रश्मि पालीवाल
पुस्तक समीक्षा
किताब: टीचर्स एनोटेटड एडीशन, पीपल, प्लेसिस एण्ड चेन्ज (People, Places and change): एन इंट्रोडक्शन टु वल्र्ड कल्चर्स (An introduction to world cultures) (शिक्षक निर्देशिकायुक्त संस्करण, लोग, जगह और बदलाव - विश्व संस्कृतियों का एक परिचय), लेखक: लियोनार्ड बेरी (भूगोल प्राध्यापक) एवं रिचर्ड बी. फोर्ड ( सह-प्राध्यापक, इतिहास), क्लार्क विश् वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका, पृष्ठ संख्या: 588 प्रकाशक: होल्ट, राइनहार्ट और विन्सटन, 1976
सामाजिक अध्ययन की पढ़ाई में किस-किस तरह के बदलाव व सुधार किए जा सकते हैं? इस मुद्दे पर कई तरह के विचार व प्रयास होते रहे हैं और छात्रों व शिक्षकों के लिए नई तरह की पाठ्य-सामग्री की रचना की गई है। इस लेख में हम संयुक्त राज्य अमेरिका में तैयार की गई एक पुस्तक की चर्चा करेंगे। इस किताब को क्लार्क विश्वविद्यालय के दो प्राध्यापकों ने 1976 में तैयार किया था। प्रोफेसर बेरी और फोर्ड ने एक प्रचलित पुस्तक (Knowing Our Neighbours in the Eastern Hemispere) का विस्तृत संशोधन करके एक नितान्त नए नज़रिए से तैयार की People, Places and change (लोग, जगह और बदलाव - विश्व संस्कृतियों का एक परिचय)। यह पुस्तक माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शालाओं के छात्रो के लिए तैयार की गई। इसी का एक शिक्षक निर्देश्किायुक्त संस्करण भी बनाया गया। इतिहास, भूगोल जैसे विषयों में शिक्षण के एक फर्क विचार का परिचय और अलग किस्म सामग्री के उदाहरण कराने में यह किताब उपयोगी है। बीस साल पहले तैयार की होने के बावजूद इस पुस्तक में उठाए मुद्दे अप्रासंगिक नहीं हुए हैं। इसलिए आइए, इस पुस्तक के ज़रिए सामाजिक अध्ययन शिक्षण में बदलाव के संभावित मसौदों पर कुछ विचार करते हैं।
क्यों नई किताब?
लेखक अपने उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि आज के छात्रों को एक ऐसी किताब की ज़रूरत है जो सिर्फ इतिहास, भूगोल और संस्कृति की मूलभूत जानकारी ही न दे बल्कि जो दुनिया के विभिन्न लोगों की बदलती हुई धारणाओं, मान्यताओं और व्यवहार का अध्ययन करवाए। कई पुरानी और कई प्रायोगिक नई पाठ्य-पुस्तकों की समीक्षा कर लेने के बाद बेरी और फोर्ड ने आठ बातें तय कीं जिनके अनुसार वे अपनी नई किताब को बनाना चाहते थे।
1. लेखन शैली की रोचकता का महत्व: सीखने में मज़ा ज़रूर आना चाहिए। लेखकों ने कोशिश की है कि पुस्तक में तथ्य ज़रूर हों - जलवायु के, प्राकृतिक संसाधनों के, टेक्नॉलॉजी के, इतिहास के, पर वे रोचक व आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किए गए हों। उनका अपना शिक्षण-अनुभव यह बताता था कि जब तथ्यों को मानवीय संदर्भों में प्रस्तुत किया जाता है तब वे ज़्यादा अच्छी तरह से आत्मसात किए जाते हैं। इसलिए उन्होंने पाठों में अलग-अलग पात्रों को रखा है।
वैसे तो ये सारे पात्र काल्पनिक हैं। पर असल में इनमें से हर पात्र के पीछे कोई वास्तविक व्यक्ति ज़रूर है जिसके बारे में लेखकों को पता चला था या जिससे वे स्वयं मिल चुके थे। इसी तरह पाठों में कहानियों की तरह जो घटनाएं बताई गई हैं वे वास्तविक परिस्थितियों के आधार पर बनाई गई हैं।
इस तरह की काल्पनिक कहानियों के माध्यम से स्कूल पाठ्य-पुस्तक तैयार करना एक निहायत ही नया प्रयोग है, और लेखक बताते हैं कि उनका अनुभव यह दर्शाता है कि युवा लोगों व बच्चों को यह तरीका बहुत पसंद आया है और वे बड़ी सहजता के साथ इसके माध्यम से सीख पाए हैं।
