अरविंद गुप्ते
संदर्भ के पिछले अंकों में हमने चांद से संबंधित कुछ सवाल आपसे पूछे थे। उनमें से कुछ के सही जवाब कुछ पाठकों ने भेजे हैं। जवाबों को। थोड़ा विस्तार से यहां दे रहे हैं।
सवाल 1: अमावस्या के दिन चंद्रमा कहीं नहीं जाता, वो उस दिन बिलकुल उसी जगह पर रहता है जहां कि सूर्य है - सूरज के उगने के साथ ही उगता है, और उसी के साथ दिनभर चलता है और शाम को डूब जाता है। दरअसल चंद्रमा हमारी पृथ्वी के समान सूर्य के प्रकाश से चमकता है। अमावस्या के दिन उसकी स्थिति ऐसी होती है कि उसका प्रकाशित हिस्सा सूर्य की तरफ ही होता है - हमारी तरफ होता है उसका अंधेरे में डूबा हुआ हिस्सा। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते जबकि वो है हमारी आंखों के सामने ही।
ऐसे में सवाल उठेगा कि जिस स्थिति की हम बात कर रहे हैं वो आखिर है क्या? इसे यहां साफ करना ज़रूरी है क्योंकि तीसरे सवाल को समझने के लिए हमें इन बातों की ज़रूरत पड़ेगी।
कुछ बातें तो आपने गौर की ही होंगी - कि चंद्रमा कभी दिन में दिखाई देता है तो कभी रात में; जैसे पूर्णिमा के दिन वो सूर्यास्त के समय उगता है। और सुबह सूर्योदय के समय डूब जाता है, उसका आकार भी बदलता रहता है। जैसे पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूरा गोल थाली के समान चमकता है, इसके बाद उसका आकार घटना शुरू होता है, एक पखवाड़े बाद यानी अमावस्या को वो पूरी तरह लुप्त हो जाता है। अगले दिन से फिर चंद्रमा पतली-सी कला के रूप में दिखता है जो प्रतिदिन बढ़ती जाती है, और एक पखवाड़े बाद बढ़कर थाली के समान पूरी तरह गोल चकती में बदल जाती है।
चंद्रोदय और चंद्रास्त
जरा इस तालिका पर गौर कीजिए। इसमें एक पूरे महीने के दौरान चंद्रमा के उदय का समय और उसके अस्त होने का समय दिखाया गया है। साथ ही सूर्य के उदय होने का समय भी दिखाया गया है।
तालिका से पता चलता है कि चंद्रमा प्रतिदिन पिछले दिन की तुलना में औसतन 50 मिनट देरी से उगता है। जैसे कि अमावस्या के दिन चंद्रमा और सूर्य करीबन एक ही समय पर उगते हैं - जैसे कि चंद्रमा सुबह 6.04 बजे और सूर्य 6.11 बजे। इसके अगले दिन चंद्रमा 6.54 बजे उगता है। इस तरह सूर्योदय और चंद्रोदय के बीच का फासला बढ़ता जाता है और पूर्णिमा को यह लगभग 12 घंटे हो जाता है - यानी चंद्रमा शाम को 5.49 बजे उग रहा है। जो सूरज के डूबने का समय है। और सुबह 6.20 पर जब सूरज उग रहा है। तो चंद्रमा डूब चुका है।
कभी आधा तो कभी पूरा चांद
जरा चित्र-1 पर गौर कीजिए। इसमें पृथ्वी चांद और सूर्य की स्थिति दिखाई गई है। मान लीजिए सूर्य का प्रकाश किसी एक विशेष दिशा से आ रहा है।
पृथ्वी एक गोल गेंद है जो अपनी धुरी पर घूम रही है। गोल होने की वजह से उसका आधा हिस्सा हमेशा प्रकाशित रहता है और आधा हिस्सा सदैव अंधेरे में। चित्र से यह भी पता चलता है कि पृथ्वी के समान चंद्रमा भी गेंदनुमा है इसलिए उसका भी आधा हिस्सा हमेशा प्रकाशित रहता है और आधा अंधेरे में। जब यह प्रकाशित हिस्सा पूरा का पूरा हमारे सामने होता है तो उस दिन पूर्णिमा की स्थिति बनती है - जिस दिन चांद पूरा का पूरा गोला दिखाई देता है। साथ के चित्र को देखिए तो समझने में मदद मिलेगी। पूर्णिमा के बाद चांद के घटने का क्रम शुरू होता है जिसे हम कृष्ण पक्ष कहते हैं। इस पक्ष