रस्किन बॉण्ड [Hindi PDF, 143 kB]
यह लड़का कोई काम का नहीं है, कपूर जी ने अपनी पत्नी से कहा, लेकिन ज़ोर से ताकि उनका बेटा भी सुन सके। “मुझे नहीं पता वह बड़ा होकर क्या करेगा। वह अपनी पढ़ाई में बिलकुल ध्यान नहीं देता है।” सूरज के पिता यात्रा से वापस आकर पहली दफा अपने पुत्र की स्कूल की रिपोर्ट देख रहे थे। “क्रिकेट में अच्छा,” रिपोर्ट में था, “पढ़ाई में बुरा, कक्षा में ध्यान नहीं देता।”
सूरज की माँ ने, जो एक शान्त स्वभाव औरत थी, कुछ नहीं कहा। सूरज खिड़की पर खड़ा था, और कुछ भी कहना नहीं चाहता था। वह बाहर होती बारिश को देख रहा था। उसकी घनी भौहों वाली लाल आँखें, गुस्से से भरी थीं अैर वह विद्रोही हो रहा था। उसके पिता ही बोलते जा रहे थे। “हम क्यों इसकी पढ़ाई-लिखाई पर खर्च करें, जब यह पढ़ाई में कुछ करके नहीं दिखाता? बस घर आता है, तीन लड़कों के जितना खाता है, पैसे माँगता है और अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता है।”
कपूर जी रुके, सूरज के जवाब देने के लिए ताकि वे उसे और डाँट सकें; मगर सूरज को पता था कि चुप रहने से उसके पिता को ज़्यादा परेशानी होगी, और ऐसे समय में सूरज को अपने पिता को परेशान देखने में मज़ा आता था।
“मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूँगा,” कपूर जी ने कहा। “अगर तुम मेहनत नहीं करोगे तो तुम घर छोड़ सकते हो!” और यह कह कर वे कमरे के बाहर चले गए।
सूरज थोड़ी देर और खिड़की पर खड़ा रहा। फिर वह आगे के दरवाज़े तक गया और अपने पीछे दरवाज़े को ज़ोर से बन्द करते हुए बारिश में निकल गया।
सूरज बारिश में खड़ा होकर अपने घर को देख रहा था। “मैं वापस कभी नहीं आऊँगा,” वह गुस्से से बोला। “मैं उनके बिना जी सकता हँू। अगर वे मुझे वापस लाना चाहते हैं तो उन्हें खुद आकर मुझे वापस आने को कहना होगा!”
वह अपने हाथ जेबों में डाले चलने लगा। जब उसने अपना हाथ जेब में डाला तो उसको एक पाँच रुपए का नोट मिला। इस दुनिया में यही सूरज का सारा धन था। उसने उसे कसके पकड़ लिया। उसने सोचा था कि वह इन पैसों को सिनेमा हॉल में खर्च करेगा, मगर अब यह और ज़रूरी चीज़ों में काम आएँगे। अभी उसको पता नहीं था ये ज़रूरी चीज़ें क्या थीं, क्योंकि वह गुस्से में था। वह चलता रहा जब तक कि मैदान तक नहीं पहुँच गया।
जब वह मैदान में पहुँचा तब सूर्य ने सूरज के साहस को बढ़ा दिया। फिर उसको अपना दोस्त रंजी याद आया, और उसनेे सोचा कि वह रंजी के घर में रहेगा, जब तक उसको कोई काम न मिल जाए। उसे पता था कि अगर कोई काम नहीं मिला तो वह बहुत देर तक घर से दूर नहीं रह सकता है। उसने सोचा, तेरह साल के लड़के को क्या काम मिलेगा।
सूरज को यह पसन्द नहीं था कि वह एक दुकान में चाय बेचे या अखबार बाँटे। बारिश रुक गई थी और सूरज मैदान से भागकर रंजी के घर तक गया। पर जब वो रंजी के घर पहुँचा तो उसका दिल डूबने लगा।
रंजी का घर बन्द था। उसके दरवाज़े पर ताला पड़ा था। सूरज ने घर के तीन चक्कर लगाए। उसने सोचा कि शायद वे किसी पार्टी में गए होंगे और खाने तक वापस आ जाएँगे। उसका साहस लौट आया और वह बाज़ार की तरफ चला गया।
बाज़ार सूरज की कमज़ोरी था। पहले वह चाय-पकौड़े की दुकान में गया। फिर वह यो-यो का खेल देखकर अपने को रोक नहीं पाया क्योंकि यो-यो बहुत रंगीला था।
“दो रुपए का,” दुकानदार ने कहा, “मगर रोज़ आने-जाने वाले को मैं एक रुपए में दूँगा।”
“यह ज़रूर पुराना होगा,” सूरज ने यह कह कर यो-यो ले लिया। वह उसे लेकर बाज़ार में घूमता रहा।
बाकी बचे चार रुपयों को छूते हुए उसने सोचा कि वह प्यासा है। उसको और कुछ नहीं चाहिए था, सिर्फ मिल्क-शेक को मेज़ पर बैठकर पीना चाहता था। वह एक आँख से घड़ी को देख रहा था। एक बज रहा था। रंजी और उसके परिवार को अब तक आ जाना चाहिए, यह सोचकर सूरज अपनी कुर्सी से उठा और शेक के पैसे दे दिए। अब उसके पास दो रुपए बचे थे।
रंजी का घर अभी तक बन्द था। यह सम्भावना सूरज ने पहले नहीं सोची थी। तभी उसे एक बूढ़ा माली मिला।
“सब लोग कहाँ हैं?” सूरज ने माली से पूछा।
“वे एक हफ्ते के लिए दिल्ली गए हैं,” माली ने कहा, “क्यों कोई परेशानी तो नहीं है?”
