क्वेंटीन रेनॉल्ड
अनुवादः अरविंद गुप्ता

कनाडा में मांट्रियल नाम का बड़ा शहर है। वहां कई छोटी-छोटी सड़कें भी हैं। उनमें से एक है एडवर्ड स्ट्रीट। उस सड़क को पियरे जितनी अच्छी तरह से और कोई नहीं जानता था। पिछले तीस सालों से पियरे ही उस सड़क पर बसे सभी परिवारों को दूध बांटता था। पिछले पंद्रह सालों से पियरे की दूध गाड़ी को एक बड़ा सफेद घोड़ा खींचता था। उस घोड़े की नाम था जोज़फ। शुरू में जब वह घोड़ा दूध कंपनी के पास आया तब उसका कोई नाम न था। कंपनी ने पियरे को सफेद घोड़े के इस्तेमाल की इजाज़त दे दी। पियरे ने प्यार से घोड़े की गर्दन को सहलाया और उसकी आंखों में झांक कर देखा।

"यह एक समझदार, भला और बहुत वफादार घोड़ा है।'' पियरे ने कहा।
मैं इसका नाम संत जोज़फ के नाम पर रखेगा क्योंकि वे एक नेक और दयालू इंसान थे।''
साल भर के अंदर ही घोड़े को सड़क का पूरा रास्ता एकदम रट गया।
पियरे अक्सर शेखी बघारता, “मैं तो लगाम छूता तक नहीं हूं, मेरे घोड़े को तो लगाम की ज़रूरत ही नहीं है।''

रोजाना सुबह पांच बजे तड़के ही पियरे दूध कंपनी में पहुंच जाता। तब गाड़ी में दूध लादा जाता और फिर जोज़फ उसे खींचता। पियरे अपनी सीट पर बैठते ही जोज़फ को पुचकारता और घोड़ा अपना मुंह उसकी ओर घुमा देता। आसपास खड़े अन्य ड्रायवर कहते, “सब कुछ ठीक-ठाक है, पियरे जाओ।'' इसके बाद पियरे और जोज़फ इत्मीनान के साथ सड़क पर निकल पड़ते।

बिना किसी इशारे के गाड़ी अपने आप ही एडवर्ड स्ट्रीट पहुंच जाती। फिर घोड़ा सबसे पहले घर पर रुकता और पियरे को नीचे उतरकर दरवाजे के सामने एक बोतल दूध रखने के लिए करीब तीस सेकेंड की मोहलत देता। फिर दूसरे घर पर रुकता।

इस तरह पियरे और घोड़ा पूरी एडवर्ड स्ट्रीट की लंबाई पार कर फिर गाड़ी घुमाकर वापस चल पड़ते। सचमुच जोज़फ एक बहुत होशियार घोड़ा था।

अस्तबल में पियरे जोज़फ की तारीफ करते न थकता, मैं कभी उसकी लगाम छूता तक नहीं हूं। कहां कहां रुकना है यह उसे अच्छी तरह मालूम है। अगर जोज़फ घोड़ा गाड़ी खींच रहा हो तो मेरी जगह कोई अंधा आदमी होता तो भी काम चल जाता।''

बरसों तक यही सिलसिला चलता रहा। पियरे और जोज़फ धीरे-धीरे एक साथ बूढ़े होने लगे। पियरे की मूंछे अब पक कर सफेद हो गई थीं। जोज़फ भी अब अपने घुटनों को उतना ऊंचा नहीं उठा पाता था। अस्तबल के सुपरवाइजर जैक को उनके बुढ़ापे का पता तब चला जब एक दिन पियरे लाठी के सहारे चलता हुआ आया।

"क्या बात है पियरे?' जैक ने हंसकर पूछा, “क्या तुम्हारी टांगों में दर्द है?"
"हां जैक, मैं बूढ़ा हो रहा हूं और अब पैर भी दर्द करने लग गए हैं।'' पियरे ने जवाब दिया।
"तुम अपने घोड़े को दरवाजे पर दूध की बोतलें रखना भर बस और सिखा दो। बाकी सारा काम तो वह करता ही है।'' जैक ने कहा।

एडवर्ड स्ट्रीट पर बसे परिवारों के नौकरों को मालूम था कि पियरे पढ़ नहीं सकता इसलिए वे उसके लिए कोई चिट्ठी नहीं छोड़ते थे। अगर कभी दूध की एक और बोतल की जरूरत होती तो वे घोड़ा गाड़ी की आवाज़ सुनकर दूर से ही चिल्लाते, पियरे आज क और बोतल देना।"

पियरे की याद्दाश्त बहुत अच्छी थी।

अस्तबल वापस पहुंचकर बिना गलती के वह जैक को दूध का सारा हिसाब बता देता और जैक अपनी डायरी में पूरा हिसाब तुरंत नोट कर लेता था।

एक दिन दूध कंपनी का मैनेजर सुबह-सुबह अस्तबल का मुआयना करने पहुंचा। जैक ने पियरे की ओर इशारा करते हुए मैनेजर से कहा, "जरा देखिए तो पियरे किस तरह अपने घोड़े से बात करता है। और घोड़ा भी किस प्रकार अपना मुंह घुमाकर पियरे की बात सुनता है। जरा घोड़े की आंख की चमक तो देखिए, मुझे लगता है कि इन दोनों में कोई गहरी दोस्ती है। उस छिपे रहस्य को बस यही दोनों जानते हैंकभी-कभी ऐसा लगता है जैसे ये दोनों हम पर हंस रहे हों। पियरे भला आदमी है पर अब बेचारा बूढ़ा हो रहा है। अच्छा यही होगा कि अब आप उसे रिटायर कर दें और उसकी पेंशन बांध दें।'' उसने मैनेजर से कहा।

