लेखक:   र्यूनोसुके आकुतागावा                                                                                                                                             
अनुवाद: पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा   [Hindi PDF, 483 kB]

कहानी   
प्यारे नौजवान साथियो, इस समय मैं ओसाका में ठहरा हुआ हूँ, सो मैं आपको इस शहर से जुड़ी एक कहानी सुना डालता हूँ।
एक समय ओसाका शहर में एक नौजवान आया जो घरेलू नौकर बनना चाहता था। मुझे उसका असल नाम नहीं मालूम, लोग उसे सभी नौकरों के लिए सामान्यत: काम में लिए जाने वाले नाम गोन्सुके से ही याद करते हैं, आखिर वह था भी तो हर काम को करने वाला एक नौकर भर।

तो यह आदमी - हम भी उसे गोन्सुके ही बुलाएँगे - वह एक “हम आपको कोई भी काम दिलवा सकते हैं” के दफ्तर में घुसा और, वहाँ के प्रभारी से, जो बाँस की लम्बी चिलम गुड़गुड़ा रहा था, बोला:
“श्रीमान् बड़े बाबू, मैं एक सेनिन बनना चाहता हूँ। क्या आप मुझे कोई ऐसा परिवार तलाश देंगे जहाँ मैं परिवार की सेवा-चाकरी करते, सेनिन बनने की रहस्यमय विद्या सीख सकूँ?”
दफ्तर का बाबू कुछ देर तक अपने ग्राहक की इस विचित्र माँग से मानो अवाक्-सा रह गया।
“आपने सुना नहीं, बाबू साहब?” गोन्सुके ने कहा, “मैं सेनिन बनना चाहता हूँ। क्या आप मुझे ऐसा परिवार ढूँढ़ देंगे जहाँ मैं नौकरी करते हुए यह रहस्य सीख सकूँ?”

“तुम्हें निराश करने का हमें बड़ा दुख है,” बाबू महाशय ने अपनी भूली चिलम फिर से गुड़गुड़ाते हुए कहा, “पर हमारे सालों पुराने इस धन्धे में हमने एक बार भी सेनिन बनने के अभिलाषी के लिए कोई जगह नहीं तलाशी है। शायद बेहतर हो कि तुम किसी दूसरे दफ्तर में जाओ, तो...”
इस पर गोन्सुके अपनी नीले पतलून से ढके घुटनों पर बाबू साहब के कुछ पास झुका और यों बहस करने लगा,
“अरे-अरे, साहब यह तो ईमानदारी की बात ही नहीं हुई, हुई क्या? आपका बोर्ड भला क्या कहता है? उस पर लिखा है ‘हम आपको कोई भी काम दिलवा सकते हैंै’ - बिलकुल साफ-साफ। अब क्योंकि आप यह वादा करते हैं कि कोई भी काम दिलवा सकते हैं, तो फिर आपको हम जो भी चाहें -- काम तलाश देना चाहिए। या फिर यह हो सकता है कि आपने जानबूझ कर झूठी बात लिखी हो।”

क्योंकि उसका तर्क अकाट्य था, दफ्तर बाबू नाराज़गी में निकली इस भड़ास पर उसे दोष भी नहीं दे सके।
“मैं विश्वास दिलाता हूँ अजनबी, कोई गड़बड़ी नहीं है। हम सीधा-सच्चा धन्धा चलाते हैं,” बाबू साहब ने जल्दी-से चिरौरी की, “पर अगर तुम्हें अपने अजीबो-गरीब अनुरोध पर ही कायम रहना है, तो मैं कहूँगा कि तुम कल फिर से हमारे पास आना हम आज उन सभी जगहों पर पूछताछ कर रखेंगे जहाँ इसकी सम्भावना हो।” दफ्तर बाबू को उसे कम-से-कम उस समय के लिए वहाँ से चलता करने का यह वादा करने के अलावा कोई उपाय सूझा ही नहीं। यह खुलासा करने की शायद ज़रूरत ही नहीं कि बाबू को किसी भी ऐसे परिवार का अता-पता न था, आखिर होता भी कैसे, जो किसी घरेलू नौकर को सेनिन बनने का रहस्य सिखा सकता हो। सो जैसे ही वह आगन्तुक वहाँ से दफा हुआ, वह दफ्तर के पास ही रहने वाले एक चिकित्सक के घर पहुँचा।

