दिनेश भट्ट
सभी शिक्षकों में नवाचार की संभावनाएं मौजूद होती हैं, लेकिन औसत शिक्षक यह मानकर चलता है कि उसका काम पाठ्यक्रम पढ़ा देना और बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करना है। बच्चे की उत्सुकता का विकास शिक्षक न अपनी जिम्मेदारी समझता है, न स्कूल में ऐसी परिस्थितियां हैं, जिनमें वह इस जिम्मेदारी को निभा सके।
कई बार ऐसा महसूस होती है। कि वर्तमान में शिक्षा का लक्ष्य केवल स्कूल में भर्ती होना, कार्यक्रमों में भाग लेना और प्रमाण पत्र प्राप्त करना हो गया है। लेकिन इन हालात के पीछे कुछ बुनियादी कारण हैं, जिसमें शिक्षण की दकियानूसी संस्कृति और परम्परागत पाठ्य पुस्तकें भी शामिल हैं। स्कूल केवल संस्थाओं के रूप में फैल रहे हैं और वहां भी जानकारी देने पर अनावश्यक ज़ोर है। शिक्षक बच्चों के प्रति सरस और प्रयोगशील नहीं है।
फिर भी कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं, जिन्होंने प्रयोग, शोध और क्रियात्मक अनुसंधान पर आधारित नवाचारों से शैक्षिक स्तर को रूपांतरित ही नहीं किया बल्कि शैक्षिक चिंतन से कर्म का चरित्र बदलने की कोशिश की है। एक समय था, जब स्कूलों की मौत की घोषणा कर दी गई थी लेकिन फ्रोबेल की गीत-शैली, मांटेसरी की खेल-शैली और गिजु भाई की कहानी एवं क्रिया-शैली ने स्कूलों को पाठ्यक्रमों व पुस्तकों की जटिलता से मुक्त कर उसे बालकेन्द्रित रूप दिया। जॉन होल्ट ने अपनी पुस्तक ‘हाऊ चिल्ड्रन फेल' में संस्थायी स्वरूप की समूची कल्पना को बाल सुलभ क्रियाओं के आनंद से बदलने की प्रक्रिया विकसित की।
उक्त बातों का आशय शिक्षा में नवाचार के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करना है। शिक्षा में नवाचार की अहम भूमिका है। नवाचार बच्चों के सहज विकास की प्रकिया के साथ ताल-मेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, एक उदाहरण से इस बात को समझने की कोशिश करते हैं।
कंचे ... अंक कार्ड और गणित
गांव में बच्चे कंचे खेलते ही हैं। और यदि शिक्षक वहां से निकले तो वे भाग खड़े होते हैं। मुझे देखकर भी कंचे खेलते बच्चे भाग जाते थे। स्कूल के मैदान में भी बच्चे कंचे खेलते थे। मैंने एक दिन कुछ बच्चों को कंचे खेलते हुए पकड़ लिया और उनसे कहा, “मैं भी तुम्हारे साथ कंचे खेलूंगा।' पहले तो वे डर गए लेकिन जब मैं गणित के अंक कार्ड लेकर उनके साथ खेलने लगा तो वे खुश हुए। गोले में कंचों को ढेर रख दिया। एक बच्चे को अंटे से मारने को कहा। उसने अंटा मारा, कंचे बिखर गए। मैंने कुछ बच्चों से बिखरे कंचे बुलवाए और कुछ से गोले क्या हम आमतौर पर बच्चों की स्वाभाविक क्रियाएं देखकर उन्हें समझने की कोशिश करते हैं? क्या यह देखने की कोशिश करते हैं कि बच्चे अपनी गतिविधियों से क्या सीख रहे हैं? यदि हम यह देख पाएं तो ढेरों नवाचार और शिक्षण विधियां अपने आप जन्म लेती हैं। में बचे शेष कंचे। मैंने कहा - जिनके हाथ में जितने कंचे हैं, वह उतने का ही अंक कार्ड ले आए। बच्चों को मज़ा आया।
जब बच्चे अंक कार्ड ले आए तो मैंने कहा लाइन से खड़े हो जाओ और अपने से पहले वाले लड़के से अंक पूछकर अपने अंक में जोड़ो और अगले बच्चे को बताओ। ऐसा सभी करेंगे। बच्चों को इस खेल में मज़ा आने लगा और मैं इसी बहाने अंक पहचानने एवं जोड़ने के अभ्यास कराने लगा। दो कंचों के बीच कदम से, बित्ते से और लकड़ी से नापने को उन्हें कहता तथा बड़े सहज ढंग से अमानक इकाइयों का ज्ञान उन्हें दे देता। बच्चे अब निडर होकर कंचे खेलते थे, और उनमें मेरे प्रयोग जुड़े रहते थे ।
