हज़ारों-लाखों वालंटियर्स पर किसी नई दवा या टीके को कारगर और सुरक्षित पाए जाने के बाद जब वही दवा या टीका करोड़ों को दिया जाता है तो सुरक्षा सम्बंधी कई मुद्दे सामने आते हैं। इस दृष्टि से कोविड-19 के जॉनसन एंड जॉनसन (जे-एंड-जे) या एस्ट्राज़ेनेका टीके से चंद लोगों में दुर्लभ समस्या देखा जाना कोई अनहोनी नहीं है।
लेकिन ऐसे दुर्लभ किंतु खतरनाक साइड इफेक्ट स्वास्थ्य महकमे के सामने दुविधा खड़ी कर सकते हैं। गौरतलब है कि जे-एंड-जे के टीके से दस लाख टीकाकृत व्यक्तियों में से दो व्यक्तियों में रक्त का थक्का बनने की समस्या देखी गई है, वहीं एस्ट्राज़ेनेका टीके में एक लाख में से एक व्यक्ति में यही समस्या देखी गई है। लेकिन दोनों ही टीकों के ये साइड इफेक्ट कोविड-19 के जोखिम की तुलना में बहुत कम हैं: कोविड-19 से एक लाख लोगों में से 200 व्यक्तियों की मौत हो जाती है।
एक तरफ तो, संभावित साइड इफेक्ट को लेकर जनता के साथ पारदर्शिता रखना बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही यह भी पता होना चाहिए कि इन समस्याओं को कैसे पहचानें और इलाज करें। दूसरी ओर, ऐसा करने पर टीकों को लेकर संदेह पैदा हो सकते हैं औरटीके के प्रति हिचक और मज़बूत हो सकती है।
यदि यह बताया जाए कि जोखिम बहुत कम (दस लाख लोगों में एक) है, तो कुछ लोग फौरन यह सोचने लगते हैं कि शायद वह एक व्यक्ति मैं ही हूं। सवाल है कि लोग किस हद तक बहुत दुर्लभ लेकिन गंभीर दुष्प्रभावों को व्यावहारिक रूप में समझ पाएंगे? अध्ययन बताते हैं कि साधारण लोग किसी दवा या टीके के जोखिम की संभावना या लाभ-हानि के अनुपात को समझ नहीं पाते। यदि कोई दुष्प्रभाव नया और घातक है तो लोग उसकी संभावना को अधिक मान कर चलते हैं। वैसे मनोविज्ञानियों का मानना है कि यदि लोगों को स्पष्ट और सही तरह से जानकारी दी जाए तो इस तरह के भ्रम बनने से रोका जा सकता है।
मार्च के अंत तक युरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) को युरोप और यूके में एस्ट्राज़ेनेका से टीकाकृत ढाई करोड़ लोगों में से 86 लोगों में रक्त का थक्का बनने के मामले दिखे, जिनमें से 18 लोगों की मृत्यु हुई थी। अधिकांश मामले 60 साल से कम उम्र की महिलाओं में देखे गए थे। फिर अमेरिका में जे-एंड-जे से टीकाकृत अस्सी लाख में से 15 लोगों में रक्त का थक्का जमने की समस्या सामने आई, और तीन मामले गंभीर स्थिति में पहुंचे थे। ये मामले भी 60 से कम उम्र की महिलाओं में देखे गए थे।
इन मामलों के चलते अमेरिका और युरोप ने दोनों टीकों के वितरण पर रोक लगा दी। फिर दोनों ने निष्कर्ष निकाला कि टीकों का लाभ इन जोखिमों से कहीं अधिक है, इसलिए इनका वितरण फिर से शुरू किया जाए।
यह बहस का मुद्दा है कि महामारी को थामने के प्रयासों के मद्देनज़र टीकों पर हफ्ते भर लंबी रोक लगाना कितना उचित था? आकंड़ों को देखें तो जवाब है - बिल्कुल नहीं। लाखों लोगों को टीका देने पर सिर्फ कुछ ही लोग इस जोखिम से पीड़ित होंगे, लेकिन टीका न दिए जाने पर लाखों संक्रमित लोगों में से हज़ारों की जान जा सकती है।
अधिकतर लोग आंकड़ों की भूलभुलैया में उलझ जाते हैं। लिहाज़ा, ज़रूरी है कि बात को ठीक तरह से प्रस्तुत किया जाए। यह भी समझना ज़रूरी है कि कोई भी औषधि या टीका जोखिमों से पूरी तरह मुक्त नहीं होता।
वैसे ज़्यादा चिंता विकसित देशों में नज़र आ रही है लेकिन भारत को इनसे पूरी तरह मुक्त नहीं माना जा सकता। बेहतर होगा कि समय रहते इस मुद्दे को संबोधित किया जाए। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - July 2021
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