उदाहरण के लिए नाइजीरिया देश पर पाठ की शुरुआत इस तरह होती है:
पश्चिमी अफ्रीका: नए और पुराने शहर
अवेनी का बचपन: गाड़ियों की पों-पों और बसों की गूंज चारों तरफ छाई थी। बेहलीन शहर (पृष्ठ-85 पर बने मानचित्र में देखें) हमेशा इतना व्यस्त और शोरभरा रहता था1 पर अवेनी एक धड़कता दिल लिए यहां खड़ी थी। इफे के पास (पृष्ठ-85 पर बने मानचित्र में देखें) बसे अपने छोटे से गांव से वह अभी हाल में ही यहां आई थी।
वह बेहनीन आई थी क्योंकि उसके मंगेतर, ओलू ने थोड़े पैसे जोड़ लिए थे। और अब उनकी शादी हो सकती थी। वह खुश थी, पर कुछ आशंकित भी।
अवेनी के मां-बाप ओलू से शादी की बात से काफी परेशान थे। था तो योरूबा कबीले का ही, पर उसका गांव बहुत दूर था। वे उसके कुनबे को जानते तक नहीं थे। अजनबियों के घर में लड़की का ब्याह करना उन्हें सुहाता नहीं था।
अवेनी की कहानी एक छोटे गांव में शुरू होती है। उसके पिता किसान थे। उन्होंने अपने परिवार के छोटे से खेत पर काम करते हुए अपनी उम्र गुज़ार दी थी। जंगल के बीच साफ किए गए इन छोटे-छोटे खेतों में येम (रतालू), सेम, कोको और मक्का अच्छे पैदा होते थे।
दक्षिणी नाइजीरिया में भूमध्यरेखीय घने वन हैं। अवेनी का परिवार भी अन्य सभी परिवारों की तरह अपने विभिन्न खेतों के टुकड़ों पर बारी-बारी से खेता करता था। शुरू में खाद नहीं डालते थे। बल्कि मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊपन पर निर्भर रहते थे। घने जंगल के बीच वे कुछ हिस्से के पेड़ काट कर जला डालते। कुछ साल ऐसे फसल उगाने के बाद मिट्टी की उर्वरता हल्की पड़ने लगती तो किसान उस ज़मीन पर फिर से जंगल उग जाने देते और दूसरी जगह के खेतों पर जंगल जला कर खेती शुरू कर देते।
अवेनी की मां भी बहुत मेहनती थीं। खेती से जुड़ं बोनी और निंदाई जैसा कठिन काम वे ही करती थीं। और तो और वे एक मंजी हुई व्यापारी भी थीं। नाइजीरिया की अनेकों औरतों की तरह वे ही परिवार की सारी खरीद-फरोख्त भी संभालती थीं।
वे खास तौर से कोला-नट बेचा करती थीं। हफ्ते में तीन दिन सुबहह वे आसपास की बस्तियों के घरों से कोला नट खरीदने जातीं। जब 40-50 पाउन्ड इकट्ठे हो जाते तो उन्हें सिर पर रखकर 8-10 मील के दायरे में लगने वाले किसी हाट में ले जा कर बेच देतीं।
अवेनी अपने साथ बचपन के कई सुखद लम्हे संजोए हुए थी। मां और पिता दोनों ही उससे ऊंची-ऊंची अपेक्षाएं रखते थे। उन्हीं का ज़ोर था कि वह हर हालत में स्कूल की पढ़ाई पूरी करे।
उसका मंगेतर यानी वह आदमी जिससे वो शादी करने की सोच रही है।
नाईजीरिया में तीन प्रमुख कबीले रहते हैं, पश्चिम में योरूबा, उत्तर में हौसा और पूर्व में डूबो।
छात्रों से कहिए कि वे घने जंगलों में खेती की इस पद्धति को समझाएं।
नाइजीरिया के लोग कोला नट चबाना बहुत पसंद करते हैं। कोका-कोला इसी से निकाला जाता हैं।
छात्रों से कहिए कि वे नाइजीरिया के हाट-बाज़ारों के बारे में बताएं। उनसे कहिए कि वे बज़ारों में औरतों की भूमिका व वर्णन करें। फिर उनसे कहिए कि इन चित्रों को समझाएं।
ये चित्र नाइजीरिया के पुराने और नए बाज़ारों के दृश्य प्रस्तुत करते हैं। अवेनी और ओलू को कौन से बाज़ार ज़यादा अच्छे लगते होंगे? क्यों? उनके माता-पिता को? और तुम्हें क्या पसंद होगा?
