कार्ल चैपक

यूनानी मिथक में प्रोमिथियस एक नायक है, जिसने देवताओं से आग चुराकर इंसानों के हवाले की थी। इस खता की सज़ा के बतौर उसे एक पहाड़ पर ज़ंजीरों के सहारे एक चट्टान से बांध दिया गया था, जहां एक गिद्ध रोज़ाना उसके जिगर को नोंचता था। इस नायक को लेकर यूनान में कई नाटक भी लिखे गए हैं।


साक्ष्य जुटाने का लम्बा अनुष्ठान संपन्न कर चूकने के और अपने सारे गले खंखार चुकने के बाद असाधारण सभा अपनी आज की बैठक से मुखातिब हुई। बैठक जो पवित्र जैतून के बाग के साए तले हो रही थी।

"तो हाज़िरीन'', ऊंघते हुए महासभा के अध्यक्ष हाइपोमीथियस बोले, "इस सबने हैरान कर देने वाला वक्त ले लिया हमारा। मेरा ख्याल है मुझे दोहराने की जरूरत नहीं है यहां, लेकिन किसी भी उसूली एतराज़ को खारिज करने के लिए - मुजरिम प्रोमीथियस, जो कि यहां का एक बाशिंदा है और जिसे इस अदालत के सामने तलब किया गया है, उस पर इलज़ाम है - आग की ईजाका और तिस पर - हुं हुं.... मौजूदा निज़ाम में खलल डालने का; अपना यह गुनाह कुबूल करता है। यही नहीं, वह यह भी कहता है कि वह जब चाहे तब आग पैदा कर सकता है - ऐसी तरकीब के जरिए जिसे सुलगाना कहते हैं। तीसरे, इस... क्या कहें... इस धधका देने वाली वारदात पर अंधेरा भी न रहने दिया इसने - सब कुछ रोशन कर दिया, जान बूझ कर। बताना ही था तो कम से-कम माकूल अफसर को ही बताता। लेकिन इसने न सिर्फ नामाकूल लोगों को ही यह इल्म दिया है, बल्कि इसने इस रोशनी को उनके हवाले कर दिया - उनके अपने इस्तेमाल के लिए। और इसके गवाह हैं वे सभी लोग जिन्हें हमने अभी-अभी दरयाफ्त किया। बस इतना ही। मेरा ख्याल है कि हम इसे गुनाहगार एलान कर सज़ा सुना सकते हैं।''

“मुआफ कीजिएगा, मिस्टर प्रेज़िडेन्ट'', गैर पेशेवर मैजिस्ट्रेट एपोमीथियस की आपत्ति थी। यह, “लेकिन मैं सोचता हूं कि इस खुसूसी अदालत की अहमियत देखते हुए और भी माकूल हो, अगर हम आपसी सलाह-मशविरे और एक तरह से आम बहस-मुबाहिसे के बाद ही अपना फैसला सुनाएं।''

"जैसा आप कहें, हाज़िरीन", दोस्ताना लहज़े में हाइपोमीथियस ने अपनी सकारात्मक गर्दन हिलाई। "वैसे तो मामला एकदम उजला है लेकिन अगर आप में से कोई भी अपनी राय देना चाहे तो बिलाशक..."

