अजय शर्मा

सिर्फ छूकर, महसूस कर या देख कर ही ताप नहीं नापा जा सकता। अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से ताप नापने के अलग-अलग तरह के तापमापी बने हैं, विभिन्न आधार लेकर।

विज्ञान के इतिहास के पन्ने पलटने पर एक काफी रोचक तथ्य उभरकर आता है। वो यह कि - उष्मा और तापमान की अवधारणों की हमारे जीवन में इतनी अहमियत होने के बावजूद, करीब अठारहवीं सदी तक लोगों के पास कोई ऐसा सही और सटीक तरीका नहीं था जिससे वो पता लगा सकें कि कोई वस्तु कितनी गर्म या ठंडी है। एक रसोइया अपने चूल्हे की गर्मी अंगारों के रंग को देखकर आंकता था; और एक वैद्य या हकीम अपने मरीज़ के बुखार का अंदाज़ा लगाता था, उसके माथे को छूकर। हम किसी वस्तु के तापमान का अंदाज़ा उसे छूकर लगा तो सकते हैं पर ज़ाहिर है कि हमारी तापमान के प्रति संवेदनशीलता काफी सीमित और ज़्यादा भरोसेमंद नहीं है।

एक से ठंड तो एक से गर्मी

सर्दियों में लोहे की कुर्सी, लकड़ी की कुर्सी से ज़्यादा ठंडी प्रतीत होती है, जबकि दोनों का तापमान एक ही होता है। सन् 1690 में, दार्शनिक जॉन लॉक द्वारा सुझाया गया यह प्रयोग, हमारी छूकर तापमान आंकने की क्षमता की सीमितता को बहुत ही रोचक ढंग से उजागर करता है:

आप अपना एक हाथ बर्फीले पानी में, और दूसरा गर्म पानी में डालकर एकाध मिनिट के लिए छोड़दें। उसके बाद, दोनों हाथों को गुनगनु पानी में डालें। और फिर बताइए कि पानी गर्म है या ठंडा? एक हाथ (जो बर्फीले पानी में था) से आपको पानी गर्म लगेगा, और दसूरे से ठंडा। बोलिए, किस हाथ पर आप भरोसा करेंगे!


कम से कम आजकल के व्यावहारिक और वैज्ञानिक कार्यों के लिए तो ज़रा भी नहीं। (जैसे उबलते पानी को छूकर उसका तापमान कौन मालूम करना चाहेगा!)

इसलिए समय के साथ-साथ ज़रूरत महसूस हुई कुछ ऐसे तरीकों और उपकरणों की, जिनसे कौन वस्तु कितनी गर्म या ठंडी है, इसका सही, सटीक और वस्तुपरक मापन हो सके।

अब स्वाभाविक है कि अगर हमें किसी चीज़ का तापमान नापना है तो इसके लिए इन तीन चीज़ों का होना बेहद ज़रूरी हो जाता है:

  1. पदार्थों के किसी ऐसे गुण का, जो तापमान पर निर्भर हो और उसके साथ घटता-बढ़ता हो - समान और सुस्पष्ट रूप से;
  2. ऐसे सामान्य रूप से उपलब्ध सस्ते पदार्थ का, जो इस गुण के, तापमान के साथ उतार-चढ़ाव को बखूबी दर्शाता हो; और
  3. एक सर्वमान्य एवं प्रचलित मापदंड का जो इस गुण के एक निश्चित बदलाव को तापमान की एक निश्चित बदलाव को तापमान की एक निश्चित घट-बढ़ के साथ जोड़ता है।

खुशकिस्मती से पदार्थो के कई ऐसे भौतिक गुण हैं जो तापमान पर निर्भर करते हैं, और उसको नापने के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। मसलन, उनका आकार, उनके विद्युतीय, चुंबकीय प्रकाशकीय गुण, आदि।

