लेखक: ऊषा मुकुन्दा
अनुवाद: कविता तिवारी [Hindi PDF, 128 kB]
स्कूली बच्चों के लिए दिए गए व्याख्यानों की शृंखला के कुछ हिस्सों को समाहित करती इस किताब में एक बार फिर हमें माइकल फैराडे की अद्भुत प्रतिभा की झलक मिलती है। वे न सिर्फ एक बहुत ही अच्छे वक्ता थे बल्कि एक ऐसे प्रयोगकर्ता भी थे जो हर काम सटीकता से करते थे। बच्चों के सामने प्रदर्शित करने से पहले वे हर प्रयोग को जाँचते और परखते थे।
जब मैं स्कूल में थी तो विज्ञान पर मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। और सच बताऊँ तो मुझे इस बात का कोई दुख भी नहीं था। हमारे स्कूल में यह धारणा थी कि बारह-तेरह साल की उम्र तक विद्यार्थियों को विज्ञान और थोड़ा-कम-विज्ञान की शाखाओं में बाँट देना चाहिए। ज़ाहिर-सी बात है कि विज्ञान वाले विद्यार्थी ‘ए’ सेक्शन में होते। साल गुज़रते गए और किस्मत का फेर देखो मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो गई जिसका मानना है कि विज्ञान एक बेहद खूबसूरत चीज़ है जिससे अत्यन्त आनन्द मिलता हैे। बाद में मैं एक स्कूल लाइब्रेरियन बनी तो खुशकिस्मती से कुछ ऐसे सहकर्मी मिले जिन्होंने मुझे विज्ञान के कई रोचक लेख पढ़ने को दिए। तब से मैं वैज्ञानिकों और उनके काम के बारे में पढ़ने में खासी दिलचस्पी लेने लगी - जितना भी मेरी समझ में आए समझने की कोशिश करती रही। तो जब मैंने महान रसायन और भौतिक वैज्ञानिक माइकल फैराडे के क्रिसमस के दौरान स्कूली बच्चों को दिए व्याख्यानों की एक पुस्तिका ‘द केमिकल हिस्ट्री ऑफ ए कैंडल’ के बारे में कहीं कुछ पढ़ा तो तुरन्त मेरे कान खड़े हो गए - मुझे उस किताब, उन व्याख्यानों के बारे में और जानना था। अपने रसायन पढ़ाने वाले सहकर्मियों से थोड़ी बहुत बातचीत के बाद हमने खोज लिया कि विज्ञान प्रसार ने इन व्याख्यानों को महज़ 35 रुपए कीमत की एक छोटी-सी सुलभ किताब की शक्ल दी है।
व्याख्यान का महत्व
व्याख्यान और तथ्यों के सीधे प्रदर्शन ज्ञान देने और विषय के प्रति जुनून और रुचि जागृत करने के सशक्त माध्यम हो सकते हैं। बड़े दुख की बात है कि ये अब चलन से बाहर हो गए हैं। माना कि वैयक्तिक रूप से सीखना, उत्कृष्ट किताबें जो बच्चों को सहज-सरल भी लगती हैं वरदान हैं, मगर इनमें प्रतिभाशाली लोगों से सीधे सम्पर्क का रोमांच कहाँ होता है? प्रतिभावान भौतिक वैज्ञानिक रिचर्ड फाइनमैन के व्याख्यान भी किताबों के रूप में प्रकाशित हुए हैं। ये आज भी किसी उभरते हुए भौतिक वैज्ञानिक के लिए सबसे पहले पढ़े जाने वाले अत्यन्त महत्वपूर्ण लेख हैं। शायद आज के समय के टेड व्याख्यान (TED Talks)। भी इसके आसपास ही कहीं ठहरते हैं लेकिन अगर इनकी तुलना माइकल फैराडे के विधिवत, फिर भी जोश भरे, व्याख्यानों से करें तो टेड व्याख्यान किसी ट्रेलर या झलकियों-से लगते हैं। फैराडे कोई जन्मजात वक्ता नहीं थे लेकिन वे बच्चों व युवाओं से सीधी बातचीत के महत्व को अच्छी तरह समझते थे। इसलिए वे यह सीखने में लग गए कि एक अच्छा वक्ता कैसे बना जा सकता है। उन्होंने इसके लिए कुछ दिशा-निर्देश भी तैयार किए। उनमें से एक इस प्रकार है। “एक वक्ता को शान्त व सरल, निडर और निश्चिन्त होना चाहिए। विषय की व्याख्या व मनन के लिए दिमाग एकाग्र और स्पष्ट होना चाहिए। व्याख्यान देते हुए उसके कार्यकलाप धीमे, सरल और स्वाभाविक होने चाहिए। और सबसे खास बात कि उसे लगातार अपने शरीर की मुद्राएँ बदलते रहना चाहिए ताकि माहौल सहज बना रहे।” मेरे ख्याल से यह सभी शिक्षकों के लिए भी एक अच्छी सलाह है!