"मैं यह ध्यान दिलाने की गुस्ताखी करूंगा", ट्राइब्यूनल के एक मेम्बर एमीथियस ने हौले से खांसते हुए कहा, मेरी राय में इस सारे मामले के एक पहलू पर खास ज़ोर दिया जाना चाहिए। हज़रात, मैं यहां मज़हबी पहलू की बात कर रहा हूं। मैं आपसे पूछता हूं कि यह आग आखिर है क्या? यह सुलगती चिंगारी भला क्या है? जैसा कि खुद प्रोमीथियस ने कुबूला है, यह बिजली के अलावा और कुछ नहीं. और बिजली जैसा कि हम सब जानते हैं बुलन्द आवाज़ फरिश्ते ज़्यूस (Zeus) की हैरत अंगेज़ ताकत को इज़हार है। हज़रात, क्या आप मुझे यह समझाएंगे कि प्रोमीथियस जैसा एक नाचीज़ इन्सान भला इस खुदाई आतिश तक पहुंचा कैसे? किस हक से उसने इसे अपनी गिरफ्त में लिया? कहां से मिली यह उसे? उसने हमें यह जताने की कोशिश की है कि उसने महज इसे ईजाद किया है. लेकिन यह एक बचकानी कैफियत है - क्योंकि अगर बात इतनी ही सीधी व मासूम होती, तो हम में से किसी एक ने क्यों न खोज निकाला इसे! मुझे पूरा भरोसा है हज़रात, कि प्रोमीथियस ने यह आग बिलकुल हमारे फरिश्तों से चुराई है। उसका इन्कार, उसका छल, हमें गुमराह नहीं कर सकतेमैं उसकी खता को कुछ यों बयां करूंगा: एक मामूली-सी चोरी, लेकिन दूसरी तरफ कुफ्र और फरिश्तों के खिलाफ बगावत। हम यहां जमा हैं इस नापाक जुनून को कड़ी-से-कड़ी सजा सुनाने और हमारे अपने कौमी फरिश्तों की पाक मिल्कियत की हिफाज़त के लिए। मैं बस इतना ही कहना चाहता था।'' अपने लबादे की किनार में बड़े जोशोखरोश से अपनी नाक सुड़कते हुए एमीथियस ने अपनी बात समेटी।

‘‘बहुत खूब'', हाइपोमीथियस सहमत हुए। ‘‘कोई और भी अपनी बात कहना चाहेगा?''

“क्षमा करें'' एमोमीथियस बोले, ‘‘लेकिन मैं अपने श्रद्धेय बन्धुवर की दलील से सहमत नहीं। मैंने इस प्रोमीथियस को आग सुलगाते देखा और सज्जनों, मैं बेझिझक कह सकता हूं - हमारे ही बीच रहे यह बात - कि इसमें वाकई कुछ भी नहीं। इस आग को तो कोई भी आवारा-नाकारा बना सकता था। हम खुद ऐसा कर न सके, महज़ इसलिए कि एक संजीदा आदमी के पास वक्त कम होता है और उसके जेहन में यह ख्याल तक नहीं आता कि दो पत्थर रगड़े और बना ले इक आग। मैं अपने सहयोगी एमीथियस को आश्वस्त करता हूं कि ये निहायत मामूली प्राकृतिक शक्तियां हैं जो ईश्वर तो क्या, किसी भी चिन्तक मनुष्य की गरिमा के भी पासंग नहीं और इस लायक नहीं कि वह अपना सिर इनमें खपाए। मेरी नज़र में तो आग का यह मसला इतना तुच्छ है कि इससे हमारे उन मामलों पर कोई आंच न आएगी जो पवित्र हैं हमारे लिए। लेकिन इस मामले का एक पहलू और है, जिसकी तरफ मैं अपने लब्ध प्रतिष्ठ सहयोगियों का ध्यान खींचना चाहूंगा। ऐसा लगता है कि यह आग एक खतरनाक तत्व है, बल्कि नुकसानदेह। आपने अभी कई गवाहों के बयानात सुने जिनके मुताबिक प्रोमीथियस की इस अल्हड़ ईजाद को आजमाने में वे न सिर्फ अपने हाथ ही झुलसा बैठे, बल्कि उनकी जायदाद को भी नुकसान पहुंचा। महानुभावो, प्रोमीथियस की इस गफलत से जो यह आतिश आम-फम हो जाए, जिस पर काबू पाना, बदकिस्मती से, अब नामुमकिन ही दीखता है.... तो न सिर्फ हमारी संपत्ति पर खतरा मंडराएगा बल्कि हमारे अपने प्राण भी इसकी लपेट में आ जाएंगे। और इस सबके मानी महानुभावोः हमारी इस सारी सभ्यता का अंत भी हो सकता है। इसमें भला कितनी लापरवाही चाहिए - इत्ती-सी - और फिर यह शैतानी का आलम रोके से न रुकेगा। सज्जनों, प्रोमीथियस, दुनिया में इतनी खौफनाक शै लाने के गैर-ज़िम्मेदाराना काम करने का गुनाहगार है। मैं उसके इस गुनाह को गम्भीर जिस्मानी चोट पहुंचाने और अवाम की सलामती को खतरे में डालने का गुनाह मानता हूंइस सबके मद्देनजर मैं उसे बेड़ियों और सख्त निष्ठावन वाली उम्र कैद दिए जाने का हिमायती हूं। मेरी बात तमाम हुई, अध्यक्ष महोदय।''

