[Hindi PDF, 144 kB]

छिपकली और चींटी का दीवार पर चलना          

सवालीराम: छिपकलियाँ अपने पंजों पर बनी खास संरचना की वजह से दीवार-छत पर चल पाती हैं। लेकिन चीटियाँ, मकड़ियाँ व कीट भी दीवार एवं छत पर चलते हैं। ऐसा किस तरह सम्भव हो पाता है?

जवाब: वैसे तो ये सारे जीव - छिपकलियाँ, मकड़ियाँ व अन्य कीट - अपने पंजों पर बनी खास संरचनाओं के सहारे दीवार-छत पर चल पाते हैं। किसी कारण, इनमें से कोई एक जीव कभी आपके हाथ आ जाए तो उसे उलटकर उसकेपंजों को ध्यान से ज़रूर देखिएगा। उनकी उँगलियों के नीचे आपको गद्देदार संरचनाएँ दिखेंगी जिन्हें अँग्रेज़ी में फुट-पैड कहते हैं। ये फुट-पैड गज़ब की रचनाएँ हैं। ये इतनी मज़बूती से सतहों से चिपक सकते हैं कि अपने वज़न से दुगना, तिगुना और कुछ चींटियाँ तो सौ गुना तक का भार लेकर आराम से चिकनी दीवार पर चल लेती हैं। इनमें कुछ और अद्भुत गुण हैं - काफी अधिक दृढ़ता से इन जानवरों के पैर जैसे क्षणभर के लिए चिपक जाते हैं, उतने ही कम समय में सतह से छूट भी जाते हैं। सबसे अनोखी बात यह है कि इनके पैर बार-बार, हज़ारों बार ऐसे किसी सतह से चिपककर अलग हो सकते हैं (ऐसे मज़बूत, टिकाऊ और बार-बार इस्तेमाल किए जा सकने वाले टेप तो आज तक हम बना नहीं सके हैं)।

वास्तव में किसी भी वस्तु को दीवार पर चिपकने के लिए दो अहम गुणों की ज़रूरत होती है। एक तो कि उस वस्तु की ज़्यादा-से-ज़्यादा सतह दीवार के सम्पर्क में रहे। दूसरा, वस्तु और दीवार के बीच जो जोड़ बने, वह मज़बूत हो। अब जितनी भारी वस्तु, उतनी इन कारकों में से एक या दोनों में इज़ाफे की ज़रूरत ताकि वह चीज़ दीवार-छत से चिपक सके।

जैसा हमने देखा छिपकलियों, चींटी-मकड़ियों व अन्य कीटों के पास फुट-पैड तो हैं पर काम करने के तरीकों में जहाँ इनमें कुछ समानताएँ हैं, वहीं इनके बीच कुछ अन्तर भी हैं। तो शुरुआत करते हैं छिपकलिओं के फुट-पैड से, फिर देखते हैं इनमें और चींटियों, मकड़ियों व कुछ अन्य कीटों में वास्तव में फर्क क्या है।

छिपकलियों के पंजों पर हज़ारों सूक्ष्म बाल जैसे उभार (पैपिला) होते हैं। छिपकली जब दीवार पर चलती है तो ये सारे उभार दीवार की सतह के सम्पर्क में रहते हैं। अगर ये उभार न होते तो पैड की जितनी सतह दीवार के सम्पर्क में आ सकती थी, वो कम हो जाती। इसका मतलब यह है उभार की वजह से पैड का अधिक-से-अधिक क्षेत्रफल दीवार के सम्पर्क में रहता है। और चूँकि हर उभार सिरे पर जाकर दो हिस्सों में बँट जाता है, सतह से सम्पर्क वाला क्षेत्रफल दुगना हो जाता है। पैड के दीवार पर चिपकने को लेकर काफी शोध हुआ है और कई परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की गई हैं। आजकल माना जाता है कि दोनों सतहों, पैड और दीवार, के बीच आणविक बल की वजह से ये जुड़े रहते हैं। इस अन्तर-आणविक बल को वैन-डर-वॉल् बल कहते हैं। इसमें गोंद या पानी जैसा कोई अलग पदार्थ नहीं लगता है। एक उभार और सतह के बीच का वैन-डर-वॉल् बल तो ज़्यादा नहीं होता है, लेकिन अगर हम सैकड़ोंें उभार और सतह के बीच के बल को जोड़ दें तो यह छिपकलियों का वज़न ही नहीं, उससे ज़्यादा भार भी दीवार-छत पर चिपकाने में सक्षम हो सकता है।