शुरुआती दिन
माइकल फैराडे का जन्म 1791 में हुआ। लन्दन के एक झुग्गी-बस्ती इलाके में वे पले-बढ़े। वे बेहद गरीब परिवार से थे। इतने गरीब परिवार से कि एक डबलरोटी से उन्हें पूरे हफ्ते भर गुज़ारा करना होता। वे बहुत ही साधारण स्कूल में पढ़ते थे। वहाँ उन्होंने पढ़ना-लिखना और अंकगणित के मूल तत्व सीखे। काफी कम उम्र में ही वे किताबों पर जिल्द लगाने वाली एक दुकान में काम करने लगे। वहाँ कई सारी बड़ी-बड़ी किताबें जैसे एनसायक्लोपीडिया और विज्ञान की भी कई किताबें जिल्द लगाने के लिए आती थीं। इससे उनके लिए एक नई दुनिया का दरवाज़ा खुला जिसे खोजने के लिए वे बेताब थे। विज्ञान की शायद ही कोई ऐसी अच्छी किताब हो जो उस दुकान में आई हो और जिसे युवा माइकल ने चाव से न पढ़ा हो। एक दिन दुकान के मालिक को मशहूर वैज्ञानिक हम्फ्री डेवी के शाम में होने वाले व्याख्यान का बुलावा आया। विज्ञान के लिए माइकल के जुनून को देखते हुए दुकान मालिक ने अपना पास उन्हें दे दिया और इसके बाद जो हुआ वो इतिहास है... या हम कह सकते हैं कि विज्ञान है! डेवी बहुत ही अच्छे वक्ता थे। माइकल ने उनके सभी व्याख्यानों को ध्यान से सुनकर अपनी टिप्पणियाँ लिखीं। और बाद में ये टिप्पणियाँ डेवी को भेज दीं। डेवी माइकल के अवलोकन और व्यवस्थित टिप्पणियों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसेे अपने साथ काम करने को कहा।
शायद माइकल, डेवी के संचार के अन्दाज़ के प्रति खुद की प्रतिक्रिया कभी नहीं भूले क्योंकि बाद में वे हर शुक्रवार शाम को आम लोगों के लिए व्याख्यान देते थे। और उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर स्कूली बच्चों के लिए खासतौर पर व्याख्यान दिए। उनके इन व्याख्यानों को एक स्टेनोग्राफर ने नोट किया और बाद में उन्हें शब्दश: प्रस्तुत किया। उनके व्याख्यानों को शब्दश: प्रस्तुत करने को लेकर भी एक खास तरह का आकर्षण था क्योंकि अक्सर आप उन्हें यह कहते हुए पाएँगे “....और अब मेरे प्यारे बच्चो व बच्चियो...”। क्या आप यकीन कर पाएँगे कि उनके व उनकी पत्नी के अपने कोई बच्चे नहीं थे? और फिर भी वे बखूबी जानते थे कि बच्चों से कैसे बात की जाए।
कुशल वक्ता और प्रयोगकर्ता
सन् 1860-61 की क्रिसमस छुट्टियों के दौरान दिए इन छह व्याख्यानों में एक बार फिर हमें उनकी प्रतिभा देखने को मिलती है। वे न सिर्फ एक बढ़िया वक्ता थे बल्कि एक कुशल प्रयोगकर्ता भी थे। किसी भी प्रयोग को बच्चों के सामने प्रदर्शित करने से पहले वे उसे अच्छी तरह जाँच-परख लेते थे। वे कहते हैं, “बचपन में मैं काफी ज़िन्दादिल व कल्पनाशील हुआ करता था। इतना कि मैं अरेबियन नाइट्स की कहानियों में भी उतनी ही आसानी से यकीन कर लेता था जितना कि एनसायक्लोपीडिया में। लेकिन तथ्य मेरे लिए ज़्यादा मायने रखते थे और इसी बात ने मुझे बचा लिया। जब तक मैं खुद ना देख लूँ तब तक किसी भी बात को तथ्य नहीं मानता था।” और यही बात वे उन्हें सुनने-देखने आने वाले स्कूली बच्चों को बताना चाहते थे। अपने इन व्याख्यानों के लिए उन्होंने एक साधारण-सी मोमबत्ती को अपनी विषय-वस्तु चुना। और इसी के ज़रिए उन्होंने पदार्थ की प्रकृति, उत्पत्ति, गुण, मानव जीवन के लिए उपयोगिता व उनकी पहचान करने के तरीकों के बारे में चौंका देने वाली जानकारी दी। “एक सादी-सी मोमबत्ती से उन्होंने अपने और अपने युवा श्रोताओं के लिए विज्ञान की एक अलग ही दुनिया तैयार कर ली थी।” यह कहना है जीवनी लेखक वीलियम एच. क्रूपर का। दिलचस्प बात यह है कि वे मुझ जैसे आम इन्सान में भी उन खोजों के लिए उत्साह जगाने में सफल रहे। ऐसा सब उन्होंने सभागार में ही किया मानो मादकता-सी फैलाकार।
