पानी, प्लास्टिक का टुकड़ा और कपूर
पिछले अंक में हमने आपसे एक सवाल पूछा था कि क्या वजह है कि प्लास्टिक की जीभी से बनी मछली की दुम में कपूर का टुकड़ा फंसाने से मछली चल पड़ती है? शुरू में तो हमें भी ऐसा ही लगा कि इस सवाल का जवाब काफी आसान होना चाहिए लेकिन जैसे-जैसे सवाल की पेचिदगियों में गए तो पता चला कि मामला कुछ टेढ़ा है। सैद्धांतिक स्तर पर कुछ समझ बन जाए, फिर भी बहुत से व्यवहारिक/प्रोयोगिक सवाल अभी भी हैं, इसलिए और बहुत कुछ करके देखने की गुंजाइश भी! ऐसे संभालकर रखते हैं, क्योंकि छानबीन से जो पता चला वह भी अपने आप में कम दिलचस्प नहीं है।
अगर कारणों का हमें पता न हो तो इस दुनिया में ऐसी घटनाओं की कमी नहीं जो हमें सिर्फ रहस्यमय ही नहीं अपितु दैवी प्रभावों से भी प्रेरित लगें। मिसाल के तौर पर पिछले साल गणेशजी की मूर्तियों के दूध पीने की अविस्मरणीय घटना को ही लें।
श्रद्धालुओं की नज़रों में मर्तियों का दूध पीना एक दैवी चमत्कार था। परन्तु वैज्ञानिकों के ख्याल से इस सब के पीछे थी एक सरल अवधारणा पृष्ठ तनाव - सरफेस टेंशन। (उस घटना में सवाल शायद नज़रों का भी था क्योंकि पृष्ठ तनाव से तो दूध केवल कहीं-कहीं मूर्तियों की तरफ खिंच रहा था, गायब कतई नहीं हो रहा था।) हमारे सवाल का जवाब भी पृष्ठ तनाव से जुड़ा हुआ है। अत: इससे पहले कि हम मूल प्रश्न पर आएं, पृष्ठ तनाव की अपनी समझ को पुख्ता कर लेते हैं।
जैसे कि आप जानते होंगे, तरल पदार्थों में द्रव के अणु ठोस पदार्थों के अणुओं की तरह एक ही जगह पर बंधे हुए नहीं होते। वे द्रव के अंदर इधर-उधर विचरते रहते हैं। परंतु यह विचरण गैस के अणुओं की तरह पूरी स्वतंत्रता के साथ बलहीन अवस्था में नहीं होता। द्रवों के अणु द्रव में घूमते-फिरते ज़रूर हैं पर साथ-साथ अपने पड़ोसी अणुओं को एक Ïस्प्रगनुमा बल के द्वारा भी प्रभावित करते रहते हैं। (ऐसा गैसों में नहीं होता।)
चलिए अब बात करते हैं उस पानी की जिसमें आप अपनी प्लास्टिक की मछली दौड़ा रहे हैं। इस पानी के दो अणुओं ‘अ’ और ‘ब’, पर गौर करें (चित्र-1)-‘ब’ अणु सतह पर है और ‘अ’ अणु सतह के नीचे, पानी के अंदर।
जैसा कि आप चित्र में देख रहे है, ‘अ’ अणु चहुं ओर से अपने जैसे अणुओं से घिरा हुआ है। इस अणु के पड़ोसी अणु उस पर सभी दिशाओं में बराबर मात्रा में आकर्षण बल लगाते हैं। नतीजा: ‘अ’ अणु पर लगने वाला कुल बल शून्य ही होगा (अगर केवल इसी बल पर गौर करें, बलों को हम छोड़ दें) परंतु ‘ब’ अणु इतना खुशकिस्मत कहां? चूंकि यह अणु सतह पर है, इसके ऊपर पानी के अणु नहीं होंगे। इस वजह से पड़ोसी अणुओं द्वारा लगाया जाने वाला बल इस अणु पर सभी दिशाओं में लगेगा, सिवाय ऊपर के। अत: इस अणु पर लगने वाले बल पूर्ण रूप से एक-दूसरे से संतुलित नहीं हो पाते।
परिणाम साफ है - ‘ब’ अणु व अन्य सभी सतह पर मौजूद पानी के अणुओं पर एक परिणामी बल नीचे की दिशा में लगता है।
लाज़िमी है कि इस बल के कारण सतह के सभी अणु सतह के अंदर घुस जाएं, यह तो असंभव है। आखिर कुछ को सतह पर रहना ही पड़ेगा।
