सन् 1796 में इन्जेनहोज़ ने सुझाया था कि प्रकाश संश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन और ऑक्सीजन में टूट जाती है। इस वजह से ऑक्सीजन गैस बाहर निकलती है। इस समय लगभग यह मान लिया गया था कि कार्बोहाइड्रेट, कार्बन और पानी के मिलने से बनता है; और ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड से निकलती है। यह परिकल्पना जैसा कि हम जानते हैं, आगे चलकर गलत साबित हुई।
यह महत्वपूर्ण कार्य स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक ग्रेजुएट विद्यार्थी सी. बी. वाननील ने किया। नील विभिन्न प्रकार के प्रकाश संश्लेषी बेक्टीरिया पर कार्य कर रहे थे। ये बेक्टीरिया कार्बन को अपचयित कर कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। परंतु इस क्रिया में ऑक्सीजन नहीं बनती। नील ने इस हेतु ‘परपल सल्फर बेक्टीरिया' चुना था। इसे भोजन निर्माण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड चाहिए। कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन होने से सल्फर के कण या तो बाहर निकलते हैं या इसके अंदर ही जमा हो जाते हैं। यह क्रिया कुछ इस तरह होती हैः
CO2 + 2H2S → (CH2O) + H2O+ 2S
वैसे तो यह खोज सामान्य थी, और उस समय इसकी ओर किसी ने कोई खास ध्यान भी नहीं दिया; जब तक कि नील ने इसका एक साहस भरा विस्तार कर के एक व्यापक स्वरूप न दिया। उसने सभी प्रकार के प्रकाश संश्लेषण के लिए एक सामान्य समीकरण प्रस्तुत कियाः
CO2 + 2H2A → (CH2O) + H2O + 2A
इस समीकरण में H2A ऑक्सीकृत होने वाला पदार्थ है। जैसे H2S स्वतंत्र हाइड्रोजन या पानी। हरे पौधों में H2A पानी है। यानी वॉन नील का कहना था कि यह पानी है जो टूटकर ऑक्सीजन बनाता है, न कि कार्बन डाइऑक्साइड जैसा कि इन्जेनहोज़ ने सुझाया था। अर्थातः
CO2+ 2H2O → (CH2O) + H2O+O2
यह धमाकेदार तर्क 1930 के शुरुआती दौर में प्रस्तुत किया गया था जो लंबे समय तक सिद्ध न हुआ। परंतु 1941 में केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रूबेन और कॉमेन ने इसे सही साबित कर दिया। अब उनके हाथ ऑक्सीजन का एक चमत्कारी रूप हाथ लग चुका था। यह था 18O जो कि ऑक्सीजन का एक आयसोटोप है। सामान्य आक्सीजन 18O होती है। रूबेन और कॉमेन ने पौधों को पानी (H218O) में प्रकाश संश्लेषण कराया और देखा कि इस क्रिया में निकलने वाली आक्सीजन 18O है न कि 18O जो कि सामान्य कार्बन डाइऑक्साइड में थी। इससे यह सिद्ध हो गया कि प्रकाश संश्लेषण में पानी का विघटन होता है, न कि कार्बन डाइऑक्साइड का।
CO2 + 2H218O → (CH2) + H2O + 18O2
परंतु जब यही क्रिया C18O2 के साथ करायी गई तो निकलने वाली ऑक्सीजन 1602 ही थी।
C18O2+ 2H2O प्रकाश, (CH18O) + H2O + O2
इसी वैज्ञानिक जोड़ी ने कार्बन का एक आयसोटोप खोजा जिसका उपयोग अन्य वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाश संश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड से ग्लूकोज़ बनने के दौरान जन्मने वाले मध्यवर्ती पदार्थों की खोज में किया गया।
- किशोर पंवार