आमतौर पर आकार में परिवर्तन से तापमान को नापना हमारे लिए सबसे ज़्यादा सरल तरीका साबित होता है। डॉक्टरों वाला थर्मामीटर, जिससे किसी मरीज़ का तापमान नापा जाता है, इसी सिद्धांत पर आधारित है। इसमें कांच का एक खोखला बल्ब बना होता है, जो एक छोटे से छिद्र द्वारा एक कांच की नली से जुड़ा हुआ होता है। बल्ब में पारा भरा जाता है। मुंह में थर्मामीटर डालने से बल्ब में मौजूद पारे को शरीर की उष्मा प्राप्त होती है, और उसका तापमान बढ़ने से, पारे के आयतन में भी बढ़ोतरी होती है, और वह कांच की नली में फैल जाता है। नली में पारे की ऊंचाई तब तक बढ़ती रहती है जब तक उसका तापमान हमारे शरीर के तापमान के बराबर नहीं हो जाता। पारे की ऊंचाई हमारे शरीर के तापमान को दर्शाती है, जिसे नली पर खुदे एक पैमाने के माध्यम से पढ़ा जा सकता है।

जैसा कि हमने पहले ज़िक्र किया था आकार में परिवर्तन के अलावा पदार्थों के और भी कई भौतिक गुण होते हैं जिन पर आधारित तापमापी उपकरण बनाए जा सकते हैं। इस लेख के अंत में ऐसे ही कुछ उपकरणों का वर्णन करेंगे जो आमतौर पर हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तो इस्तेमाल नहीं होते लेकिन ये तापमापी कारखानों, प्रयोगशालाओं वगैरह में बेहद कारगार साबित होते हैं।

अब वक्त आ गया है कि हम चर्चा किसी भी भौतिक चीज़ की जिसके बिना किसी भी ज़रूरी चीज़ की जिसके बिना किसी भी भौतिक मात्रा का मापन असंभव है। जी हां, हमारा इशारा उन सर्वमान्य मापदंड या पैमानों की ओर है जिनका पूर्वनिर्धारण करना किसी भी भौतिक मात्रा के मापन के लिए अनिवार्य हो जाता है।

तापमान के पैमाने
थर्मामीटर का पैमाना तय करने के लिए, संख्या 0 (शून्य) उस तापमान के लिए निर्धारित कर दी जाती है जिससे मानक वायुमंडलीय दबाव पर (समुद्र तल पर जितना होता है) पानी बर्फ के रूप में जम जाता है, और संख्या 100 उस तापमान के जिए जिस पर मानक वायुमंडलय दबाव पर, पानी पूर्ण रूप से उलबने लगता है।

इन दो स्थायी बिन्दुओं के बीच के अंतराल को 100 बराबर भागों में बांट दिया जाता है। एक भाग को एक डिग्री के बराबर माना गया है। तापमान को डिग्री सेल्सियस (0से.) की इकाइयों में पढ़ा जाता है। यानी इस पैमाने पर ‘वाष्प बिन्दु’ का तापमान हुआ 100 डिग्री से., और ‘बर्फ बिन्दु’ का 0 डिग्री से.। इस पैमाने का सबसे पहले सुझाव दिया था स्वीडन के एक खगोलशास्त्री ए.सी. सेल्सियस ने, सन् 1742 में। उन्हीं के सम्मान में इस पैमाने को सेल्सियस पैमाने के नाम से जाना जाता है।

जिन देशों में अंग्रेज़ी बोली-लिखी जाती है (खासतौर से संयुक्त राज्य अमेरीका में), वहां आम ज़रूरतों के लिए सेल्सियस पैमाने के अलावा एक पैमाना और प्रचलित है - फेरेनहाइट पैमाना। इस पैमाने को सबसे पहले सोचने और उस पर आधारित थर्मामीटर बनाने का श्रेय जाता है जर्मन वैज्ञानिक जी.डी. फेरेनहाइट (1686-1736) को।

ज़ाहिर है कि इस पैमाने की इकाई डिग्री फेरेनहाइट (0फे.) होती है। फेरेनहाइट पैमाने पर बर्फ को 212 डिग्री फे. के तापमान पर मान लिया जाता है; और इन दोनों स्थायी बिन्दुओं के बीच के अंतराल को हम 180 बराबर डिग्रियों में विभाजित कर देते हैं। अक्सर, हम लोग अपने शरीर का तापमान इसी पैमाने पर नापते हैं।