नवाचार की असीम संभावनाएं
सभी शिक्षकों में नवाचार की संभावनाएं मौजूद होती हैं, लेकिन औसत शिक्षक यह मानकर चलता है। कि उसका काम पाठ्यक्रम पढ़ा देना और बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करना है। बच्चे की उत्सुकता का विकास शिक्षक ने अपनी जिम्मेदारी समझता है, न स्कूल में ऐसी परिस्थितियां हैं, जिनमें वह इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सके।
क्या हम आमतौर पर बच्चों की स्वाभाविक क्रियाएं देखकर उन्हें समझने की कोशिश करते हैं? क्या यह देखने की कोशिश करते हैं कि बच्चे अपनी गतिविधियों से क्या सीख रहे हैं? यदि हम यह देख पाएं तो ढेरों नवाचार और शिक्षण विधियां अपने आप जन्म लेती हैं, जिनसे हम बच्चों को बोझिल, उबाऊ और अरुचिकर शिक्षण से हटाकर आनंददायी और रुचिकर शिक्षा दे सकते हैं।
नवाचार अपने काम के प्रति रचनात्मक, ज़िम्मेवार, ठोस व व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने का एक तरीका होता है। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जॉन होल्ट ने लिखा है कि उनके छात्रों ने ‘भिन्न' के बारे में जो सवाल उठाया था, उसका सही उत्तर ढूंढ पाने में उन्हें तेरह वर्ष लग गए।
ऐसे सवाल, ऐसे शोध व खोज ही शिक्षक के रूप में काम करने का आनंद है। अधिकांश शिक्षकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली शिक्षण पद्धतियों में विद्यार्थियों के लिए कोई चुनौती नहीं होती। अधिकतम कक्षाओं में पठन - पाठन की प्रक्रिया की विशेषता है, जानकारी का हस्तांतरण - ने कि प्रयोग, अनुसंधान या अवलोकन। जबकि शिक्षकों के पास उनके जीवंत अनुभव होते हैं जिन्हें वे शैक्षिक चिंतन में उतारकर नवाचार के रूप में वास्तविक स्वरूप प्रदान करें तो बच्चे अपनी नीरसता और उदासी को भेदकर उल्हास और जिज्ञासा की धारा में बह सकते हैं।
दिशाओं का ज्ञान
मैंने एक बार महसूस किया कि मेरी शाला के अधिकांश विद्यार्थियों को दिशाओं का ज्ञान नहीं है। मैंने एक दिन सुबह की प्रार्थना के बाद सभी से पूछो, ‘सूरज किस तरफ से निकलता है?" बच्चों ने हाथ से इशारा करके बताया। मैंने कहा, “सभी उस तरफ घूम जाओ।'' फिर मैंने कहा, “अपनी पीठ की तरफ घूम जाओ।'' फिर कहा, अपना बायां हाथ उठाओ।' कुछ ने बायां हाथ उठाया लेकिन कुछ ने दायां हाथ उठा दिया। मैंने उस दिन सिर्फ बायां और दायां का अभ्यास कराया। दूसरे दिन मैंने सूरज निकलने की तरफ, पीठ की तरफ, बाएं और दाएं हाथ की तरफ घूमने के अभ्यास कराए। तीसरे दिन मैंने बताया कि जहां से सूरज निकलता है उसे पूर्व दिशा, जहां डूबता है उसे पश्चिम दिशा कहते हैं। पूर्व की तरफ मुंह कर खड़े होने पर बायें हाथ की तरफ उत्तर दिशा और दाईं तरफ दक्षिण दिशा होती है। मैं दिशा का नाम लेता, बच्चे उस तरफ मुड़ते जाते। पंद्रह दिन तक दिशाओं का खेल चलता रहा, उससे जुड़े प्रश्न पूछे जाते रहे, मसलन किस दिशा में क्या है? वह चीज किस दिशा में है? इत्यादि। कक्षा तीन में दिशा पर एक गीत था। रोज प्रार्थना के बाद उसे बच्चों से दोहराना शुरू किया, एक महीने में सभी कक्षाओं के बच्चों को खेल-खेल में दिशाओं का ज्ञान पूरी तरह आ गया। मुझे लगा यह तो सामूहिक दक्षता है। मैंने फिर ऐसी यशपाल समिति की सिफारिश में बस्ते के बोझ को कम करने के लिए जो सुझाव दिए गए थे उसमें पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षकों को ज्यादा अवसर देने एवं शिक्षकों के नवाचारों को प्राथमिकता देने पर ज़ोर दिया गया था। कई सामूहिक दक्षताओं को खोजा और उन पर प्रयोग करना शुरू कर दिए।
