सुधा हार्डीकर
शरीर के लिए ज़रूरी तत्वों की जांच के कुछ आसान तरीके।
अक्सर हम पढ़ते रहते हैं कि प्रोटीन वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि पदार्थ हमारे शरीर के लिए कितने ज़रूरी हैं।
किस चीज़ में ये हैं, किसमें नहीं है इसे पता करने के वैसे तो कई तरीके हैं लेकिन उनमें से ज़्यादातर में ऐसे रसायनों की ज़रूरत होती है जिनका मिलना आसान नहीं होता या फिर परीक्षण प्रक्रिया ही काफी जटिल होती है। लेकिन हम यहां जिन परीक्षणों की बात करने जा रहे हैं उन्हें किसी भी हाईस्कूल की रसायन प्रयोगशाला में उपलब्ध रसायनों और अन्य साधारण की सहायता से आसानी से किया जा सकता है, बल्कि कुछेक के लिए तो प्रयोग-शाला की भी ज़रूरत नहीं होगी।
प्रोटीन परीक्षण
- कॉपर सल्फेट (नीला थोथा):कॉपर सल्फेट का 2ऽ घोल यानी 100 मि.ली. पानी में 2 ग्रम कॉपर सल्फेट मिलाकर घोल बनाएं।
- सोडियम हाइड्रॉक्साइड (कास्टिक सोड़ा): सोडियम हाइड्रॉक्साइड का 10ऽ घोल यानी 100 मि.ली. पानी में 10 ग्राम सोडियम हाइड्रॉक्साइड।
जिस पदार्थ का परीक्षण करना हो उसकी 10 बूंद एक साफ परखनली में लें। यदि पदार्थ ठोस हो तो उसकी चने के दाने के बराबर मात्रा पीसकर परखनली में लें और उसमें 10 बूंद पानी डालकर अच्छी तरह हिला लें।
इसमें 2 बूंद कॉपर सल्फेट का घोल और 10 बूंद कास्टिक सोड़ा का घोल डालकर अच्छी तरह हिलाइए। इसके बाद परखनली को पांच मिनट तक यूं ही रखा रहने दीजिए।
अगर घोल का रंग जामुनी या बैंगनी हो जाए तो जिस पदार्थ का परीक्षण कर रहे हैं, उसमें प्रोटीन मौजूद है।
वसा (चरबी) परीक्षण
जिस पदार्थ का परीक्षण करना है उसकी थोड़ी-सी मात्रा लेकर एक कागज़ के टुकड़े पर हल्के से रगड़ें।
यदि कागज़ अल्प पारदर्शक बन जाए और कुछ समय तक सूखने पर भी अल्प पारदर्शक बना रहे तो उस पदार्थ में वसा है।
कार्बोहाइड्रेट्स
इस हिस्से को ध्यान से करना होगा क्योंकि कार्बोहाइड्रेट्स के तहत बहुत-सी चीज़ें आती हैं - स्टार्च, सेल्यूनोज़ और विभिन्न तरह की शर्कराएं।
मनुष्य के लिए पोषक पदार्थ के रूप में सेल्यूनोज़ उपयोगी नहीं है इसलिए यहां पर सिर्फ स्टार्च एवं शर्कराओं का परीक्षण करेंगे।
1. स्टार्च (मंड) परीक्षण:
जिस वस्तु का परीक्षण करना हो उस पर आयोडीन के हल्के घोल की तीन-चार बूंदे डालिए। दवाई की दुकान पर उपलब्ध टिंक्चर आयोडीन भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि गहरा नीला या काला रंग हो जाए तो उस पदार्थ में स्टार्च (मंड) मौजूद है।
2. शर्कराएं: रासायनिक गुणों के आधार पर शर्कराओं को दो समूहों में बांटा जा सकता है।
अ. ऐसी शर्कराएं तो अपचायक गुण प्रदर्शित करती हैं। (Reducing Sugars) जैसे कि ग्लूकोज़ फ्रुकटोज़, लेक्टोज़, माल्टोज़ आदि। मीठे फल, शहद और फूलों के मीठे रस में ग्लूकोज़ व फ्रुकटोज़ पाई जाती हैं। खून और मधुमेह (डायबिटीज़) के रोगियों के मूत्र में ग्लूकोज़ होता है। लेक्टोज़ दूध में पाई जाने वाली शर्करा है।
ब. ऐसी शर्कराएं जो अपचायक नहीं होती। (Non - Reducing Sugars) जैसे कि सुक्रोज़। सुक्रोज़ चीनी (शक्कर), गन्ना, चुकंदर एवं मीठे कंद में पाई जाती है।
अपचायक शर्कराओं के परीक्षण के लिए आवश्यक रसायन:
- कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) का 5% घोल, यानी कि 100 मि.ली. पानी में 5 ग्राम कॉपर सल्फेट।
- सोडियम हाइड्रॉक्साइड (कास्टिक सोड़ा) का 10% घोल, यानी कि 100 मि.ली. पानी में 10 ग्राम सोडियम हाइड्रॉक्साइड।
अगर परीक्षण किसी द्रव पदार्थ जैसे दूध, फल का रस आदि से करना हो तो 3-3 बूंद द्रव एक परखनली में लेकर उसमें एक मिली लीटर पानी मिलाकर घोल तैयार कर लें।
इसी तरह यदि गूदेदार फल का परीक्षण करना हो तो चने के दाने बराबर फल का मसला हुआ गूदा 3-4 मि.ली. पानी के साथ अच्छी तरह हिला लें। इस द्रव को निखार लें और करीब एक मिली मीटर द्रव परखनली में लेकर परीक्षण करें।
यदि ठोस पदार्थ का परीक्षण करना हो तो चने के दाने के बराबर पदार्थ को एक मिली लीटर पानी में घोलकर घोल तैयार करें।
परीक्षण करने के लिए तैयार किए गए इस घोल में कॉपर सल्फेट के घोल की 5-6 बूंद और सोडियम हाइड्रॉक्साइड के घोल की 10 बूंद मिलाकर एक-दो मिनट तक गर्म करें।
गर्म करने पर अगर नारंगी अवक्षेप बनता है तो इसका अर्थ हे कि पदार्थ में ग्लूकोज़, फ्रुक्टोज़, माल्टोज़, लेक्टोज़ जैसी कोई अपचायक शर्करा उपस्थित है।
अगर शर्करा के पहले परीक्षण में नारंगी अवक्षेप नहीं आता तो भी इस बात की संभावना तो रहती ही है कि पदार्थ में सुक्रोज़ मौजूद हो, जो अपचायक नहीं होता। उसकी जांच के लिए भी कॉपर सल्फेट और सोडियम हाइड्रॉक्साइड के ऊपर बनाए गए घोल इस्तेमाल करने होंगे। उनके अलावा तनु सल्फ्ुयूरिक अम्ल (गंधक का अम्ल) की ज़रूरत भी होगी। परखनली में परीक्षण के लिए तैयार किया गया एक मि.ली. घोल लेकर उसमें 2-3 बूंद तनु सल्फ्ुयूरिक अम्ल मिलाकर दो मिनट तक उबालें। अगर नारंगी अवक्षेप मिलता है तो सुक्रोज़ की उपस्थित की पुष्टि होती है। पदार्थ में स्टार्च होने पर भी नारंगी अवक्षेप मिलेगा।
(सुधा हार्डीकर - होशंगाबाद के नर्मदा महाविद्यालय में रासायनशास्त्र की प्राध्यापक)