कुमकुम रॉय
इतिहास की खोज
हज़ारों साल पहले जो लोग थे, वे कब के मर चुके। उनकी बनी अधिकतर चीज़ें भी अब नहीं रहीं। तब आज हम कैसे जान सकते हैं कि वे लोग कैसे रहते थे, वे क्या करते थे, क्या सोचते थे? इतिहास जानने के इस पहलू के बारे में समझ बनाने के लिए एक अभ्यास।
पुराने सम के लोगों के कई तरह के अवशेष हमें बचे मिलते हैं - उनके बर्तन, इस्तेमाल में आने वाला सामान, शरीर की हड्डियां आदि। यही नहीं हज़ारों साल पहले जो चीज़ें लोगों ने लिखीं थीं उनमें से भी कुछ आज तक बच गई हैं। वे हमें पढ़ने को मिलती हैं। उनकी भाषा आज से अलग है। नहीं पढ़ सकता। जिन लोगों ने पुरानी भाषा और लिखाई को सीखा है वे ही पढ़ कर बताते हैं कि पुराने लोग क्या लिख गए हैं।
यह तो अच्छा हुआ कि उन लोगों ने कुछ लिखा जो हम आज पढ़ सकते हैं। नहीं तो हमें उनके बारे में कैसे पता चलता? पर इस में एक दिक्कत भी है। वे लोग जो लिख कर छोड़ गए, उस पर हम कितना भरोसा करें? उदाहरण के लिए राजा अशोक के बारे में हम उसके अभिलेखों को पढ़कर पता चलती हैं, क्या राजा अशोक के समय में बस सिर्फ वैसी ही बातें होती थीं? शायद ऐसी भी कई बातें होती हों जिनका अभिलेखों में ज़िक्र ही नहीं है? एक उदाहरण लेकर देखते हैं।
अपने-अपने बयान
मान लो तुम हर रोज़ रात को एक रिपोर्ट लिखते हो। उसमें तुम दर्ज़ करते हो कि तुमने दिन भर में क्या किया, दिन भर में क्या हुआ। तुम रोज़ यह रिपोर्ट लिखते हो। माने लो तुम्हारी मां भी ऐसी एक रिपोर्ट लिखत हैं, कि दिन भर उन्होंने क्या किया, दिन भर में क्या-क्या हुआ। और तुम्हारे भाई-बहन, पिताजी भी ऐसी रिपोर्ट लिखते हैं।
क्या तुम्हारी और तुम्हारी मां की दिन भर की रिपोर्ट में एक जैसी बातें होंगी?
अगर तुम वास्तव में घर में सब को ऐसी रिपोर्ट लिखने के लिए मनवा सको, तो मज़ेदार फर्क दिखाई देंगे।
तुम शायद देखोओ कि मां ने लिखा है - “ललिता को स्कूल भेजा।” शायद तुम्हारे बारे में इससे ज़्यादा और कुछ नहीं होगा। पर तुम्हारी रिपोर्ट में तुम्हारी कक्षा, खेल, दोस्तों के बारे में कई बातें लिखी होंगी। दूसरी तरफ अपनी मां के बारे में बस यही लिखा हो सकता हे - “मां ने आज खाने में भटे की सब्ज़ी बनाई जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं।” इससे यह नहीं पता चलेगा कि तुम्हारी मां ने दिन भर में क्या किया, उनका दिन कैसे बीता।
कोई तुम्हारी रपट पढ़े तो शायद यही जान सके कि तुम्हारी मां ने भटे की सब्ज़ी बनाई। बस। यह भी हो सकता है कि एक दिन तुम्हारी मां घर का सारा चूल्हा-चौका कर के थक गई हों और उस रात वे रिपोर्ट नहीं लिख पार्इं। उससे किसी को ऐसा लग सकता है कि उस दिन उन्होंने कुछ किया ही नहीं। जबकि उन्होंने इतना ज़्यादा काम किया था कि थकान के मारे रिपोर्ट ही नहीं लिख पार्इं।
क्या तुम्हें अब कोई दिक्कत समझ में आ रही है? तुम्हारे परिवार के बोर में मुझे जानना हो तो तुम्हारी रिपोर्ट पढ़कर मुझे कुछ बातें पता चलेंगी जो तुम्हारी मां की रिपोर्ट से पता नहीं चलीं। यह फर्क इसलिए आएगा क्योंकि रिपोर्ट अलग-अलग लोगों ने लिखी। एक तुमने, एक तुम्हारी मां ने।