ऐसी स्थिति में दो असर होते हैं पहला, पानी अपनी सतह क्षेत्रफल न्यूनतम रखने का प्रयास करेगा। वैसे यह ज़रूरी नहीं है कि पानी इस प्रयास में हमेशा सफल हो ही जाए। अन्य बलों (जैसे गुरुत्व बल, अन्य पदार्थों के साथ आकर्षण-विकर्षण आदि) की मौजूदगी के कारण, कई बार आप पाएंगे की पानी की सतह का क्षेत्रफल न्यूनतम संभव मान से ज़्यादा है। कांच की नली के अंदर ही पानी को देखिए न, पानी की खुली सतह कम-से-कम क्षेत्रफल रखते हुए सपाट रहने की बजाए, गोलाई लिए रहती है।
दूसरा असर पहले से जुड़ा हुआ है। वह यह है कि पानी की सतह पर एक खिंचाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यानी सतह के हरेक बिन्दु पर चारों दिशाओं के बराबर मात्रा में बल लगते हैं (चित्र-2) - अणुओं के आपसी आकर्षण के कारण, जो उस बिन्दु को अपनी-अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हैं
अब जैसा कि स्वाभाविक है, इस खिचांव के कारण पानी की सतह पर एक तनाव पैदा हो जाता है। ठीक वैसा ही जैसा आप एक ढोलक पर तनी हुई चमड़े की खाल में महसूस करते हैं।
यह खाल इसी तनाव के कारण तनी हुई रहती है। यह आम अनुभव की बात है कि जब इस तरह की तनी हुई सतहों को आप अपने अंगूठे द्वारा हल्के से दबाने का प्रयास करते हैं तो सतह इस दवाब के कारण थोड़ी-सी दबती ज़रूर है पर शीघ्र ही खाल का सतही तनाव आपके अंगूठे पर, आपके द्वारा लगाए बल के बराबर और विपरीत दिशा में, बल लगाने लगता है। फलस्वरूप आप सतह को और अधिक नहीं दबा पाते। हां, यह बात ज़रूर है कि हरेक ऐसी सतह की दवाब सहने की अपनी-अपनी क्षमता होती है। ज़ोरों की थाप देने से फट चुकने वाले ढोल इस हकीकत के बेसुके गवाह हैं! बहरहाल, गौरतलब बात यह है कि इस सतही तनाव के कारण पानी और अन्य तरल पदार्थों की सतह भी ऐसे गुण प्रदर्शित करती है। यह सतही तनाव भौतिकी में पृष्ठ-तनाव के नाम से जाना जाता है।
इस पृष्ठभूमि के संदर्भ में आइए अब ज़िक्र करते हैं अपने भूल प्रश्न का। बिना कपूर वाली मछली को जब हम पानी छोड़ते हैं तो वह एक स्थान पर तैरती ज़रूर है पर इधर-उधर नहीं भागती। चलिए समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है। पृष्ठ तनाव सतही होने के कारण पानी की सतह के समांतर दिशा में सक्रिय रहता है(चित्र - 3व 4)
मछली को जब हम पानी पर छोड़ते हैं तो अपने वज़न के कारण मछली के पास सतह को थोड़ा-सा दबा देती है। मछली के पास सतह थोड़ी अंदर की ओर मुड़ जाएगी। मछली के इर्द-गिर्द सतह के इस आकार परिवर्तन के कारण पृष्ठ तनाव बन जो मछली की अनुपस्थिति में ठीक समांतर दिशा में होता था, अब थोड़ा ऊपर की ओर हो जाएगा (चित्र - 5)।
ऐसी स्थिति में मछली के पास के पृष्ठ तनाव बल (F1) को दो घटकों के पणि#ाम के रूप में देखा जा सकता है - समांतर और लंबवत घटकों, FIV और F1H । पानी की सतह मछली के वज़न का दबाव सहन कर पाने में इसलिए सक्षम हो पाती है क्योंकि पृष्ठ तनाव बलों के सभी लंबवत घटकों का योग मछली के वज़न के बराबर होता है तथा मछली पर ऊपर की दिशा में लगता है।
