लेखक : कैरन हैडॉक
अनुवाद: अमित
मैंने बादलों को देखा है दोनों ओर से
ऊपर से और नीचे से
और फिर भी पता नहीं कैसे
मुझे जो याद हैं वे मेघ मरीचिकाएँ
मैं असल में मेघों को बिलकुल भी नहीं जानती....
(जोनी मिशेल के गीत ‘बोथ साइड्स नाओ’ से)
आप कैसे जानते हैं कि आप क्या देखते हैं? एक शिक्षिका के रूप में, मैं हमेशा यह जानने को उत्सुक रहती हूँ कि विद्यार्थी कैसे जानते हैं, और वे जानना कैसे सीखते हैं। एक वैज्ञानिक के रूप में, मैं सभी को प्रोत्साहित करती हूँ कि अवलोकन, सवाल करने, प्रयोग, विश्लेषण और प्रमाणों की खोज को वे अपने ज्ञान का आधार बनाएँ।
कभी-कभी मैं हैरान रह जाती हूँ कि यह प्रक्रिया कितनी मुश्किल हो सकती है। और इस बात पर भी हैरानी होती है कि ‘जानने’ की प्रक्रिया भाषा के इस्तेमाल और हमारी सामाजिक ‘परम्पराओं’ व अधिकार/सत्ता पर निर्भर होने से कितने हद तक प्रभावित होती है, किस तरह इनकी वजह से एक मायने में आसान बन जाती है और साथ ही दुश्कर भी।
उदाहरण के लिए, कल मैंने उच्च प्राथमिक कक्षा के बच्चों के बीच बादलों का विषय छेड़ा। शुरुआत करते हुए कक्षा के हरेक बच्चे को मैंने एक बड़ा-सा कोरा सफेद कागज़ और कुछ रंगीन पेंसिलें दीं, और उन्हें बाहर लेकर आई ताकि वे बादल देखें और जो दिखे उसे कागज़ पर चित्रित करें।
उस वक्त आसमान चमकीला नीला था और कुछ छोटे बादल यहाँ-वहाँ छितरे हुए थे।
उन्हें मैंने केवल यह हिदायत दी कि वे ध्यान से देखें और वही चित्रित करें जो उन्होंने देखा है, और उन्हीं रंगों का इस्तेमाल करें जो उन्हें आसमान में दिखाई दें। मैंने कहा, “अगर तुम्हें हरा रंग दिखता है तो हरी पेंसिल उपयोग करो, अगर तुम्हें लाल रंग दिखता है तो लाल। और अगर तुम्हें काला रंग दिखता है तो काली पेंसिल इस्तेमाल करो।”
पहाड़, आसमान और बादलों के उनके चित्रों में बच्चों को अनेक वर्षों से सफेद पृष्ठभूमि पर नीले बादल चित्रित करते हुए देखते रहने के बाद मैं यह कर रही थी। मुझे सदैव इस बात का अचम्भा होता था कि वे हमेशा बादलों को नीला बनाते हुए ही क्यों नज़र आते हैं।
यह पहला मौका था जब मैंने इस स्कूल के बच्चों को ऐसे बादल बनाते हुए पाया जो नीले नहीं थे। एक चित्र के लिए पूरे कागज़ का उपयोग करते हुए उन्होंने अच्छे-खासे बड़े चित्र बनाए थे। परिणाम हालाँकि बच्चों जैसे थे, परन्तु आमतौर पर आदतन बनाने वाले रैखिकीय बादलों में सावधानीपूर्वक भरे गए रंगों की तुलना में काफी मज़ेदार थे।
बाहर खड़े-खड़े ही हमने इस बात की चर्चा की कि इन बादलों का वर्णन कौन-कौन-से शब्दों से कर सकते हैं। जिन बादलों को वे देख रहे थे, उनका वर्णन करने के लिए बच्चों ने ये सब शब्द बताए: फूले हुए, विशाल, अलग-अलग नाप के, स्पष्ट, सफेद, नीला (‘नीला क्या?’ ‘नीला आसमान’), मुलायम, हल्के-पतले, रुई जैसे, बर्फ जैसे, बड़े, जुड़े हुए, चिड़िया के मुँह जैसे आकार वाले, मगरमच्छ जैसे आकार वाले, स्वीमिंग पूल, नक्शा, मक्खियों रहित, कुछ पक्षी, फैलते हुए, अदृश्य होते, आसमान से कम बादल। मैंने उनके सभी जवाबों को दर्ज कर लिया।
अगले दिन उनके द्वारा बनाए गए सभी चित्र मैंने कक्षा की दीवार पर लगा दिए।
फिर मैंने बादलों के उन चित्रों के बारे में बच्चों से कुछ सवाल किए। तकरीबन सभी चित्रों में सफेद बादल (बेरंग कागज़) और नीला आसमान बना था।
सिर्फ एक या दो बच्चों ने बादलों की बाहरी लकीरों को पेंसिल से काला कर दिया था। जब मैंने ऐसे एक चित्र को दिखाया और कक्षा से पूछा कि क्या बादल असल में ऐसे ही दिखते हैं, तो वे सहमत हुए कि वास्तव में, वहाँ कोई काली लकीरें नहीं थीं।
एक या दो बच्चों ने बादल दर्शाने के लिए सफेद कागज़ पर सफेद रंग की पैंसिल का उपयोग किया था (शायद उनके पास आसमान में रंग भरने का समय नहीं था, या शायद उन्हें यह ज़रूरी नहीं लगा); इस वजह से उनका चित्र आसानी से नज़र नहीं आ रहा था।