में चांद का गोला क्रमशः घटता जाता है (चित्र देखिए - घटते हुए चांद के चित्र)। यहां एक सवाल उठ सकता है कि जब हम कह रहे हैं। कि चांद का आधा हिस्सा हमेशा चमकता रहता है तो गू हमें चांद की थाली कम होती दिख रही है? जैसे कि हमने चित्र-1 में देखा था चांद का आकार गोल होने की वजह से सूर्य के प्रकाश के कारण उसका आधा हिस्सा हमेशा प्रकाशित रहेगा। जब यह पूरा प्रकाशित हिस्सा हमारे सामने है तो हमें पूरा गोला नजर आता है जबकि इस दिन भी चांद का आधा हिस्सा - जो अंधेरे में डूबा हुआ है - वो इस प्रकाशित हिस्से के पीछे है। अगले दिन जब चांद का गोला थोड़ा सा धट गया है तब भी चांद का पूरा आधा हिस्सा सूर्य के प्रकाश से चमक रहा है, बस हुआ यह है कि इस प्रकाशित आधे हिस्से का थोड़ा-सा हिस्सा हमारी नजरों के पीछे चला गया है और उसकी जगह अंधेरे
बढ़ते और घटते चंद्रमा के चित्र: 1. अमावस्या, 2. चौथा दिन, 3. सातवां दिन, 4. ग्यारह वां दिन, 5. चौदहवां दिन (पूर्णिमा), 6. अठारहवां दिन, 7. इक्कीसवां दिन, 8. पच्चीसवां दिन।
वाले हिस्से ने ले ली है। मतलब कि सप्तमी के दिन जब आपको चांद के गोले का बिलकुल आधा हिस्सा दिख रहा है तो मतलब यह हुआ कि आधे प्रकाशित हिस्से का भी आधा भाग ही आपके सामने है यानी आप प्रकाशित चौथाई चंद्रमा देख रहे हैं। जबकि वहां चौथाई चंद्रमा और मौजूद है - अंधेरे में डूबे भाग को भी आधा हिस्सा। चंद्रमा की इन स्थितियों को एक अंधेरे कमरे में किसी गोल गेंद पर टॉर्च के प्रकाश की रोशनी डालकर समझा जा सकता है।
तो कुल मामला इतना है कि चंद्रमा प्रकाशित तो हमेशा ही आधा होता है - या यूं कहें जिस तरह पृथ्वी के आधे हिस्से में दिन रहता है और आधे हिस्से में रात, चांद पर भी ठीक वैसा ही होता है। हम इस दिन वाले हिस्से का कितना भाग देख पाते हैं, चांद हमें आकाश में उतना ही नजर आता है।
सवाल 2: चूंकि चंद्रमा का प्रकाश सूर्य के कारण है। इसलिए चंद्रमा की प्रकाशित कला का उत्तल भाग हमेशा सूर्य की ओर होगा। सवाल में चित्रकार ने कला का अवतल भाग सूर्य की ओर दिखाया है जो कि संभव नहीं है।
सवाल 3: चंद्रमा के प्रकाशित आधे हिस्से का जितना भाग हमारे सामने होता है हमें उतनी कला आकाश में दिखाई देती है। इस कला के कोनों को मिलाकर आप पूरा गोला बना दीजिए। इसमें चांद का वह हिस्सा भी है जिसपर सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ रहा इसलिए वह हमें दिखाई नहीं दे रहा। चित्र में जो तारा दिखाई दे रहा है वो चांद के इस गोले के भीतर आता है। ऐसी स्थिति में तो चांद इसे ढंक लेगा इसलिए इस स्थिति में कभी भी तारा दिखाई नहीं दे सकता।
सवाल 1: इस चित्र में पहली त्रुटि तो यह है कि चंद्रमा की कला का उत्तल भाग ऊपर की ओर दिखाया गया है जो कि संभव नहीं है। वह या तो दाहिनी ओर झुका होगा (शुक्ल पक्ष ) या बाईं ओर (कृष्ण पक्ष)। इस चित्र में दूसरी त्रुटि यह है कि पूर्णिमा से अमावस्या की ओर चंद्रग्रहण के समान स्थितियां दिखाई गई हैं। चंद्रग्रहण के समय पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है और वह एक कोने मे शुरू हो कर तेजी से बढ़ती हुई पूरे चंद्रमा को ढंक लेती है। वास्तव में चंद्रमा की कला का बढ़ना इस प्रकार कभी नहीं होता।
सवाल 5: इस सवाल का विस्तृत जवाब अगले लेख में दिया गया है।