शोभा सिन्हा                                                                                                                                                    [Hindi PDF, 491kB]

डिफरेंट टेल्स आठ किताबों की एक शृंखला है जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं की कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उन जनसमूहों के जीवन-अनुभवों का वर्णन करती हैं जो आम तौर पर भारतीय बाल साहित्य से नदारद रहते हैं। यह असाधारण प्रयास भारतीय बाल साहित्य में कई ऐसे क्षेत्रों को छूता है जिन पर तुरन्त ही ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है। इनमें से कुछ किताबों को चित्र कथाएँ कहा जा सकता है क्योंकि इनके चित्र उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि गद्य रूप में किया गया वर्णन। जबकि इस संग्रह की अन्य किताबें, जैसे द सैकक्लॉथमैन सचित्र किताबें तो हैं पर उनमें गद्य ज़्यादा महत्वपूर्ण है, हालाँकि, इनमें भी चित्रों की मदद से कथावस्तु का अर्थ और गहराई से समझ में आता है। ये कहानियाँ दो अन्य भाषाओं, मलयालम व तेलुगु, में भी प्रकाशित हुई हैं, तथा कुछ किताबें इन भाषाओं से अँग्रेज़ी में अनुदित की गई हैं।

भारत बहुत अधिक विविधताओं से भरा देश है। हमारे यहाँ संस्कृति, भाषा, धर्म, जाति और वर्ग की विविधता है। पर इस विविधता के नीचे है, असमान शक्ति समीकरणों का इतिहास और इसके साथ है अत्याचार, शोषण और अलगाव का यथार्थ, और ऐसे यथार्थ का सामना करने व जीवित रहने के लिए ज़रूरी युक्तियाँ। पर दुर्भाग्यवश, इस विविधता को बच्चों के साहित्य में बिरले ही अभिव्यक्ति मिल पाती है। यह कहा जा सकता है कि या तो बाल साहित्य के जगत में यह माना जाता है कि दुनिया में समरूपता है या फिर मुख्यधारा के जीवन-अनुभवों को छोड़कर बाकी स्थितियों को बिलकुल अनदेखा कर दिया जाता है। यह स्थिति ठीक नहीं है।

समुदायों की बात
विभिन्न संस्कृतियों के बच्चे, जिन्हें किताबों में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, ऐसे सारे साहित्य को अपने अनुभवों से बहुत अलग पाते हैं और उन्हें यह लगता है कि इन कहानियों की उनके जीवन में कोई प्रासंगिकता नहीं है। प्रभावशाली तबके से आने वाले बच्चों को भी इस स्थिति से नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि वे बहुत सीमित जानकारी और अल्प संवेदनशीलता वाली पृथक दुनिया में रहते हैं। इस प्रकार, यह बेहद ज़रूरी है कि ये किताबें तमाम लोगों के भाँति-भाँति के अनुभवों को जगह दें। डिफरेंट टेल्स इस ज़रूरत को प्रभावशाली ढंग से पूरा करती है। सन्दर्भों, चरित्रों, और पृष्ठभूमियों की एक ऐसी विस्तृत श्रेणी का यहाँ वर्णन किया गया है जिससे बाल साहित्य अब तक अछूता था।