“एकदम बजा फर्माया आपने हज़रत'', घुरघुराते हुए हाइपोमीथियस ने कहा, “और मैं तो सिर्फ यह कहना चाहूंगा, हज़रात कि आखिर यह आग हमें चाहिए किसलिए? क्या हमारे पुरखों ने आग का इस्तेमाल किया था? ऐसी चीज़ की इज़ाद ही हमारी विरासत की जानिब तौहीनी नहीं तो क्या है, हां है, - हुं हुं... महज़ एक बगावती हरकत। आग से खेल! आपने कभी सुना!! गौर फर्माएं, हज़रात, कहां ले जाएगी यह आग हमें; लोग इसके इर्द-गिर्द सुस्ता रहे होंगे, आराम और तपिश के लिहाज़ में वे मस्ता रहे होंगे। लड़ने-भिड़ने जैसे अपने सारे फर्ज छोड़ कर। मुझे तो इसका यही अंजाम दिखता है। - कमज़ोरी, बदनीयती,... और हुं... चप्पा-चप्पा बेतरतीबी वगैरह-वगैरह। हमें इस बदशुगून के खिलाफ कुछ तो करना होगा। वक्त बड़ा खराब है। बेहद मनहूस। यही सब मैं जताना चाहता था।''

बिलकुल ठीक", एंटीमीथियस ने घोषणा की, “निश्चय ही हम अपने अध्यक्ष की इस बात से सहमत हैं कि प्रोमीथियस की आतिश के अनदेखे दुष्परिणाम होंगे। साथियो, हमें इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। कि यह (आग) एक जबर्दस्त शिगूफा है। किसी की पकड़ में आग - कितनी सारी संभावनाओं को रोशन कर सकती है। इनमें से कुछेक का बेतरतीब जिक्र मैं यहां कर रहा हूं - अपने दुश्मनों की उपज को राख कर देना, अपने ही जैतून के बाग को लपटों के हवाले कर देना, वगैरह-वगैरह। इस आग में, सज्जनों, हमारी अवाम को एक नई ताकत मिली है, एक नया हथियार हासिल हुआ है। इसी आग पर चल कर हम अपने देवों के नियरे हो जाएंगे'', एंटीमीथियस फुसफुसाए और फिर यकायक ही भभक उठे, “मैं, प्रोमीथियस पर यह इलज़ाम लगाता हूं कि उसने, इस दैवीय और दुर्निवाद तत्व को चरवाहों और गुलामों के, जिस किसी ने भी पहल की, उसके हवाले किया; उस पर मेरा इलज़ाम है कि उसने इसे अधिकृत हाथों को नहीं सौंपा, वे हाथ - जो इसकी हिफाजत राज्य के खजाने के बतौर करते और इसे राज्य के उसूलों के मुताबिक चलाते। इस तरह, मेरी नज़रों में, प्रोमीथियस आग ईजाद करने वाला एक बेईमान अमानतदार ठहरता है। अमानतदार उस राज का, जिस पर कायदे से पुरोहितों का हक होना चाहिए था। मैं प्रोमीथियस पर अभियोग लगाता हूं'', जज्बातों की रौ में बह कर एंटीमीथियस दहाड़े, “कि उसने परदेसियों तक को यह बता दिया कि आग सुलगाते कैसे हैं। कि अपने दुश्मनों से भी इस राज़ को उसने बेपर्दा रखा। मैं प्रोमीथियस पर गहनतम राजद्रोह का अभियोग लगाता हूं। मैं उस पर समुदाय के खिलाफ साज़िश का अभियोग लगाता हूं।'' एक चीख तक उठी उनकी आवाज़ बिखर कर रह गई एक खंखार में, मैं उसके लिए मृत्युदंड का प्रस्ताव रखता हूं।'' किसी तरह से वे आपे से बाहर निकल पाए। तो, हज़रात', हाइपोमीथियस बोले, "क्या कोई और भी कुछ कहना चाहता है? तो अदालत की राय में मुजरिम प्रोमीथियस अव्वल तो कुफ्र और मज़हब की मुखालफत करने का खतावार ठहरता है, दूसरे उस पर संगीन जिस्मानी चोट पहुंचाने, औरों की मिल्कियत को नुकसान पहुंचाने और अवाम की सलामती को खतरे में डालने का गुनाह बनता है। और उस पर तीसरा इलज़ाम है हुकूमत से बगावत का। हाजिरीन, मैं उसे सजा सुनाने की तज्वीज़ कुछ इस तरह से रखता हूं - या तो। बेड़ियों और सख्त बिछौने से और भी दुश्वार बना दी गई उम्र-कैद या फिर सज़ा-ए-मौत