2. मलभूत कुशलताओं का ख्याल: नई किताब बनाने में यह मुद्दा भी महत्व का बना। लेखकों का मानना था कि जानकारी के ज्ञान के अलावा छात्रों को नई महत्वपूर्ण कुशलताओं का अभ्यास दिलाना भी ज़रूरी है। जैसे, किसी मत या तर्क का मूल्यांकन कर पाने, अलग-अलग आंकड़ों की तुलना कर पाने, किसी बात के नफा-नुकसान की जांच कर उसे समझा पाने, किसी समस्या के संदर्भ में कोई प्रस्ताव सोच पाने की कुशलताएं सिखाई जानी चाहिए। लिखित अंशों के अध्ययन के अलावा नक्शों, चार्टो, चित्रों, रेखा-चित्रों के अध्ययन व उपयोग की क्षमता भी छात्रों में विकसित की जानी चाहिए।
यही नहीं, खुलकर चर्चा करना भी बहुत अहम बात है। पुस्तक में जगह-जगह छात्रों को किसी बिन्दु पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया है या पाठ में बताई घटनाओं की तुलना स्वयं के जीवन की मिलती-जुलती घटनाओं से करने के लिए कहा गया है। नक्शों व चित्रों आदि पर छात्रों को दिए गए अभ्यासों के कुछ उदाहरण ऊपर उद्धृत पाठ के अंश में आपने पढ़े। अन्य प्रश्न इस प्रकार के भी हैं:
— अफ्रीका में औरतों की भूमिका बदल रही है। अल्जीरिया में औरतों की नई और पुरानी भूमिकाओं के बीच तुलना करो। फिर एक चार्ट बनाओं और उसमें यह दिखाओं कि अल्जीरिया औरतों की गतिविधियां व भूमिकाएं नाइजीरियन औरतों से कैसे फर्क हैं। तुम इन बातों की तुलना अपने खुद के समुदाय की औरतों की स्थिति से भी कर सकते हो।
— तनजानिया, अल्जीरिया और सूडान की कृषि की नई विधियों की तुलना करो।
3. स्थानीय जांच पड़ताल व खोज का महत्व: नई पुस्तक के रचनाकार इस बात के प्रति भी सचेत रहे। पाठ की कहानियां दूर-दराज के देशों में स्थित हैं। पर वहां होने वाले परिवर्तनों को समझने की ज़रूरत इसलिए है, ताकि छात्र अपनी ज़िन्दगी में होने वाले बदलावों को बेहतर समझ सके।
जैसे, नाईजीरिया के पाठ में एक बिन्दु पर यह चर्चा होती है कि पुराने बेहनीन शहर में अभी-भी कितने पुराने हुनर वाले लोग रहते हैं और मूर्ति बनाने के पुराने धंधे को जीवित रखे हुए हैं। यह सब देखने के बाद अवेनी और ओलू सोचने लगते है - “नाईजीरिया के पुराने हस्तशिल्पों को कायम रखने का कठिन काम उन्हीं की पीढ़ी को करना होगा। पर वे यह भी जानते हैं कि तेल के कुंओं, कारखानों और बड़े शहरों वाला नाईजीरिया भी उनका ही नाईजीरिया है। क्या वे नए का निर्माण करते हुए पुराने की श्रेष्ठ बातों को कायम रख सकते हैं?”