ऐसे चरित्रों में एक ऐसा बच्चा भी शामिल है जो हाल ही में धर्मान्तरण के द्वारा ईसाई बना है, और जो अपने दो नामों, बालचन्द्रन और फ्रीटस, के कारण अपनी पहचान को तलाशने के लिए संघर्षरत है (द टू नेम्ड बॉय)। ब्रेवहार्ट बडेय्या कहानी है मडिग वाडा के बारे में, जहाँ लोग चमड़े का काम करते हैं। हैड करी एक मुस्लिम परिवार द्वारा अपने पसन्दीदा व्यंजन को तैयार करने का वर्णन है। माई फ्रैंड द ऐम्परर (स्पिरिट्स फ्रॉम हिस्ट्री) का आदिल व टैक्स्टबुक (अनटोल्ड स्कूल स्टोरीज़) का सहीर, मुस्लिम बच्चे हैं जो ऐसे स्कूली पाठ्यक्रम के अन्तर्गत पढ़ाई कर रहे हैं जो उनमें अलगाव की भावना पैदा करता है। जब शिक्षिका बाबर और राणा सांगा की लड़ाई की कहानी सुनाती है तो आदिल को लगता है कि वे उसे ही देख रही हैं जिससे वह विचलित महसूस करता है और स्कूल से दूर रहना चाहता है। सहीर कहता है कि “इस पाठ में कहीं भी कोई मुस्लिम नाम नहीं है।”
इन कहानियों में ऐसे अन्य बाल चरित्र भी हैं जो उनकी दुनिया तथा स्कूल के बीच मौजूद फर्क के कारण संघर्ष कर रहे हैं, जैसे वे गरीब बच्चे जो खुद को स्कूल में अस्वीकृत महसूस करते हैं जब शिक्षक उन्हें गन्दा कहकर कक्षा से बाहर निकाल देते हैं (द टू नेम्ड बॉय एंड अदर स्टोरीज़ की स्मैल्स एंड स्टैन्चेस कहानी)। तताकी विन्स अगेन एक बँधुआ मज़दूर के परिवार के उन्हें प्राप्त हुई ज़मीन को बनाए रखने के संघर्ष का चित्रण करती है। इस अर्थ में यह दावा उचित है कि डिफरेंट टेल्स उन समुदायों की बात करती है जिन्हें बाल साहित्य में अन्यथा बिरले ही जगह मिलती है।

संस्कृतियों के दर्शन
पर बहुसांस्कृतिक साहित्य में प्रतिनिधित्व का अर्थ कहानियों के अन्दर विविध पृष्ठभूमियों, स्थानों और चरित्रों को जगह दे देना भर नहीं होता। जब हम प्रतिनिधित्व की बात करते हैं तो यह बेहद ज़रूरी होता है कि वह सिर्फ प्रतीकात्मक या पारम्परिक ढंग का न हो बल्कि विश्वसनीय और सांस्कृतिक तौर पर सुस्पष्ट व सुनिश्चित हो। अक्सर, बच्चों के साहित्य में वर्णन बहुत फीके और बेरंग होते हैं जिनसे किसी समुदाय या उसके बच्चों की सही समझ नहीं मिलती। किसी विशेष संस्कृति पर केन्द्रित चित्रण करना आवश्यक है क्योंकि तभी कहानियाँ प्रतिनिधित्व का उद्देश्य पूरा करेंगी। बिशप (1993) के अनुसार,

“किसी विशिष्ट संस्कृति पर केन्द्रित, बच्चों की किताब किसी खास सांस्कृतिक समूह के सदस्य के रूप में बड़े होने के बच्चों के अनुभवों को प्रकाश में लाती है। ऐसी किताब अक्सर चरित्रों, पृष्ठभूमि, और कथावस्तु को, किसी हद तक रोज़मर्रा के जीवन की ऐसी विशिष्टताओं का विस्तार से ब्यौरा देते हुए, प्रस्तुत करती है जो समूह के सदस्यों के लिए पहचानने में आसान होंगी। ऐसी विशिष्टताओं में भाषा शैली और स्वरूप, धार्मिक मान्यताएँ और प्रथाएँ... और किसी सांस्कृतिक समूह के सदस्यों के बीच प्रचलित असंख्य अन्य दस्तूरों, रवैयों, और मूल्यों को इसमें शामिल किया जा सकता है...। इस तरह की खास बारीकियों को शामिल करने से यह सम्भावना बढ़ जाती है कि पाठकों को कहानियों के चरित्र सच्चे लगेंगे, और उन चरित्रों की समस्याएँ, चिन्ताएँ तथा समाधान भी उसी तरह की परिस्थितियों में फँसे किन्हीं दूसरे लोगों को विश्वसनीय लगेंगे। (पृ. 44)”