उसने चिकित्सक को अपने विचित्र ग्राहक की कहानी सुनाई और गिड़गिड़ाते हुए बोला, “अब, डॉक्टर साहब मेहरबानी से यह बताएँ कि ऐसा कौन परिवार होगा जो इस आदमी को सेनिन बनने के गुर सिखा सके और वह भी जल्दी से?”
सवाल ने डॉक्टर साहब को भी उलझन में डाल दिया। वे छाती पर हाथ बाँधे कुछ देर सोचते हुए, बाग के बड़े देवदार को देखते मौन रहे। जवाब डॉक्टर की चतुर-चंट पत्नी व सहायिका ने दिया, जो चण्डी मैया के नाम से प्रसिद्ध थी। उससे किसी ने तो जवाब माँगा नहीं था पर दफ्तर बाबू की कहानी सुन वह खुद ही बोल पड़ी, “अरे, यह तो बड़ी आसान बात है। उसे हमारे पास भेज दो, हम उसे दो सालों में सेनिन बना देंगे।”

“सच, आप ऐसा कर सकेंगी, देवीजी? वाह, यह तो बढ़िया है! आपके इस उदार प्रस्ताव के लिए मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ। पर सच कहूँ तो मुझे पहले से ही विश्वास था कि एक चिकित्सक और एक सेनिन एक-दूसरे से किसी-न-किसी तरह जुड़े तो होते हैं।”
बुढ़िया के इरादों से नावाकिफ दफ्तर बाबू उसे धन्यवाद देने बार-बार झुका और बेहद खुश हो विदा हो गया।

हमारे चिकित्सक महाशय खट्टी नज़रों से उसे जाते देखते रहे तब अपनी पत्नी की ओर मुड़कर नाराज़गी से बोले, “बेवकूफ बुढ़िया, तुम्हें पता भी है कि तुमने किस चीज़ का वादा कर डाला है? तुम उस वक्त क्या करोगी जब किसी दिन वह गँवार गधा यह शिकायत करेगा कि इतने सालों में तुमने उसे एक भी गुर नहीं सिखाया है?”

पर उसकी बीवी ने माफी माँगने के बदले अपनी नाक चढ़ाई और किंकियाई, “धत्! अरे मन्दबुद्धि, तुम अपने काम-से-काम रखो। तुम्हारे जैसा बेवकूफी की हद तक का सरल आदमी इस खाओ-या-खालिए-जाओ वाली दुनिया में, चार पैसे जोड़, अपने शरीर और आत्मा को तो बचा नहीं सकता।” उसका पलटवार कारगर रहा और और फटकार सुन उसका पति चुप हो गया।

अगली सुबह, जैसा तय हुआ था, दफ्तर बाबू अपने उजड्ड मुवक्किल को डॉक्टर बाबू के घर ले गया। गाँव का होने के बावजूद गोन्सुके इस दिन औपचारिक हाओरी और हकामा पहन कर आया था, शायद इस महत्वपूर्ण पहले दिन के उपलक्ष्य में। फिर भी बाहरी तौर पर वह किसी भी आम किसान से किसी भी तरह अलग नज़र नहीं आता था। उसका साधारणपन ज़रूर डॉक्टर साहब को कुछ चौंका गया होगा क्योंकि वे एक भावी सेनिन में कुछ असाधारण की उम्मीद लगाए थे। उन्होंने उसे कौतूहल से घूरा, वैसे जैसे कोई दुर्लभ व अद्भुत पशु जैसे -सुदूर भारत से लाए गए कस्तूरी-मृग को देखे, और तब बोले, “मुझे बताया गया है कि तुम सेनिन बनना चाहते हो, और मैं यह जानने को बेताब हूँ कि यह विचार तुम्हारे दिमाग में आया भला कैसे?”

“जनाब, बताने लायक खास है नहीं,” गोन्सुके ने जवाब दिया। “बात दरअसल बिलकुल सीधी-सी है। मैं तब पहले-पहल इस शहर में आया और मैंने वह बड़ा-भारी महल देखा, तो मैंने सोचा: हमारे महान शासक ताइको को भी, जो उस ऊँचे महल में रहते हैं किसी दिन मरना ही होगा; कितनी भी शानदार ज़िन्दगी क्यों न जिए कोई, उसे भी हमारे जैसे बाकी लोगों की तरह मिट्टी ही में मिलना होता है। संक्षेप में, मुझे उस वक्त लगा कि हमारा जीवन पल भर का सपना है।”

