चेतना खरे
जुड़वां शब्द सुनते ही हम सभी के दिमाग में तुरंत ही दो हमशक्ल भाई या बहनों की तस्वीर उभरती है, जिन्हें हम बमुश्किल ही पहचान पाते हैं। जैसे, राम-श्याम या सीता-गीता के नामों से फिल्मों में दिखाई देने वाले जुड़वां पात्र। यह तो हुई सिनेमा की बात लेकिन हकीकत में हमारे जान-पहचान वालों के घरों में कभी-कभार जुड़वां बच्चे होने की
निषेचन की प्रक्रिया: शुक्राणु और अंडाणु के बीच होने वाली निषेचन क्रिया को यहां क्रमवार दिखाने की कोशिश की गई है।
एः शुक्राणु करीब आते हुए अंडाणु की बाहरी सतह के जेलीनुमा आवरण को छू लेता है।
वी: शुक्राणु के आगे के सिरे पर स्थित एक्रोसोम की कोशिका झिल्ली, अंडाणु कोशिका की झिल्ली मे जुड़ जाती है और एक्रोसोम में मौजूद एंजाइम को छोड़ती है। ये एंजाइम अंडाणु को चारों और में घेरे हुए जैली के साथ क्रिया करते हैं।
सी: एक नलीनुमा संरचना बनती है जो जेली को परे सरकाती हुई अंडाणु की कोशिका झिल्ली तक पहुंचने की कोशिश में है।
डी: यह नली अंड कोशिका की झिल्ली से जुड़ जाती है। अब शुक्र कोशिका और अंड कोशिका के मिलन के बीच में किसी भी तरह की बाधा नहीं है।
इः और ... अब शुक्राणु का केन्द्रक अंड कोशिका में चला जा रहा है। बाहर सिर्फ बच गई शुक्राणु की दुम।
खबर हमें पता चलती है। अखबारों में भी दो से अधिक बच्चों के एक साथ पैदा होने की खबरें सभी ने पढ़ी हैं।
गोल-माल लगता मामला
इन सब बातों पर सोचो तो पहले तो सारा मामला गोल-मोल-सा लगता है। किन्तु मामले की तह तक जाने के लिए भ्रूण बनने के भी पहले की कुछ घटनाओं को समझना होगा।
कुछ मोटी-मोटी बातें तो हम जानते ही हैं, जैसे -- लैंगिक प्रजनन इन सब बातों पर सोचो तो पहले में जब शुक्राणु का मेल अंडाणु से तो सारा मामला गोल-मोल-सा लगता होता है तब नए जंतु की शुरुआत
गर्भाशय में भ्रूण का विकास एक तरल से भरी थैलीनुमा संरचना में होता है। एक ही अंडे से बन रहे जुड़वां में थैली एक ही होती है जिसे यूनिवॉलर कहा जाता है। यदि जुड़वां दो अलग अलग अंडाणुओं से बन रहे हों तो दोनों बच्चों के लिए दो अलग-अलग थैलियां होंगी जिन्हें वाइनोवॉलर कहा जाता है।
भ्रूण के रूप में होती है। इंसानों में मादा का अंडाशय एक बार में एक अंडाणु छोड़ता है जबकि नर के शुक्रकोश लाखों की संख्या में शुक्राणु बनाते हैं। यानी एक अंडाणु को निषेचित करने के लिए लाखों की फौज तैयार है।
जनन क्रिया के दौरान अंडाणु को निषेचित करने के लिए लाखों की तादाद में शुक्राणु अंडाणु की ओर चल पड़ते हैं। लेकिन अंडाणु के पास तक पहुंच सकने वाले शुक्राणुओं की संख्या काफी कम होती है और इनमें से कोई एक शुक्राणु ही अंडाणु को भेद पाने में सफल हो पाता है। शुक्राणु की पूंछ बाहर ही रह जाती है और उसका केन्द्रक अंडाणु के केन्द्रक से मिल जाता है। यही निषेचन है (देखिए चित्र)। यह तो हुई सामान्य निषेचन क्रिया, परन्तु जुड़वां कैसे बनते हैं?