आपने शायद गौर किया हो कि वाष्प बिन्दु और बर्फ बिन्दु के बीच के अंतराल को सेल्सियस पैमाने पर तो हमने 100 डिग्रियों में बांटा, पर फेरेनहाइट पैमाने के इतने ही अंतराल में समाग्री 180 डिग्रियां। यानी सेल्सियस पैमाने कीएक डिग्री, फेरेनहाइट पैमाने की एक डिग्री से थोड़ी बड़ी होती है

32 और 212 ही क्यों?

आपको शायद ताज्जुब हो रहा हो कि भला फेरेनहाइट को क्या सूझी जो उसने बर्फ और वाष्प बिन्दु के लिए 32 और 212 जैसी संख्याएं चुनी? आखिर इन संख्याओं में ऐसी क्या खास बात है। दरअसल ये संख्याएं उसने चुनी थी। उसने अपना पैमाना बनाने के लिए बर्फ और वाष्प बिन्दुओं की जगह कुछ और ही स्थायी बिन्दुओं का चयन किया था।

उसने अपनी प्रयोगशाला में बर्फ और नौसादर का मिश्रण बनाया और उसे अपने पैमाने के निचले शून्य बिंदु के रूप में लिया। ऊपरी स्थाई बिन्दु के रूप में उसने चुना, मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान, जिसे उसने 96 माना। जबकि आज हम जानते हैं कि यह 98.6 0फे. होता है। बाद के दौर में पैमाने के लिए स्थाई बिन्दुओं के रूप में बर्फ बिन्दु और वाष्प बिन्दु को लिया जाना अधिक प्रचलित हो गया। फेरेनहाइट पैमाने पर बर्फ बिन्दु और वाष्प बिन्दु 320फे. और 2120 फेरेनहाइट पर मिलते है।

1 सेल्सियस डिग्री उ 1.8 फेरेनहाइट डिग्री चित्र में इन दोनों पैमानों की एक तुलनात्मक तस्वीर पेश की गयी है।

परम शून्य
तापमान नापने की जब हम बात करते हैं तो एक स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि आखिर, तापमान की सीमाएं क्या हैं? यानी इस संसार में, या कहिए कि पूरे ब्राह्यांड में, अधिक-से-अधिक और कम-से-कम तापमान क्या हो सकते हैं?

जब जहां तक अधिकतम तापमान का सवाल है - सिद्धांत: ऐसी कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यानी विज्ञान में ऐसी अवधारणा नहीं है जो यह कहे कि किसी भी वस्तु का तापमान फलां-फलां संख्या से ज़्यादा नहीं हो सकता। आप बस किसी चीज़ को उष्मा देते रहिए और उसका तापमान बढ़ता रहेगा - बेरोकटोक और बिना किसी हद के। किसी ठीक वस्तु को ही ले लीजिए। अगर उसको गर्म करते रहें, तो पहले तो वह पिघलेगी, और फिर कुछ समय बाद वाष्प में परिवर्तित हो जाएगी। जब जैसे-जैसे तापमान और बढ़ाया जाता है, वाष्प के अणु टूटकर परमाणुओं में बिखर जाते हैं। धीरे-धीरे परमाणु भी खंडित हो जाते हैं, इलेक्ट्रॉनों और आयनों (धन आवेशित परमाणु) में। आपके पास बस रह जाता है इन आवेशित कणों का एक बादल, जिसे प्लाज़्मा के नाम से जाना जाता है। पदार्थ की इस अवस्था का तापमान लगभग 20,000 डिग्री सेल्सियस के करीब होता है।

न्यूनतम तापमान के संदर्भ में वैज्ञानिकों का मत कुछ और ही है। उनका मानना है कि - भले ही अधिकतम तापमान की एक न्यूनतम सीमा ज़रूर होती है। यह वह न्यूनतम तापमान है जिससे कम किसी भी वस्तु का तापमान की ओर सबसे पहले इशारा किया गैस के प्रयोगों ने जो यूरोप में उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी दशकों में किए गए।

