रंगों का इंद्रधनुष होता है - एक सिरे पर लाल तो दूसरे सिरे पर बैंगनी और बीच में हरा, फ़िरोज़ी और नीला। हर भाषा इन रंगों को अपनी ज़रूरत के हिसाब से नाम देती है: कुछ भाषाओं में ‘हरा’ और ‘नीला’ रंग के लिए अलग-अलग शब्द होते हैं, तो कुछ भाषाओं में दोनों रंगों के लिए एक ही नाम मिलता है। कुछ में तो रंगों के लिए नाम ही नहीं होते।
लेकिन ऐसा क्यों हैं? वैकासिक भाषाविद डैन डिडियू और मनोविज्ञानी आसिफा मज़ीद ने इसी सवाल का जवाब पता लगाया है। अध्ययन में उन्होंने पाया है कि जिन इलाकों में सूर्य की भरपूर रोशनी होती है उन इलाकों की भाषा में इस बात की संभावना अधिक रहती है कि उनमें नीले और हरे रंग के लिए एक ही नाम हो। और ऐसा संभवत: ताउम्र अधिक प्रकाश के संपर्क में रहने के कारण होता है: तेज़ धूप के कारण आंखो में "लेंस ब्रुनेसेन्स" नामक स्थिति बनती है जिसके कारण दो रंगों को अलग-अलग पहचानने में मुश्किल होती है।
एक अन्य परिकल्पना के अनुसार, जो लोग पानी के बड़े स्रोत - जैसे समुद्र या झील - के आसपास रहते हैं उनकी भाषा में ‘नीले’ रंग के लिए नाम होने की अधिक संभावना होती है। इसके अलावा, अगर कोई समुदाय नीले रंग में कपड़े रंगना शुरू करता है, तो यह भी उनकी भाषा में ‘नीले’ रंग के लिए नए नाम मिलने की संभावना को बढ़ाता है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन सभी मुख्य सिद्धांतों को एक साथ खंगालने का सोचा। इसके लिए उन्होंने अंटार्कटिका को छोड़कर बाकी सभी महाद्वीपों के 142 आबादी समूहों से भाषा सम्बंधी डैटा इकट्ठा किया। इनमें कोरियाई और अरबी जैसी बड़े पैमाने पर बोली जाने वाली भाषाओं से लेकर ऑस्ट्रेलिया और अमेज़ॉन में केवल कुछ सैकड़ा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं शामिल थी। शोधकर्ताओं ने देखा कि प्रत्येक आबादी की मुख्य भाषा रंगों के लिए किन नामों का उपयोग करती है, और फिर इन नामों को प्रभावित कर सकने वाले कारकों का डैटा इकट्ठा किया - जैसे सूर्य के प्रकाश से संपर्क, या झील के नज़दीक होना।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में शोधकर्ता बताते हैं कि कोई भाषा हरे रंग और नीले रंग में अंतर करती है या नहीं इसमें प्रकाश से संपर्क महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भूमध्य रेखा के करीब वाले या वर्ष भर लगभग खुले आसमान वाले इलाकों (जैसे मध्य अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका) की भाषाओं में ’हरे’ और ’नीले’ रंग के बीच फर्क काफी कम था। इससे पता चलता है कि ताउम्र तेज़ प्रकाश का संपर्क इन समुदाय में नीले-हरे रंग के भेद को मिटाता है। शोधकर्ताओं को अन्य दो सिद्धांतों के लिए भी समर्थन दिखा: झील के पास रहने से ’नीले’ रंग के लिए एक अलग नाम की संभावना बढ़ गई। और ऐसा ही उन्हें बड़े समुदायों के लिए भी दिखा। जिसका मतलब है कि किसी भाषा में अलग-अलग रंगों को नाम देने में दृष्टि, संस्कृति और पर्यावरण, ये सभी कारक भूमिका निभाते हैं। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - November 2021
- नोबेल पुरस्कार: कार्यिकी/चिकित्सा विज्ञान
- नोबेल पुरस्कार: रसायन शास्त्र
- नोबेल पुरस्कार: भौतिक शास्त्र
- सार्स-कोव-2 की प्रयोगशाला-उत्पत्ति की पड़ताल
- दीर्घ कोविड: बड़े पैमाने के अध्ययन की ज़रूरत
- सार्स जैसे वायरस बार-बार आते हैं
- मास्क कैसा हो?
- संकटकाल में एक वैज्ञानिक की दुविधा
- खाद्य पदार्थों का स्टार रेटिंग
- उपेक्षित न हों परंपरागत तिलहन
- सूक्ष्मजीव नई हरित क्रांति ला सकते हैं
- हंसाता है, सोचने को विवश करता है इग्नोबेल पुरस्कार
- बढ़ रही है जुड़वा बच्चों की संख्या
- फिलकॉक्सिया माइनेन्सिस: शिकारी भूमिगत पत्तियां
- चीन विदेशों में कोयला बिजली घर निर्माण नहीं करेगा
- वायु गुणवत्ता के नए दिशानिर्देश
- जलवायु परिवर्तन और जीवाश्म ईंधन
- दूध पीकर घुड़सवार चरवाहे युरोप पहुंचे
- आदिम समुद्री शिकारी एक विशाल ‘तैरता सिर’ था
- डायनासौर आपसी युद्ध में चेहरे पर काटते थे
- वैम्पायर चमगादड़ सहभोज करते हैं
- विष्ठा प्रत्यारोपण से चूहों का दिल जवान होता है
- गिद्धों पर नया खतरा
- भाषा में रंगों के नाम परिवेश से तय होते हैं