उक्त उदाहरण बताने का उद्देश्य है कि नवाचारों के माध्यम से हम परम्परागत शैक्षिक जड़ता को तोड़ते हुए दक्षताओं को विकसित करने का प्रयास करें। इसके लिए आवश्यक होगा कि शिक्षक सृजनात्मक एवं अध्ययन - शील हों क्योंकि कुछ शिक्षक अनुभव से सीखते हैं, कुछ अध्ययन से, तो कुछ सृजन की साधना से।
शिक्षकों को पर्याप्त मौके हों
यशपाल समिति की सिफारिश में बस्ते के बोझ को कम करने के लिए जो सुझाव दिए गए थे उसमें पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षकों को ज्यादा अवसर देने तथा शिक्षकों के नवाचारों को प्राथमिकता देने पर ज़ोर दिया गया था; जिस पर अमल भी हुआ और कुछ अनुकूल परिणाम भी आए। शिक्षण को बालकेन्द्रित बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षक की कल्पना, स्वतंत्रता, स्वायत्ता को न केवल प्रोत्साहन मिले बल्कि उसे सम्मान भी मिले।
नवाचार के लिए बच्चों की भाषा का पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसके लिए अनेकानेक प्रयोग हुए हैं क्योंकि बच्चा भाषा के जरिए अपनी बात प्रकट करता है, दूसरों की बात समझता है; तथा संवाद करता है। ऐसे विद्यार्थियों की संख्या बहुत है, जो सरल भाषा नहीं लिख पाते। यह एक गंभीर समस्या है। इस कमी को दूर करने के लिए कई नवाचार किए जा सकते हैं। भाषा शिक्षण को रटने की प्रवृत्ति से निकालने के लिए कुछ नवाचार वर्तमान में प्राथमिक कक्षाओं में चल रहे हैं। मसलन शब्दों से वर्ण सीखना, शब्द कार्ड एवं चित्र-कार्डों से शब्द पहचानना, वाक्य बनाना। सरल से परिचित तथा परिचित से अपरिचित की तरफ ले जाने के ये प्रयोग काफी सार्थक रहे हैं ।
भाषा और व्याकरण
ध्यान देने वाली बात यह है कि बच्चा भाषा ऐसे समय और संदर्भ में सीखता है, जहां उसका ध्यान भाषा पर केन्द्रित नहीं है। इसलिए यह जरूरी होता है कि कक्षा के अन्दर ही विभिन्न प्रकार के संदर्भ बनाए जाएं जिनके आधार पर बच्चे भाषा को विविध तरीकों से उपयोग करने का अभ्यास कर सकें।
व्याकरण एक कठिन विषय माना जाता है, और इस विषय से विद्यार्थियों को सहज ही कोई दिलचस्पी भी नहीं है। संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, लिंग इत्यादि की परिभाषाएं रटी तो बड़ी जल्दी जा सकती हैं, लेकिन आसानी से समझ नहीं आती। मुझे गिजु भाई की पुस्तक ‘दिवा-स्वप्न' का एक अंश याद आ रहा है, जिसमें शिक्षक व्याकरण को बड़े ही रोचक ढंग से पढ़ाता है। नवाचार की चर्चा में यह उपयुक्त उदाहरण है।
इस अंश में शिक्षक सबसे पहले तख्ते पर लिख देता है - "उठो, बैठो, दौड़ो, खेलो इत्यादि।'' फिर वो लड़कों से ये क्रियाएं करने को कहता है। लड़के बड़े आनंद से उन्हें करते हैं। फिर शिक्षक कुछ कार्डों में ये क्रियाएं लिखकर उनमें बांट देता है; करने और समझने को कहता है। फिर छोटे छोटे प्रश्न पूछता है। मसलन जीवन कौन-सी क्रिया करता है?
संज्ञा पढ़ाने के लिए उसने लड़कों से कहा, "जिस चीज का कोई नाम हो तुम उसे ले आओ। जाकर पूछो तेरा क्या नाम है? अगर कोई नाम है, तो ले आओ।'' लड़के झट समझ गए। वे नाम वाली चीजें लाने लगे। शिक्षक ने एक पेटी में संज्ञा के कई कार्ड डाल दिए, लड़के उसमें से संज्ञा छांटने लगे। फिर उसने क्रिया पदों के कार्डों की पेटी और लाकर रख दी। दूसरा खेल बताया - क्रिया पद के योग्य संज्ञा ढूंढो और संज्ञा के योग्य क्रिया पद ढूंढो। उदाहरणार्थ ‘घोड़ा' शब्द लेकर ‘दौड़ता है'।
इसके बाद उसने बच्चों से अलग अलग रंग की पेंसिल बुलवाई और प्रत्येक छात्र से पूछा, “तुम खास कौन-सी पेंसिल लाए हो?"
