ताज़ा अध्ययन बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरीयर रीफ के उत्तरी हिस्से में हरे समुद्री कछुओं में मादाओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अंडों में से मात्र 1 प्रतिशत ही नर कछुए पैदा हो रहे हैं।
समुद्री कछुओं में लिंग निर्धारण में अंडों के विकास के समय उपलब्ध तापमान निर्णायक महत्व रखता है। यदि अंडों के सेने का तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो, तो ज़्यादा मादाएं पैदा होती हैं। 33 डिग्री सेल्सियस पर तो 100 प्रतिशत संतानें मादा होती हैं। ठंडे वातावरण में ज़्यादा नर निकलते हैं और 23 डिग्री के आसपास 100 प्रतिशत नर पैदा होते हैं। और तो और, यदि तापमान 23 से 33 डिग्री के दायरे से कम या अधिक हो तो संतानों में विकृतियां पैदा होने लगती हैं और उनकी मृत्यु दर भी ज़्यादा होती है। तापमान द्वारा लिंग का निर्धारण कई अन्य सरिसृप प्रजातियों में होता है - जैसे मगरमच्छ, कई छिपकलियां और मीठे पानी के कछुए।
जब वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान में 2 से 3 डिग्री वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है तो स्पष्ट है कि हरे समुद्री कछुओं का जीवन खतरे में है। हो सकता है कि मादाओं की संख्या में थोड़ी वृद्धि उनके लिए लाभदायक साबित हो, किंतु यदि 99 प्रतिशत कछुए मादा होंगे तो यह घातक हो सकता है।
इसी चिंता से प्रेरित होकर इन दिनों कई स्थानों पर सेने के समय उपलब्ध तापमान और लिंग अनुपात के सम्बंधों का अध्ययन किया जा रहा है। ये कछुए आम तौर पर समुद्र तट पर आकर अंडे देते हैं और उन्हें रेत में दबा देते हैं। वैज्ञानिक उन्हीं समुद्र तटों पर लगभग उतनी ही गहराई में तापमान रिकॉर्डिंग के यंत्र भी दबा देते हैं। 50-60 दिनों बाद जब अंडे फूटते हैं तब इन यंत्रों को भी निकाला जाता है और तापमान का रिकॉर्ड देखा जाता है और उसकी तुलना नवजात कछुओं के लिंग अनुपात से की जाती है। इन प्रयोगों ने उपरोक्त चिंताजनक तस्वीर उजागर की है।
वैज्ञानिकों ने इस परिस्थिति से निपटने के दो प्रमुख उपाय सुझाए हैं। एक तो यह है कि जिन तटों पर कछुए अंडे देते हैं वहां छायादार पेड़ लगाए जाएं, ताकि रेत का तापमान कम रहे। यह भी किया जा सकता है कि जहां कछुओं ने अंडे दिए हैं, वहां पर हल्के रंग की रेत बिछा दी जाए। हल्के रंग की रेत कम गर्मी सोखेगी और तापमान नियंत्रण में रहेगा। इस तरह नर कछुओं की संख्या बढ़ाई जा सकेगी। दूसरा सुझाव यह है कि अंडों को ले जाकर किसी अन्य जगह पर सेया जाए जहां तापमान कम रहे।
अलबत्ता, ये तात्कालिक उपाय हैं और शायद कारगर भी हों किंतु सबसे महत्वपूर्ण उपाय तो यही होगा कि उन तटों का संरक्षण किया जाए जहां ज़्यादा नर पैदा हो रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)