बुधवार 11 अगस्त, 1999 को सूर्यास्त से ठीक पहले भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश से गुजरने वाली एक संकरी पट्टी से सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण (खग्रास ग्रहण) देखा जा सकेगा।
पिछला खग्रास सूर्य ग्रहण भारत में लगभग चार साल पहले 24 अक्टूबर, 1995 को दिखाई दिया था; और भारत में खग्रास सूर्य ग्रहण देखने का अगला मौका सन् 2009 के जुलाई महीने में ही मिल सकेगा। हिन्दुस्तान में जुलाई महीने में मॉनसून बहार पर होता है इसलिए दस साल बाद वाला सूर्यग्रहण दिखने की संभावना काफी कम रहेगी। वैसे इस बार भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। - अगस्त का महीना और शाम को समय, ठीक उसी समय एक बदली भी आफताब के सामने आ गई तो सारी मेहनत पानी में और पूरा खेल चौपट! फिर भी मौका चूकना नहीं चाहिए क्योंकि यह घटना जिंदगी में दो-चार बार ही होती है। (ज्यादातर लोग अन्य किसी देश में जाकर या समुद्री जहाज़ में चढ़कर पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं देख सकते इसलिए सही है यह कथन)
शाम का नज़ारा
वैसे भी सूर्यास्त हमेशा मन को मोहित करता है लेकिन ग्यारह अगस्त की शाम की बात कुछ और ही होगी। उस शाम घंटे भर में रात का नज़ारा दो बार देखने को मिलेगा; तारे कुछ देर चमककर गायब हो जाएंगे और थोड़ी देर बाद फिर से आकाश में दिखने लगेंगे।
भारत में यह ग्रहण तकरीबन दो घंटे तक दिखाई देगा - ग्रहण लगभग 5 बजे शुरू होगा और 7 बजे तक रहेगा। हिन्दुस्तान में पूर्ण सूर्य ग्रहण का अधिकतम समय एक मिनट से थोड़ा-सा ही ज्यादा होगा।
नक्शे में दिखाई गई संकरी पट्टी में ही पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखेगा। इस पट्टी पर किसी स्थान विशेष पर पूर्ण सूर्य ग्रहण कितनी देर दिखेगा यह इंगित करते हुए 30 सेकेंड, 60 सेकेंड आदि की रेखाएं खिंची हुई हैं। इसी तरह इस पट्टी से दूर जाने पर यह भी दर्शाया गया है कि 95 प्रतिशत ग्रहण कहां-कहां से दिखाई देगा, यानी वहां पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं बल्कि खंडग्रास ग्रहण होगा। पूर्ण सूर्य ग्रहण की पट्टी के बाहर खंड ग्रहण वाली स्थिति रहेगी।
पूर्ण सूर्य ग्रहण क्यों होता है?
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि सूर्य का व्यास चांद से 400 गुना ज्यादा है और सूर्य, चांद के मुकाबले धरती से 100 गुना ज्यादा दूरी पर स्थित है। इसी वजह से सूर्य और चांद हमें लगभग समान आकार के दिखते हैं। यदि हम सूर्य को किसी फिल्टर की सहायता से देखें तो वह पूर्णिमा के चांद की तरह दिखाई देता है।
जब चांद धरती के चारों ओर घूमते हुए सूर्य के ठीक सामने से गुजरता है तो चांद की छाया धरती पर पड़ती है; और चांद की गोलाकार चकती सूर्य को पूरी तरह ढंक लेती है। यही है सूर्य ग्रहण - मात्र एक छाया! यानी ग्रहण एक पेड़ या किसी ऊंची इमारत की छाया की तरह ही एक छाया है। चांद सूर्य की रोशनी को कुछ क्षण के लिए रोक लेता है, और यह खूबसूरत समा साकार होता है।
क्या सूर्य ग्रहण खतरनाक होते हैं?
