लेखक : प्रमोद मैथिल
अनुवाद - अरविन्द गुप्ते
प्राथमिक कक्षा के बच्चों को गणित सिखाने में गणक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। गणक के साथ खेल-खेल में बच्चे विभिन्न आधारों की संख्याओं के पैटर्न की खोजबीन कर सकते हैं। वे संख्याओं को अंक संकेत व गणक चित्रों के माध्यम से दर्शाते हैं, साथ ही दशमलव पद्धति में उसके मान की गणना करते हैं। यह अनुभव उन्हें संख्या निर्माण की बारीकियों को समझने में मदद करता है। सुझाव तो यह भी है कि स्थानीय मान अध्ययन माध्यमिक कक्षाओं (6 से 8) में भी जारी रखा जाना चाहिए और अंकों के स्थान के आधार पर मान को समझने में शामिल जोड़ व गुणन पर ज़ोर देना चाहिए।
इतने वर्ष शिक्षा में काम करते हुए मन में गणित पढ़ाने के ढेरों नवाचारी विचारों का संकलन हो गया है। सोचा इन्हें बच्चों के साथ करके देखा जाना चाहिए। इसी मंशा से मैं रोज़ाना पास के ही एक गाँव के स्कूल में जाने लगा। इसके लिए मैंने माध्यमिक शाला को चुना। वैसे भी मैं व्यक्तिगत तौर पर इसी उम्र (10 से 14) के बच्चों के साथ ज़्यादा सहज महसूस करता हूँ। प्रस्तुत लेख में, मैं इन्हीं बच्चों के साथ अपने गणित पढ़ाने के एक प्रयोग को आपके साथ बाँटने जा रहा हूँ।
अक्सर बच्चे कुछ गणितीय अवधारणाओं में उनकी ‘पेचीदगी’ की वजह से चकरा जाते हैं और ‘गलती’ कर देते हैं। बहरहाल, बच्चों की ये गलतियाँ ही हमें बताती हैं कि बच्चे कितना समझे हैं व हमें और क्या करना चाहिए। ऐसी ही एक अवधारणा, ‘स्थानीय मान’ से मेरी मुठभेड़ कक्षा के शुरुआती दिनों में ही हो गई। मैंने देखा कि उस स्कूल की कक्षा 6 के कई बच्चों ने तीन सौ बारह को इस तरह, 30012 लिखा (चित्र-1)। वे लिखते समय शून्य के उपयोग को लेकर भ्रमित हो रहे थे।
बस, मैंने गणित शिक्षण सम्बन्धित सामग्री/साहित्य का अध्ययन शुरु कर दिया। खासतौर पर स्थानीय मान पढ़ाने के तरीकों व पोज़ीशनल नोटेशन पद्धति (Positional Notation System) से सम्बन्धित साहित्य का।
हमारी संख्या पद्धति
जब तक हम संख्याओं का मौखिक उपयोग करते हैं हमारा स्थानीय मान से पाला नहीं पड़ता लेकिन जब हमें संख्याओं को लिखने की आवश्यकता पड़ती है तब हमें स्थानीयमान की पेचीदगी से जूझना पड़ता है। असल में संख्याओं को दर्ज करने की प्रक्रिया में ही स्थानीय मान विकसित हुआ। आज हमारी पूर्णत: विकसित स्थानीय मान पद्धति में कुल दस प्रतीकों (1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 व 0) का इस्तेमाल किया जाता है। सारी संख्याएँ इन्हीं संकेतों की सभी सम्भव जमावट के द्वारा दर्शाई जाती हैं।
लिखित संख्याओं का विकास मेरी समझ में कुछ इस तरह रहा होगा। सबसे शुरुआत में संख्या लिखने की व्यवस्था टैली ही रही होगी। वही टैली जो हम यदा-कदा इस्तेमाल करते रहते हैं।
कुछ समय में ही लोग इस धीमी व्यवस्था से उकता कर निश्चित अन्तराल (5 या 10) पर नए प्रतीक को लाए होंगे। अन्तराल पर नए प्रतीकों के उपयोग से इतिहास में टैली से कहीं ज़्यादा विकसित लिखित संख्याएँ दर्शाई गई होंगी। पूर्ण विकसित स्थानीय मान के भी पहले कई जगह जब शून्य की अवधारणा नहीं आई थी तब संख्याएँ कुछ इस तरह लिखी जाती थीं।
मिस्र की संख्या पद्धति
एक के लिए
दस के लिए
सौ के लिए
तो संख्या 123 लिखने के लिए
लिखते थे।