यहां छात्रों के लिए यह प्रश्न रखा गया है, “क्या तुम अपने समुदाय के बीच नई बातों का निर्माण करते हुए पुरानी बातों की श्रेष्ठताओं को जीवित रख सकते हो? इसके कुछ उदाहरण बताओं।” इस तरह की कहानियों से शुरू कर के कई प्रकार की स्थानीय खोजबीन के सुझाव छात्रों को दिए गए हैं।
4. कैरियर के मुद् दों के प्रति जागरूकता: युवा उम्र की दहलीज़ पर खड़े छात्रों के सामने एक बहुत अहम मुद्दा होता है, अपने कैरियर के चुनाव का1 यानी बड़े होकर हमें क्या बनना है? पुस्तक की अनेकानेक कहानियों के अनेकानेक पा, भिन्न व्यवसाय वाले लोग हैं। लेखकर यह उम्मीद करते हैं कि उनके जीवन की कशमकश को समझते हुए छात्र अपने आप ही यह सोच पाएंगे कि वे क्या-क्या बन सकते हैं! क्या बनना उन्हें अच्छा लगता है? किसी व्यवसासय के लिए किस तरह की कुशलताएं चाहिए और क्या उनमें कुशलताएं हैं?
नाईजीरिया के पाठ में अवेनी बड़ी होकर नर्स बनती है और बेहनीन शहर के अस्पताल में उसे नौकरी मिलती है। उसके रिश्तेदारों को अवेनी पर बहुत गर्व महसूस होता है। इस बिन्दु पर छात्रों से यह प्रश्न रखा गया है -
“तुम किस तरह के नौकरी-धन्धे का विचार कर रहे हो? क्या तुम्हें ऐसा काम-धंधा ढूंढना चाहिए जिससे तुम्हारे घर वाले तुम पर गर्व करें?”
इसी तरह तनजारिया के पाठ के एक पूरे पेज पर तीन चित्र हैं जिनमें एक महिला बच्चों को पढ़ा रही है, एक महिला बच्चों को पढ़ा रही है, एक महिला पुस्तकालय में शोध कर रही है और दो महिलाएं आधुनिक केला बगान में काम कर रही हैं।
इन तीन चित्रों के बाद प्रश्न है, “तुम्हें क्या लगता है, माईला इनमें से कौन-सा पेशा चुनेगा? तुम कौन-सा पुशा चुनते? क्यों?”
5. विकल्पों के बीच अपना निर्णय लेने का महत्व: अपना कैरियर चुनने का निर्णय एक अहम बात है। पर लेखकों के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण बात यह समझाना है कि विभिन्न लोगों के सामने किस-किस तरह की बदलती हुई परिस्थितियां आ रही हैं, और वे किन कठिनाइयों से होकर अपने-अपने निर्णय ले रहे हैं। इस पुस्तक की कहानियां विभिन्न लोगों की व्यक्तिगत दुविधाओं को नाटकीय ढंग से उभार कर सामने लाती हैं। जैसे एक तरफ पशुपालन के धंधे की स्वतंत्रता और दूसरी तरफ सिंचाई की सुरक्षा के बीच चुनाव करने की दुविधा या अपने परिवार के छोटे से खेत की स्वतंत्रता और कारखाने की बढ़ी हुई आमदनी के बीच चुनाव करने की दुविधा........
उदाहरण के लिए सूडान के पाठ का एक प्रमुख मुद्दा है कि नील नदी घाटी के लोग जो पुराने समय से असिंचित अस्थाई खेती व पशुपालन के सहारे जीते थे, कैसे बांध से सिंचित भूमि में कपास की व्यापारिक खेती का पेशा अपनाते हैं। शुरू में तो लोग विरोध करते हैं। उनकी आपत्ति व अनिच्छा के कारण क्या थे?
“कपास क्यों उगाएं? न तो भेड़ इसे खाएंगी, न हमारे बच्चे इसे खाएंगे। इससे हमें क्या मिलेगा? और हमारा परिवार खाएगा क्या?”