जानकारियों का पिटारा
डिफरेंट टेल्स इन कसौटियों पर भी खरी उतरती है। इसकी कहानियाँ खास जानकारियों से भरी पड़ी हैं। उनमें विशेष समुदायों का, समुदायों की जीविका (क्योंकि जाति इससे जुड़ी होती है) का, उनकी प्रथाओं, भोजन, चिन्ताओं, उनकी सामाजिक-आर्थिक दशा, और अन्य समुदायों के साथ उनके सम्बन्धों का सुस्पष्ट हवाला दिया गया है। उदाहरण के लिए, ब्रेवहार्ट बडेय्या में उल्लेखित परिवार चमड़े का काम करते हैं। बडेय्या खिलौने बहुत अच्छे बनाता है, और जब उसका पिता किसी मृत मवेशी का निपटारा करने वाला होता है तो बडेय्या उस मवेशी का सिर निकाल लेता है, खोपड़ी को सुखा लेता है और उसके कान के छिद्रों में से एक रस्सी पिरोकर उसकी एक ठेलागाड़ी बना लेता है। फिर वह और उसके दोस्त उसके साथ उर्वरकों को ठेले पर लादने और फिर उन्हें खेत में ले जाकर वहाँ खाली कर देने का खेल खेलते हैं।

यहाँ पर दो किताबों का विस्तार से ज़िक्र करना होगा -- हैड करी और मदर। हैड करी चित्रों से भरी बहुत आनन्दप्रद किताब है जिसमें गोश्त का सालन बनाने की पूरी तैयारी का विस्तार से वर्णन किया गया है - मेमने के वध से लेकर, माँस को भूनने, उसकी सफाई करने, पकाने और परोसने तक। यह वर्णन शानदार है क्योंकि इसमें व्यंजन बनाने के लिए लगने वाली तैयारी का तो वर्णन है ही पर साथ ही पूरे परिवार द्वारा किसी खास व्यंजन की जिस जोश व उत्साह से प्रतीक्षा की जाती है, उसका भी वर्णन किया गया है। किरदारों के बारे में छोटी-छोटी रोचक जानकारियाँ दी गई हैं -- पिता, जिसे ज़्यादातर मांसाहारी भोजन, खासतौर पर गोश्त का सालन, पसन्द है, माँ, जो अपनी बहन को मदद के लिए बुलाती है तथा सामाजिक तौर-तरीकों को ध्यान में रखते हुए उसे भोजन का कुछ हिस्सा देने का प्रस्ताव झूठे मन से सामने रखती है, क्योंकि वास्तव में उसका व्यंजन बाँटने का कोई इरादा नहीं होता। इसके अतिरिक्त पिता के पैतृक ज़िले के बारे में दी गई खास जानकारियों, और गोंगुरा के साथ खाना बनाने इत्यादि जैसी बातों से कहानी और समृद्ध व मनोरंजक हो जाती है। चित्र बड़े दिलचस्प हैं और ग्रामीण जीवन की कुछ और ऐसी खासियतों की जानकारी देते हैं जो गद्य में मौजूद नहीं है।

मदर एक सशक्त व समर्थ माँ को दी गई स्नेहमयी श्रद्धांजलि है, और साथ ही पृष्ठभूमि में शोषण से भरे सामाजिक सन्दर्भ पर टिप्पणी भी है। माँ एक निपुण महिला है जो कि अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था से भलीभाँति परिचित है पर वह इस स्थिति से निपटना जानती है। उसका ज्ञान मुख्यधारा के साहित्य में वर्णित ज्ञान के स्वरूप से भिन्न है। उसे ऊनी धागा बनाना आता है, ज़मीन को साफ करने और रोपने का काम आता है, और वह भेड़ों की देखरेख भी करती है। पर वह अपनी आस-पास की दुनिया के धूर्ततापूर्ण व शोषणयुक्त तरीकों से भी अवगत है और वह उनसे गरिमा व दृढ़ता के साथ निपटती है। इस किताब में आपको उस माँ की दुनिया की तमाम खास जानकारियाँ मिलेंगी जैसे उसका कामकाज, बोनालू पर्व तथा वहाँ की सामाजिक व्यवस्था।

