पौधे अपनी बनावट में काफी सरल जान पड़ते हैं। चाहे छोटी झाड़ियां हों या ऊंचे पेड़ हों - सभी जड़, तना, पत्तियों, फूलों, फलों से मिलकर बनी संरचना दिखाई देते हैं। लेकिन उनकी बनावट जितनी सरल दिखती है उतने सरल वे होते नहीं हैं।
एक ही स्थान पर जमे रहने के लिए कई विशेष लक्षण ज़रूरी होते हैं। सूर्य के प्रकाश और कार्बन डाईऑक्साइड से भोजन बनाने की क्षमता ने उन्हें पृथ्वी पर मौजूद जीवन में एक महत्वपूर्ण मुकाम दिया है। वे दौड़ नहीं सकते, लेकिन अपनी रक्षा कर सकते हैं। अलबत्ता, उनकी क्षमताओं का एक दिलचस्प पहलू, जो हमें दिखाई नहीं देता, वह मिट्टी में छिपा है - जिस मिट्टी में वे अंकुरित होते हैं, और जिससे पानी, तमाम सूक्ष्म पोषक तत्व और कई अन्य लाभ प्राप्त करते हैं।
पुराना साथ
पौधों और कवक (फफूंद) का साथ काफी पुराना है। लगभग 40 करोड़ वर्ष पूर्व के पौधों के जीवाश्मों में जड़ों के पहले सबूत मिलते हैं। और इन जड़ों (राइज़ॉइड्स) के साथ कवक भी सम्बद्ध हैं, जो यह बताते हैं कि जड़ें और कवक साथ-साथ विकसित हुए हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण पेनिसिलियम की एक प्रजाति है; वही कवक जिससे अलेक्ज़ेंडर फ्लेमिंग ने सूक्ष्मजीव-रोधी पेनिसिलिन को पृथक किया था।
कवक और जड़ का साथ, जिन्हें मायकोराइज़ा कहते हैं, पहली नज़र में सरल आपसी सम्बंध लगता है जो दोनों के लिए फायदेमंद होता है। जड़ पर घुसपैठ करने वाले कवक पौधे द्वारा बनाए गए पोषक तत्व लेते हैं, और पौधों को इन सूक्ष्मजीवों से फॉस्फोरस जैसे दुर्लभ खनिज मिलते हैं। लेकिन यह सम्बंध इससे कहीं अधिक गहरा है।
डब्ल्यू.डब्ल्यू.डब्ल्यू.
पैसिफिक नॉर्थवेस्ट के घने जंगलों में काम करने वाली, युनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया की सुज़ाने सिमर्ड ने एक दिलचस्प खोज की। उन्होंने एक पारदर्शी प्लास्टिक थैली में सनोबर और देवदार के नन्हें पौधों के साथ सावधानीपूर्वक नियंत्रित प्रयोग किया। इस थैली में रेडियोधर्मी कार्बन डाईऑक्साइड भरी थी। उन्होंने पाया कि सनोबर के पौधों ने प्रकाश संश्लेषण द्वारा इस रेडियोधर्मी कार्बन डाईऑक्साइड गैस को रेडियोधर्मी शर्करा में बदल दिया था, और दो घंटे के भीतर पास ही लगे देवदार के पौधों की पत्तियों में रेडियोधर्मी शर्करा के कुछ अंश पाए गए। शर्करा का यह आदान-प्रदान मुख्यत: कवक के मायसेलिया (धागे नुमा संरचना) के ज़रिए होता है, और यह संजाल पूरे जंगल में फैला हो सकता है। इस तरह का हस्तांतरण सूखे स्थानों पर लगे छोटे पेड़ों को भोजन प्राप्त करने में मदद कर सकता है। नेचर पत्रिका के एक समीक्षक ने तो इस जाल को वर्ल्ड वाइड वेब की तर्ज़ पर वुड वाइड वेब (डब्ल्यू.डब्ल्यू.डब्ल्यू.) की संज्ञा दी है।
जड़ों से जो बैक्टीरिया जुड़ते हैं उन्हें राइज़ोबैक्टीरिया कहते हैं, और इनमें से कई प्रजातियां पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देती हैं। कवक की तरह, इन बैक्टीरिया के साथ भी पौधों का सम्बंध सहजीविता का होता है। शर्करा के बदले बैक्टीरिया पौधों को कई लाभ पहुंचाते हैं। ये पौधों को उन रोगाणुओं से बचाते हैं जो जड़ के रोगों का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा, वे पूरे पौधे में रोगजनकों के खिलाफ बहुतंत्रीय प्रतिरोध भी शुरू कर सकते हैं।