बच्चों ने कहा, “लाल, नीली, पीली, हरी.......''
शिक्षक ने कहा, "ये खास शब्द विशेषण हैं।''
उसने खेल बताया - संज्ञा का विशेषण ढूंढो और विशेषणे की संज्ञा ढूंढो।
व्याकरण के अगले क्रम में उसने बच्चों से पूछा - 'मैं' अर्थात कौन? बच्चों ने शिक्षक का नाम बता दिया। इसी प्रकार उसने तुम, वह, वो अर्थात कौन पूछा और इस प्रकार सर्वनाम समझाया।
गिजु भाई की इस किताब में व्याकरण को गतिविधि आधारित बड़े रोचक ढंग से विस्तार के साथ समझाया गया है, मैंने यहां केवल आंशिक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। वे पहले परिभाषा नहीं रटवाते; क्रिया विधि के बाद बच्चे स्वयं परिभाषा बना लेते हैं। और व्याकरण जैसी रट्टू विषय रोचक ही नहीं हो जाता बल्कि बच्चों में सहज ढंग से व्याकरण की समस्त दक्षताएं आ जाती हैं। यह है शिक्षक के नवाचार का कमाल।
नवाचार, बस एक सीढ़ी है
इसी प्रकार गणित में भी बुनियादी नियम और सिद्धांत सिखाने पर ज़ोर होना चाहिए, यह जरूरी नहीं कि बच्चे शुरू में ही सब समझ जाएं।
गणित में भी ऐसे नवाचारों की जरूरत है, जिनमें सवाल हल कर पाने के दबाव और डर के बिना स्वाभाविक तौर पर गणित की क्रियाएं करने के मौके हों। कक्षा में ऐसी गतिविधियां हों जिनसे बच्चों को रोचकता का एहसास हो, जिनमें कुछ करना पड़े और करने के बाद सोचना, समझना और समझाना पड़े।
आधुनिक विज्ञान शिक्षण में ‘प्रयोग करके सीखना' और 'प्रत्यक्ष तथा व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करना', दोनों महत्वपूर्ण पक्ष स्थान बना रहे हैं। ऐसे अनुभव नवाचारों से ही संभव हैं। व्यावहारिक अनुभव अधिक उपयोगी और स्थाई होते हैं। इन अनुभवों का विविध परिस्थितियों में स्थानान्तरण भी किया जा सकता है।
विकास और सुधार की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए शिक्षक को मालूम होना चाहिए कि नवाचार एक सीढ़ी होती है, जिस पर चढ़कर आगे के रास्ते खुद-ब-खुद मिलते हैं।
एक बात और ध्यान देने योग्य है। कि नवाचार अधपके न हों। नवाचार सैद्धांतिक अध्ययन से उभरे हों जो व्यवहार में प्रचलित परम्पराओं से भी जुड़ सकें; और उनके जरिए पढ़ाने के तरीकों में विविधता लाई जा सकती हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि नवाचारों से अध्यापक का शैक्षिक पुनरुत्थान होता है, और यह पुनरुत्थान तभी संभव है, जब उसे अध्ययन, प्रयोग, लेखन, सृजन आदि में आत्मीय रूप से जोड़ा जाए। उसके लिए अकादमिक अवसर उपलब्ध किए जाएं, उसके कार्य को प्रारम्भिक स्तर पर प्रोत्साहन दिया जाए।
यदि शिक्षा का अर्थ बालक का सर्वांगीण विकास है, तो शिक्षक के प्रत्येक नवाचार में बच्चे की सहभागिता आवश्यक है। तथा यह भी जरूरी है कि शिक्षक अपने आचरण व चरित्र में ऐसा परिवर्तन लाए जिससे यह लगे कि शिक्षक, वेतन भोगी पद नहीं बल्कि साधना और सृजना से जुड़ा एक समग्र व्यक्तित्व है।
दिनेश भट्टः शिक्षक हैं। परासिया, जिला छिंदवाड़ा के निवासी हैं।
सिर्फ पांच सेकेंड ...
नीचे संख्याओं के दो समूह दिए गए हैं। आपको पांच सेकेंड के भीतर यह बताना है कि दोनों का योगफल समान होगा या अलग-अलग?