सामाजिक वयवस्था का चित्रण
सभी आठ किताबों में किए गए निरूपण अपने विवरणों में खास संस्कृतियों पर केन्द्रित हैं, पर इन किताबों का एक अन्य आयाम भी है। जैसा कि पहले भी बताया गया है विभिन्न समूहों के बीच के भेदों में एक भेद असमान शक्ति समीकरण भी है। शोषण, अलगाव और अपमान भी अधिकारहीन समूहों के केन्द्रीय अनुभव हैं। प्रभुत्वसम्पन्न समूहों के अधिकार-हीन समूहों के साथ सम्बन्ध ही, या तो प्रत्यक्ष रूप में या फिर पृष्ठभूमि में इन किताबों की कथावस्तु हैं। उदाहरण के लिए, तताकी विन्स अगेन में ज़मींदार वाहवाही पाने के चक्कर में वीरैय्या को ज़मीन देता है। उसे नहीं लगता कि वीरैय्या स्वतंत्र रूप से खेती कर पाएगा। पर भू-सीमा अधिनियम लागू होने के बाद जब वही ज़मीन औप-चारिक रूप से वीरैय्या को दे दी जाती है, तो ज़मींदार लोग उसे वापस हथियाने के लिए तमाम चालें चलते हैं जिसमें बलात्कार का प्रयास तक शामिल है।

इसी किताब की एक अन्य कहानी ब्रेवहार्ट बडेय्या में, कँटीली झाड़ियों से भरे हुए खेत में काम करते वक्त बडेय्या की माँ का पैर बुरी तरह से ज़ख्मी हो जाता है क्योंकि रामरेड्डी डोरा के अचानक आ जाने से उसे अपनी चप्पलें उतारनी पड़ती हैं। यदि वह ऐसा न करती तो “वे लोग इस बात को ध्यान में रखते व किसी और वक्त इसका गुस्सा निकालते।” उसे इस बात की बड़ी तकलीफ होती है कि उसकी जाति के लोग सब लोगों के लिए चप्पलें बनाते हैं पर उसे ही नंगे पाँव रहना पड़ता है। फ्रैंड इ़न स्कूल (अनटोल्ड स्कूल स्टोरीज़) कहानी है दो लड़कियों की जो स्कूल में गहरी मित्र हैं पर उनकी अलग-अलग जातिगत पृष्ठभूमियों के कारण उनके परिवारों के लिए उनकी यह दोस्ती एक समस्या है। अनटोल्ड स्कूल स्टोरीज़, द टू नेम्ड बॉय एंड अदर स्टोरीज़, स्पिरिट्स फ्रॉम हिस्ट्री, इन सारी किताबों की कहानियाँ अधिकार-हीन समूहों के उन बच्चों की कहानियाँ हैं जिन्हें स्कूलों में अपनी जाति, पृष्ठभूमि, गरीबी, या धर्म के कारण अपमान, ज़िल्लत और अलगाव झेलना पड़ता है। ये कहानियाँ इन समस्याओं को बच्चों की दृष्टि से पेश करती हैं कि किस तरह से वे अपने आस-पास के सामाजिक यथार्थ से सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करते हैं।

