यह तो हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी का अक्ष या धुरी 23.5 डिग्री झुकी हुई है। इस कारण से इसके उत्तरी ध्रुव का झुकाव कभी सूरज की ओर हो जाता है तो कभी दूर हो जाता है। इस झुकाव के चलते हमें विभिन्न मौसम मिलते हैं। मंगल सहित अन्य ग्रहों की धुरियां भी झुकी हुई हैं हालांकि प्रत्येक के झुकाव का कोण अलग-अलग है। हाल ही में शोधकर्ताओं ने पिछले 3.5 अरब वर्षों में मंगल के झुकाव में आए बदलाव का खुलासा किया है। इस अध्ययन के परिणामों से पता चल सकता है कि लाल ग्रह पर बर्फ कितनी बार पिघलकर पानी बना होगा।
अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने मंगल के विभिन्न कंप्यूटर मॉडल तैयार किए। प्रत्येक मॉडल में ग्रह अलग-अलग कोण पर झुका हुआ था। अब उन्होंने ग्रह के प्रत्येक मॉडल पर क्षुद्रग्रहों की बौछार की। देखा गया कि अधिक झुकाव वाले मॉडलों पर क्षुद्रग्रहों की बौछार से निर्मित अंडाकार क्रेटर बड़ी तादाद में मॉडल पर समान रूप से वितरित हुए थे। दूसरी ओर, झुकाव रहित मॉडल्स में क्षुद्रग्रहों की टक्कर के बाद अंडाकार क्रेटर भूमध्य (मंगलमध्य) रेखा के इर्द-गिर्द पाए गए। ऐसे अंडाकार क्रेटर तब बनते हैं जब कोई उल्का ग्रह की सतह से न्यून कोण पर (क्षितिज के लगभग समांतर) टकराए। यदि उल्का लंबवत गिरे या लगभग लंबवत गिरे तो क्रेटर वृत्ताकार बनता है।
अब शोधकर्ताओं ने मंगल की वास्तविक सतह पर उपस्थित 1500 से अधिक अंडाकार क्रेटर्स को देखा और उनके वितरण की तुलना मॉडलों से की। इस तुलना के आधार पर उनका निष्कर्ष है कि अतीत में मंगल 10 डिग्री से लेकर 30 डिग्री के बीच झुका हुआ था। वर्तमान में यह 25 डिग्री झुका है। शोधकर्ताओं ने अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स में बताया है कि अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के चलते समय के साथ मंगल के झुकाव में परिवर्तन आया है। लेकिन उनका यह भी विचार है कि पिछले कुछ अरब वर्षों में अधिक से अधिक 20 प्रतिशत समय मंगल का झुकाव 40 डिग्री से अधिक रहा होगा।
टीम के अनुसार इतने लंबे समय तक मंगल ग्रह के कम झुकाव के चलते काफी भूमिगत स्रोत सूख गए होंगे। किंतु सारे स्रोत नहीं सूखे होंगे क्योंकि मंगल पर पानी का एक भूमिगत स्रोत हाल ही में खोजा गया है। (स्रोत फीचर्स)