सभी गैसें गर्म करने पर फैलती हैं, और ठंडी होने पर सिकुड़ती हैं। अगर कोई गैस शून्य डिग्री तापमान पर है और उसका दबाव निश्चित है, तो उसका तापमान भी निश्चित होता है। प्रयोगों में पाया गया कि ऐसी स्थिति में अगर किसी गैस के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस का परिवर्तन किया जाए तो उसका आयतन एक विशेष मात्रा से बदलता है। अगर किसी गैस का आयतन 0 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ‘क’ है, तो तापमान में 1 डिग्री का परिवर्तन करने पर आयतन भी क/273 से बदल जाता है, बशर्ते इस दौरान गैस का दबाव स्थिर रखा गया हो। अब अगर हम यह मान कर चलें कि सभी गैसे शून्य अंश सेल्सियस से नीचे भी यही गुण प्रदर्शित करती हैं तो निष्कर्ष यह निकलता है कि अगर गैस को शून्य से 273 अंश सेल्सियस नीचे तक ठंडा कर दिया जाए, तो उसका आयतन (273 X क/273) से सिकुड़ जाएगा। यानी किसी भी गैस का आयतन - 273 अंश सेल्सियस पर शून्य हो जाना चाहिए।

इन प्रयोगों ने यह भी दर्शाया कि शून्य डिग्री सेल्सियस पर रखी गई एक निश्चित और स्थिर आयतन की गैस का दबाव भी तापमान में 1 अंश सेल्सियस का बदलाव लाने पर 1/273 से बदल जाता है। अर्थात, -273 अंश सेल्सियस पर गैस का दबाव भी शून्य हो जाना चाहिए।

अब ज़ाहिर है किसी भी गैस का न तो कभी दबाव शून्य हो सकता है, और न ही उसका आयतन। दरअसल, कोई भी गैस इतनी ठंडी होने से पहले ही द्रव बन जाती है। फिर भी, इस तरह के प्रयोग एक न्यूनतम तापमान -273 अंश सेल्सियस ही है ठंडेपन की आखिरी सरहद। इस तापमान को परम शून्य भी कहते हैं। परम शून्य पर पदार्थ की आंतरिक ऊर्जा न्यूनतम होती है। इस तापमान पर, उसमें से हम न तो ज़रा-सी भी ऊर्जा निकाल सकते हैं, और न ही उसे और अधिक ठंडा कर सकते हैं।


परम शून्य

परम शून्य यानी क्या: गैसों पर किए गए कुछ प्रयोगों ने इस दिशा में इशारा किया कि गैसों के तापमान में एक डिग्री से. का परिवर्तन करने पर 00से. पर गैस के आयतन के 1/273वें भाग के बराबर परिवर्तन हो जाता है। लेकिन शर्त है कि दाब नियत रहे। गैसों के इस व्यवहार के बारे में तो हम जानते ही हैं कि गर्म करने पर फैलती हैं और ठंडा करने पर सिकुड़ती हैं। तो इस हिसाब से 1000 से. पर आयतन 00से. पर आयतन के मुकाबले 100/273 भाग बढ़ जाएगा। इसी तरह - 1000 से. पर शून्य हो जाएगा। लेकिन व्यवहार में ऐसा होना संभव नहीं है, ये तो सिर्फ आदर्श स्थिति है जो परम शून्य की तरफ इशारा करती है।


आप शायद सोचें कि हम -273 अंश सेल्सियस को परम शून्य क्यों कह रहे हैं? दरअसल, बात यह है कि इस तापमान से एक खास पैमाना जुड़ा हुआ है - केल्विन तापमान पैमाना। खास इसलिए क्योंकि इस पैमाने पर परम शून्य तापमान को वाकई शून्य माना गया है। यानी, 273 अंश सेल्सियस उ 0 केल्विन। केल्विन इस पैमाने की इकाई है।