साहित्यिक स्तर
किताबों द्वारा किसी खास संस्कृति पर केन्द्रित, प्रामाणिक निरूपण करना महत्वपूर्ण है, खासतौर पर वे किताबें जिनका ताल्लुक उन समुदायों से होता है जो मुख्यधारा से अलग हैं। ऐसा होने पर भी इन किताबों को साहित्यिक गुणों से छूट नहीं मिल जाती। इस सम्बन्ध में की गई एक शोध से पता चलता है कि इस तरह के साहित्य के प्रति बच्चों की प्रतिक्रिया का सम्बन्ध सिर्फ संस्कृति भर से एकआयामी ढंग से जुड़ा नहीं होता। उनकी रुचि में गद्य की विभिन्न विशेषताओं व लक्षण भी घुले होते हैं। संस्कृति की समझ को साहित्य की जटिल बहुपक्षीय प्रकृति के माध्यम से बच्चों तक पहुँचाया जाता है (सिन्हा 1995)। रोचक शैली, सशक्त कथानक, दिलचस्प कथावस्तुएँ, और बारीकियों को ध्यान में रखकर किए जाने वाले चरित्र-चित्रण, जैसी आम पूर्वापेक्षाएँ तो सभी किताबों के लिए होती हैं। ये किताबें पढ़ने में सामाजिक अध्ययन की उपदेशात्मक मंशा वाली पाठ्यपुस्तकों जैसी नहीं होना चाहिए (बिशप, 1993)। यदि गुणवत्ता अच्छी नहीं है और कहानियों को रोचक ढंग से नहीं कहा गया है तो कोई भी उन्हें पढ़ना नहीं चाहेगा।

ये कहानियाँ निस्सन्देह किसी संस्कृति विशेष पर केन्द्रित तत्वों की चर्चा करती हैं पर साथ ही वे अन्य मानवीय चिन्ताओं जैसे समूह का अंग बनना, पारिवारिक सम्बन्ध, मृत्यु के यथार्थ का सामना करना, मित्रता, और जीवित रहने के लिए ज़रूरी युक्तियों को भी अपने में गूँथे हुए हैं। इन कहानियों का असली सबल पक्ष है जटिल चरित्र चित्रण। किरदार दिलचस्प व रोचक हैं। इन कहानियों के बच्चे ऊब उत्पन्न करने वाले सदाचारी चरित्र न होकर यथार्थपूर्ण हैं।

उदाहरण के लिए, थ्री फोर्थ, हाफ प्राइस, बज्जी बज्जी (अनटोल्ड स्कूल स्टोरीज़) नामक कहानी में नायक एक लड़का है जिसके पिता इतना पैसा नहीं कमाते कि वे उसके लिए नई किताबें या बढ़िया वाली लेपाक्षी कॉपियाँ खरीद के दे सकें। वह ईर्ष्या से अपने ज़्यादा धनी मित्रों को नई किताबें व कॉपियाँ खरीदते हुए देखता है, पर इस स्थिति से विचलित हुए बिना वह अपने ज़्यादा भाग्यशाली मित्रों से अपने लिए किताबें व कॉपियाँ हासिल करने की युक्ति निकालता है। वह अपनी सभी तरकीबों का उपयोग करते हुए उनसे मोलतोल करता है और उन्हें यह तक प्रलोभन देता है कि यदि वे उसे सस्ते दामों पर अपनी किताबें बेच देंगे तो उन्हें पुण्य मिलेगा।

माँ (मदर) में साहस व दृढ़ता के गुण हैं। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरुक है और अपने हक को पाने के लिए दृढ़ता से अड़ी रहती है। बालम्मा बलपूर्वक अपनी बात रखने वाली, कुछ लड़कों जैसी और हाज़िर-जवाब है (तताकी विंस अगेन)। काल्पनिक कहानी, माई फ्रैंड द ऐम्परर (स्पिरिट्स फ्रॉम हिस्ट्री) में शहंशाह बाबर आदिल से मिलता है जिसे अपने इतिहास के पाठ में बड़ी परेशानी आ रही है। आदिल को शहंशाह बाबर काफी खुशमिजाज़ और समझदार व्यक्ति मालूम पड़ता है जिसके साथ वह इतिहास के पाठों को पढ़ने पर आने वाली दिक्कतों को बाँटता है।

