डी.एन. मिश्रराज                                                                                                                                               [Hindi PDF, 322kB]

सदियों से मानव कुत्ता, घोड़ा, गाय, बकरी, हाथी आदि विभिन्न प्राणियों को पालतू बनाकर उनका उपयोग अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए करता आया है। बदले में वह उन्हें संरक्षण एवं आहार देता रहा है, ताकि वे उपयोगी बने रहें। परन्तु प्रकृति में, बिना पालतू बने, मानव और दूसरे प्राणियों के बीच वास्तविक एवं स्वाभाविक आपसी सहयोग अनजाना ही है। परन्तु इसका एक अपवाद पूर्वी अफ्रीका में केन्या के घने जंगलों में देखने को मिला है। वहाँ पाए जाने वाले पक्षी ‘हनी गाइड’ यानी शहद खोज में सहायक (वैज्ञानिक नाम इन्डीकेटर वैरीगेटस) और ‘बोरन’ जनजाति के लोगों की जीवन शैली में सदियों से सह-अस्तित्व के एक अनोखे प्रयोग के फलस्वरूप ही आपसी सहयोग का यह तरीका विकसित हुआ है।

पूर्वी अफ्रीका में मधुमक्खियाँ अप्रत्याशित रूप से बहुतायत में पाई जाती हैं। अफ्रीका की हज़ारों वर्ष पुरानी शैल गुफाओं की चित्रकारी में आदि- मानवों द्वारा मधुमक्खियों के छत्ते तोड़कर शहद खाने का चित्रण प्रचुर मात्रा में मिलता है। इससे स्पष्ट है कि यहाँ की जनजातियाँ सदियों से शहद खाने की शौकीन रही हैं। सदियों से यहीं रहने वाला पक्षी हनी गाइड भी दूसरे कीट-पतंगों के अलावा मधुमक्खियों के कैटर पिलर (इल्लियाँ) और साथ-साथ उनके छत्तों का मोम खाने का शौकीन रहा है।

अफ्रीका में ये मधुमक्खियाँ अपना छत्ता अति संकरे प्रवेश द्वार वाले, पुराने पेड़ों के कोटरों या चट्टानों की दरारों की भीतरी खोहों में छुपाकर ऐसे बनाती हैं कि मैना से थोड़ा ही छोटा यह पक्षी न इनमें प्रवेश कर सकता है, न अपनी छोटी-सी चोंच से इनके द्वारों को बड़ा कर सकता है, और न ही ये छत्ते बोरन लोगों को दिखाई देते हैं। परन्तु हनी गाइड पक्षी और बोरन लोग एक-दूसरे के अनोखे सहयोग से इन छत्तों से अपना मनपसन्द आहार प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।

पक्षी जगत में अपवाद स्वरूप हनी गाइड की सूँघने की शक्ति बड़ी तेज़ होती है, विशेषकर मोम की गन्ध के लिए। इसी के सहारे यह पक्षी अपने इलाके में मधुमक्खियों के छत्तों को ढूँढ़ लेता है। नया छत्ता खोज निकालने पर यह एक विशेष प्रकार की आवाज़ करता है, मानो संकेत दे रहा हो, “मैंने एक नया छत्ता खोज लिया है।” बोरन लोग इस संकेत को खूब समझते हैं।
यदि उन्हें शहद की तलाश हो तो वे छोटे घोंघे के छेददार शंख से या मुँह में उँगली डालकर एक विशेष तरह की सीटी बजाते हैं जिसे सुनकर पक्षी हनी गाइड उनके पास आ जाता है। फिर यह पक्षी एक दूसरी तरह की आवाज़ निकालता है, मानो संकेत दे रह हो, “मेरे पीछे-पीछे चले आओ” और एक निश्चित दिशा में उड़ता जाता है। बोरन उसके पीछे-पीछे चलते जाते हैं और एक अलग प्रकार की सीटी बजाते हैं, मानो कह रहे हों, “हम तुम्हारी बात समझ रहे हैं।”

अन्तत: हनी गाइड ठीक उसी स्थान पर कोटर या कन्दरा के द्वार पर जाकर रुकता है, जहाँ भीतर छत्ता होता है। इस पक्षी के पंख और चमड़ी ऐसी होती है कि मधुमक्खियाँ उसमें डंक नहीं चुभा पातीं। बोरन वहाँ पहुँचकर धुआँ देती एक जलती लकड़ी कोटर के भीतर डाल देते हैं। इससे अधिकांश मधुमक्खियाँ उड़ जाती हैं या बेहोश हो जाती हैं। फिर बोरन अपने बड़े और मज़बूत चाकू से कोटर या चट्टान का द्वार काफी चौड़ा कर छत्ता बाहर निकाल लेते हैं। अब इसके शहद वाले भाग को काटकर वे शहद प्राप्त करते हैं और मधुमक्खी की इल्लियों व मोम को हनी गाइड के लिए छोड़ देते हैं। मोम को हजम कर लेने वाला शायद यह एकमात्र प्राणी है। सदियों से चलते सहयोग के परिष्कृत स्वरूप से हनी गाइड और बोरन लोग एक-दूसरे के ध्वनि संकेतों को समझने लगे हैं।

हनी गाइड और रैटन बिज्जू
कहीं-कहीं जहाँ घने जंगल में दूर-दूर तक मानव बस्तियाँ नहीं हैं, वहाँ हनी गाइड पक्षी लगातार एक अलग तरह की आवाज़ निकालकर और छत्ते की दिशा में बार-बार उड़कर ‘रैटन’ नामक एक बिज्जू (वैज्ञानिक नाम मैंलीवोरा) को आकर्षित करता है। ये बिज्जू अपने मज़बूत पंजों से कोटर या कन्दरा को खोदकर छत्ता बाहर निकाल लेता है। इससे पहले वह अपने शरीर से तेज़ गन्ध वाला द्रव निकालता है, जिससे मधुमक्खियाँ बेहोश हो जाती हैं। बिज्जू कोई जवाबी संकेत नहीं देता और शहद तथा इल्लियों को खा जाता है। हनी गाइड के लिए कुछ कैटर पिलर और मोम तो बच ही जाते हैं।

हनी गाइड पक्षी और मानव का आहार प्राप्ति में आपसी सहयोग, प्राणी जगत का एक अद्भुत करिश्मा है।


डी.एन. मिश्रराज: होल्कर साइंस कॉलेज में वनस्पतिशास्त्र के वरिष्ठ प्राध्यापक रह चुके हैं। वे मध्य प्रदेश के अनेक स्नातकोत्तर महाविद्यालयों के प्राचार्य भी रह चुके हैं। पक्षी दर्शन में गहरी रुचि है और आपके अधिकतर लेख प्रकृति से सम्बन्धित रहते हैं। इन्दौर में निवास।