स्वास्थ्य की निगरानी करने के संदर्भ में स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस अब तक एक विचार के रूप में ही रहे हैं। किंतु नए अध्ययनों से लगता है कि स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस हकीकत बनने की कगार पर हैं। लचीले, पारदर्शी इलेक्ट्रॉनिक्स से युक्त लेंस हमारी आंखों से निकलने वाले आंसुओं से शर्करा का स्तर माप कर हमें सूचित कर देंगे। अभी तक ये परीक्षण जंतुओं पर किए गए हैं। यदि इंसानों पर परीक्षण सफल होते हैं तो मधुमेह रोगियों के लिए यह बड़ी खबर होगी क्योंकि उन्हें बिना सुई चुभोए रक्त में शर्करा का स्तर पता चल जाएगा।
चार वर्ष पहले सैन फ्रांसिस्को स्थित वेरिली लाइफ साइंसेज़ कंपनी ने ग्लूकोज़ का स्तर नापने और कैंसर जैसे रोगों का पता लगाने के लिए भविष्य के उपकरणों की बात की थी। तब से इस तरह के उपकरणों पर लगातार कई तरह के प्रयास किए गए लेकिन विफलता मिली थी। शुरुआती प्रयासों में कठोर कॉन्टैक्ट लेंस में सख्त व अपारदर्शी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट लगाए गए थे जो पहनने वाले के लिए दिक्कतपैदा करते थे। इसके अलावा ग्लूकोज़ का मापन भी भरोसेमंद नहीं था।
लेकिन अब इन समस्याओं से निपटने के लिए साउथ कोरिया के उल्सान नेशनल इंस्टीट¬ूट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के जिहुन पार्क के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने मुलायम व लचीली इलेक्ट्रॉनिक सामग्री से एक उपकरण तैयार किया है जो पारदर्शी भी है। उन्होंने इसमें दो उपकरण लगाए हैं जो एक ट्रांसमीटर से प्राप्त रेडियोफ्रिक्वेंसी को हल्के विद्युत संकेत में परिवर्तित कर देते हैं। इस विद्युत से एक ग्लूकोज़ सेंसर और एक सूक्ष्म हरे प्रकाश-उत्सर्जक डायोड (एलईडी) को ऊर्जा मिलती है। यह बाहर की तरफ चमकता है। यह चमक आइने में देखी जा सकती है, लेकिन पहनने वाले की दृष्टि में कोई बाधा नहीं पहुंचती है। जब सेंसर ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ने को भांपेगा तो एलईडी बंद हो जाएगा जिससे पता चल जाएगा कि रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ गया है।
पार्क का कहना है कि लेंस के सभी घटकों को लचीला नहीं बनाया जा सका है। उदाहरण के लिए ग्लूकोज़ सेंसर में सिलिकॉन के दो सख्त पैड हैं। लेकिन लेंस को लचीला बनाने के लिए इन सख्त पैड को बहुत महीन परत का सहारा दिया गया है और इन्हें एक-दूसरे से लचीले तारों के माध्यम से जोड़ा गया है।
फिलहाल इन लेंस का परीक्षण इंसानों पर नहीं किया गया है। साइंस एडवांसेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक खरगोशों पर इन लेंस का परीक्षण हुआ है और लेंस के ग्लूकोज़ सेंसर ने शर्करा का स्तर भी ठीक से मापा है।
बोस्टन स्थित हार्वड युनिवर्सिटी के डेविड वॉल्ट, जो इस अध्ययन से जुड़े नहीं हैं, का कहना है कि अगर ये लेंस इंसानों पर ठीक तरह से काम करते हैं तो जल्द ही ये दवाइयों की दुकानों में बिकते नज़र आएंगे। लेकिन एक मुद्दा यह है कि ग्लूकोज़ सेंसर एक एंज़ाइम, ग्लुकोज़ ऑक्सीडेज़ पर निर्भर करता है, जो शर्करा के साथ बंधकर उसका स्तर मापता है। लेकिन इस क्रिया में हाइड्रोजन परॉक्साइड बनता है जो आंखों को क्षति पहुंचा सकता है। पार्क सहमत हैं कि लेंस में और सुधार की ज़रूरत है। तो अभी इस लेंस के लिए थोड़ा इंतज़ार और। (स्रोत फीचर्स)