“मैदानों में जो रहता है वो आज़ाद रहता है। गेजीदा (सिंचित कपास परियोजना का क्षेत्र) में हम कैंप में बंद सैनिकों की तरह हो जाएंगे।”
पर धीरे-धीरे वह विचार लोगों में फैलता गया। कुछ सालों में हज़ारों परिवार नई सिंचित जमीन पर बसने आए.....।
इस जगह पर पाठ में यह प्रश्न है:
गड़रिए एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं। तुम्हारे विचार में क्या बेहतर है - एक जगह पर स्थाई रूप से रहना या कुछेक महीनों में अपना स्थान बदलते रहना? क्यों?
लेखक उम्मीद करते हैं कि औरों की ऐसी परिस्थितियों को समझने के प्रयास में शायद छात्र अपनी ऐसी परिस्थतियों को भी बेहतर ढंग से समझ पाएंगे।
6. मूल्यों का महत्व: यह मुद्दा इस किताब को अन्य किताबों से काफी अलग कर देता है। यद्दपि किशोर उम्र के छात्रों के छात्र मूल्यों के मुद्दे से बहुत प्रभावित रहते हैं पर आमतौर पर पाठ्य-पुस्तकें इस पर ध्यान बहुत कर देती हैं। लेखकों को लगता है कि मानव मूल्यों से जुड़े तमाम मामले जैसे मां-बाप के प्रति बच्चों का दायित्व, रोज़गार, अपने साथियों के बीच अपनी हैसियत का सवाल, ईमानदारी का सवाल, शिक्षा की ज़रूरत आदि वे बातें हैं जो विभिन्न संस्कृतियों के युवा लोगों के बीच एक समान सूत्र बनाती हैं। किसी भी देश के युवा हों, वे इस प्रकार के मूल्य आधारित निर्णयों से अवश्य ही जूझ रहे होते हैं। अत: पुस्तक में इन मुद्दों को जगह मिलनी चाहिए!
दूसरा अहम सवाल है, ‘मैं कौन हूं?’ इस सवाल का जवाब भी कुछ विशेष मूल्यों से हमारे बन्धन पर टिका है। अगर दूसरे लोग हमारे मूल्यों को नहीं समझेंगे तो हमारे और उनके बीच एक अच्छी खासी खाई बनी रहेगी। छात्रों को यह समझ बनानी चाहिए कि अलग-अलग जगहों पर लोगों द्वारा लिए गए निर्णय इस बात से भी प्रभावित होते हैं कि उनके मूल्य क्या हैं, उनकी परंपराएं क्या हैं?
लेखक सोचते हैं कि इस तरह के सवालों पर चर्चा करने में छात्रों को मज़ा भी आएगा और दुनिया के लोगों के बारे में उनकी समझ भी बढ़ेगी।
7. बदले हुए परिप्रेक्ष्यों का महत्व: इस पुस्तक का दूरगामी उद्देश्य यही है कि छात्र दुनिया को, समाज को सिर्फ अपने अनुभव व नज़रिए से नहीं देखें बल्कि दूसरों के अनुभवों व नज़रियों से भी समझने की कोशिश करें। वे यह भी समझें कि दूसरे समाज के लोगों के बारे में पूर्वग्रह-भरी छवियों को छोड़ना ज़रूरी है क्योंकि कहीं भी लोग व समाज स्थिर नहीं हैं। हर जगह लोग बदल रहे हैं और नए-नए निर्णय ले रहे हैं, जिनमें वैसा ही रोना-हंसना, खटना, मस्ती करना, सोचना, संघर्ष करना शामिल है - जैसा हम खुद अपने जीवन में कर रहे हैं। जहां कई मायनों में सभी जगहों के लोगों में समानता है वहीं, अपनी-अपनी विशिष्टिताएं भी हैं, भौगोलिक भी और सांस्कृति भी।
लेखक पुस्तक के शुरू में यह सुझाव देते हैं कि छात्र चाहें तो पहले दुनिया के विभिन्न लोगों की समानता-भिन्नता पर, और उनके बीच हो रहे बदलावों पर अपने पहले से बने हुए विचार लिख लें या टेपरिकॉर्डर में रिकॉर्ड कर लें। फिर किताब समाप्त करने पर वे अपने पुराने विचारों की समीक्षा कर के देखें कि अब वे उन जगहों, लोगों और बदलावों के बारे में क्या सोचते हैं और शुरू में क्या सोचते थे।