इन संकेतों का उपयोग करते हुए यदि मुझे एक हज़ार दो सौ चौंतीस लिखना हो तो उसे इस प्रकार लिखा जाएगा।
यदि हम मिस्र की पद्धति को अपनाएँ तो हमें दस, सौ, हज़ार आदि के लिए अन्तहीन नए संकेतों का निर्माण करते रहना होगा। इसके अलावा, इस पद्धति में संकेतों के लिए कोई निर्धारित स्थान होना ज़रूरी नहीं होता। दूसरे शब्दों में, संकेतों को किसी भी स्थान पर रखा जाए, संख्या मान वही रहेगा। उदाहरण के लिए:
ये सभी जमावटें एक ही संख्या, एक हज़ार दो सौ चौंतीस दर्शाती हैं क्योंकि किसी भी संकेत के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं है। हर संकेत का, चाहे उसका स्थान कोई भी हो, मान स्थिर रहता है। इस पद्धति में शून्य की अवधारणा की भी आवश्यकता नहीं होती। ये दोनों पद्धतियाँ उस दशमलव प्रणाली से बहुत भिन्न हैं जिसका उपयोग हम आजकल करते हैं। इनमें स्थान का महत्व (Positionality) और गुणन गुणधर्म (Multiplicative Property) नहीं हैं।
स्कूलों में गिनती की पढ़ाई
परम्परा के अनुसार स्थानीय मान की अवधारणा प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई जाती है जिसमें इकाई, दहाई और सैंकड़े के स्तम्भों में बच्चों से संख्याएँ लिखवाई जाती हैं। वैकल्पिक विधियों में डीन्स ब्लॉक और माचिस की तीलियों के बण्डलों जैसी मूर्त ठोस चीज़ों का उपयोग किया जाता है।1 इन ठोस चीज़ों की सहायता से बच्चों को संख्या में 10 के समूहीकरण समझने में मदद मिलती है और संख्याओं के मूर्त स्वरूप से उनका परिचय होता है। किन्तु फिर भी यह विधि अंकों के स्थान के महत्व, योग और गुणनात्मक गुणधर्मों के संख्या से सम्बन्ध जोड़ने के स्थान पर केवल अंकों को उचित स्थान पर लिखने की यांत्रिक प्रक्रिया पर केन्द्रित होकर रह जाती है। भारतीय पाठ्यक्रमों में यह आग्रह होता है कि पूरी संख्या प्रणाली प्राथमिक कक्षाओं (1 से 5) में पढ़ा दी जाए। किन्तु मुझे शिद्दत के साथ यह आवश्यकता महसूस होती है कि स्थानीय मान के अध्यापन को माध्यमिक स्तर में भी जारी रखा जाए क्योंकि योज्य और गुणन गुणधर्म का संख्या से सम्बन्ध थोड़ा अमूर्त है।
गणक का उपयोग
मैंने पाया कि माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए गणक एक अच्छा साधन बन सकता हैं।
‘बाल वैज्ञानिक’ के मेरे अनुभव में गणक के साथ की जाने वाली हर गतिविधि तारों में मोतियों की संख्या पर केन्द्रित हो कर रह जाती है। मैंने सोचा कि क्या गणक का उपयोग संख्याओं में अंकों के स्थान का महत्व और संख्याओं के साथ उनके योज्य व गुणनात्मक गुणों को जोड़ने में किया जा सकता है? मुझे यह भी लगता है कि दस के आधार में स्थान के महत्व के लाभ को तभी समझा जा सकता है जब हम विद्यार्थियों का परिचय अलग-अलग आधार की संख्या पद्धतियों से करवाएँ और यह दिखाएँ कि कैसे संख्या बढ़ने से स्थान बदलता है। ज़ोल्टन पी. डीन्स2 के अनुसार भी “प्रारम्भ में विभिन्न आधारों का उपयोग किया जाना चाहिए और समझ को पुख्ता करने के लिए विभिन्न आधारों को दर्शाने वाली भौतिक सामग्री बच्चों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।” इससे बच्चे समझेंगे कि संख्याओं में क्या हो रहा है और विभिन्न आधारों के घातांक संख्या में कैसे शामिल होते हैं।
शुरुआत में मैंने गणक की नकल करके तीन के आधार वाला एक खेल बनाया। इस खेल का उद्देश्य बच्चों को ‘आधार’ की जटिलता के बारे में बताए बिना भिन्न-भिन्न आधारों में स्थान के महत्व से परिचित कराना था। इस लेख में मैंने इसे तीन-आधारी खेल कहा है।
