नरेन्द्र देवांगन
पहले कैंसर को लाइलाज और प्राणघातक समझा जाता था, किंतु आज यह उतना भयंकर नहीं रह गया है। कैंसर के उपचार की ‘इम्यूनोथेरपी’ विधि खोजी गई है और इस विधि से प्रतिपल पीड़ा भुगतते करीब-करीब काल के ग्रास बन चुके सैकड़ों कैंसर मरीज़ों को जीवन दिया जा चुका है।
कैंसर के इलाज की इम्यूनोथेरपी बहुत ही स्वाभाविक और सरल विधि है। यह सर्जरी, रेडियोधर्मी विकिरण एवं अत्याधुनिक विशेष औषधियों पर निर्भर न होकर मूलत: शरीर और उसकी जैविक प्रक्रियाओं पर आधारित है। इसका आधार यह है कि कैंसर की दुर्दम्य, अनियंत्रित कोशिकीय वृद्धि को रोकने और उस पर काबू पाने के लिए शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का उपयोग किया जाए। प्रतिरक्षा तंत्र को प्रेरित करने के लिए एक बैक्टीरिया-जन्य पदार्थ का उपयोग किया जाता है। इस पदार्थ को ‘बेसीलस कल्मेटे गुएरिन’ (संक्षेप में बी.सी.जी.) कहते हैं।
बीसीजी शरीर की उस प्रक्रिया को प्रेरित करता है जो शरीर को जीवाणुओं के आक्रमण से निपटने की शक्ति प्रदान करती है और शरीर को रोगजनक जीवाणुओं से मुक्त रखती है। बीसीजी शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को दुर्दम्य त्वचा कैंसर मेलानोमा के विरुद्ध तैयार करता है। मेलानोमा तेज़ी से फैलता है तथा इसका इलाज बहुत कठिन होता है। बीसीजी ल्यूकेमिया नामक कैंसर पर भी अत्यंत प्रभावकारी है। मेलानोमा तथा ल्यूकेमिया पर नियंत्रण से आशा बंधी है कि यह विधि अन्य प्रकार के कैंसरों, विशेषकर वक्ष कैंसर पर भी प्रभावी सिद्ध होगी और कैंसर फोड़े का रूप धारण करे, उससे पूर्व ही बीसीजी उससे बचाव कर सकेगा।
अभी यह तो नहीं पता कि बीसीजी मानव शरीर में कैसे कार्य करता है, लेकिन इतना स्पष्ट है यह शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को उत्तेजित करता है। शरीर को जीवाणुओं से मुक्त रखने वाली यह व्यवस्था एंटीबॉडीज़ तथा लिम्फोसाइट घटकों से बनती है। एंटीबॉडीज़ रक्त में भ्रमण करते रहते हैं और जीवाणुओं का प्रतिरोध करते हैं जबकि लिम्फोसाइट्स रक्त की ·ोत कोशिकाएं होती हैं जो जीवाणुओं को नष्ट करती हैं।
कुछ वर्ष पूर्व यह भी ज्ञात हुआ कि मानव तथा पशुओं की कैंसर गठानों की कोशिकाओं की सतह पर एक ऐसा एंटीजन (पहचान चिंह) पाया जाता है जो सामान्य कोशिकाओं पर नहीं होता। गौरतलब है कि एंटीबॉडीज़ और लिम्फोसाइट्स एंटीजन्स को पहचानकर आक्रमण करते हैं।
पता चला है कि बीसीजी इम्यूनोथेरपी से कैंसर की घातक गठानों को समाप्त किया जा सकता है या उसे बढ़ने से रोका जा सकता है। एक तथ्य और सामने आया है कि जैसे-जैसे कैंसर की गठान बढ़ती है या फैलने लगती है, तब पहले तो ऐसा लगता है कि रोग प्रतिरोधी शक्ति क्षीण होती जा रही है, लेकिन जब गठान रुककर घटने लगती है तब यह शक्ति अपनी सामान्य स्थिति में आ जाती है।
इन अध्ययनों के आधार पर अनेक कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टरों को यह वि·ाास है कि यदि रोगी के शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा शक्ति को उत्प्रेरित कर दिया जाए तो वह कैंसर के फैलाव को रोक सकती है तथा बीसीजी से भी अच्छा कार्य स्वत: ही कर सकती है।
मनुष्य अपनी रोग प्रतिरोधी शक्ति को बढ़ाकर कैंसर का मुकाबला कर सकता है, यह बात आज से 90 साल पहले डॉ. ब्रोडफोर्ड कोले के दिमाग में आई थी। डॉ. कोले के पास एक ऐसा रोगी आया था जिसकी गर्दन पर कैंसर की गठान तेज़ी से फैल रही थी। उस रोगी के जीवित रहने की कोई उम्मीद नहीं थी। डॉ. कोले के उपचार से कुछ ऐसा जादू हुआ कि वह बिलकुल ठीक हो गया। रोगी किस तरह ठीक हो गया इस बात का डॉ. कोले को कोई प्रत्यक्ष कारण समझ में नहीं आया।
जब उन्होंने कारण समझने की कोशिश की तो पाया कि वह रोगी कैंसर के साथ एरीसिपेलस नामक त्वचा रोग से भी पीड़ित था। उन्होंने अनुमान लगाया कि रोगी के शरीर की जिस जैविक क्षमता ने उसे त्वचा रोग से छुटकारा दिलाया है उसी क्षमता ने कैंसर गठान को भी ठीक किया है। उन्होंने इस दिशा में आगे काम किया। कई प्रकार के जीवाणु (जो सभी उसी जीवाणु के रूपांतरित या क्षीण रूप थे) लेकर टीका तैयार किया। उन्हें आशा थी कि यह टीका एरीसिपेलस की भांति कैंसर के लिए प्रभावकारी सिद्ध होगा। उनकी यह आशा भी सही निकली। ‘डॉ. कोले का टॉक्सिन’ नाम से जाने गए इस टीके से कैंसर की कुछ गठानें स्थायी रूप से ठीक हो गर्इं तो कुछ एक लंबे समय तक के लिए ठीक हुईं।
