लेखक :  नीरज जैन
अनुवाद: पारुल सोनी

जब भी हम प्रेइंग मेंटिस के बारे में सोचते हैं तो हमारे सामने एक बड़े-से हरे रंग के डरावने कीड़े की छवि उभरती है जो एक पौधे पर शिकार के इन्तज़ार में बिना हिले-डुले बैठा हुआ है। इसलिए, जब मैंने इस लम्बे, पतले-से, भूरे रंग के कीड़े को अपने इंस्टीट्यूट के कमरे में देखा (जो शायद खिड़की से अन्दर आ गया था) तो मैंने सोचा कि यह पक्के में स्टिक इंसेक्ट होगा। मेरा इंस्टिट्यूट अरावली पर्वत  की तराई के एक दूरस्थ इलाके में बना हुआ है। जंगल से घिरे होने के कारण और खासतौर पर बरसात के मौसम में कई तरह के रेंगने वाले जीव हमारी इमारत में घुस जाते हैं (पर सच्चाई यह है कि हमने उनके अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ की है, और उनके पास हमसे नाराज़ होने के पर्याप्त कारण हैं)।
कीड़े के पास गया तो मैंने पाया कि उसके बैठने का तरीका बिलकुल प्रेइंग मेंटिस की तरह है और उसके सामने वाले पैर काँटेदार हैं। उत्सुकता-वश मैंने उस कीड़े को पकड़ा और उसे एक डिब्बे में रखकर घर ले आया। घर पर मैंने उसे एक खाली पड़े मछली के छोटे-से टैंक में रख दिया और उसको खिड़की पर लगाई जाने वाली जाली के एक टुकड़े से ढँक भी दिया। मेरे सात साल के बेटे मानस और तीन साल के बेटे कार्तिक, दोनों ही एक पालतू प्रेइंग मेंटिस पाकर बहुत उत्साहित थे। वे बाहर गए और बगीचे से कुछ टहनियाँ और थोड़ी-सी घास ले आए ताकि प्रेइंग मेंटिस उस पर बैठ सके और घर जैसा महसूस कर सके। उसके टहनी पर चढ़ने के बाद टहनी और प्रेइंग मेंटिस में अन्तर कर पाना आसान नहीं था। यह छद्मावरण (कैमोफ्लाज) का एक बेहतरीन उदाहरण था।

अब हमें यह सोचना था कि उसे जीवित कैसे रखा जाए। मुझे इस बात का बिलकुल अन्दाज़ा नहीं था कि इस तरह के प्रेइंग मेंटिस को खाने के लिए क्या दिया जाए। मैंने इंटरनेट पर ढूँढ़ना शु डिग्री किया। कुछ मिनिट खोजने के बाद मुझे प्रेइंग मेंटिस की तरह दिखने वाले कीड़े के चित्र मिले। यह जानकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि प्रेइंग मेंटिस की बहुत सारी प्रजातियाँ होती हैं जो इस तरह से विकसित हुई हैं कि वे विभिन्न पृष्ठभूमियों में घुल-मिल जाते हैं। कुछ सूखी पत्ती के जैसे, तो कुछ फूल के जैसे थे और बहुत सारे टहनियों जैसे दिख रहे थे। यह जानने के लिए कि हमारे पास कौन-सा प्रेइंग मेंटिस है, मैंने डॉ. हेमन्त घाटे से मदद ली। वे एक जीवशास्त्री हैं और पुणे में रहते हैं। डॉ. घाटे प्रेइंग मेंटिस के बड़े जानकार हैं। मैंने अपने मेंटिस की फोटो उनको भेजी और उन्होंने तुरन्त जवाब भेजा कि यह टोक्सोडेरोप्सिस (सम्भवत: टी. टॉरस) है।
इंटरनेट पर जो भी जानकारी हमें मिली वह सिर्फ यह थी कि सारे प्रेइंग मेंटिस कीड़े, लार्वा या अन्य छोटे जीव खाना पसन्द करते हैं। जिस प्रजाति का मेंटिस हमारे पास था वो क्या खाएगा, इस बारे में जानकारी बहुत कम थी। हमने कुछ चीटियाँ, एक टिड्डा और अन्य कीड़े पकड़े और उन्हें उस मछली के टैंक में डाल दिया। पर हमने उस मेंटिस को इनमें से कुछ भी खाते हुए नहीं देखा। बच्चे चिन्तित होने लगे और उसके ज़िन्दा रहने के लिए प्रार्थना करने लगे। प्रेइंग मेंटिस के पीने के लिए हमने टैंक की दीवारों पर थोड़ा पानी छिड़क दिया, और थोड़ा-सा पानी एक छोटे-से उथले हुए बर्तन में भी रख दिया। पर लगभग एक हफ्ते बाद हमने उस प्रेइंग मेंटिस को मृत पाया। हमें बहुत दुख हुआ। हमने अपने आप को कोसा कि हम उसे समुचित भोजन नहीं दे सके।

