पूर्व अध्ययनों से पता है कि महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान वज़न बढ़ने और इंसुलीन प्रतिरोध बढ़ने के कारण आजीवन टाइप-2 मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन अब अध्ययनों से पता चला है कि स्तनपान कराने से यह जोखिम कम होता है और धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।
इसके कारण तो स्पष्ट नहीं थे लेकिन युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के जीव विज्ञानी माइकल जर्मन का विचार था कि इसके पीछे पैंक्रियाज़ की बीटा कोशिकाओं की भूमिका हो सकती है क्योंकि लंबे समय तक सुरक्षा के लिए ज़रूरी होता है कि रक्त शर्करा को नियंत्रित करने वाले तंत्र के कुछ हिस्सों में परिवर्तन हो जाएं। बीटा कोशिका में परिवर्तन सबसे कारगर होता है क्योंकि यही इंसुलीन का निर्माण करती हैं। इंसुलीन ग्लूकोज़ को रक्त से शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने में मदद करता है। लेकिन टाइप-2 मधुमेह में कोशिकाएं इंसुलीन प्रतिरोधी हो जाती हैं और उनमें पर्याप्त ग्लूकोज़ को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है। इसके चलते पैंक्रियाज़ अधिक इंसुलीन बनाने लगते हैं। अंतत: जब इसके बावजूद भी पर्याप्त अतिरिक्त इंसुलीन नहीं बन पाता तो रक्त शर्करा का स्तर बढ़ता रहता है।
हालिया अध्ययन में जर्मन और कोरिया एडवांस्ड इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के हेल किम ने अन्य समूहों के सहयोग से कुछ गर्भवती महलाओं का चयन किया। ये महिलाएं गर्भावस्था सम्बंधित मधुमेह की समस्या से पीड़ित थीं। अध्ययन में आधी महिलाओं ने स्तनपान कराया जबकि शेष ने नहीं। प्रसव के दो माह बाद ग्लूकोज़ सहनशीलता परीक्षण में दोनों समूह की महिलाओं में रक्त शर्करा के स्तर में अधिक फर्क नहीं पाया गया (स्तनपान करने वाली महिलाओं में फास्टिंग ग्लूकोज़ में कमी पाई गई)। लेकिन प्रसव के साढ़े तीन साल बाद, स्तनपान कराने वाली महिलाओं में रक्त शर्करा तो काफी कम थी ही, बीटा कोशिकाओं का काम भी बेहतर था।
जर्मन और किम पहले दर्शा चुके थे कि बीटा कोशिकाएं सेरोटोनिन का निर्माण कर सकती हैं। अब एक नई तकनीक से पता चला है कि बीटा कोशिका में सेरोटोनिन की सांद्रता स्तनपान कराने वाले चूहों में 200 गुना अधिक होती है। जंतुओं पर किए गए कई प्रयोगों के बाद टीम ने अनुमान लगाया कि स्तनपान कराने वाले मनुष्य या चूहे एक विशेष हार्मोन का निर्माण करते हैं जो बीटा कोशिकाओं को सेरोटोनिन निर्माण का निर्देश देता है। इसके परिणामस्वरूप बीटा कोशिकाओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि होती है और इंसुलीन का निर्माण होता है। इसके अलावा, स्तनपान करने वाले चूहों में सेरोटोनिन एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है जो बीटा कोशिकाओं को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
अन्य शोधकर्ता इस अध्ययन को काफी दिलचस्प मानते हैं क्योंकि इसके माध्यम से कुछ नए डैटा प्राप्त हुए हैं जो पहले उपलब्ध नहीं थे। साथ ही, इस अध्ययन के आंकड़ों से जुड़े कई सवाल भी उठ रहे हैं। एक टिप्पणी यह है कि इस अध्ययन में गर्भकालीन मधुमेह की दर, स्तनपान एवं स्तनपान न कराने वाले समूहों के उपचार के बीच अंतर तथा स्तनपान की अवधि और गहनता की कोई जानकारी नहीं दी गई है। इन सभी का टाइप-2 मधुमेह में महत्वपूर्ण योगदान रहता है।(स्रोत फीचर्स)
-
Srote - October 2020
- 99.9 प्रतिशत मार दिए, चिंता तो 0.1 प्रतिशत की है
- कोरोनावायरस का प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला
- कोविड-19 की दीर्घकालीन समस्याएं
- क्यों कम जानलेवा हो रहा है कोविड-19?
- जंगल कटाई और महामारी की संभावना
- सोने से भी महंगा उल्का पिंड
- सस्ते परमाणु बिजली घर की सुरक्षा पर सवाल
- वैज्ञानिक साक्ष्यों की गलतबयानी
- हर बच्चा वैज्ञानिक है
- भारत में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति
- वैज्ञानिक प्रकाशनों में एक्रोनिम और संक्षिप्त रूप
- स्तनपान माताओं को सुरक्षा प्रदान करता है
- गर्भाशय मुख शुक्राणुओं में भेद करता है
- वायरस व ततैया की जुगलबंदी में एक इल्ली की शामत
- एक फल के नीले रंग का अद्भुत रहस्य
- मच्छरों के युगल गीत
- चमगादड़ों की हज़ारों किलोमीटर की उड़ान
- डायनासौर भी कैंसर का शिकार होते थे
- चींटियां कई जंगली पौधे उगाती हैं
- मेंढक के पेट से ज़िंदा बच निकलता है यह गुबरैला
- अमीबा भूलभुलैया में रास्ता ढूंढ सकते हैं