बीसीजी जैसे तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधी शक्ति को इस सीमा तक बढ़ा सकते हैं कि कैंसर की वृद्धि रुक सकती है। बीसीजी का टीका लगभग वर्ष 1920 से दुनिया भर के लाखों-कराड़ों बच्चों और वयस्कों को टी.बी. से प्रतिरक्षा के लिए लगाया जा रहा है। कैंसर में भी उपयोगी होने से इसकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ गई है।
न्यूयॉर्क सिटी के स्लोअन कैटरिंग कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. जे.एल. ओल्ड के परीक्षणों के आधार पर बीसीजी का प्रयोग इम्यूनोथेरपी में किया जाने लगा। इम्यूनोथेरपी में बीसीजी के उपयोग के सबसे प्रभावी और ठोस परिणाम कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉक्टर डोनाल्ड मॉर्टन एवं उनके साथियों ने निकाले। डॉ. मॉर्टन ने बताया कि उन्होंने मेलानोमा कैंसर के जिन गंभीर रोगियों का सात साल पहले बीसीजी से उपचार किया था वे आज भी पूर्णतया कैंसर मुक्त हैं।
मेलानोमा त्वचा कैंसर है जो त्वचा की रंजक पैदा करने वाली कोशिकाओं को क्षति पहुंचाता है तथा शरीर के अन्य अंगों, जैसे मस्तिष्क, फेफड़ों आदि में फैल जाता है। फैलने से पहले यह छोटी-छोटी फुंसियों या गठानों के रूप में उभर आता है।
वर्ष 1968 से डॉ. मॉटर्न ने मेलानोमा के सैकड़ों रोगियों का उपचार किया है। इस कैंसर का उपचार सर्जरी द्वारा नहीं किया जा सकता। डॉ. मॉर्टन ने जब एक 68 वर्षीय रोगी की मेलानोमा कैंसर गठानों में बीसीजी प्रविष्ट कराया तो सारी नहीं किंतु बहुत-सी गठानें ठीक हो गर्इं। उनके अनुसार बीसीजी इम्यूनोथेरपी तभी तक लाभकारी रहती है जब तक कि कैंसर शरीर के अन्य अंगों में न फैल पाया हो। डॉ. मॉर्टन के अनुसार जिन रोगियों में मेलानोमा त्वचा तक ही सीमित होता है उनमें से 25 प्रतिशत बिलकुल ठीक हो जाते हैं जबकि परंपरागत औषधियों से सफलता की दर 5 प्रतिशत ही है।
बीसीजी गठान के आसपास ही नहीं, अपितु समूचे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र पर प्रभाव डालता है। यह देखा गया है कि मेलानोमा की वे गठानें भी ठीक हो गर्इं जो बीसीजी प्रविष्ट कराने के स्थल से काफी दूरी पर स्थित थीं।
डॉ. मॉर्टन इस तथ्य से भी अवगत थे कि यह विधि सभी रोगियों के लिए समान रूप से प्रभावकारी नहीं है, विशेषकर उन रोगियों के लिए तो कदापि नहीं जिनका प्रतिरक्षा तंत्र बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। दूसरे, यदि मेलानोमा सारे शरीर में फैल चुका है, तब भी यह विधि उपयोगी सिद्ध नहीं हुई है।
इसके लिए डॉ. मॉर्टन और उनके साथियों ने एक दूसरी विधि खोजी है, जिसमें उन्होंने बड़ी-बड़ी गठानों को सर्जरी से निकालने के बाद बीसीजी की मदद से छोटी गठानों पर नियंत्रण पा लिया। डॉ. मार्टन कुछ ऐसे परीक्षण में भी लगे रहे ताकि उपचार में सर्जरी की आवश्यकता ही न रहे। इसके बाद इस आशा को बल मिला कि बीसीजी वक्ष कैंसर में भी उपयोगी हो सकती है। वक्ष कैंसर मेलानोमा से भी अधिक कठिन होता है। वक्ष कैंसर के उपचार में वे केवल बीसीजी या उसके साथ अन्य अनेक कैंसर प्रतिरोधी औषधियों का उपयोग करते रहे। उन्होंने वक्ष कैंसर की कोशिकाओं के पदार्थ से एक टीका भी बनाया। प्रारंभिक परीक्षणों में उन्होंने वक्ष कैंसर की वृद्धि पर नियंत्रण भी पा लिया। अपने काम को आगे बढ़ाते हुए डॉ. मॉर्टन फेफड़े के कैंसर पर बीसीजी की उपयोगिता के अध्ययन की योजना पर काम कर रहे थे।
अन्य शोध संस्थानों से जो सूचनाएं मिलीं उनके अनुसार बीजीसी विभिन्न प्रकार के ल्युकेमिया पर भी प्रभावी सिद्ध हुआ है। ल्युकेमिया रक्त निर्माण तंत्र में होने वाला कैंसर है। शोध कार्य के अनुसार आंतों में पाए जाने वाले कैंसर में भी बीसीजी इम्यूनोथेरपी लाभकारी सिद्ध हुई है। (स्रोत फीचर्स)