संकर ओज
हरित क्रांति ने हमारे देश की कृषि पैदावार में बहुत वृद्धि की। हरित क्रांति की कुंजी है फसल पौधों की संकर किस्में तैयार करना। आज, व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली अधिकांश फसलें संकर किस्म की हैं। यानी इनमें एक ही प्रजाति के पौधों की दो शुद्ध किस्मों के बीच संकरण किया जाता है। और इससे तैयार प्रथम पीढ़ी के पौधों में ऐसी ओज पैदा हो जाती है जो दोनों में से किसी भी मूल पौधे में नहीं थी। संकर ओज के इस गुण को हेटेरोसिस कहते हैं और इसके बारे में सदियों से मालूम है। लेकिन इसे थोड़ा ही समझा गया है।
हाल ही में हुए अध्ययन में संकर ओज का एक नया और आकर्षक पहलू देखा गया है - सूक्ष्मजीवों के समृद्ध समूह राइज़ोमाइक्रोबायोम में जो हरेक पौधे की जड़ों के इर्द-गिर्द पाया जाता है। कैंसास विश्वविद्यालय की मैगी वैगनर ने हेटेरोसिस को पौधों और जड़ से सम्बद्ध सूक्ष्मजीवों के परस्पर संपर्क के नज़रिए देखा। (कैंसास दुनिया के विपुल मकई उत्पादक क्षेत्रों में से एक है।) मक्के को मॉडल फसल के रूप में उपयोग करके उनके समूह ने दर्शाया है कि संकर मक्का की जड़ों का भरपूर जैव पदार्थ और अन्य सकारात्मक लक्षण, मिट्टी के उपयुक्त सूक्ष्मजीवों पर निर्भर करते हैं। यह अध्ययन पीएनएएस मंत 27 जुलाई 2021 को प्रकाशित हुआ है। प्रयोगशाला की पूरी तरह से सूक्ष्मजीव रहित मिट्टी में शुद्ध किस्म के पौधे और उनके संकरण से उपजे पौधे, दोनों एक जैसी गुणवत्ता से विकसित हुए और संकर ओज कहीं नज़र नहीं आई। उसके बाद शोधकर्ताओं ने मिट्टी का पर्यावरण ‘बदलना’ शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने मिट्टी में एक-एक करके बैक्टीरिया जोड़े।
सूक्ष्मजीव रहित मिट्टी में बैक्टीरिया की सिर्फ सात प्रजातियां जोड़ने पर शुद्ध किस्म के पौधों और उनकी संकर संतानों में संकर ओज का अंतर दिखने लगा। यह प्रयोग खेतों में करके भी देखा गया: एक प्रायोगिक भूखंड की मिट्टी को धुंआ देने या भाप देने से उसमें हेटेरोसिस कम हो गया था, क्योंकि मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की कमी हो गई थी।
कृषि विशेषज्ञों का अनुमान है कि मिट्टी की उर्वरता के आधार पर, संकर मक्का की प्रति हैक्टर नौ टन उपज के लिए 180-225 किलोग्राम कृत्रिम उर्वरक की ज़रूरत होती है। इन उर्वरकों का उत्पादन काफी ऊर्जा मांगता है। चूंकि हमारा देश टिकाऊ कृषि के ऊंचे लक्ष्य पाने का प्रयास कर रहा है, फसल की गुणवत्ता (और मात्रा) बढ़ाने के लिए सरल सूक्ष्मजीवी तरीकों का उपयोग करना इस दिशा में एक छोटा मगर सही कदम होगा। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - November 2021
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