वेणु ऐंडले
कितना ज़रूरी होता है शिक्षक के लिए इस बात का ध्यान रखना कि वह कक्षा में क्या और कैसे बोल रहा है? हो सकता है कि किसी और संदर्भ में बात कही ओर बच्चों ने उसे एक अलग-अलग तरह से आत्मसात करके चीज़ों को समझने का एक नज़रिया ही बना लिया।
किसी शिक्षक के लिए कितना ज़रूरी है इसका मूल्यांकन करना कि वह जो निर्देश दे रहा है उसे बच्चे किस तरह आत्मसात कर रहे हैं? इस बात का महत्व समझाने के लिए मार्क ड्रिस्कोल। बिली के हमेशा शुक्रगुज़ार रहेंगे।
1970 की बात है, मार्क कक्षा में बच्चों को पढ़ा रहे थे। इसी कक्षा में था बिली। मार्क ड्रिस्कोल ने बोर्ड पर कुछ संख्याएं लिखीं:
06., .607, .6, .6707, .067 और छात्रों से कहा कि वे इन्हें क्रम में जमा कर लिखें। बिली ने उन्हें ऐसे जमाया —
.6707, .067, .607, .06, .6 यानी संख्याओं की लंबाई के हिसाब से - सबसे लंबे से सबसे छोटे क्रम में। मार्क ने पूछा, “बिली इनमें से सबसे छोटी संख्या कौन-सी है?”
बिली ने बिना हिचकिचाए .6707 पर उंगली रख दी।
“ऐसा क्यों?” मार्क ने पूछा।
बिली कुछ सोच में पड़ गया, जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो। फिर बोला, “मुझे मालूम नहीं। लेकिन इतना याद है कि एक बार एक शिक्षक ने बताया था कि दशमलव में जितना आगे जाते हैं, संख्याएं उतनी छोटी होती जाती हैं।”
यह लेख, अमेरिका से प्रकाशित 'द मथेमटिक्स टीचर' में छपे एक लेख पर आधारित है। मार्क ड्रिसकोल अमेरिका के एक शिक्षा विकास केंद्र सीनियर प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं।
मार्क ड्रिस्कोल हैरान थे। बिली के जवाब को सिर्फ याददाश्त की कमज़ोरी समझना उन्हें ठीक नहीं लगा। बिली को अपने शिक्षक की वह बात याद रह गई जो उन्होंने कभी दशमलव की संकेत पद्धति (Symbol System) को समझाने के लिए अपनी तरफ से एक उपयोगी तरीके के रूप में बच्चों से कही होगी। लेकिन बात का जो अर्थ बिली ने पकड़ा और इस गतिविधि के दौरान दर्शाया वह अपेक्षित अर्थ से अलग था। मार्क ड्रिस्कोल लिखते हैं कि यह बात तब से उनकी पढ़ाने की प्रक्रिया पर हमेशा के लिए छा-सी गई, कि जो भी गणितीय अर्थ का अभिप्राय हो ज़रूरी नहीं बच्चे उससे वही निष्कर्ष निकालें - वही समझ बनाएं।
इस अनुभूति से उन्हें कुछ परेशानी तो ज़रूर हुई पर यह बेहद उत्तेजक भी थी। लेकिन अगला कदम क्या हो?
यदि ऐसा हो रहा है कि शिक्षक की बात के अपेक्षित अर्थ और बच्चों के समझने में समन्वय नहीं है तो शिक्षक को अपने निर्देशों द्वारा यह समन्वयन बनाना होगा। निश्चित ही यह एक चुनौतीपूर्ण काम है।
एक तरीका तो यह हो सकता है कि ऐसी स्थिति बनाई जाए कि बिली जैसे बच्चे यह समझ अन्य बच्चों के साथ काम करते हुए बना लें - बच्चे आपस में एक दूसरे से सीखते ही हैं। मार्क ड्रिस्कोल ने भी उस समय तो बिली को इस प्रक्रिया के सहारे छोड़ दिया। पर वे इस संभावना के प्रति भी जागरूक थे कि समझ में कमी के ऐसे और बिन्दु भी हो सकते हैं।
मार्क के लिए यह भी स्पष्ट था कि वे बच्चों की समझ जांचने के लिए ऐसे इत्तफाकों के सहारे ही सब कुद नहीं छोड़ सकते। बिली ने सहयोग किया, अपनी समझ बता पाया, पर सभी बच्चे ऐसे नहीं मिलेंगे। इसलिए उन्हें यह भी महत्वपूर्ण लगा कि उन्हें अपने निर्देश की नियमित जांच करते हुए पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी हासिल करते रहना होगा।
कहीं भी कक्षा हो, बिल की परिस्थति में संभवत: कई बच्चे मिलेंगे।
गणित के ही विभिन्न बिन्दुओं के परीक्षण के सिलसिले में बच्चों के बीच काम करते हुए मेरे कुछ अनुभव भी मार्क ड्रिस्कोल जैसे थे। जिनसे यह एहसास हुआ कि शिखक और बच्चों में कई बार कितनी दूर बन जाती है, और परिस्थिति ऐसी बनती चली जाती है कि शिक्षक अपने स्तर पर पढ़ाते चले जाते हैं, और बच्चे अपने स्तर पर अपने ही ढंग से तर्क बना-बना कर समझते रहते हैं। या फिर यह होता है कि शिक्षक के बताए हुए किसी गणितीय नियम को पकड़ कर बच्चे काम करते रहते हैं, उसे पूरी तरह से आत्मसात करे बिना। जिससे कि आगे की संबंधित क्रियाओं में और गलतियां दिखाई देती हैं।
कक्षा तीन के मुकेश से मैंने गिनती लिखने को कहा। वह बोल-बोल के लिखता रहा, एक, दो........., नौ, दस, एक पे एक ग्यारह, एक पे दो बारह, एक पे तीन तेरह.......दो पे शून्य बीस।”
मैंने उसे वहां रोका और पूछा, “ये एक पे एक ग्यारह क्यों बोलते हो?”
