कीर्ति विपुल शर्मा
कल्पना कीजिए एक छोटी-सी चींटी के बहुत छोटे-से दिमाग को एक परजीवी कृमि ने पूरी तरह काबू में कर लिया है। अब चींटी एक चलती-फिरती लाश भर है। अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाह वह चरने वाले जंतु द्वारा खाए जाने के इंतज़ार में घास पर बैठी है। हाल ही में वैज्ञानिकों की टीम ने चींटी के दिमाग को परजीवी कृमि द्वारा नियंत्रित करने की आश्चर्यजनक घटना का खुलासा किया है।
उत्तल लेंस के समान दिखने वाला तथा 1 से.मी. से भी छोटा लेंसेट लीवरफ्लूक (Dicrocoelium dendriticum) भेड़ और अन्य मवेशियों में पाया जाने वाला एक परजीवी कृमि है। समशीतोष्ण भागों में पाया जाने वाला यह कृमि अपना जीवन चक्र तीन जीवों में पूरा करता है: कोई मवेशी, घोंघा और चींटी।
वयस्क लीवरफ्लूक मवेशियों की पित्त वाहिनी में रहकर अंडे देता है। ये अंडे पित्त के साथ छोटी आंत से होते हुए मवेशी के मल के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। अब कोई घोंघा उस मल को खा ले तो ये अंडे उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यहां अंडे फूटते हैं और लार्वा निकलते हैं जो उसके श्वसन अंगों में चिपचिपे पदार्थ से बनी ‘स्लाइम बॉल’ के साथ शरीर से बाहर आ जाते हैं। चींटियां स्लाइम बॉल को अपना भोजन बना लेती हैं। चींटियों के शरीर में ये लार्वा रूपांतरित होकर उनके मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं। यहां पहुंचकर वे चींटियों के स्वभाव में परिवर्तन कर देते हैं।
अब जैसा नाच यह परजीवी नचाता है वैसा नाच चींटी नाचती है। हालात इतने बुरे हो जाते हैं कि वशीकृत चींटी आत्मघाती हो जाती है। वह पौधों के ऊपरी भाग, जैसे घास या फूलों की पंखुड़ी के सिरे पर बैठ जाती है और अपने पैने जबड़ों से पौधे को कसकर पकड़ लेती है। पकड़ इतनी मज़बूत होती है कि तेज़ बारिश और हवा में भी चीटीं गिरती नहीं। पौधों के ऐसे हिस्से पर बैठने से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि घास के साथ-साथ चरने वाला कोई पशु उसे भी खा लेगा। पशु की पाचन क्रिया से चींटी का शरीर पच जाता है और उसके अंदर के परजीवी (जो चींटी की आंत में बैठे हैं) पशु की आहारनाल से होते हुए अंतत: पित्त वाहिका में पहुंच जाते हैं। वहां विकसित हो कर वे वयस्क बन जाते हैं और प्रजनन करके अपना जीवन चक्र फिर से शुरू कर देते हैं।
चींटी और परजीवी के इस आश्चर्यजनक रिश्ते को समझने की कोशिश में वैज्ञानिकों की एक टीम ने माइक्रो-सीटी नामक तकनीक का उपयोग करके संक्रमित चींटियों के मस्तिष्क का त्रि-आयामी चित्र प्राप्त किया। संरचनाओं को स्पष्ट देखने के लिए अंदरूनी भागों को रंजकों द्वारा रंगीन करके भी अवलोकन किए गए।
इस तरह प्राप्त कुछ चित्रों को देखने पर पता चला कि चींटी के मस्तिष्क पर नियंत्रण करने के लिए तीन लार्वा प्रयासरत थे। अंत में केवल एक लार्वा अपने चूषक की मदद से चींटी के मस्तिष्क पर चिपक पाया। चिपकने वाला स्थान भी वह था जो चींटी के चलने-फिरने एवं जबड़ों की गतिविधियों को नियंत्रित करता है। वैज्ञानिकों का मत है कि मस्तिष्क के सही केंद्र से चिपकने के बाद परजीवी चींटी को चरने वाले पशुओं द्वारा खा लिए जाने के लिए मजबूर कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)