एक साधारण-सी मोमबत्ती
अपने पहले व्याख्यान में माइकल फैराडे हमारा ध्यान सादी-सी मोमबत्ती के अद्भुत गुणों व इसे जलाने के लिए ज़रूरी परिस्थितियों की ओर दिलाते हैं। इसे जलाने के लिए ईंधन चाहिए। एक ऐसा साधन चाहिए जो इस ईंधन को रासायनिक क्रिया के लिए ज़रूरी स्थान यानी कि लौ तक लेकर आए। साथ ही इसके लिए रासायनिक क्रिया वाले स्थान पर लगातार हलकी-सी हवा, ऊष्मा और प्रकाश भी ज़रूरी हैं। हम में से कितने लोग मोमबत्ती के संघटन के बारे में जानते हैं? हम शायद इतना ही जानते हैं कि मोमबत्ती में सूत की पट्टियाँ (धागे) होती हैं जिन्हें गर्म मोम में तब तक डुबोया जाता है जब तक कि हमें मोमबत्ती का चिर-परिचित आकार न मिल जाए। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि मोम ऊपर सरकते हुए बत्ती जलने वाली जगह पर कैसे पहुँचता है? उन्होंने अपने श्रोताओं पर ज़ोर दिया कि वे यह सवाल पूछें - पूछें कि इसका कारण क्या है - और समय गुज़रते जवाब भी मिल जाएगा। लौ की प्रकृति भी बहुत ही खास होती है। “यह चमकीली, पत्ती के आकार की (oblong) और नीचे की बजाय ऊपर ज़्यादा चमकीली होती है।” इसमें एक के पीछे एक कई आकार होते हैं पर वे एक के बाद एक इतनी तेज़ी-से आते-जाते हैं कि हमें एक ही आकार दिखाई देता है। ऐसा हर अवलोकन और सवाल हमें कई सारी नई खोजों की दिशा में ले जाता है।
दूसरा व्याख्यान इस बारे में है कि लौ के किसी एक खास हिस्से में क्या होता है, क्यों होता है। मोमबत्ती के जलने में इन हिस्सों की क्या भूमिका है? पूरी-की-पूरी मोमबत्ती आखिर चली कहाँ जाती है? इसमें यह भी अनावृत किया गया है कि किसी मोमबत्ती को जलाए रखने में हवा की क्या भूमिका होती है।
तीसरे व्याख्यान में हमारा परिचय पानी के चमत्कारों से कराया गया है। मेरे लिए तो यह कोई रहस्योद्घाटन ही था कि आग से जलाने पर सभी ज्वलनशील पदार्थ पानी उत्पन्न करते हैं। और पानी जो दहन से निर्मित होता है, वैसा ही पानी है जो नदियों, समुद्रों आदि में होता है।
सवाल-जवाब
चौथे व्याख्यान के शु डिग्री में हमें श्रोताओं के सवाल-जवाब की कुछ झलकियाँ मिलती हैं, “मैं देख रहा हूँ अभी तक आप मोमबत्ती से थके नहीं हो। नहीं तो पक्के तौर पर आपको इस विषय में इतना मज़ा नहीं आता जितना अब आ रहा है।” इस और अगले व्याख्यान में हमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के बारे में और जानने को मिलता है। किसे पता था (कम-से-कम मुझे तो नहीं!) कि बेजान ओर बेकार-सी लगने वाली नाइट्रोजन की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका है। ऑक्सीजन के साथ उपस्थित होने की वजह से यह श्वसन के लिए ऑक्सीजन को सुरक्षित बनाती है। ज़रा सोचिए अगर नाइट्रोजन न हो तो कैसा होता।