यदि सामान्य स्थितियों में बने भ्रूण के विकास की प्रारंभिक अवस्था (दो या चार कोशिकीय अवस्था) में इस भ्रूण में समसूत्री विभाजन हो जाए तो दो समान भूण तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार से दो समान लिंग व रंगरूप वाली जुड़वां संतानें पैदा होंगी। ऐसे बच्चे समरूप या एक ही अंडाणु से बने (Identical or Uniovular Twins) कहे जाते हैं।
लेकिन यदि किन्हीं परिस्थितियों में एक से अधिक अंडाणु विकसित हो जाते हैं तो उन्हें दो पृथक शुक्राणुओं द्वारा निषेचित किया जाएगा। और परिणामस्वरूप उत्पन्न संतानें लिंग व रंग-रूप दोनों में अलग-अलग हो
बाएं: पेरिस के एक संग्रहालय में रखा हुआ रीटा-क्रिस्टीना का कंकाल। सन् 1829 में पैदा हुई इन बहनों का परस्पर जुड़ा हुआ कंकाल। इन जुड़वां बहनों की कमर के ऊपरी हिस्से से तो धड़े विकसित हो गए लेकिन निचला हिस्सा एक ही रहा। इन जुड़वां बहनों की जिंदगी पांच महीनों की थी।
नीचे: रीटा-क्रिस्टीना का एक कलाकार द्वारा बनाया गया रेखाचित्र।
सकती हैं। ऐसे जुड़वां बच्चे unidentical or fraternal twins कहलाते हैं।
दो यानी जुड़वां बच्चे होना एक सामान्यतः दिखाई दे जाने वाली घटना है। एक अनुमान के अनुसार एक साथ तीन बच्चे पैदा होने की घटना 8,000 पैदाइशों में एक बार होने की संभावना रखती है और चार बच्चे होना तो 700,000 पैदाइशों में से एक मामले में ही देखा जाता है।
एक-दूजे से जुड़े हुए
कभी-कभी जुड़वां बच्चों के कमर से ऊपरी या कमर से नीचे के हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। इन जुड़वां बच्चों को सियामीज़ जुड़वां (Siamese Twins/conjoined twins) कहते हैं। इस तरह की घटनाएं आइडेंटिकल ट्विन में ही देखी जाती हैं। पेरिस के एक म्यूजियम में तो सियामीज़ जुड़वां के कंकाल भी सहेजकर रखे गए हैं। वहां रखे कंकालों
पेरिस के संग्रहालय में कंकाल को आधार मानकर कलाकार द्वारा बनाया गया एक रेखाचित्र। जुड़वां बच्चों में सिर और गर्दन तो एक ही है, लेकिन कंधों से नीचे का पूरा शरीर दो अलग हिस्सों में बंट गया है।
में एक कंकाल रीटा-क्रिस्टीना जुड़वां बहनों का है। इनके कमर के ऊपरी हिस्से में दो धड़, दो सिर हैं जबकि कमर से निचला हिस्सा एक सामान्य इंसान का सा है। इसी म्यूजियम में रीटा-क्रिस्टीना से विपरीत एक कंकाल ऐसा है जिसमें जुड़वां बच्चों का सिर तो एक ही है लेकिन बाकी धड़ दो बच्चों का है।
ऐसे बच्चों के लंबे समय तक जीवित रहने की कम ही घटनाएं प्रकाश में आई हैं। फिर भी बैंकॉक में जन्मे एक सियामीज़ जुड़वां एंग और चांग बंधुओं ने लंबे समय तक साथ-साथ जिंदगी गुजारी और क्रमशः 12 और 10 बच्चों के पिता भी बने।
सियामीज़ जुड़वां कैसे बनते हैं इस सवाल का जवाब देने की काफी कोशिशें हुई हैं लेकिन अफसोस कि अभी भी तसल्लीबख्श जवाब का इंतज़ार है। अभी तक जो समझ बन सकी है उससे ऐसा लगता है कि आइडेंटिकल ट्विन बनने वाली स्थितियों में निषेचित अंडे में कोशिकाओं के दो समूह बनने की प्रक्रिया बीच में ही रुक जाती है जिससे विकसित होने वाले भ्रूण में जहां तक कोशिका के दो समूह बन गए थे वहां तक तो दो अलग-अलग शरीर बन जाते हैं लेकिन शेष शरीर एक ही होता है। अब शरीर के ऊपरी हिस्से जुड़े होंगे या निचले हिस्से यह इससे तय होगा कि निषेचित अंडे में कोशिकाओं के दो समूह बनने की प्रक्रिया कहां तक सफलता पूर्वक चली। यह मामला काफी उलझाव भरा है।
तो बस जुड़वां बच्चों के बारे में बात इतनी-सी ही थी, उम्मीद है। अगली बार यदि किसी राम-श्याम या सीता-गीता को देखेंगे तो आपका नज़रिया कुछ फर्क होगा।
चेतना खरे: विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से प्राणी विज्ञान में एम. एससी. कर रही हैं।