"बात तो तुम्हारी ठीक है। पियरे अपना काम तीस साल से कर रहा है और कभी कहीं से कोई शिकायत नहीं आई है। उससे कहो अब वह घर बैठकर आराम करे उसे हर महीने पूरी तनख्वाह मिलती रहा करेगी।'' मैनेजर ने कहा।

परंतु पियरे ने रिटायर होने से इंकार कर दिया। इस बात को सोचकर कि वह रोज अपने प्यारे घोड़े जोज़फ से नहीं मिल पाएगा उसे गहरा धक्का लगा। उसने जैक से कहा, “हम दोनों ही अब बूढ़े हो रहे हैं। हम दोनों अगर इकट्ठे ही रिटायर हों तो अच्छा होगा। मैं आपसे यह वायदा करता हूं कि जब मेरा घोड़ा रिटायर होगा तब मैं भी काम छोड़ दूंगा।''

जैक एक भला आदमी था, वह पियरे की बात समझ गया। पियरे और जोजफ के बीच रिश्ता ही कुछ ऐसा था जिसे देख दुनिया मुस्कराने लगे। ऐसा लगता था मानों दोनों एक-दूसरे का सहारा हों। जब पियरे गाड़ी की सीट पर बैठा हो और जोजफ गाड़ी खींच रहा हो तब दोनों में से कोई भी बूढ़ा नहीं लगता। परंतु काम खत्म होने के बाद पियरे धीरे-धीरे लंगड़ाते हुए सड़क पर इस तरह चलता जैसे कि कोई बहुत बूढ़ा आदमी चल रहा हो। और उधर घोड़े का मुंह भी लटक जाता और वह बड़ा थका-हारा-सा अस्तबल वापस जाता।

एक दिन सुबह-सुबह जब पियरे आया तो जैक ने उसे एक बेहद बुरी खबर सुनाई, “पियरे, आज सुबह जोज़फ सोकर ही नहीं उठा। वह बहुत बूढ़ा हो गया था। 25 साल की उम्र के घोड़े की वैसी हालत हो जाती है जैसे 75 साल के बूढ़े आदमी की होती है।''

पियरे ने धीरे से कहा, "हां, मेरी उम्र भी अब पिचहत्तर साल की है। मैं अब जोज़फ को कभी नहीं देख पाऊंगा।''
"नहीं, तुम उसे देख सकते हो।" जैक ने दिलासा देते हुए कहा, "वह अभी अस्तबल में है और उसके चेहरे पर बड़ी शांति है। तुम जाकर उसे देख लो।''

पियरे घर लौटने के लिए वापस मुड़ा, “तुम समझोगे नहीं जैक।"
जैक ने उसका कंधा थपथपाया, “फिक्र न करो। हम तुम्हारे लिए जोज़फ जैसा ही एक और घोड़ा ढूंढ देंगे। और महीने भर में तुम जोज़फ की तरह ही उसे भी पूरा रास्ता सिखा देना ...... है ..... न।

बरसों से पियरे एक मोटी टोपी पहनता था। टोपी से उसकी आंखें लगभग ढंक जाती थीं। अब जब जैक ने पियरे की आंखों में झांका तो वह सहम गया। उसे उन आंखों में एक निर्जीव-सा भाव दिखाई दियापियरे की आंखों में से उसके दिल का दर्द झलक रहा था। ऐसा लगता था जैसे उसका दिल रो रहा हो।

"आज छुट्टी ले लो पियरे।'' जैक ने कहा। परंतु पियरे उससे पहले ही घर वापस चल पड़ा था। अगर कोई उसके पास होता तो वह अवश्य ही पियरे की आंखों से लुढ़कते आंसू देखता और उसका सुबकना सुनता। पियरे एक कोना पार कर सीधा सड़क पर आ गया। उधर तेजी से आते ट्रक के ड्रायवर ने ज़ोर से हॉर्न बजाया और दबाकर ब्रेक लगाए परंतु पियरे को कुछ भी सुनाई नहीं दिया।

पांच मिनट बाद एम्बुलेंस आईजांच करते ही डॉक्टर ने कहा, "यह आदमी मर चुका है।''
तब तक जैक और दूध कंपनी के कई अन्य लोग वहां आ पहुंचे और उसके मृत शरीर को देखने लगे।

ट्रक ड्रायवर ने गुस्से में कहा, “यह आदमी खुद-ब-खुद ट्रक के सामने आ गया। जैसे उसे दिखाई ही नहीं दे रहा हो। जैसे वह एकदम अंधा हो।'

एम्बुलेंस को डॉक्टर अब लाश की ओर झुका, “अंधा! सचमुच यह आदमी तो अंधा था। जरा उसकी आंखों का मोतियाबिंद तो देखो? यह आदमी कम-से-कम पांच साल से अंधा होगा।' फिर उसने जैक की तरफ मुड़कर कहा, "तुम कहते हो कि यह आदमी तुम्हारे लिए काम करता था? तुम्हें नहीं मालूम कि वह अंधा था?''

“नहीं ... नहीं।'' जैक ने धीमी आवाज़ में कहा, “यह रहस्य हम में से किसी को नहीं पता था। सिर्फ उसके दोस्त जोज़फ को पता था। यह उन दोनों के बीच की बात थी। सिर्फ उन दोनों के बीच की।''


मूल कहानीः ए सीक्रेट बीटबीन टू फ्रेंड्स। लेखकः क्वेंटीन रेनॉल्ड
अरविंद गुप्ताः शौकियातौर पर लेखन व अनुवाद की कार्य करते हैं। दिल्ली में रहते हैं।
चित्रांकनः बी. एम. भौंडे। शौकिया चित्रकार, होशंगाबाद में रहते हैं।