हालाँकि चरित्र चित्रण की गहराई और विषयवस्तु की पेचीदगी के सन्दर्भ में जो किताब श्रेष्ठतम है वह है द सैकक्लॉथमैन। यह एक दिलचस्प, और भारतीय बाल साहित्य के हिसाब से बहुत असामान्य कहानी है, जो एक ऐसे परिवार का वर्णन करती है जिसे अपनी बड़ी बेटी की मृत्यु झेलनी पड़ती है। अनुराधा अपनी बड़ी बहन को खो देने का त्रास झेल रही है और घर के बड़े अपने-अपने दुखों का सामना कर रहे हैं - एक शराबी पिता और एक अवसादग्रस्त माँ। अनुराधा की मित्रता सदा टाट के बने वस्त्र पहनने वाले एक ऐसे व्यक्ति (सैकक्लॉथमैन) से हो जाती है जो कि मानसिक रूप से अस्वस्थ है। वह उसके दर्द को समझता है और उनमें गहरा रिश्ता बन जाता है। लेकिन स्थिति तब बिगड़ जाती है जब कुछ सदाशयी परन्तु टाँग अड़ाने वाले लोग इलाज कराने के वास्ते उस व्यक्ति को ज़बरदस्ती वहाँ से हटाने लगते हैं। यह कहानी बहुत संवेदन-शीलता के साथ कही गई है और बच्चों को इस तरह की चीज़ें ज़रूर पढ़ना चाहिए।

मूल्य और शिल्प
डिफरेंट टेल्स का रोचक पक्ष यह है कि इस किताब में मूल्यवान माने गए गुण अनुपालन या आज्ञापालन करने भर के नहीं हैं। यदि कहीं अनुपालन दर्शाया भी है तो वह जीवित रहने के लिए है। इस किताब में जिन गुणों का महत्व माना गया है वे हैं हाज़िरजवाबी, दृढ़ संकल्प, प्रेज़ेंस ऑफ माइंड, और कल्पनाशीलता ताकि किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटा जा सके।

कहानियों की शिल्पविधाएँ अलग-अलग हैं और उन्हें रोचक शैलियों में लिखा गया है। केवल, कुछ ही जगहें ऐसी हैं जहाँ विन्यास कमज़ोर है। द टू नेम्ड बॉय में परिस्थिति को संवेदनशीलता के साथ वर्णित किया गया है, और बच्चे का चरित्र विश्वसनीय है। परन्तु कहानी का अन्त बहुत कमज़ोर है, जिससे पहचान का मुद्दा महत्वहीन बन जाता है। लेकिन तब भी इस तरह की विषयवस्तु को सामने लाने के लिए इस किताब की प्रशंसा करनी होगी। हाँ, पूरी कहानी पर और सतर्कता के साथ ध्यान देने से उसकी उत्कृष्टता और बढ़ाई जा सकती थी।
कुल मिलाकर, ये किताबें बहुत रोचक व पठनीय हैं। साहित्यिक गुणवत्ता अनुवाद तक में (उदाहरण के लिए, मदर) बहुत बढ़िया है।

चित्रण
गुणवत्ता के विवेचन में चित्र और गद्य की गुणवत्ता, दोनों शामिल हैं। इन किताबों के चित्रों की गुणवत्ता अद्वितीय है। पूरी कहानी में उनका योगदान बहुत अधिक है और कथा के प्रति उपयुक्त भावनात्मक प्रतिक्रिया जगाने में उनका योगदान बहुत अहम है। कुछ किताबें चित्रकथाओं की श्रेणी में आती हैं और कुछ सचित्र किताबों की श्रेणी में। पर दोनों ही मामलों में चित्रों की गुणवत्ता ऐसी है कि वे किताबों को पढ़ने के पूरे अनुभव को बहुत बेहतर बना देते हैं।
इन आठ किताबों में व्यापक कलात्मक तकनीकों का उपयोग किया गया है। अलग-अलग रंगों, आकारों, और माध्यमों के उपयोग द्वारा इन किताबों के चित्र, कहानियों के भाव को सफलतापूर्वक उभार पाते हैं।