मछली को पानी में यूं चलाइए हो सकता है आपने हमारा सवाल पढ़ने के बाद मछली चलाने की कोशिश की होगी। और हो सकता है आपको वैसी कामयाबी न मिली हो जैसी आपको दरकार थी। हम भी आपको कुछ राज़ की बातें बता रहे हैं। ताकि मछली देर तक पानी में चलती रहे। जिस थाली में आप पानी ले रहे हो उसे साबुन से साफ कर लीजिए। फिर उसमें साफ पानी भरकर अखबारी कागज़ के बड़े-बड़े तीन-चार टुकड़े पानी में से डुबोकर निकालिए। इस बात का ध्यान रखिए कि कागज़ को डुबोते समय आपका हाथ पानी को न छुए। इस तरह कागज़ डुबोकर निकालने से पानी की ऊपरी परत से तेल वगेरह निकल जाते हैं। इस साफ पानी में कपूर लगी मछली को किसी चिमटी की मदद से धीरे-से छोड़िए। जब मछली पानी पर तेज़ी से गोल-गोल घूमने लगे तो एक छोटा-सा प्रयोग करके देखिए। अपनी अंगुलियां बालों पर रगड़िए और फिर थाली के पानी में एक अंगुली को डुबोइए। क्या हुआ..........? अब इस मछल को फिर से चलाने का एक ही तरीका है कि मछली को चिमटी से पकड़ कर एक किनारे करो और फिर से अखबारी कागज़ के चार-पांच टुकड़े इस पानी में से डुबोकर बाहर निकालो। मछली फिर से चलने लगेगी। वैसे सोचने वाली बात है कि अंगुली पानी में डुबोने से मछली क्यों रुक गई। शायद आप इस बात को समझ रहे होंगे। |
यही वजह है कि मछली पानी में डूबती नहीं है। अब देखते हैं कि मछली इधर-उधर भागती क्यों नहीं है। दरअसल ऐसा तभी हो सकता है बशर्ते पर सतह के समांतर दिशा में कोई परिणामी बल लगे।
जब जैसा कि हम चित्र - 6 में देख सकते हैं, पृष्ठ तनाव के समांतर घटक (F1H , F2H इत्यादि ) मछली पर समांतर दिशा में ही लगते हैं। चूंकि पानी की सतह के हरेक बिंदु पर पृष्ठ तनाव बल का मान एक समान रहता है, इसलिए इन घटकों का मान भी बराबर माना जा सकता है (यानी F1H = F2H ) और क्योंकि ये घटक एक दूसरे के विपरीत दिशा में होते हैं
लिहाज़ा मछली पर समांतर दिशा में लगने वाला परिणामी पृष्ठ-तनाव बल शून्य ही रहता है। मछली पर समांतर दिशा में लगने वाले अन्य परिणामी बलों का मान या तो शून्य रहता है या फिर नगण्य। इसलिए बिना कपूर वाली मछी इधर-उधर भागती नहीं है।
अब आप सोचेंगे कि हो न हो इस सारे प्रपंच के पीछे कपूर का ही हाथ होगा। सही फरमाया आपने। दरअसल, कपूर पानी के संपर्क में आने पर अपने ईद-गिर्द पृष्ठ-तनाव, सतह पर अन्य स्थानों की अपेक्षा, कम हो जाता है। यानी मछली की पूंछ पर लगने वाले पृष्ठ-तनाव बल का समांतर घटक मछली के सिर पर लगने वाले पृष्ठ-तनाव बल के समांतर घटक की बनिस्बत कम होगा (चित्र - 7)।
अब जहां बलों का असुंलन हो, वहां स्थिरता कैसी?
मछली को तो इधर-उधर भागना ही पड़ेगा।
वायदे के मुताबिक अब बारी आती है इस प्रयोग से उठने वाले अन्य सवालों की। अगर ऊपर दिया गया जवाब सही है तो मछली के दौड़ने की दिशा उसकी आकृति यानी मछलियां बनाकर देखिए कि क्या संबंध है इनमें। दूसरा स्वाभाविक सवाल उठता है कि क्या सिर्फ कपूर ही पानी के पृष्ठ तनाव पर इस तरह असर डालता है? नमक, शक्कर या फिटकरी लगाकर किसी को मछलियां तैराते तो नहीं देखा आजतक, पर क्या मालूम आप कुछ नया खोज निकालें।