बच्चों के साथ काम
मैंने इसके लिए एक ग्रामीण माध्यमिक शाला की कक्षा 6 को चुना। इस कक्षा में 22 बालक और बालिकाएँ थीं।3 इस शाला में स्थानीय मान सिखाने के लिए किसी साधन का उपयोग नहीं किया गया था।
बच्चों का गणक से परिचय कराने से पहले मैंने एक माह तक उनसे नम्बर माला और कंकड़ कार्ड4 का अभ्यास करवाया। बच्चों ने इनकी सहायता से गिनती तथा जोड़ने व घटाने के खेल खेले और संख्याओं से अपना रिश्ता मज़बूत किया। इन खेलों से उनका संख्याओं का ज्ञान बढ़ने के साथ ही उनके समूहीकरण और दस के आधार की समझ भी बढ़ी। इस समझ को आधार बना कर हमने गणक के खेलों के माध्यम से संख्याओं के क्रम, अंकों के स्थान का महत्व और जोड़ तथा गुणा के कौशल की जाँच-पड़ताल की।
शेष लेख में यह दिखाया है कि दस के आधार वाले गणक का फिर से परिचय कराने से पहले इस खेल के माध्यम से स्थानीय मान की समझ विकसित होना ज़रूरी कदम है। तालिका-1 में तीन-आधारी खेल को दर्शाया गया है। बच्चों ने इसे ‘दो खण्ड वाला खेल’ नाम दिया। इस खेल में एक कंकड़ सबसे दाएँ डिब्बे के निचले खण्ड में रखा जाता है। हर तीसरीे, छठी और नौवीं चाल के लिए डिब्बे पूरे भरे रहेंगे। अत: हम इन डिब्बों के कंकड़ों के बदले अगले डिब्बे (दाएँ से बाएँ) में एक कंकड़ रखेंगे।
यह तीन-आधारी खेल बच्चों ने कई बार खेला और इसके माध्यम से वे चाल व स्थान के पैटर्न को पहचानने लगे। ऐसा करने से वे हरेक चाल को क्रमागत संख्या से जोड़कर देखने लगे। कई खेल खेलने के बाद मैंने डिब्बे को चालों की संख्या के आधार पर नाम देने पर ध्यान केन्द्रित किया। किसी डिब्बे का नाम उस डिब्बे में पहुँचने वाले पहले पत्थर की चाल संख्या होगा। उदाहरण के लिए, तीन-आधारी खेल में पहले डिब्बे का नाम 1, दूसरे डिब्बे को 3 और तीसरे डिब्बे को 9 नाम दिया गया, आदि (चित्र-2) क्योंकि दूसरे डिब्बे में पहला पत्थर चाल ‘3’ में पहुँचेगा। बच्चों ने यह पहचान लिया कि अगले दो डिब्बों को क्रमश: 27 और 81 नाम दिए जाने चाहिए।
मैंने विद्यार्थियों का मूल्यांकन करने के लिए उन्हें 28 चालों में आने वाली जमावट दिखाई और उनसे संख्या को पहचानने के लिए कहा। फिर मैंने उन्हें तीन-आधारी खेल के चित्र में 28 से आगे 34 चालों तक के क्रम को भरने को कहा। बच्चे ज़मीन पर खेलकर या सीधे कागज़ पर चित्र बनाकर यह गणना कर रहे थे। ज़ाहिर तौर पर ऐसा करते हुए वे योग एवं गुणन कौशलों का उपयोग कर रहे थे। बाद में थोड़ी मदद से बच्चे दो खण्ड वाले खेल के चित्र में पत्थरों की जमावट के बदले सीधे संख्या संकेतों (Extended notation) का उपयोग करके भी खेल में चालों के क्रम को लिख पा रहे थे। उन्होंने यह समझ लिया कि इस खेल के लिए उन्हें केवल 0, 1 और 2, इन तीन अंकों की आवश्यकता थी। उनके लिए यह एक रोचक खोजयात्रा थी। सिर्फ इन्हीं संकेतों से नई-नई जमावटों की खोज और मेथेमेटाइज़ेशन करने में बच्चों की व्यस्तता देखना एक रोमांचक अनुभव था।