सूरज ने उस बूढ़े आदमी को पहले कभी नहीं देखा था, पर उसने संकोच नहीं किया। “मैंने घर छोड़ दिया है। मैं अब रंजी के साथ रहना चाहता हूँ। मेरे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है,” उसने कहा।
उस बूढ़े आदमी ने एक मिनट के लिए सोचा। उसका चेहरा अखरोट जैसा झुर्रीदार था, उसके हाथ और पैर सख्त और सूखे थे, पर उसकी आँखें निर्मल व यौवन-पूर्ण थीं। वह उस सड़क पर अलग-अलग घरों में माली का काम करता था।
“तुम वापस घर क्यों नहीं चले जाते?” उसने सलाह दी।
“अभी बहुत जल्दी है,” सूरज ने कहा। “अभी ज़्यादा देर नहीं हुई है। उन्हें पता चलना चाहिए कि मैं भाग आया हूँ, फिर वे दुखी होंगे!” माली मुस्कुराया, “तुम्हें अच्छी तरह से योजना बनानी चाहिए थी। क्या तुम कुछ पैसे बचा के लाए हो?”
“आज सुबह मेरे पास पाँच रुपए थे। अब सिर्फ दो रुपए बचे हैं।” उसने अपने यो-यो की तरफ देखा। “क्या तुम इसे खरीदना चाहते हो?”
“मैं नहीं जानता इसे कैसे चलाते हैं,” माली ने कहा। “सबसे अच्छा होगा कि तुम घर जाओ, रंजी के वापस आने तक इन्तज़ार करो, फिर तुम भाग लेना।”
सूरज को वह सलाह पसंद आई और उसने तय किया कि इसमें कुछ दम है। पर वह निर्णय नहीं ले पा रहा था। उसने सोचा कि वह अपने माता-पिता को दुविधा में रखे। वह थोड़ी देर बाद मैदान तक लौटा और घास पर बैठ गया। जैसे ही वह नीचे बैठा उसे भूख लग आई। उसे इतनी भूख पहले कभी नहीं लगी थी। उसके सामने तन्दूरी मुर्गा और गोल-मोल मिठाइयाँ घूम रहीं थीं। वह सोच रहा था कि खिलौने वाला वह यो-यो वापस लेगा या नहीं? अब घर जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं था। उसे पता था कि उसकी माँ चिन्ता कर रही होगी। शायद उसके पिता बरामदे में चहल कदमी कर रहे होंगे और हर दो मिनट बाद अपनी घड़ी देख रहे होंगे। यह उनके लिए एक सबक होगा। वह अपने घर वापस जाएगा जैसे एहसान कर रहा हो। वह उम्मीद कर रहा था कि उसके लिए थोड़ा-सा भोजन रखा होगा। सूरज बैठक में घुसा और उसने यो-यो को सोफे पर फेंक दिया।
कपूर जी दफ्तर वापस जाने से पहले अपनी मनपसन्द कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे। जब सूरज कमरे में आया तो कपूर जी उठ गए और बोले, “तुम देर से आए हो।” और फिर वापस अपना अखबार पढ़ने लगे। सूरज ने अपनी माँ को, और फिर रसोई घर में रखे खाने को देखा। माँ ने पूछा, “क्या तुझे भूख लगी है?” सूरज ने कहा, “नहीं।” पर वह जल्दी-जल्दी खाना खाकर वापस बैठक में लौटा। जब वह कमरे के अन्दर आया तो आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि सूरज के पिता यो-यो के साथ खेल रहे थे। कपूर जी ने पूछा, “इस मूर्ख चीज़ से कैसे खेलते हैं?”
सूरज ने कोई जवाब नहीं दिया। वह ऐसे ही अपने पिता के अनाड़ीपन को घूरता रहा। अन्त में वह हँसने लगा। सूरज बोला, “यह बहुत आसान है। मैं दिखाता हूँ।”
सूरज ने पिता से यो-यो ले लिया और उससे खेलकर दिखाया।
जब श्रीमती कपूर कमरे में आईं तो वे आश्चर्यचकित नहीं हुईं क्योंकि कपूर जी हमेशा ऐसा ही करते थे। वे यो-यो से खेल रहे थे। “आदमी कभी बड़े नहीं होते हैं,” श्रीमती कपूर ने सोचा।
वे भूल ही गए थे कि उन्हें दफ्तर वापस जाना था! और सूरज भी भागने वाली बात भूल चुका था। दोनों सुबह का झगड़ा भी भूल गए थे, जैसे यह झगड़ा बहुत पहले हुआ हो।
रस्किन बाण्ड: बच्चों के प्रिय लेखक हैं। उन्होंने बच्चों के लिए तीस से भी ज़्यादा पुस्तकें लिखी हैं। लम्बे समय से मसूरी, उत्तराखण्ड में रह रहे हैं।
चित्रांकन: प्रीति निगम: शौकिया चित्रकार, भोपाल में निवास।