उदाहरण के लिए, मून इन द पॉट में उपयोग किया गया हल्का नीला, चन्द्रमा तथा आकाश के बारे में प्रचलित लोककथाओं की स्वप्नसदृश गुणवत्ता को और बढ़ा देता है। परन्तु जब कहानी में एक आँख वाली कहानीकार बूढ़ी काकी के जीवन का वर्णन होता है जिसने युवावस्था में अपने गाली-गलौज करने वाले पति के हाथों बहुत कुछ सहा था और जिसकी उसके अपने बच्चों ने भी उपेक्षा की थी, तो रंग भूरे हो जाते हैं जो कि कहानी के यथार्थ से भरे वर्तमान की ओर मुड़ जाने का संकेत देता है।

चित्रकारों ने कहानियों के मुख्य किरदारों की चिन्ताओं पर ज़ोर देने के लिए उसके हिसाब से पन्नों की पृष्ठभूमि चुनी हैं। उदाहरण के लिए, थ्री फोर्थ, हाफ प्राइस, बज्जी बज्जी (अनटोल्ड स्कूल स्टोरीज़) में पूरी कहानी के दौरान लाइन वाली कॉपियों की पृष्ठभूमि है, और कहानी शु डिग्री होती है ब्लैकबोर्ड की तस्वीर से जिस पर कुछ कुछ लिखा होता है। मुख्य किरदार नए शैक्षणिक वर्ष के शुरू में अपने लिए किताबें व कॉपियाँ प्राप्त करने के लिए चिन्तामग्न हैं। द सैकक्लॉथमैन में भी पूरी कहानी में टाट के वस्त्र का पार्श्व रखा गया है।

छवियों के आकारों का प्रभावशाली ढंग से उपयोग किया गया है। तताकी विन्स अगेन में जब बारह वर्षीय बालम्मा खेतों की ओर खींचे जाते समय असहाय महसूस करती है, तो तस्वीर में वह ज़मींदार की तुलना में बहुत छोटी दिखाई देती है। पर जब वह ज़मींदार को जंघा में लात मारती है तब उसे तस्वीर में ज़मींदार की तुलना में बड़ा दिखाया गया है। तो इस तरह, किए गए काम पर और भावनाओं पर ज़ोर दिया जाता है और उनके महत्व को और उभार के दिखाया जाता है। स्मैल्स एंड स्टैंचेज़ (द टू नेम्ड बॉय एंड अदर स्टोरीज़), में उस स्थान पर शिक्षिका की फूलों से युक्त व बहुत लम्बे पल्लू वाली साड़ी की एक अतिरंजित तस्वीर दी गई है जब बच्चे, जिन्हें खुशबूदार साबुनों से नहाने को नहीं मिलता, शिक्षिका के पास से गुज़रने पर चमेली की खुशबू लेते हैं। उसी कहानी में, जब अन्नी को अपमानित करके लंच के लिए लगी लाइन के आखिर में भेज दिया जाता है, तो उस वक्त उसे तस्वीर में छोटा तथा दूसरे बच्चों से अलग रंग में रंगकर दिखाया गया है।

मदर कहानी के चित्र कल्पनाशील और दिलचस्प हैं तथा उनसे कहानी को समझने में अक्सर मदद मिलती है, उदाहरण के लिए जब यह कहा जाता है कि किस तरह वह ‘जंगल के चौकीदारों पर पैनी नज़र रखती है’ और किस तरह उसे यह ‘पता था कि भेड़ियों ने कितनी बकरियाँ खाई हैं’ तो वर्णन दरअसल एक आदमी के बारे में था जिसे एक बकरी चुराते भेड़िये के रूप में दिखाया गया है। इससे गद्य को समझने में आसानी होती है। त्यौहार का वर्णन, खासतौर पर जुलूस का वर्णन बहुत दिलचस्प है। लेकिन इस किताब के वर्णन इसका मज़बूत पक्ष होने के साथ ही साथ इसका कमज़ोर पक्ष भी हैं क्योंकि कुछ जगहों पर जानकारियों के वर्णन में लापरवाही बरती गई है। उदाहरण के लिए, कहानी में बच्चे को स्कूल में धोती में खड़ा हुआ बताया गया है पर चित्र में उसे पतलून पहने दिखाया गया है; एक पन्ने पर माँ की दुनिया, उसके जीवन का वर्णन है, और बगल वाले पन्ने पर एक हालिया हिन्दी फिल्म का चित्र बना हुआ है! जब माँ बच्चे को स्कूल ले जा रही होती है तो पृष्ठभूमि में बहुत-से आईएएस कोचिंग संस्थानों की तस्वीरें हैं। ये तस्वीरें बच्चों को किस तरह का सन्देश देंगी? यह ध्यान में रखना चाहिए कि तस्वीरों का उपयोग बच्चों की दृष्टि से किया जाना चाहिए और वे उन्हें समझ में आनी चाहिए। पर इन कुछ मौकों को छोड़कर चित्रों से किताब की समझ बेहतर ही होती है।