सूर्य ग्रहण कतई खतरनाक नहीं होते यदि इसे थोड़ी-सी सावधानी बरतते हुए देखा जाए। आमतौर पर सूर्य को खुली आंखों से देख पाना संभव नहीं है क्योंकि वह काफी चमकीला है। लेकिन ग्रहण के दौरान - पूर्ण सूर्य ग्रहण के थोड़ा पहले और एकदम बाद बिना किसी खास परेशानी के हम सूर्य की तरफ देख सकते हैं - यही है खतरा। ऐसा करने से आपकी आंखों को नुकसान पहुंच सकता है।
इसीलिए यह बेहद जरूरी है कि ग्रहण देखने के लिए किसी उपयुक्त फिल्टर का इस्तेमाल किया जाए जो सूर्य किरणों की तीव्रता को इतना कम कर सके कि आंखों के लिए किसी किस्म का खतरा न हो। आमतौर पर ऐसे फिल्टर का इस्तेमाल करना चाहिए जो सूर्य प्रकाश की तीव्रता का केवल 10 हज़ारवां हिस्सा हमारी आंखों तक पहुंचने दे।
पूर्ण ग्रहण की अवधि के दौरान सूर्य को बिना फिल्टर के देखा जा सकता है। खग्रास ग्रहण की अवधि सुरक्षित ही नहीं होती, बहुत खूबसूरत भी होती है। पर उसके पहले और बाद में आंखों को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। सूर्य को फिल्टर में से भी लगातार 15-20 सेकेंड से ज्यादा नहीं देखना चाहिए।
ग्रहण के दौरान सूर्य को सुरक्षित ढंग में देखने के और भी बहुत तरीके है:--
पिन होल कैमरे की मदद से, दर्पण में दीवार पर छवि बनाकर, वेल्डिंग करते समय इस्तेमाल होने वाला फिल्टर कांच आदि।
क्या-क्या देखना है?
संपर्क बिन्दुः ग्रहण की शुरुआत, पूर्ण सूर्य ग्रहण और खत्म होने पर जब जब सूर्य और चांद की चकतियां एक दूसरे को छूती नज़र आती हैं - वे बिन्दु। ग्रहण व पूर्ण ग्रहण की अवधि का पता इन्हीं से चलता है।
रोशनी का लगातार कम होना: जैसे जैसे ग्रहण आगे बढ़ता जाता है। आसमान में रोशनी कम होती जाती है; और तापमान पर भी असर पड़ता है।
ग्रहण जमीन परः ग्रहण के दौरान किसी ऐसे पेड़ की छाया को देखिए
कोरोना: 11 जुलाई, 1991 के पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान जब चांद की गोलाकार चकती ने सूरज को पूरी तरह ढंक लिया तो सूर्य का कोरोना दिखने लगा।
चमकीला छल्ला (डायमंड रिंग): पूर्ण ग्रहण के ठीक बाद जैसे ही सूर्य चांद की चकती के किनारों से दिखना शुरू होता है तो ऐसा आभास होता है मानो आसमान में हीरे से जड़ी अंगूठी हो। यह चित्र 21 नवंबर, 1966 को हुए सूर्य ग्रहण के दौरान लिया गया है।
जिस पर सूरज की रोशनी आ रही हो। काफी सारी चंद्राकार आकृतियां दिखाई देंगी। ग्रहण बढ़ने के साथ साथ ये भी संकरी होती जाएंगी; और पूर्ण सूर्य ग्रहण के पश्चात फिर से मोटी।
मोतीनुमा रचनाएं: पूर्ण सूर्य ग्रहण से ठीक पहले या फिर ग्रहण खत्म होते वक्त अगर सूर्य की किरणें चंद्रमा की किन्हीं खाइयों-घाटियों में से निकलकर हम तक पहुंच रही हों तो वे मोतियों जैसी चमकती दिखाई देती हैं।
कोरोनाः जब चांद सूरज को पूरी तरह ढंक लेता है तो काली चकती के चारों ओर एक ओजस्वी प्रकाश मान क्षेत्र दिखता है। लाखों किलोमीटर तक फैला सूर्य का यह वातावरण केवल पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय दिखता है।
चमकीला छल्लाः चांद के पीछे छुपी हुई सूरज की चकती का जरा-सा हिस्सा जैसे ही चांद के पीछे से झांकता है तो चमकते छल्ले की तरह नज़र आता है - हीरे की अंगूठी की तरह।
सौर लपटेंः सूर्य में से लम्बी-लम्बी लपटें निकलकर लाखों किलोमीटर तक उठती हैं। कोरोना में ऐसी अग्नि ज्वालाएं पूर्ण ग्रहण के समय कभी कभी दिखाई दे जाती हैं।
अन्य अवलोकनः
- तारे, ग्रह वगैरह दिखाई देना
- पशु-पक्षियों के व्यवहार में परिवर्तन
- पूर्ण सूर्य ग्रहण से पहले और बाद में जमीन पर परछाई की पट्टियां दिखना।
चांद की परछाई उत्तरी प्रशांत महासागर से शुरू कर के इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी, युगोस्लाविया, रूमानिया, तुर्की, इराक, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से होती हुई भारत मे प्रवेश करेगी।
......फिर गुजरात महाराष्ट्र मध्यप्रदेश उड़ीसा आन्ध्रप्रदेश से होता हुआ बंगाल की खाड़ी मे जाकर खत्म हो जाएगा यह सूर्य ग्रहण।