भारत डोगरा
कोलकाता और कोलम (केरल) की गंभीर दुर्घटनाओं ने एक बार फिर देश का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है कि दुर्घटनाओं में होने वाली अमूल्य जीवन की क्षति को काफी हद तक रोका जा सकता है। यह दोनों बहुत अलग तरह के हादसे थे पर इनमें सामान्य बात यह थी कि कई स्तरों पर लापरवाही हुई। सुरक्षा के प्रति इस लापरवाही को रोका जाता तो इन हृदय विदारक हादसों से बचा जा सकता था।
कोलम में आतिशबाज़ी की प्रतियोगिता पर रोक लगनी चाहिए थी। एक तो बड़े पैमाने पर आतिशबाज़ी को रात भर हज़ारों लोगों की उपस्थिति में चलाना उचित नहीं था। जिस पर आतिशबाज़ी का भंडारण लापरवाही से किया गया था। सबसे अनुचित बात तो यह थी कि आतिशबाज़ी चलाने को प्रतियोगिता का रूप दिया गया।
हादसे पर रिपोर्टों में बताया गया है कि रात भर आतिशबाज़ी की बड़ी प्रतियोगिता बड़ी भीड़ की उपस्थिति में पुराने कमज़ोर भवन के पास होनी थी। यह तो बड़े हादसे को निमंत्रण देना है। जब प्रतियोगिता जीतने की तीव्र प्रतिस्पर्धा होगी तो अनिवार्य रूप से आतिशबाज़ी चलाने में बढ़-चढ़कर जोखिम उठाए जाएंगे। फिर ऐसी स्थिति में विस्फोट होने पर कमज़ोर भवन के गिरने की भी संभावना है। यही सब हुआ और सैकड़ों परिवार अपने सदस्यों की मौत या उनके बुरी तरह घायल होने के कारण संकट से त्रस्त हो गए। इससे पहले दी गई चेतावनियों को उपेक्षित भी किया गया। निश्चय ही यह एक ऐसा हादसा था जिससे बचा जा सकता था।
कोलकाता में फ्लाई ओवर के टूटने व गिरने के हादसे में निर्माण के दौरान तमाम सावधानियों को ताक पर रखने के चलते बहुत दर्दनाक दुर्घटना हुई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि जहां हत्या, आत्महत्या, युद्ध व आंतरिक हिंसा से एक वर्ष में औसतन 16 लाख मौतें हो रही हैं वहीं दुर्घटनाओं से एक वर्ष में 35 लाख मौतें हो रही हैं। दुर्घटनाओं में होने वाली 35 लाख वार्षिक मौतों में से 12-13 लाख सड़क दुर्घटनाओं के कारण होती है व 5 लाख गिरने से, 5 लाख डूबने से, 4 लाख आग लगने से, 4 लाख ज़हरीले पदार्थों से व 4 लाख अन्य कारणों से होती हैं।
इसके अतिरिक्त करोड़ों लोग दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल होते हैं। इस कारण उनमें से बहुत से लोग कम या अधिक समय के लिए अपंग हो जाते हैं (कभी-कभी तो यह अपंगता आजीवन हो सकती है)। अनेक दुर्घटनाग्रस्त लोगों को देर तक इलाज करवाना पड़ता है, बहुत खर्च करना पड़ता है, कर्ज़ लेना पड़ता है और इस कारण उनका जीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है।
ब्रिटेन में सभी दुर्घटनाओं में एक वर्ष में 14,000 मौतें होती हैं जबकि 7 लाख लोगों को गंभीर चोटें लगती हैं। दूसरे शब्दों में, दुर्घटनाओं में गंभीर चोट लगने की स्थिति दुर्घटना में होने वाली मौत से 50 गुना अधिक है। भारत के आंकड़ों से हम अनुमान लगा सकते हैं कि दुर्घटना में जितनी मौतें होती हैं, उससे 40 गुना अधिक गंभीर चोट लगने के मामले होते हैं। यह ब्रिटेन के 50 गुना के अनुमान से तो कम ही है।
विश्व में प्रति वर्ष लगभग 14.5 करोड़ लोग किसी गंभीर दुर्घटना की चपेट में आते हैं जिनमें या तो उनकी मृत्यु होती है या वे गंभीर रूप से घायल होते हैं।