“तो,” कर्कशा बुढ़िया ने तुरन्त अपनी बात घुसेड़ी, “तुम सेनिन बनने के लिए कुछ भी करोगे?”
“जी, मेमसाब, काश कि मैं सेनिन बन सकूँ।”
“बहुत अच्छा, तो तुम यहाँ हमारे लिए बीस साल तक काम करोगे और उस अवधि के बाद तुम रहस्य के मालिक बनोगे।”
“सच में? मैं आपका बेहद आभारी हूँ।”

“पर,” बुढ़िया ने जोड़ा, “बीस साल तक तुम्हें हम वेतन के रूप में कानी-कौड़ी भी नहीं देंगे। यह समझ लो तुम।”
“जी मेमसाब, शुक्रिया मेमसाब, मुझे यह स्वीकार है।”
इस तरह गोन्सुके की डॉक्टर साहब के यहाँ बीस साल चाकरी शु डिग्री हुई। वह परिवार के लिए कुँए से पानी लाता, लकड़ियाँ काटता, हरेक खाना पकाना, झाड़ू-बुहार करता, बर्तन-भाण्डे माँजता। और सिर्फ इतना ही नहीं, वह डॉक्टर साहब के साथ मरीज़ों के घर भी जाता -- अपनी पीठ पर दवाओं का बड़ा बक्सा उठाए। पर अपनी इस मेहनत-मशक्कत के लिए गोन्सुके ने कभी एक पाई तक न माँगी। सच तो यह है कि समूचे जापान में आपको इससे कम वेतन में इससे बेहतर चाकर ढूँढ़े न मिलता।

आखिरकार बीस लम्बे वर्ष गुज़र गए, और गोन्सुके फिर अपने परिवार के निशान से कढ़े औपचारिक हाओरी में ठीक उस तरह अपने मालिक और मालकिन के सामने खड़ा हुआ। उसने पिछले बीस सालों में अपने प्रति जताई गई दयालुता के लिए उन्हें शुक्रिया अदा किया। “तो साहब, अब आप क्या मेहरबानी कर मुझे यह सिखाएँगे कि सेनिन कैसे बना जाता है और अनन्त यौवन और अमृत्व कैसे पाया जाता है?”

“बुरा फँसा,” डॉक्टर साँस भर मन-ही-मन खुद से बोले। जिस चाकर को बिना एक छदाम दिए उसने बीस साल पिदाया, उसे वह मानवता के नाते यह कैसे कहता कि सेनिन-विद्या का सिर-पूँछ तक वह नहीं जानता। डॉक्टर साहब ने इस दुविधा से यह कह कर जान छुड़ाई कि यह रहस्यमयी विद्या वे नहीं बल्कि उनकी बीवी जानती हैं। “तो तुम्हें यह अनुरोध उनसे ही करना होगा,” और इतना कह उन्होंने मुँह फेर लिया। पर उनकी पत्नी इस सब से विचलित नहीं थीं।
“तो ठीक है, मैं सिखाऊँगी तुम्हें,” वे बोलीं, “पर ध्यान रहे तुम्हें जो-जो मैं कहूँ, वह सब करना होगा, फिर चाहे वह तुम्हें कितना भी मुश्किल क्यों न लगे। नहीं तो तुम कभी भी सेनिन नहीं बन सकोगे, और इसके अलावा तुम्हें हमारे लिए फिर से बिना वेतन के बीस सालों तक खटना होगा; नहीं तो मेरी बात पर विश्वास करो, सर्वशक्तिमान ईश्वर तुम्हें उसी पल मृत्युदण्ड देगा।”
“बहुत अच्छा, मेमसाब, मैं सब कुछ करूँगा, चाहे वह मुझे कितना भी कठिन क्यों न लगे,” गोन्सुके ने जवाब दिया। वह बेहद खुश हो उनके निर्देशों का इन्तज़ार करने लगा।

तो सुनो, वे बोलीं, बाग के देवदार पेड़ पर चढ़ो। सेनिन-विद्या से वे पूरी तरह अनभिज्ञ थीं, उनकी मंशा सिर्फ यही रही होगी कि वे उसे कोई भी असम्भव-सा काम सौंपें और जब वह उसे करने में असफल हो तो अगले बीस साल तक फिर उसकी मुफ्त सेवा पा लें। पर उनके आदेश पर गोन्सुके बिना पल भर हिचके पेड़ पर चढ़ने लगा।
“ऊपर चढ़ो,” वे नीचे खड़ी ज़ोर से बोलीं, “ना, और ऊपर, ठेठ पेड़ के शिखर तक।”
बरामदे के किनारे खड़े हो, बुढ़िया ने अपनी गर्दन ऊँची उठाई ताकि अपने चाकर को ठीक से देख सके और अब उन्हें उस ऊँचे देवदार की सबसे ऊपरी शाखाओं पर गोन्सुके का हाओरी हवा में फड़फड़ाता नज़र आया।
“अब अपना दाहिना हाथ छोड़ दो।” गोन्सुके ने बाएँ हाथ वाली शाखा को और मज़बूती से पकड़ा और कुछ झिझक से दाहिने हाथ को मुक्तकर लिया।