8. मुद्दों पर आधारित विषयवस्तु का चुनाव: विषयवस्तु पर अपनी सोच को स्पष्ट करते हुए लेखकों ने लिखा है कि, आमतौर पर लेखक और प्रकाशक कोई भी चीज़ अपनी किताब से छोड़ देने में बहुत करराते हैं। इस कार पाठ्य-पुस्तकों में नई बातें जुड़ती तो जाती हैं पर किताब के स्वरूप में कोई मूलभूत बदलाव नहीं आता।
पाठ्य-पुस्तक लेखन की इस परंपरा के विपरीत लेखकों ने उत्तरी अमेरिका को छोड़कर विश्व के छह प्रदेशों को चुना और उनमें से भी कुद परिवेशों, संस्कृतियों ओर परिस्थितियों को चुना जो एक हद तक उस प्रदेश में आ रहे बदलावों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ज़ाहिर है इस चुनाव से कई-कई बातें छूट गई हैं पर लेखकों का विश्वास है कि उनकी किताब “दुनिया के लोगों की मूलभूत जीवन शैलियों का समझने के लिए बच्चों को पर्याप्त आधार देती है।”
फिर भी जानकारी का दबाव
यह सच है कि लेखकों ने बहुत सोच कर चुना है कि किन देशों व लोगों का वर्णन किया जाए और इस चुनाव में वे पाठ्यक्रम के परंपरागत आधारों से आगे बढ़ पाए हैं। जानकारियों के पुराने टुकड़े परोसने की बाध्यता से मुक्त हो कर वे बदलती मानवीय परिस्थितियों को समझने पर ध्यान केन्द्रित कर पाए हैं। नक्शों, चित्रों व घटनाओं को शिक्षण के सशक्त माध्यमों की तरह किताब में उपयोग किया गया है। इनसे विषयवस्तु में बहुत हद तक जीवन्तता, गहराई व पैनापन आया है। बीच-बीच के प्रश्न व अभ्यास के प्रश्न छात्रों से सजगता और सक्रियता की बदलाव अपेक्षा बनाए रखते हैं। जानकारियां रट के हूबहू उगल पाने को ज्ञानप्राप्ति का मापदण्ड नहीं माना गया है। अत: छात्रों के सामने बोद्धिक प्रयास का एक नया सोपान प्रस्तुत हो सका है।
हर प्रयास की कुछ खूबियां होती हैं और कुछ सीमाएं। पुस्तक को पढ़कर इसकी कुछ सीमाएं बहुत स्पष्ट रूप से उभरकर आती हैं।
कई जगहों पर कहानियों, घटनाओं और पत्रों का इस्तेमाल कृत्रिमता लिए रहता है। कहीं-कहीं पात्रों के मुंह से जो संवाद बुलवाए गए हैं, वैसे संवाद लोग स्वयं आमतौर पर अपनी दिनचर्या में नहीं बोलते। एक नई कोशिश के बावजूद पाठों में जानकारी देने का पुराना ढांचा झलक पड़ता है।
जैसे, ओलू अपने दफ्तर के काम से तेल के कुंओं के दौरे पर जाता है। अवेनी उसके साथ जाती है। ओलू बड़े गर्व के साथ कहता है, “तेल नाइजीरिया के भविष्य की कुंजी है। 1968 में हमारा तेल उत्पादन बहुत ज़रा-सा था और आज हम हर दिन दो करोड़ बैरल तेल का उत्पादन करते हैं।”
ओलू आगे कहता है, “एक बैरल की कीमत 10 डॉलर है। इसका मतलब है कि हर महीने नाइजीरिया को 600 करोड़ डालर की आमदनी हो रही है। जैसे-जैसे तेल के भाव बढ़ेंगे नाइजीनिया और संपन्न बनेगां।”
इस तरह की बातें पाठ में सामान्य जानकारी के रूप में ही लिखी जातीं तो ज़्यादा सहज प्रतीत होंतीं।