1 केल्विन = 1 अंश सेल्सियस।

किसी वस्तु के, इन दोनों पैमानों पर नापे गये तापमान, इस सूत्र द्वारा जुड़े हुए हैं:

तापमान (केल्विन) = तापमान (सेल्सियस) + 273

वैज्ञानिक शोधकार्य में मुख्यत: इसी पैमाने का उपयोग होता है।

चूंकि केल्विन पैमाने पर तापमान की न्यूनतम सीमा को ही 0 केल्विन परिभाषित किया गया है, इस पैमाने पर ऋण तापमान नहीं होते।

थर्मोमीटरी यानी तापमापन  
पदार्थों के कई भौतिक गुण ऐसे हैं जो तापमान पर निर्भर करते हैं। तापमान के साथ-साथ इन गुणों में बदलाव की मदद से तापमान का मापन किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर डॉक्टरों द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला थर्मोमीटर पारे के आकार (साईज़) की तापमान पर निर्भरता के आधार पर तापमान मापन करता है।

तापमान मापन के लिए इस्तेमाल किए जाने की एक खास रेंज के मापन के लिए ही उपयुक्त होता है। किसी गुण के आधार पर सिर्फ कम तापमान के मापन के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। तालिका में, प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ तापमापी की वह तकरीबन रेंज जिसमें वह मापन के लिए उपयुक्त साबित होते हैं, दी गयी है।

इस खंड में हम कुछ ऐसे तापमापी उपकरणों का वर्णन करेंगे जिनसे आम जीवन में हमारा वास्ता शायद ही पड़ता हो।

विद्युत प्रतिरोध थर्मोमीटर  
ज़्यादा धातुओं का विद्युत प्रतिरोध तापमान के साथ बढ़ता है - वह भी इतना अधिक कि फर्क आसानी से दिखाई दे मसलन प्लेटिनम के तापमान को 00 से. से 1000 से. तक ले जाने पर उसके विद्युत प्रतिरोध में 39 प्रतिशत का इज़ाफा हो जाता है। इसलिए इस तरह की धातुओं का विद्युत प्रतिरोध उनके तापमान का विश्वसनीय सूचक माना जा सकता है। विद्युत प्रतिरोध थर्मोमीटर इस गुणधर्म पर आधारित होते हैं। इस तरह तापमान नापने के लिए प्लेटिनम धातु खासी उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि इस धातु के विद्युत प्रतिरोध में परिवर्तन की मदद से -2000 सेल्सियम से लेकर 11000 सेल्सियस तक के तापमान बखूबी नापे जा सकते हैं।

थर्मोमीटर थर्मोमीटर: जब लोहे-तांबे के तार के सिरों को दो अलग-अलग तापमानों पर रखते हैं तो विद्युत धारा बहने लगती है। इस धारा का वोल्टेज तापमानों के अन्तर पर निर्भर करता है।

थर्मोकपल थर्मोमीटर
यह थर्मोमीटर एक खास विद्युतीय प्रभाव पर आधारित होते हैं। अगर धातु के एक तार के दोनों सिरों को, एक दूसरी धातु के, एक दूसरे तार के दोनों सिरों से जोड़ दिया जाए तो तार का एक बंद परिपथ बन जायेगा। चूंकि यह परिपथ दो तारों को जोड़कर बनाया गया है, स्वाभाविक है इस परिपथ में दो जोड़ (जंक्शन) होंगे। इन जोड़ों, यानी जंक्शनों, को अगर अलग-अलग तापमान पर रखा जाए तो परिपथ में विद्युत प्रवाह होने लगता है।

यह पाया जाता है कि इन दो जोड़ों के बीच वोल्टेज, जो कि विद्युत प्रवाह का कारण बनता है, इनके तापमान के अंतर पर निर्भर करता है। यानी इन जोड़ों के बीच जितना अधिक तापमान का फर्क होगा, वोल्टेज उतनी ही अधिक होगी। अब अगर हमें एक जंक्शन का तापमान मालूम है तो वोल्टेज मापकर दूसरे जंक्शन का तापमान नापा जा सकता है। थर्मोकपल थर्मोमीटर इसी सिद्धांत पर आधारित होते हैं।