“अब तुम अपना बायाँ हाथ भी छोड़ दो।”
“अरे बस-बस, भागवान,” उसका पति उसके पीछे खड़े हो, चिन्तित दृष्टि से ऊपर देखता हुआ आखिरकार बोला। “तुम जानती हो कि बायाँ हाथ छोड़ते ही वह बेवकूफ ज़मीन पर आ गिरेगा। और वहीं नीचे एक बड़ा भारी पत्थर है, वह सीधे मौत के मुँह में समा जाएगा। यह बात उतनी ही सच है जितनी यह कि मैं एक चिकित्सक हूँ।”
“फिलहाल मुझे तुम्हारी बेशकीमती सलाह की दरकार नहीं। यह सब तुम मेरे ऊपर छोड़ो। ...ओ छोकरे मैंने कहा अपना बायाँ हाथ भी छोड़ो, सुनते हो?”

जैसे ही उन्होंने कहा गोन्सुके ने अपने झिझकते बाएँ हाथ को भी मुक्त कर दिया। दोनों हाथ छोड़ वह उस शाखा पर खड़ा भला कैसे रहता? अगले ही पल, जब डॉक्टर और उनकी पत्नी अपनी साँस अन्दर खींच ही रहे थे कि गोन्सुके और उसका हाओरी भी, शाखा में नीचे की ओर गिरने लगे, और तब....। और तब यह भला क्-क्-क्या था? - वह रुक गया, वह थम गया! बीच हवा में ही, एक ईंट के समान धड़ाम-से नीचे गिरने के बदले वह दोपहरी के चमकदार आकाश में टँगा रहा, मानो कोई कठपुतली किसी मुद्रा में रोक दी गई हो।
“मैं आप दोनों का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपने मुझे सेनिन बना दिया,” गोन्सुके वहीं ऊपर से बोला।

बड़े अदब से उसने उनका झुक कर अभिवादन किया तथा ऊपर, और ऊपर चढ़ने लगा, बड़े आराम-से नीले आकाश पर एक के बाद दूसरा कदम रखते बढ़ता गया, जब तक वह धीरे-धीरे एक बिन्दु भर न रह गया और तब रुईदार बादलों में गुम हो गया।
उस चिकित्सक और उसकी बीवी का क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता पर उनके बाग का वह विशाल देवदार लम्बे अर्से तक ज़िन्दा रहा, क्योंकि कहा जाता है कि तकरीबन दो शताब्दियों बाद एक योदोया तात्सुगोरी ने, जो बर्फ से ढके पेड़ को देखना चाहता था, बड़ी मगज़मारी कर और भारी खर्चा उठा कर उस पेड़ को वहाँ से उठा अपने बाग में लगवाया, उस समय उस विशाल वृक्ष के तने का घेरा बीस फीट से भी अधिक था।


र्यूनोसुके आकुतागावा (1882-1927): जापानी लेखक। आत्महत्या करने के पहले उन्होंने शान्त भाव से इस निर्णय तक पहुँचने के कारण बताए और ऐतिहासिक आत्महत्याओं की एक सूची तैयार की जिसमें ईसा मसीह का नाम भी शामिल था। उनकी रचनाओं में वीभत्स व अजीबो-गरीब कहानियाँ (ग्रोटेस्क एंड क्यूरिअस टेल्स), तीन खज़ाने (द थ्री ट्रेज़र्स), काप्पा, राशोमॉन, जापानी लघु कथाएँ (जैपनीज़ शॉर्ट स्टोरीज़) शामिल हैं। उन्होंने रॉबर्ट ब्राउनिंग की रचनाओं का जापानी में अनुवाद भी किया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा: सुप्रसिद्ध अनुवादक। शिक्षा और बाल साहित्य के क्षेत्रों में अनेकों पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया है। जयपुर में रहती हैं।
सभी चित्र व सज्जा: कनक शशि: स्वतंत्र कलाकार के रूप में पिछले एक दशक से बच्चों की किताबों के लिए चित्रांकन कर रही हैं। एकलव्य के डिज़ाइन समूह से सम्बद्ध। भोपाल में निवास।