ऐसी लगभग सभी दुर्घटनाओं का कुछ न कुछ प्रतिकूल असर परिवार के अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है, कुछ अन्य नज़दीकी व्यक्तियों पर भी पड़ता है। यदि प्रति दुर्घटना 5 व्यक्तियों पर प्रतिकूल असर माना जाए तो इस तरह लगभग 72 करोड़ लोग दुर्घटनाओं से एक वर्ष में प्रभावित होते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 में हमारे देश में 6,36,000 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 3,16,828 लोग मारे गए व 4,94,096 लोग घायल हुए। 1,69,107 लोग सड़क व यातायात की दुर्घटनाओं में मारे गए, 29,903 लोग डूबने से मरे, 19,513 अग्निकांडों में मारे गए, 15,399 व्यक्तियों की मौत गिरने से हुई जबकि 9606 मौतें बिजली का करंट लगने से हुईं।
यदि दुर्घटनाओं व विशेषकर उनमें घायल होने वाले व्यक्तियों की जानकारी ठीक से एकत्र की जाए, तो वास्तविक स्थिति इस समय उपलब्ध आंकड़ों से भी कहीं अधिक गंभीर पाई जाएगी। इस विकट स्थिति में यदि सही नीतियां अपनायी जाती हैं व उन्हें निष्ठावान ढंग से लागू किया जाता है तो प्रति वर्ष लाखों परिवारों को निश्चित तौर पर तरह-तरह की दुर्घटनाओं से जुड़े संकट से बचाया जा सकता है।
इस तरह के प्रयासों की ज़रूरत इस कारण और बढ़ गई है क्योंकि दुर्घटनाओं व उनसे होने वाली मौतों में हाल के वर्षों में हमारे देश में काफी तेज़ी से वृद्धि हुई है, जबकि कई अन्य देश दुर्घटनाओं को कम करने में या कम से कम स्थिर रखने में सफल हुए हैं। सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2004-14 के दशक में दुर्घटनाओं में 63 प्रतिशत वृद्धि हुई व दुर्घटनाओंे में होने वाली मौतों में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इस दौरान जनसंख्या में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
दुर्घटनाओं को कम करने के लिए पहला प्रयास यह होना चाहिए कि इनके सभी महत्वपूर्ण पक्षों पर प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध हो। ताकि दुर्घटनाओं को कम करने की समग्र नीति बनाई जा सके। इस समय दुर्घटनाओं को कम करने के जो छिटपुट प्रयास हो रहे हैं, वे कई विभागों में बंटे हुए हैं। उनमें कोई आपसी समन्वय नहीं है। इस कारण दुर्घटनाओं को कम करने की कोई समग्र सोच विकसित नहीं हो पा रही है। सभी तरह के एक्सीडेंट को एक साथ जोड़कर देखने से ही समस्या की गंभीरता का सही आकलन करने व कम करने की समग्र नीति बनाने में मदद मिलेगी।
इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर दुर्घटनाओं को कम करने का ऐसा प्राधिकरण बनाना चाहिए जो विभिन्न विभागों की सीमाओं से ऊपर उठकर समग्र योजना बनाए। इसकी राज्य व धीरे-धीरे ज़िला स्तर की इकाइयां भी बननी चाहिए। प्राधिकरण को चाहिए कि वह दुर्घटनाओं को कम करने के प्रयासों को एक जन-अभियान का रूप दे तथा लोगों के सहयोग से, उनकी स्थानीय समझ व जानकारियों से लाभ उठाते हुए कम समय में अधिक सफलता प्राप्त करे।
दुर्घटनाओं को कम करने के साथ-साथ सभी तरह की दुर्घटनाओं के मामले में तुरंत व बेहतर चिकित्सा उपलब्ध करवाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। इस तरह बहुत से अमूल्य जीवन बचाए जा सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)