जानकारी देने का दबाव नाईजीरिया पर पाठ के अंत में बहुत स्पष्ट ढंग से नज़र आता है। पाठ में योरूबा कबीले का उदाहरण दिया गया है। हौसा और इबो कबीले की चर्चा करना लेखकों के मूल उद्देश्यों, यानी बदलावों की चुनी हुई परिस्थितियों का अध्ययन, आदि, के लिए ज़रूरी नहीं हैं। पर आलोचना से बचने के लिए वे दबाव में आ ही जाते हैं। और अवेनी विवाह किस तरह से करे इस प्रसंग का उपयोग करते हुए बड़ी चतुरता से इबो और हौसो कबीलों की जानकारी पाठ में घुसा डालते हैं।
‘अवेनी सोचती है कि नाइजीरिया के ओर युवा लोग क्या करते होंगे? उसके साथ एक नर्स काम किया करती थी वावो, भी अपने मां-बाप की इच्छा के विरूद्ध शादी नहीं करती। हां, हौसा लोगों की और भी बहुत सारी गहरी और पुरानी परंपराएं है।’
फिर 17 पंक्तियों में हौसा लोगों के इतिहास व व्यापार की जानकारी परोस दी जाती है।
इसी तरह आगे अवेनी सोचती है कि उसकी एक दोस्त और थी, लूसी। वह ईवो कबीले की थी। पर उसने भी घर जाकर ही शादी की थी। फिर ईबो लोगों की जानकारी प्रस्तुत की जाती है।
सबकी भलाई का मसला
सामाजिक बदलावों की तरह शैक्षिक बदलाव के नए प्रयास भी पुरानी बातों के दबाव को नज़र-अन्दाज़ नहीं कर सकते......बा, उनके साथ चतुरता से पेश आ सकते हैं। इसका रोचक उदाहरण लेखक स्वयं प्रस्तुत कर डालते हैं।
अमरीकी छात्रों के लाभ के लिए लोगों और संस्कृतियों के बारे में एक संतुलित दृष्टिकोण पेश करने की कोशिश पाठों में है, पर यह कोशिश पूरी तरह आश्वत नहीं करती। संतुलन का एक उदाहरण तब मिलता है जब ओलू तेल उत्पादन से नाइजीरिया की संपन्नता को लेकर उत्तेजित होता है। तब अवेनी सोची है, “धन मिलेगा सो तो ठीक, पर अभी इस धन ने उसके गांव पर तो कुछ भी प्रस्ताव नहीं डाला हैं। वह ओलू से पूछती है कि तेल का धन नाइजीरिया के किसानों को क्या लाभ पहुंचाएगा? ऐसा तो नहीं कि इस धन से विदेशी लोग और शहरों के अमीर लोग ही ज़्यादा धनी हो जाएं?”
ओलू इस आंशका से सहमत होता है। वह निर्णय करता है कि वह उन तरीकों को खोजेगा जिनसे नई संपन्नता सभी नाइजीरियाई लोगों की मदद कर सके।
पाठ में इस तरह के आशावादी, आदर्शवादी पड़ावों की मिठास लिए हम आगे पढ़ते जाते हैं। आइए ज़रा ठिठक कर सोंचे। उपरोक्त अंश यह आभास देता है कि सब की भलाई का तरीका खोजना संभव है। सब, ओलू जैसे भले लोगों के विचारों से यह मसला किसी कारण ज़रा खिसक-सा गया था!! छात्रों को इस तरह के लेखन से शायद प्रेरणा मिलेगी। पर किताब इस महत्वपूर्ण मसले को औपचारिक और सतही स्तर पर ही रखते हुए जिस मसले को पाठकों के मन में पूरी तरह हावी हो जाने देती है वह है - पुरानी जीवन पद्धतियों को छोड़ने और शिक्षा, उद्योग, व्यापार, शहर, और आधुनिक सरकारी योजनाओं में उत्साह के साथ अपनाने का आग्रह। मौटे तौर पर एक अमरीकी परिप्रेक्ष्य ही है। यह। आधुनिक रहन-सहन की सुविधाओं का लोभ पाठों में गजब की सादगी के साथ छलछलाता रहता है।
एक दूसरी कहानी का पात्र ओसमान सोचता है,‘ विश्विद्यालय की शिक्षा पूरी कर लेने के बाद वह सरकार के लिए कपास उत्पादक बढ़ाने का काम करेगा। या फिर वह दूसरे देशों में कपास की बिक्री बढ़ाने में सरकार की मदद करेगा।