मैंने चुनौती को बढ़ाते हुए हर डिब्बे में तीन खण्ड (जो चार-आधारी का द्योतक है) और इससे भी अधिक बड़े आधारों पर काम करने को कहा। उन्होंने समूहों में काम किया और भिन्न-भिन्न आधारों के अनुसार डिब्बों में खण्डों की संख्या बढ़ाते हुए स्वयं के खेल बनाए। वे चित्रों के द्वारा चालों को दर्शा सकते थे, पहले खेले गए तीन-आधारी खेल को आधार बनाते हुए अब वे हर डिब्बे को संख्या के रूप में नाम दे सकते थे और योज्य तथा गुणन तर्क (Additive/Multiplicative Reasoning) का उपयोग करते हुए विभिन्न जमावट में चालों की संख्या पहचान सकते थे (चित्र-3)। मैंने यह महसूस किया कि बच्चे बिना कठिनाई के योज्य और गुणन कौशलों का उपयोग करते हुए चित्र जमावट (चाल) का सम्बन्ध सामान्य संख्या से जोड़ सकते थे। अब मैं यह जानना चाहता था कि क्या बच्चे विस्तारित संकेतन (Extended notation) का उपयोग करके विभिन्न आधारों के खेल में चाल का मान विस्तारित समीकरण के रूप में लिख सकते हैं? क्योंकि खेल में वे यही कर रहे थे। मैंने उन्हें तीन के आधार के कुछ सरल उदाहरण दिखाए, जैसे (102)3 = (1 x 9) + (0 x 3) + (2 x 1) = 11 चालें।
विद्यार्थियों ने तुरन्त ऐसे समीकरणों को समझ लिया और वे योग व गुणा कौशल का उपयोग करते हुए अन्य आधारों की चालों को दशमलव प्रणाली की संख्या में रूपान्तरित करने लगे।
अब तक विद्यार्थी छोटे समूहों में काम कर रहे थे। अब मैंने उनकी समझ का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से उन्हें अकेले-अकेले काम करने को कहा। मैंने अब तक किए काम को दोहराते हुए उनसे तीन-आधारी खेल में चालों के क्रम, नामकरण की परिपाटी, चित्रों के माध्यम से निरूपण और खेल का संख्यात्मक निरूपण करवाया व चाल के विस्तारित रूप और उनके काम को रिकॉर्ड किया (चित्र-4)।
अन्त में हम दस के आधार के काम पर लौटे। मैं यह जानना चाहता था कि क्या विद्यार्थी अंकों के स्थान और हर डिब्बे के स्थानीय मान के बीच सम्बन्ध जोड़ पाते हैं। हमने हर डिब्बे में नौ भाग बनाए और खेलने को कहा। इस खेल की चालों व दशमलव प्रणाली की संख्याओं के बीच सीधे सम्बन्ध को देखना बच्चों के लिए एक रोमांचक अनुभव था। चित्र निरूपण को समझते समय चाल संख्या की गणना करने के लिए अब किसी अतिरिक्त कार्य की आवश्यकता नहीं थी।
इस आरम्भिक अध्ययन के माध्यम से यह जानना एक रोचक अनुभव था कि गणक का उपयोग अंकों के स्थान के महत्व को समझने और योज्य तथा गुणन कौशलों के विकास के लिए किस प्रकार किया जा सकता है। किन्तु यह अध्ययन मेरे सम्मुख निम्नलिखित प्रश्न/मुद्दे छोड़ गया है:
क: स्थानीय मान का अध्यापन क्यों किया जाए?
ख: क्या इस प्रकार के अभ्यास से बच्चों को भविष्य में संख्याओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी?
ग: इस काम को किस कक्षा से प्रारम्भ किया जाए? इसे मैंने कक्षा 6 के लिए सुझाया है परन्तु अन्य कक्षाओं के साथ व्यापक शोध आवश्यक है।
घ: इस प्रकार के सघन काम का वर्तमान पाठ्यक्रम, शिक्षकों के पास उपलब्ध समय और शालाओं के टाइम-टेबल के साथ सामंजस्य कैसे होगा?
ये सवाल तो अपनी जगह हैं परन्तु साथ ही, शैक्षिक संस्थानों को स्थानीय मान के अध्यापन के लिए एक दक्ष साधन के रूप में गणक की अनुशंसा करने के प्रयास के रूप में इस अध्ययन को देखा जाना चाहिए।
प्रमोद मैथिल। - एकलव्य के भोपाल केन्द्र में कार्यरत। गणित एवं विज्ञान शिक्षण में रुचि।
अँग्रेज़ी से अनुवाद - अरविन्द गुप्ते: प्राणी शास्त्र के पूर्व प्राध्यापक। एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े रहे हैं। इन्दौर में निवास।