''या फिर दोनों ही'', एमीथियस ने कहा, “ताकि दोनों प्रस्तावों का अनुपालन हो।'

"दोनों ......यानी?'' सदर ने पूछा।

“मैं अभी इसी बात पर विचार कर रहा था'', घुरघुराते हुए एमीथियस बोले, “शायद हम ऐसा कुछ कर सकते हैं. ... उसकी बाकी बची जिंदगी भर उसे एक चट्टान से ज़ंजीरों से बंधे रहने का दंड .... या शायद उसके विधर्मी कलेजे को गिद्धों द्वारा चुग चुग कर निकाल बाहर फेंकने का दंड ....... महामहिम मेरा आशय समझे?''

‘‘हां, अब ठीक है'', सौम्य भाव से महामहिम बोले, “साथियो, एक मिसाली सज़ा होगी यह .... हुं हुं ... खब्ती गुनाह की .... कोई एतराज़ नहीं? तो मीटिंग बरखास्त होती है।''

“लेकिन आपने प्रोमीथियस को मौत की सज़ा क्योंकर सुनाई, पिताजी?'', रात के खाने पर प्रोमीथियस के पुत्र, एपीमीथियस का सवाल था यह।

“तुम नहीं समझोगे'', भेड़ की टांग चबाते हाइपोमीथियस भुनभुनाए, "कसम से! भुना हुआ मांस कच्चे मांस से कहीं ज्यादा लज़ीज़ है; तो देखा तुमने, यह आग भी किसी काम की ठहरी आखिर; और यह सब था अवाम की खातिर; समझ में आया तुम्हें? हम बेठौर न हो जाएं! अगरचे कोई ऐरा-गैरा, जिसका मन किया, नई नई ईजाद करता जाए - बिना कोई सजा पाए!! मेरा मतलब समझे? लेकिन अभी भी इस मांस को किसी चीज़ की ज़रूरत है

"ओह! मैं समझा।'', वे चहके।


'एपोक्रिफल स्टोरीज़ - कार्ल चैपक' से साभार, मूल कथा अंग्रेज़ी में। अनुवाद - मनोहर नोतानी; मनोहर भोपाल में रहते हैं और स्वतंत्र रूप से अनुवाद के काम में सक्रिय हैं।
इस लेख के सभी रेखाचित्र आमोद कारखानिस ने बनाए हैं; आमोद पेशे से कम्प्यूटर विज्ञानी हैं और शौकिया तौर पर चित्र बनाते हैं। वे बंबई में रहते हैं।