ऑप्टीकल पायरोमीटर
किसी भी वस्तु से निकलने वाला प्रकाश अपने रंग (अर्थात दृश्य प्रकाश की तरंग-लंबाई) के कारण उस वस्तु के तापमान की अच्छी-खासी जानकारी दे जाता हे। मिसाल के तौर पर, धातुओं को जब बहुत अधिक गर्म कर दिया जाता है तो वे अलग-अलग रंग के प्रकाश से प्रज्वलित हो उठती हैं।

प्रकाश का रंग उनके तापमान पर निर्भर करता है। यह निर्भरता लगभग इस तरह की होती है:

ऑप्टिकल पायरोमीटर: सिर्फ आंख भरोसे नहीं; यह तो मालूम है कि धातुएं अलग-अलग ताप पर अलग-अलग रंग का प्रकाश छोड़ती हैं। इस उपकरण में धातुओं द्वारा छोड़े जा रहे प्रकाश के रंग और चमक की तुलना के लिए फिलामेंट लगा होता है। फिलामेंट को गर्म करके उसके रंग और चमक से धातु के प्रकाश की तुलना की जाती है।

 

अर्थात अत्यंत गर्म वस्तुओं से निकलने वाले प्रकाश की मदद से उनका तापमान नापा जा सकता है। ऑप्टीकल पायरोमीटर इसी तथ्य पर आधारित है।

परन्तु केवल देखकर अंदाज़ा लगाने से बहुत भरोसेमंद परिणाम नहीं मिलेंगे। इसलिए ऑप्टिकल पायरोमीटर में तापमान मापने वाले रुाोत की तुलना एक बल्ब फिलामेंट से की जाती है। फिलामेंट में करंट की मात्रा को कम-ज़्यादा करके उसकी रोशनी कम-ज़्यादा की जा सकती है। इस तरह जब फिलामेंट और तापमान मापने वाला रुाोत एक जैसे चमक रहे हों, करंट की मात्रा से तापमान पता लगाया जा सकता है।

इस उपकरण की मदद से पिघले लोहे जैसे अत्यंत गर्म पदार्थों का तापमान दूर से ही नापना संभव हो जाता है।

इंफ्रारेड पायरोमीटर
सभी गर्म वस्तुओं से इंफ्रारेड (अवरक्त) किरणें निकलती हैं। इन किरणों के गुणधर्म वस्तुओं के तापमान पर निर्भर करते हैं। हमारी आंखें तो इन किरणों के प्रति संवेदनशील नहीं होतीं परंतु फोटोसेल व अन्य उपकरणों के माध्यम से इनको आसानी से परखा जा सकता है। इंफ्रारेड पायरोमीटर इन किरणों के प्रति संवेदनशील होते हैं और इन किरणों के गुणधर्मों को परखकर जिस वस्तु से यह किरणें निकल रही होती हैं उसका तापमान नाप लेते हैं।

यह उपकरण ऑप्टीकल पायरोमीटर की तुलना में ज़्यादा सटीक, सुरक्षित और बेहतर माना जाता है। अगर आपके पास यह उपकरण है, तो किसी वस्तु का तापमान नापने के लिए आपको उसके पास भी जाना नहीं पड़ता। बस, एक बंदूक की तरह इस पायरोमीटर को उस चीज़ की तरफ तान दीजिए और पढ़ लीजिए उसका तापमान।


(अजय शर्मा - एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।)

इंफ्रारेड पायरोमीटर (ऊपर इंसेट में); उसका एक प्रयोग (नीचे): सभी गर्म वस्तुएं इंफ्रारेड (अवरक्त) प्रकाश छोड़ती हैं। इस पायरोमीटर में इसी गुण का उपयोग किया जाता है। इसकी सहायता से वस्तुओं से निकल रहे इंफ्ररेड विकिरण को नाप कर वस्तु का ताप पता किया जाता है।