“मास्साब ने बताया है, वह बड़ी सहजता से बोला और आगे लिखने लगा, दो पे एक इक्कीस, दो पे दो बाईस....।”
जब वह सौ तक गिनती लिख चुका तो मैंने 14 पर उंगली रख कर पूछा, “ये क्या लिखा है।”
“चार,” मुकेश बोला।
मैंने सोचा कि हो सकता है कि मेरी उंगली चौदह में जो चार है उसके ज़्यादा करीब हो। इसलिए मैंने उंगली को थोड़ा बार्इं और खिसकाया ओर फिर पूछा, “ये क्या है?”
एक, मुकेश बोला। मुझे लगा कि शायद उंगली थोड़ा ज़्यादा ही बाएं खिसक गई हो। मैंने फिर उससे पूछ:
“दोनों को मिला दो तो?”
“पांच!”
एक दूसरे परीक्षण में कक्षा पांच के बच्चों को ये संख्याएं दी और कहा इन्हें छोटे से बड़े क्रम में जमाएं।
74, 12, 21, 6, 55
जवाब में कई बच्चों ने यह लिख:
इसी तरह जब उनसे बड़े से छोटे के क्रम में जमाने को कहा तो कुछ ऐसा लिखा:
कुछ-कुछ बिली जैसी समझ का सवाल यहां भी उठता है। लेकिन कक्षा में पढ़ते हुए बिली और मुकेश जैसे बच्चों का ध्यान कैसे रखा जाए?
मार्क ड्रिस्कोल का मानना है कि यह तभी हो सकता है जब पढ़ाने की प्रक्रिया में ही मूल्यांकन की प्रक्रिया सम्मिलित हो। यानी लगातार इस बात पर गौर किया जाए की हम जो पढ़ा रहे हैं बच्चे उसे किस तरह से समझ रहे हैं। और इस फीडबैक के आधार पर लगातार अपने निर्देशों, गतिविधियों में सुधार करते रहें। और, इस प्रक्रिया को सघन व व्यवस्थित ढंग से करने की आदत बनाई जाए।
कक्षा में पढ़ाने के बाद एक निश्चित समय पर सामूहिक मूल्यांकन के लिए परीक्षण करते हैं। इससे यह जानकारी तो सहज ही मिल जाती है कि कितने बच्चे समझाई गई प्रक्रिया से कुछ पकड़ पाए हैं। कक्षा की सामान्य स्थिति का पता भी चलता है। कौन से बच्चे कहां गलतियां कर रहे हैं, यह भी पता चलता है। पर अपनी तरफ से हमने सब-कु समझाया था- इसके बावजूद ये गलतियां पाई जा रही हैं। ऐसा क्यों? फिर इससे भी जटिल सवाल कि अब आगे क्या करें? क्या दोबारा वैसे ही पढ़ा देने से बच्चे बात समझ लेंगे? शायद कुछ और जानकारी मिले तो समझाने के तरीके को बदलकर पुन: कोशिश हो सकती है। यहीं परीक्षण का यह दूसरा तरीका उपयोगी सिद्ध हो सकता है। जिसका उदाहरण बिली और भार्क ड्रिस्कोल की बातचीत है। एक बच्चे की समझ में कुछ गहराई से घुसना जिससे हमें सीखने के तरीकों के बारे में जानकारी मिले - यह भी शिक्षा में परीक्षण एक महत्वपूर्ण अंग है।
संभव है इस ढंग को आपने भी कहीं इस्तेमाल किया होगा। पर क्या इसे एक व्यवस्थित रूप देकर कक्षा में इस्तेमाल करना, खासतौर पर गणित के शिक्षण के लिए (जो कि अपने आप में काफी अमूर्त है) उपयोगी सिद्ध हो सकता है? इस प्रक्रिया को करने के दो मुख्य फायदे हो सकते हैं - एक तो अपने निर्देशों पर गौर करने की हमारी समझ बनेगी और दूसरा, बच्चों की प्रगति का लगातार आकलन करने में मदद मिलेगी।
बहरहाल यह प्रक्रिया सिर्फ इतीन आसान नहीं होगी। आगे बढ़ने पर इसमें और बहुत से कारण, बहुत से सवाल जुडेंगे जो पूरी प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण होंगे। शिक्षक की अपनी गणितीय समझ” उसके मूल्य, बच्चों की जानकारी और उनकी क्षमता के बारे में उसकी धारणाएं भी खासी भूमिका निभाती हैं?
फिलहाल इसे एक सवाल की तरह उठाया था और उसे एक सवाल की तरह ही छोड़ते हैं; ताकि कुछ आप सोचें और कुछ हम!
(वेणु ऐंडले - एकलव्य के प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम समूह की सदस्य।)