किशोर पंवार
भोजन के पाचन में एंजाइमों की अहम भूमिका होती है। एंजाइम अपने काम को पूरा कैसे करते हैं यह जानना हो तो सोख्ता कागज, अकाव का दूध, चावल की माढ़ जैसी आसानी से मिल सकने वाली चीज़ों को इकट्ठा कर लीजिए और हां, अपने दो-चार विद्यार्थी साथ हों तो इस प्रयोग का मज़ा और भी बढ़ जाएगा।
आपने अनुभव किया होगा कि जब हम पोहे, परमल या गेहूं के दाने खाते हैं तो चबाते चबाते ही मुंह में मिठास आ जाती है। इन सब में शर्कराएं तो खास कुछ होती नहीं हैं, मुख्यत: कार्बोहाइड्रेट और अल्प मात्रा में प्रोटीन ही मौजूद रहते हैं। तो फिर कहां से आ जाती है हमारे मुंह में मिठास? दरअसल मिठास पैदा करने का यह कमाल हमारी लार में उपस्थित पाचक एंजाइम का है। आइए, लार के साथ एक प्रयोग करके देखें इस एंजाइम का कमाल।
पहला प्रयोग
इसके लिए एक सोख्ता कागज़, स्टार्च का घोल या चावल की माढ़ और आयोडीन के घोल की ज़रूरत होगी। सब चीजें ऐसी हैं जो आसानी से मिल जाती हैं।
सबसे पहले सोख्ता कागज को स्टार्च के घोल या चावल की माढ़ में डूबाकर सुखा लो। अब एक कटोरी में या किसी ढक्कन में थोड़ी-सी लार लो। इस लार में माचिस की तीली डूबाकर सोख्ता कागज़ पर लार से अपना या अपने दोस्त का नाम लिख लो। लार लगाने में किसी तरह की कंजूसी नहीं होनी चाहिए।
अब लगभग आधे घंटे तक इंतज़ार करो; फिर नाम लिखे हुए सोख्ता कागज़ को आयोडीन के हल्के घोल में डूबाकर देखो। क्या हुआ? और ऐसा क्यों हुआ होगा इस पर थोड़ा सोच-विचार करो। हां, संकेत देने के लिए एक छोटी-सी बात जरूर बता देते हैं कि हमारे मुंह में मंड़ के पाचन की शुरुआत भी ऐसे ही होती है; और उस प्रक्रिया में जो शर्करा बनती है उसी से हल्की हल्की मिठास महसूस होती है हमें।
एक और प्रयोग
पाचक एंजाइम के साथ ऐसा ही एक मजेदार प्रयोग और है जिसे करने के लिए सिर्फ कैमरे में इस्तेमाल होने वाली एक्सपोज़्ड नेगेटिव फिल्म (ब्लैक एंड वाइट हो तो बेहतर) और अकाव के पौधे का दूध भर चाहिए। प्रयोग शुरू करने के पहले इंजेक्शन की खाली शीशी में अकाव का थोड़ा-सा दूध भर लीजिए। इसके लिए आपको दो-तीन पत्ते तोड़कर उनसे दूध इकट्ठा करना होगा। पत्ता तोड़ते ही अकाव का दूध टपकने लगता है। बस, उसे शीशी में भर लीजिए। इस दूध से
कागज़ और फिल्म पर लिखना: सोख्ता कागज़ को चावल की माढ़ या स्टार्च के घोल में डुबोकर सुखा लो। इस सूखे कागज़ पर अपनी मुंह की लार से कुछ लिखो और आधे घंटे बाद देखो, कागज़ पर क्या दिखता है।
इसी तरह पुरानी कैमरे की नेगेटिव पर अकाव के दूध से चित्र या नाम वगैरह लिख लो और आधे घंटे बाद नेगेटिव को पानी से धोकर देखो। नेगेटिव पर क्या उभर आया है?
नेगेटिव के काले हिस्से पर नाम लिख सकते हैं या कोई फूल-पत्ती भी बना सकते हैं। (कैमरे की फिल्म को शुरुआत या अंत वाला एकदम काला हिस्सा इस काम के लिए सबसे अच्छा रहेगा।)
लगभग आधे घंटे बाद इस नेगेटिव को पानी में अच्छे से हिलाकर बाहर निकाल लीजिए। अब ज़रा ध्यान से देखिए, छप गया न आपका बनाया हुआ नाम या चित्र इस नेगेटिव पर। इस बार क्या हुआ होगा? हम बात तो कर रहे थे। एंजाइम की लेकिन यहां तो सिर्फ फिल्म की नेगेटिव और अकाव का दूध ही है।
लगभग इसी तरह की चित्रकारी कभी-कभी पुरानी ब्लैक एंड वाइट फिल्मों पर दिख जाती है। पहले तो मुझे लगता था कि फिल्म पर खरोंच आ गई होगी लेकिन प्रोटीन के पाचन के बारे में और फफूंदों में प्रोटीन को पचाने वाले एंजाइम की जानकारी मिलने पर यह समझते देर न लगी कि यह चित्रकारी वास्तव में उन फफूंदों की है जिन्होंने फिल्म पर लगे जिलेटिन (जो प्रोटीन से बना होता है) को अपनी कारगुज़ारियों से पचा डाला।
अकाव के दूध में उपस्थित ‘प्रोटियोलायटिक एंजाइम' भी यही करता है। जहां-जहां आपने अकाव के दूध से लिखा, वहां पर यह एंजाइम नेगेटिव के प्रोटीन से क्रिया करता है जिससे फिल्म पर बना चित्र उभर आता है।
किशोर पंवार: शासकीय महाविद्यालय सेंधवा में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं।
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