यदि बृहस्पति पर रहते तो कवियों-शायरों को मज़ा आ जाता या उनकी शामत आ जाती। वहां के आकाश में अब कुल 79 चांद हैं। तो चांद की उपमा देते समय स्पष्ट करना होता कि किस नंबर के चांद की बात हो रही है। खैर, वह बहस तो शायर लोग कर लेंगे पर तथ्य है कि हाल ही में खगोलवेत्ताओं ने बृहस्पति के 10 नए उपग्रह खोजे हैं और कुल संख्या 79 हो गई है। और तो और, वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी गिनती पूरी नहीं हुई है।
और बृहस्पति के चांदों की फितरत भी सामान्य नहीं है। इनका अध्ययन करके वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि हमें ग्रहों के बनने की प्रक्रिया को समझने में भी मदद मिल सकती है। जैसे वैज्ञानिकों के मुताबिक इतने सारे छोटे-छोटे चंद्रमाओं की उपस्थिति से लगता है कि जब करीब 4 अरब वर्ष पूर्व बृहस्पति का निर्माण हुआ था, ये उपग्रह साथ-साथ नहीं बने थे। ये बाद में टक्करों के फलस्वरूप बने होंगे।
किसी ग्रह के उपग्रह ग्रह के चक्कर लगाते हैं। आम तौर पर उनकी चक्कर लगाने की दिशा वही होती है जिस दिशा में ग्रह अपनी अक्ष पर घूर्णन कर रहा है। बृहस्पति के कई सारे चंद्रमा तो इस परिपाटी का पालन करते हैं मगर कुछ ऐसे चंद्रमा भी हैं जो उल्टी दिशा में घूम रहे हैं। इससे भी लगता है कि ये गैस के उसी बादल से बृहस्पति के साथ-साथ अस्तित्व में नहीं आए होंगे।
वैसे बृहस्पति के तीन चंद्रमा का पता तो गैलीलियो के समय में ही लग चुका था। दूरबीन से देखने पर गैलीलियो ने पाया था कि ये पिंड बृहस्पति का चक्कर काट रहे हैं। इस अवलोकन ने पहली बार इस शंका को जन्म दिया था कि शायद सारे आकाशीय पिंड पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करते हैं। सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध में प्रसिद्ध खगोल शास्त्री रोमर ने बृहस्पति के चंद्रमाओं के उसके पीछे छिपने और वापिस प्रकट होने का अध्ययन करके पहली बार प्रकाश की गति का अनुमान लगाया था।
कहने का मतलब है कि बृहस्पति के चंद्रमाओं का खगोल शास्त्र के इतिहास में अहम स्थान रहा है। अब यही चंद्रमा हमें ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया को समझने में भी मदद करेंगे। (स्रोत फीचर्स)