अब हम चींटियों को लेते हैं। चींटियों की कुछ प्रजातियों के फुट-पैड पर छिपकलियों और मकड़ियों के जैसे उभार होते हैं तो कुछ प्रजातियों में ये संरचनाएँ चिकनी होती हैं। छिपकलियों और मकड़ियों से इनमें जो अलग बात है वो है कि चींटियाँ दीवार-छत से कैसे चिपकती हैं। जैसा हमने देखा, छिपकलियों में यह जोड़ एक सूखा जोड़ है, जबकि चींटियों और अन्य कीटों में यह एक गीला जोड़ होता है। पैड में छिद्रों से एक द्रव निकलता है और उभार यह द्रव पोतता चलता है। इस द्रव की वजह से उत्पन्न आकर्षण-बल पैड को दीवार पर चिपकने में मदद करता है। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि चींटी को दीवार-छत पर चिपके रहने के लिए सिर्फ उभार-द्रव-दीवार की सतह के बीच बल पर्याप्त नहीं होते हैं, खासकर छत या चिकनी सतह वाले पत्तों पर। इनके अलावा पंजों के कुछ अन्य भाग भी सतह के सम्पर्क में होते हैं और एक अनुमान है कि सूखी सतहों के बीच का बल भी यहाँ काम कर रहा है। यानी कि चींटियों के फुट-पैड के कुछ हिस्से सतह से सूखा जोड़ बनाए रखते हैं तो कुछ गीला जोड़ बनाते हैं।

कई वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में यही जानवर अलग-अलग तरीके इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए जब मकड़ियाँ चलती हैं तो कभी-कभी वे द्रव से अपने उभार को पोतते हुए चलती हैं, तो कभी सूखा जोड़ बनाते-तोड़ते हुए चलती हैं। दूसरी ओर जब छिपकलियाँ गीली सतह पर चलती हैं तो सम्भवत: चींटियों-मकड़ियों जैसे चलती हैं।

दीवार-छत पर चलने के लिए अन्य कीटों में विभिन्न तरीके विकसित हुए हैं। एक मक्खी की प्रजाति में पाया गया है कि जब वह आम तौर पर चलती है तो किसी एक क्षण में उसके दो ही पैर सतह के सम्पर्क में रहते हैं। लेकिन उसी मक्खी को अगर आप छत पर चलते हुए अवलोकन करें तो पाएँगे कि अब वह तीन पंजे सतह से सम्पर्क में रखते हुए चल रही है। एक भृँग प्रजाति में पाया गया है कि वैसे तो उनके पंजों पर जो कड़े बाल हैं, उनमें से कुछ ही सतह के सम्पर्क में होते हैं; लेकिन कोई परभक्षी जब आक्रमण करता है तो वे डटकर सारे बालों को, पंजों को पूरी तरह से सतह पर चिपका देते हैं। मुमकिन है कि बहुत ही चिकनी सतहों पर चलते समय भी ये भृँग इस कार्यनीति का उपयोग करते होंगे।

यह मोटा-मोटा विवरण है छिपकलियों, चींटियों और कुछ अन्य कीटों के दीवार-छत पर चलने की प्रक्रिया का। यह प्रक्रिया तो काफी पेचीदा है लेकिन शोधकर्ता इसे समझकर नकल करने की कोशिश में हैं कि हमारे पास भी ऐसे जोड़ बनाने के तरीके हों जो रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में मशीनें-इमारतें बनाने में काम आ सकें।
यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना भी ज़रूरी है कि इस जवाब को हमने पैर-सतह जोड़ पर केन्द्रित रखा है। छिपकली या चींटी दीवार पर क्यों चल पाती है इसमें और भी बहुत-से पहलू हैं, खास तौर पर आकार/वज़न से सम्बन्धित जिनकी चर्चा कभी और करेंगे।


इस जवाब को विनता विश्वनाथन ने तैयार किया है।
विनता विश्वनाथन: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।