किसी बंगाली से पूछिए कि हिलसा क्या है - नाम सुनते ही उसके मुंह में पानी न आ जाए तो कहिएगा। खैर हम यहां इसके सुस्वादुपन पर नहीं जा रहे हैं।
कुछेक अंकों पहले आपने संदर्भ में जंतुओं के प्रवास से संबंधित लेखों में पढ़ा होगा कि न सिर्फ पक्षी बल्कि तितलियां और मछलियां भी प्रवास करती हैं। और हमारे देश में हिलसा एकमात्र मछली है जो प्रवास करती है और प्रजनन के समय समुद्र और एस्च्युरी में नदियों में आती है।
जुलाई-अगस्त में मानसून के समय हिलसा के झुंड-के-झुंड बढ़ चलते हैं गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा आदि नदियों की ओर। इस प्रवास में इन्हें नदियों के प्रवाह के विपरीत तैरना पड़ता है। मादा हिलसा एक मौसम में 2,80,000में 18,00,000तक अंडे देती है लेकिन मृत्यु दर बहुत ज्यादा होने के कारण वयस्क अवस्था तक काफी कम ही पहुंच पाते हैं।
पहले यह मछली प्रवास के मौसम में गंगा में कानपुर तक और यमुना में आगरा तक आ जाती थी। इसी तरह हिलसा नर्मदा में मुहाने में 160 किलोमीटर भीतर तक पाई गई है। लेकिन अधिकतर नर्मदा के मुहाने से 70 किलोमीटर के भीतर ही अंडे देती हैं। वैसे देखा जा रहा है कि हिलसा का यह प्रवास लगातार उतार की ओर है। पर्यावरण संबंधी कुछ समस्याएं इसकी वजह बताई जा रही हैं।