हाल के एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि मध्य अमेरिका में फली-फूली प्राचीन माया सभ्यता में चॉकलेट बनाने में उपयोग किए जाने वाले ककाओ बीजों का उपयोग खरीद-फरोख्त में मुद्रा के रूप में किया जाता था।
प्राचीन माया सभ्यता मूलत: वस्तु विनिमय पर आधारित थी जिसमें मक्का, तंबाकू और वस्त्रों का उपयोग बहुतायत से होता था। सोलहवीं सदी के कुछ विवरणों से पता चलता है कि युरोप में ककाओ बीजों का उपयोग काफी आम था। इनका उपयोग मज़दूरों को भुगतान में भी किया जाता था। तो बार्ड अर्ली कॉलेज नेटवर्क के पुरातत्ववेत्ता जोआन बैरन ने सोचा कि माया सभ्यता में भी इस बात की खोजबीन करनी चाहिए। अपनी खोजबीन में उन्होंने मुख्यत: 250 ईस्वीं से 900 ईस्वीं के दौरान बनाए गए माया चित्रों पर ध्यान दिया। इनमें बड़ी पेंटिंग्स, सिरेमिक बर्तनों पर बने चित्र और तराशे गए चित्र शामिल थे। ये कलाकृतियां आजकल के मेक्सिको तथा मध्य अमेरिका के माया स्थलों से प्राप्त हुई हैं।
बैरन ने पाया कि इस अवधि के शुरुआती दौर की कलाकृतियों में चॉकलेट ज़्यादा नज़र नहीं आता है। किंतु आठवीं सदी के बाद से ऐसा लगता है कि लोग ककाओ बीजों का उपयोग धन के रूप में कर रहे हैं और इसी के माध्यम से वे सेवाओं और वस्तुओं का भुगतान कर रहे हैं। इससे पहले तक इसका उपयोग वस्तु विनिमय में दिखाई पड़ता है। जैसे एक तस्वीर में बाज़ार में एक महिला गर्मागरम चॉकलेट से भरा प्याला देकर तमाले नामक व्यंजन बनाने में प्रयुक्त आटा ले रही है।
बहरहाल, थोड़े बाद के समय में चॉकलेट एक मुद्रा के रूप में नज़र आता है। 691 ईस्वीं से 900 ईस्वीं के बीच के 180 अलग-अलग चित्रों में बैरन ने देखा कि लोगों द्वारा माया हुक्मरानों को चुकाए जा रहे करों या नज़रानों में तंबाकू और मक्का के अलावा अचानक दो और चीज़ें दिखने लगती हैं - बुने हुए कपड़े और ककाओं के बीज की थैलियां जिन पर लिखा होता है कि उनमें कितने बीज भरे गए हैं। इसके आधार पर बैरन ने इकॉनॉमिक एंथ्रोपोलॉजी नामक जर्नल में बताया है कि संभवत: माया लोग ककाओ और बुने हुए कपड़े का उपयोग मुद्रा के रूप में करते थे। यह इसलिए भी लगता है क्योंकि राजमहलों में अपनी खपत से ज़्यादा ककाओ और कपड़े इकट्ठे किए जा रहे थे। निश्चित रूप से इनका उपयोग अपने कर्मचारियों को वेतन देने और महल के लिए ज़रूरी सामान खरीदने में होता होगा। (स्रोत फीचर्स)