फिनलैण्ड संभवत: कोयले को अलविदा कहने वाला पहला देश होगा। नवीन ऊर्जा व जलवायु रणनीति के तहत फिनलैण्ड सरकार यह घोषणा करने जा रही है कि वहां 2030 के बाद बिजली उत्पादन के लिए कोयला नहीं जलाया जाएगा।
युरोपियन एकेडमीज़ की विज्ञान सलाहकार परिषद के अध्यक्ष पीटर लुण्ड का कहना है कि फिनलैण्ड के बाज़ार से कोयला नदारद हो जाएगा। वैसे इस तरह के प्रतिबंध की पृष्ठभूमि कई वर्षों से तैयार हो रही थी। जैसे फिनलैण्ड में बिजली उत्पादन में कोयले का उपयोग 2011 से लगातार घटता गया है। इसके अलावा, 2012 में देश ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश किया था। इसके चलते अगले ही वर्ष पवन ऊर्जा उत्पादन लगभग दुगना हो गया। इस वर्ष भी फिनलैण्ड ने नवीकरणीय ऊर्जा में भरपूर निवेश किया है।
तथ्य यह भी है कि कोयले को छोड़कर शेष समस्त ऊर्जा के दामों में गिरावट आई है। इस वजह से कोयला-आधारित संयंत्र सफेद हाथी जैसे हो गए हैं और कोयला फिलहाल देश की ऊर्जा में मात्र 8 प्रतिशत का योगदान देता है।
वैसे देखा जाए तो कोयले को अलविदा कहने की दिशा में कई देश व क्षेत्र आगे बढ़ रहे हैं। जैसे यूके, ऑस्ट्रिया और नेदरलैण्ड की योजना है कि अगले 10-15 वर्षों में वे कोयले से मुक्ति पा लेंगे। फ्रांस के प्रधान मंत्री ने भी घोषणा की है कि 2023 तक वहां के सारे कोयला-आधारित बिजली संयंत्र बंद कर दिए जाएंगे।
मगर ऐसा माना जा रहा है कि ये तरीके उतने प्रभावी नहीं होंगे जितना कि पूर्ण प्रतिबंध लगाना। उदाहरण के लिए कनाडा ने घोषणा की है कि 2030 तक वह कोयला आधारित संयंत्रों को बंद करेगा मगर यह गुंजाइश भी रखी है कि यदि कोई संयंत्र अपना उत्सर्जन कम कर लेता है तो उसे चलने दिया जाएगा। यूएस के एक प्रांत ओरेगन ने भी तय किया है कि 2035 के बाद न तो वहां कोयले से बिजली उत्पादन की अनुमति होगी और न ही बाहर से कोयले से बनी बिजली का आयात किया जाएगा।
गौरतलब है कि कोयले को जलाकर बिजली बनाने की प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड उत्पन्न होती है जो एक ग्रीनहाउस गैस है और धरती का तापमान बढ़ाने में योगदान देती है। यदि ज़्यादा से ज़्यादा देश कोयले से दूर जाते हैं तो जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिलेगी। (स्रोत फीचर्स)