बादलों का वर्णन करने वाले शब्दों की बच्चों की सूची को भी मैंने बोर्ड पर लिख दिया था। बच्चों से मैंने पूछा कि क्या वे मानते हैं कि जो शब्द उन्होंने प्रयोग किए हैं वे सटीक हैं। इस पर कुछ मतभेद थे।
इसके बाद मैंने बच्चों से खिड़की से बाहर देखने को कहा और पूछा, “आज बादल कैसे नज़र आ रहे हैं - कल जैसे या कुछ अलग?” (आज का दिन बादलों से घिरा हुआ था।)
हमारे पास बाहर जाने का समय नहीं था, मगर बच्चे खिड़की के पास भीड़ लगा कर खड़े हो गए ताकि वे अच्छी तरह देख सकें। उन्होंने कहा कि वे अलग-से दिख रहे हैं।
कुछ बच्चों ने कहा कि आसमान आज ‘साफ’ है। मैंने पूछा कि ‘साफ’ से उनका क्या आशय है। उन्होंने कहा, “कोई बादल नहीं हैं।” मैंने उनसे पूछा, “तो आसमान कौन-से रंग का है?” उन्होंने कहा, “आसमान सफेद है।”
मैंने उन्हें याद दिलाया कि पिछले दिन उन्होंने कहा था कि आसमान नीला है और बादल काले हैं। उन्होंने कहा कि आज आसमान का रंग बदल गया है।
एक बच्चे ने कहा कि वो सोचता है कि आसमान पूरी तरह बादलों से ढँका हुआ है इसलिए वह सफेद है। उसकी इस ‘बेतुकी’ बात पर पूरी कक्षा हँसने लगी।
मैंने कहा, “तो तुममेें से कुछ बच्चे मानते हैं कि आसमान में कोई बादल नहीं हैं, और कुछ मानते हैं कि आसमान पूरी तरह बादलों से ढँका हुआ है। हम कैसे पता लगाएँगे कि कौन सही है?”
मैंने बोर्ड पर ‘मेघाच्छादित (overcast)’ शब्द लिखा और उनसे पूछा कि इसका क्या मतलब है। उन्होंने कहा इसका मतलब है कि आसमान पूरी तरह बादलों से ढँका हुआ है।
तब तक कक्षा का समय पूरा हो गया था, इसलिए हम इस बातचीत को जारी नहीं रख सके। मैंने उनसे सिर्फ इतना ही कहा कि अगर आज तुम हवाई जहाज़ में यात्रा करो तो अन्तत: तुम उस ऊँचाई तक पहुँच जाओगे जहाँ से आसमान नीला नज़र आएगा - असल में बादलों के कारण सफेद रंग दिख रहा है। हालाँकि, वे इसपर विश्वास करने को तैयार नहीं थे (सत्ता का स्वर सदैव विश्वासोत्पादक नहीं होता)। और नि:सन्देह, वे हवाई जहाज़ से यात्रा करने वाले नहीं थे! बाद में, मैंने सोचा कि उनसे पूछना चाहिए था कि अगर सच में आसमान साफ है तो वे सूरज क्यों नहीं देख पा रहे हैं। मगर उसके लिए हमें बाहर जाना पड़ता और वस्तुत: कभी-कभी इन दिनों आसमान धुँधला, पूरी तरह सफेद नज़र आता है, लेकिन फिर भी सूरज चमकता रहता है और परछाइयाँ साफ दिखती हैं।
इस गतिविधि के बाद मैं भी आसमान को ज़्यादा ध्यानपूर्वक देखने लगी, और अब मैं देखती हूँ कि बादलों के रंग आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तनशील हैं। मैं जानती हूँ कि आसमान और बादलों के रंग विविध गैसों के अवशोषण, परावर्तन एवं बिखराव के विशिष्ट गुणों के कारण बनते हैं। मगर यह इतना सरल नहीं है।
जो रंग हम देखते हैं वे हमारे सामाजिक एवं व्यक्तिगत अनुभव व अपेक्षाओं पर भी निर्भर होते हैं। हम पानी के नीले होने की अपेक्षा करते हैं क्योंकि हमने झीलों और नदियों में नीले आसमान को प्रतिबिम्बित होते देखा है। क्या एक गिलास में भरा पानी भी नीला होगा? अगर हिमालय के किसी हिमनद (ग्लेशियर) की अनन्त बर्फ की रंगत नीली हो, तो केवल बर्फ के कणों से बने बादल भी नीले क्यों न हों?
जब हम चित्र बनाते हैं तो क्या हम वही चित्रित करते हैं जो हम देखते हैं या हम वह चित्रित करते हैं जो हम जानते हैं? और देखे बिना हम ‘जानते’ कैसे हैं?
एक ही बादल को यदि ऊपर और नीचे, दोनों ओर से देखा जाए तो वह काले से बदल कर सफेद हो जाएगा। मगर कोई चीज़ एक ही समय काली और सफेद दोनों कैसे हो सकती है? ‘सामान्यबोध’ आधारित हमारा चिन्तन हमें ऐसी परिघटना को समझने से रोकता है। एक और बार निगाह डालने (और समझने) के लिए हमें अपनी आँखें खोलने की ज़रूरत है।
कैरन हैडॉक: स्वतंत्र चित्रकार, महिन्द्रा इंटरनेशनल स्कूल, पुणे में अध्यापक, बायोफिज़िक्स में अध्ययन।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: अमित: एकलव्य प्रकाशन के सम्पादकीय समूह में कार्यरत हैं।
सभी चित्र गुरु हरिकृष्ण मॉडल स्कूल, चंडीगढ़ के कक्षा-6 के बच्चों द्वारा बनाए गए हैं।