ये सभी आश्चर्यजनक तथ्य धीरे-धीरे व सरल प्रदर्शन के ज़रिए स्पष्ट रूप से बताए गए हैं। और व्याख्यान एक तरह से उसी की अभिव्यक्ति मात्र है जो हम देख और समझ रहे हैं। “तार्किकता का क्रम बेहद ज़रूरी है। सचेत रहो और एक पल के लिए भी इसे छूटने मत दो,” वे अपने श्रोताओं से कहते हैं। तत्वों से हमारा परिचय काफी नाटकीय अन्दाज़ में करवाया गया है। ध्वनि और प्रकाश का मंज़र होता है और हम सीखते हैं कि जब इनमें से कुछ तत्वों का संयोग होता है तो क्या-क्या जादू होते हैं। सिर्फ यही नहीं, हम इन्हें दोबारा अलग-अलग करना भी सीखते हैं! हमें लगता है कि अब हम हवा, पानी, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, कार्बन डाई-ऑक्साइड, सल्फर और कई सारे जादुई किरदारों को इतनी अच्छी तरह पहचानने लगते हैं जैसे कि वे हमारे पड़ोसी हों। या शायद उनसे भी बेहतर!
आखिरी व्याख्यान में (परेशान मत होना, मैं अन्त नहीं बता रही हूँ!), फैराडे यह बताते हुए बात खत्म करते हैं कि किस तरह हम सब के अन्दर दहन की प्रक्रिया हो रही है। वे श्वसन और दहन में समानता बताते हैं। पहले के व्याख्यानों में जितनी भी रासायनिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं की बात हुई है वे सब हमारे शरीर के अन्दर भी होती हैं। इससे पाठक को यह एहसास होता है कि हम इस ब्रह्माण्ड की ही एक इकाई हैं।
किताब की भाषा ज़रूर पुराने ढंग की और निराली लग सकती है लेकिन ये खोजें और तथ्य आज भी उतने ही सही और रोचक हैं, शाश्वत हैं। किताब के आखिर में एक छोटा-सा हिस्सा विवरणात्मक टिप्पणियों का है। अगर कभी आप यह भूल जाएँ कि कौन-सा तत्व कौन-सा/क्या है तो यह हिस्सा काफी मददगार साबित हो सकता है। प्रयोगों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के सरल-से चित्र भी दिए गए हैं। इन्हें देखकर शायद आपको हँसी आ जाए पर मैं यकीनन कह सकती हूँ कि ये आपको ऐसे सरल तरीके खुद इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करेंगेे। यह किताब और ऐसी कई अन्य उत्कृष्ट किताबें आप विज्ञान प्रसार की वेबसाइट से मँगा सकते हैं। मैं तो यह कहूँगी कि हर स्कूल के पुस्तकालय के लिए इस किताब की न सिर्फ दो-चार प्रतियाँ मँगवाएँ बल्कि यह सुनिश्चित करें कि शिक्षक व बच्चे इस किताब को ज़रूर पढ़ें व इसका इस्तेमाल करें।
और आखिर में, अपने युवा श्रोताओं के लिए कहे गए माइकल फैराडे के शब्द हृदयस्पर्शी हैं।
“मैं आप सबसे बस यही कह सकता हूँ... एक इच्छा प्रकट कर सकता हूँ कि आप...ऐसे बनिए कि एक मोमबत्ती से आपकी तुलना हो सके; आप उसकीतरह दूसरों के लिए रोशनी की तरह चमकें।”
“मैं कोई कवि नहीं हूँ लेकिन अगर आप खुद सोचें, जैसे कि मैंने किया, तो आपके मन में तथ्य एक कविता का आकार लेंगे ।”
— माइकल फैराडे
ऊषा मुकुन्दा: पिछले तीस सालों से बच्चों और किताबों के साथ खूब लगन के साथ काम कर रही हैं। और इसी दौरान उन्होंने कई सारी अद्भुत किताबों और लेखकों को खोजा है जिससे उन्हें अपने विकास में मदद मिली है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: कविता तिवारी: ‘चकमक’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं। शौकिया अनुवादक। लखनऊ में निवास।