मनुष्य जिन-जिन भूभागों का उपयोग जमकर करते हैं वहां जीव-जंतु सामान्य से काफी कम घूमते-फिरते हैं। साइन्स शोध पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक दुनिया भर में दर्ज़नों प्रजातियों में यही पैटर्न दिखाई पड़ता है। हर जगह मनुष्यों के सघन हस्तक्षेप की वजह से जानवरों की हलचलें आधी से एक-तिहाई ही रह जाती हैं।
दुनिया भर के लगभग 100 वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष 57 प्रजातियों के 803 स्तनधारी जीवों के उपग्रह आंकड़ों के आधार पर निकाला है। इनमें इम्पाला, बैबून्स, हिरन वगैरह शामिल थे। आंकड़ों में लगभग दस दिनों तक इन जानवरों की हलचल को रिकॉर्ड किया गया था। फिर इन आंकड़ों को मानव पदचिंह सूचकांक के साथ रखकर देखा गया। मानव पदचिंह सूचकांक से पता चलता है कि मनुष्यों ने किसी भूभाग को किस हद तक प्रभावित किया है। इसमें जनसंख्या के घनत्व, तथा सड़कों की उपस्थिति और रात के समय रोशनी की स्थिति को शामिल किया जाता है।
अध्ययन टीम के मुखिया जर्मनी के गोथे विश्वविद्यालय के इकॉलॉजिस्ट मार्ली टकर मानते हैं कि इन आंकड़ों की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। जैसे कई मामलों में जानवर कम दूरी तक सीमित हलचल करने लगते हैं क्योंकि आसपास ही उन्हें फसल चरने को मिल जाती है जबकि उनके प्रवास करने का मकसद भोजन की तलाश ही था।
इस तरह जानवरों की घटी हुई हलचल के कई परिणाम हो सकते हैं। जैसे पशुओं के गोबर के साथ जो बीज तथा पोषक पदार्थ दूर-दूर तक पहुंच जाया करते थे, वे शायद अब एक छोटे इलाके में ही सीमित रहेंगे। एक असर यह भी हो सकता है कि कुछ शाकाहारी जीव अब अपेक्षाकत छोटे इलाके में सघन चराई करने लगे हों। इसका असर वनस्पति पर तो पड़ेगा ही, जानवर भी अछूते नहीं रहेंगे। जैसे, एक समस्या यह सामने आ सकती है कि एक छोटे से इलाके में पशुओं का घनत्व बढ़ने से बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाएगा।
पर्यावरण व वन्यजीव संरक्षण के काम में लगे लोगों का कहना है कि अध्ययन से यह बात स्पष्ट उभरती है कि वन्यजीवों को गतिशीलता के लिए विशेष मार्ग उपलब्ध कराने की ज़रूरत है।
अलबत्ता, कई लोगों का मत है कि इस अध्ययन से बहुत ज़्यादा निष्कर्ष नहीं निकाले जाने चाहिए। इसमें मात्र 10 दिन की हलचल के आंकड़ों के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं। यदि पूरी तस्वीर को देखना है तो ज़रूरी होगा कि ज़्यादा लंबी अवधि के आंकड़ों को आधार बनाकर अध्ययन किया जाए। जहां तक इस अध्ययन के सामान्य निष्कर्ष की बात है, तो लगभग सभी सहमत हैं कि मानव-निर्मित पर्यावरण ने वन्यजीवों के जीवन को प्रभावित किया है और इसके बारे में कुछ करने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)