ओसमान को विश्वास था कि उसे ऐसा काम अच्छा लगेगा। मेहनत करके वह पैसे भी जोड़ सकता है, और एक कार भी जोड़ सकता है, और एक कार भी खरीद सकता है। उसके पिता हमेशा एक कार की इच्छा रखते रहे। पर कभी खरीद पाने की हैसियत नहीं बना पाए। अगर ओसमान कार खरीद सके तो उसके पिता को उस पर कितना गर्व होगा।’
ऐसे कई और उदाहरण पाठों में हैं जो कुल मिलाकर छात्रों के लिए एक अदद मध्यमवर्गीय विश्वदर्शन का निर्माण करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में विषयवस्तु को लेकर लेखकों का दावा विडम्बना भरा नज़र आता है कि उनकी किताब “दुनिया के लोगों की मूलभूत जीवन शैलियों को समझने के लिए बच्चों को पर्याप्त आधार देती हैं।”
दुनिया भर में हो रहे बदलावों की जानकारी देते हुए वे दुनिया के उन लोगों को हाशिए पर खिसका गए हैं जो सफलता और महत्वकांक्षा की सीढ़ियों पे चढ़ नहीं सके हैं।
इस दृष्टि से यह पुस्तक निश्चय ही बासी पड़ चुकी हे। ‘सिंचाई से खुशहाली ही आएगी’,‘नाईजीरिया के तेल उद्योग का धन सभी देशवासियों की भलाई में लग सकेगा’ जैसी भोली आशावादिता (या वैचारिक एकतरफापन) के धरातल पर आज लोगों, जगहों और बदलावों के बारे में नहीं लिखा जा सकता! सामाजिक अध्ययन शिक्षण के प्रयोगों में जहां तकनीक (जैसे कहानियों का उपयोग) और पद्धति (जैसे चर्चा, विश्लेषण......) महत्वपूर्ण मुद्दे बनते हैं वहीं लेखकों के वैचारिक रुझान के प्रति भी सचेत रहने की ज़रूरत है।
पाठ्य-पुस्तक की सक्रियता किसमें
वैचारिक रुझान हर प्रयास में मौजूद रहता ही है - पर इस पुस्तक में वह विशेष रूप से ज़ोर पकड़े हुए है क्योंकि छात्रों के कैरियर, व्यक्तिगत मूल्यों व दूसरे समाजों के प्रति संतुलित परिप्रेक्ष्य बनाने को यह पुस्तक अपने प्रमुख उद्देश्य मानती है।
क्या वे बातें औपचारिक शिक्षण का मसौदा होनी चाहिए? मूल्यों की शिक्षा व्यक्ति अपने अनुभव व परिस्थिति के हिसाब से लेता रहता है। हां, दूसरों की विस्तृत जानकारी जितनी अधिक मिलेगी, उतनी अधिक बौद्धिक संपन्नता से व्यक्ति अपने विचार ढाल पाएग। पर हमें पाठ्य-पुस्तक की भूमिका क्या हो? सचमुच में संतुलित चुनाव करके जानकारी देना, समझ बनाना और विश्लेषण करना सिखाना, या कि चुनी हुई विषयवस्तु के एकतरफे प्रस्तुतिकरण के माध्यम से सक्रिय रूप से छात्रों के मूल्यों व विचारों पर प्रभाव डालना? कैरियर के चुनाव के उदाहरण को ही लें। अवेनी का नर्स बनना गर्व की बात है, यह ज़ोरों से कहा गया है, पर किसी नर्स की दिनचर्या का वर्णन देने की ज़रूरत लेखकों को नहीं महसूस हुई। इस तरह की बातों से लगता है कि छात्रों की ठोस समझ बनाना उनके लिए इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कुछ खास विचारों से उन्हें प्रभावित करना है। इस गंभीर प्रश्न पर ठोस और सटीक चर्चा का अवसर यह पुस्तक हमें देती है।
(रश्मि पालीवाल - एकलव्य के सामाजिक अध्ययन कार्यक्रम से संबद्ध।)