फिर हमने अण्डों का एक खोल देखा। यह खोल जिसे ‘ऊथिका’ कहा जाता है, टैंक में हमारे द्वारा रखी गई एक टहनी पर चिपका हुआ था। तो शायद वह मादा प्रेइंग मेंटिस अपना जीवन जी चुकी थी और अण्डे देने के बाद शायद उसको मरना ही था। अगस्त महीने के अन्तिम दिनों में, सर्दियाँ शुरु होने से पहले प्रेइंग मेंटिस अण्डे देती है और फिर मर जाती है। इस तरह वह अपना जीवन काल पूरा करती है।
फिर हमने उस मछली के टैंक के बारे में बिलकुल नहीं सोचा, यद्यपि हमने उसे हिलाया-डुलाया भी नहीं क्योंकि अब उसके साथ कुछ करने की हमारी कोई योजना नहीं थी। लगभग तीन हफ्ते बाद मछली के टैंक के पास से गुज़रते हुए मैंने एक छोटे-से कीड़े को टहनी पर झूमते हुए देखा। वो मेंटिस का बच्चा था!
प्रेइंग मेंटिस के बच्चे जब अण्डे से बाहर निकलते हैं तो वे बिलकुल वयस्क मेंटिस जैसे दिखते हैं। इन कीड़ों का जीवन चक्र सामान्य मक्खियों के जीवन चक्र से भिन्न होता है। मेंटिस के जीवन चक्र में भोजन करना, मोल्टिंग और वृद्धि करना शामिल है जबकि सामान्य मक्खियों के अण्डे से लार्वा निकलता है जो खाता है, बढ़ता है, और फिर प्यूपा बन जाता है। प्यूपा में से एक वयस्क मक्खी निकलती है।

हमने पूरे टैंक में खोजबीन शु डिग्री कर दी। हमें मेंटिस के दो बच्चे और मिले। हम नहीं जानते थे कि असल में कितने अण्डों में से बच्चे निकले थे। उन बच्चों को वहाँ से भागना बहुत आसान रहा होगा क्योंकि जिस जाली से टैंक ढँका हुआ था वो इतनी कसी हुई नहीं थी कि इतने छोटे बच्चों को उसमें से निकलने से रोक सके। या शायद इन बच्चों ने जिन्हें निम्फ कहा जाता है, अन्य सब बच्चों को खा लिया होगा। प्रेइंग मेंटिस के बच्चे भूख लगने पर या बच्चों की भीड़ बढ़ने पर अन्य बच्चों को खा लेते हैं। सामान्यत: मेंटिस के अण्डों में से बच्चे वसन्त ऋतु में निकलते हैं मतलब अभी से लगभग 5-6 महीने बाद, पर कमरे में ज़्यादा तापमान होने के कारण अण्डे दिए जाने के ठीक तीन हफ्ते बाद ही अण्डों में से बच्चे निकल आए।
दुख की बात यह है कि कुछ दिनों बाद बचे हुए बच्चे भी गायब हो गए। लेकिन मानस और कार्तिक के लिए कीड़ों की मनोरंजक दुनिया के बारे में जानने का यह एक अनोखा अनुभव था। हम अभी भी अक्सर अपने प्रेइंग मेंटिस के बारे में बातें करते हैं और उनकी फोटो देखते हैं।


नीरज जैन: सी.सी.एम.बी., हैदराबाद से पढ़ाई की है। वर्तमान में नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर, मनेसर (हरियाणा) में शोधरत।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: पारुल सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
प्रेइंग मेंटिस के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें लेख ‘कीट-जगत का बगुला भगत’ संदर्भ अंक-55 में।