डिफरेंट टेल्स के चित्रों की एक और विशेषता है कि उनके द्वारा किरदारों और स्थानों का जो निरूपण हुआ है वह न तो बेरंग है और न ही पारम्परिक या घिसा-पिटा है। बल्कि, उनसे वर्णन में गहराई आ जाती है।

अन्त में, यह कहा जा सकता है कि चित्रों की असाधारण गुणवत्ता इन किताबों को पढ़ने का एक अच्छा कारण है। किताबों को पढ़ने के उपरान्त कई चित्र स्मृतियों में ठहर जाते हैं। कुल मिलाकर, बहुलतावादी संस्कृति और अन्य रोचक कथावस्तुओं, चित्रों, और साथ ही माध्यमिक कक्षाओं के बच्चों को शामिल करने के सन्दर्भ में ये किताबें नई राहों पर चलती हैं। कई वर्जित विषय जैसे मृत्यु, शोषण और यहाँ तक कि बलात्कार जैसी घटनाओं को भी डिफरेंट टेल्स में जगह मिली है। और समय आ गया है कि इन सब बातों से भी बच्चों को अवगत कराया जाए। अक्सर, यह प्रवृत्ति होती है कि बच्चों को इन बातों से दूर रखा जाए, और उनके लिए तैयार की जाने वाली किताबों में ज़्यादा आशावादी विषय-वस्तुओं को ही रखा जाए। लेकिन, यह बात ध्यान में रखना होगी कि वैसे भी अपनी ज़िन्दगियों में बच्चे शोषण, बलात्कार, मृत्यु जैसी घटनाओं को घटते देखते ही हैं और कई बार उन्हें इनका दंश भी झेलना पड़ता है, अत: इन वास्तविकताओं को साहित्य से अलग रखने का कोई अर्थ नहीं है।

हमारे जैसे बहुलतावादी समाज में ज़रूरी है कि विभिन्न जनसमूहों को जाना जाए व उनसे सम्बन्ध जोड़ा जाए। लोककथाओं को अनुदित करने के सन्दर्भ में कुछ प्रयास किए गए थे। लेकिन, समकालीन कहानियाँ होना भी ज़रूरी हैं, और ये किताबें इस कमी को पूरा करने की दिशा में एक अच्छी शुरूआत हैं। डिफरेंट टेल्स अगर अन्य भारतीय भाषाओं में अनुदित की जाएँ तो बहुत अच्छा होगा।


शोभा सिन्हा: दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में रीडर हैं। इनकी रुचि के शोध-विषय हैं: बढ़ती साक्षरता, साहित्य के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया, कक्षा के सन्दर्भ में साक्षरता का अर्थ और निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों का साक्षरता-सम्बन्धी विकास। This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.
अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी: पत्रकारिता का अध्ययन। स्वतंत्र लेखन और द्विभाषिक अनुवाद करते हैं। होशंगाबाद में निवास।
यह समीक्षा ‘कन्टेपररी एजुकेशन डायलॉग’ पत्रिका, खण्ड 7, अंक 2, जुलाई 2010 से साभार।