाद बरकरार रही है। संस्कृत में इसे चक्रवाक कहा जाता है। इसका अर्थ है वैवाहिक प्रेम व निष्ठा का प्रतीक।
सुर्खाब का ज़िक्र साहित्य में विरह वेदना के रूप में किया जाता है। किंवदंती है कि रात में नर और मादा एक दूसरे से अलग-अलग हो जाते हैं और क्रंदन करते हैं। एक इस तट पर तो दूसरा उस तट पर! ये रात भर एक दूसरे को पुकारते हैं। दरअसल, यह कोरी कल्पना है। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि ये रात में भी एक साथ ही रहते हैं। इनकी आवाज को लोगों ने करुण मान लिया और इस प्रकार के किस्से गढ़ दिए गए। सच्चाई यह है कि ये रात में नदी या तालाबों के तटों पर किसी खतरे की आहट होने पर नाक से “कांको, कांको” जैसी ध्वनि निकालते हैं।
सुर्खाब का शिकार भारत में काफी होता रहा है। एक वक्त था जब अन्य बत्तखों समेत सुर्खाब को भी मारा जाता था। मगर बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इसे संरक्षण प्रदान करते हैं।
मध्यप्रदेश में सुर्खाब नवंबर के आसपास दिखाई देते हैं। मैंने इन्हें धार, उज्जैन, इंदौर, खरगोन के तालाबों व नर्मदा नदी के चौड़े रेतीले किनारों और जहां पानी में बहाव कम होता है वहां देखा है। पिछले वर्ष धार-उज्जैन ज़िले की सीमा रेखा पर एक पानी के स्रोत के पास इसके चार-पांच जोड़े देखे गए थे। हालांकि तालाबों, पोखरों पर मानवीय अतिक्रमण व इनके प्रदूषित होने के चलते इनकी संख्या में काफी गिरावट देखी गई है। असली सुर्खाब को आप भारत में शीत ऋतु में तालाबों, नदियों के किनारे खोज सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)