ऐसी ही बात इतिहास के हर रुाोत के साथ होती है1 चारों वेद, उपनिषद, सुत्त-पिटक, विनय-पिटक, अशोक के अभिलेख जैसी सब लिखी हुई चीज़ों के साथ यह सीमा है। हमें हमेशा यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये चीज़ें किसने रचीं? जिसने भी उन्हें तैयार किया हो उसी के नज़रिए से लिखी गई बातें हमें मिलेंगी। उस समय के दूसरे लोगों की बातों में हमें पता नहीं चलेगा।
जैसे वेदों को ज़्यादातर ब्रााह्याणों व पुजारियों ने रचा था। पर आर्यों के समय में और भी तरह के लोग थे - राजा, राजन्य, पशु पालने वाले, रथकार, औरतें, बच्चे। ब्रााह्याणों व पुजारियों ने इन लोगों के बारे में जो कुछ कहा, वही हमें पता चलता है। और कुछ नहीं। अगर हम इन लोगों के बारे में वेदों से पता करने की कोशिश करेंगे तो हमें वैसी ही दिक्कत होगी जैसी तुम्हारी मां की दिनचर्या के बारे में तुम्हारे द्वारा लिखी गई रिपोर्ट से पता करने में होगी। तुम सोच सकते हो कि हमें तुम्हारी मां के बारे में कितना कम मालूम पड़ेगा। यह कमी तभी पूरी होगी जब तुम्हारी मां की लिखी हुई रिपोर्ट भी हम पढ़ सकें।
गिरनार (गुजरात) से मिला राजा अशोक का तीसरा शिलालेख। इसमें वह कहता है, ".......मैंने अपने पूरे राज्य में अपने युक्त, राजुक और प्रादेशिकों को आज्ञा दी है कि वे हर पांच साल में दौरा करेंगे, जिस दौरान वे अन्य कार्यो के अलावा लोगों में धम्म का संदेश पहुंचाएंगे........"
अब कौन बता सकता है कि अशोक के अधिकारी जब गांवों में पहुंचते थे तो उनके क्रियाकलाप वास्तव में क्या होते थे? अभिलेख तो सिर्फ राजा की आज्ञा का बयान है!
ढोल अपना-अपना
इस तरह लिखी हुई चीज़ों को पढ़कर कुछ पता करने में एक और दिक्कत आती है।
मान लो, मेरे घर में चोर घुस आए और पकड़े गए। जब मैं तुम्हें यह बताऊंगी तो अनजाने में ही सारी बात ऐसे बताऊंगी जिससे लगे कि अगर मैं चौकन्नी नहीं होती तो चोर पकड़े ही न जाते। पर इसमें मज़ेदार बात तो यह है कि अगर तुम मेरे भाई से इस बारे में पूछो तो वो चोरों के पकड़े जाने का किस्सा इस तरह से बयान करेगा जिससे सबको यही लगेगा कि उसी की बहादुरी और होशियारी ने हमें चोरों से बचाया था।
यह चक्कर पुराने समय में लिखी गई चीज़ों के साथ भी होता है। तुम जानते हो कि वेदों को, पिटको को धर्म के काम में लगे लोगों ने लिखा था - ब्रााह्याणों ने, बौद्ध-भिक्षुओं ने। इन लोगों के लिए धार्मिक काम और धर्म के विचार ही सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें थीं। तो उन्होंने इन्हीं चीज़ों के बारे में ज़्यादा लिखा। अब जब हम इनकी लिखी चीज़ें पढ़ते हें तो ऐसा लगता है मानो आर्य लोग अपना सारा समय देवताओं की पूजा करने में, यज्ञ करने व बलि चढ़ाने में ही बिता देते थे। पर अगर हम एक मिनिट रुक कर सोचें तो यह सवाल उठता है कि ‘अगर आर्य लोग हरदम पूजा कर रहे थे, तो उन्हें भोजन कहां से मिलता था? बलि व यज्ञ के लिए जो सामान चाहिए था वो सब उन्हें कहां से मिलता था? ..........’ (इस तरह के और कौन से सवाल हमारे मने में उठ सकते हैं)
क्या बचा रह पाया: हड्डियां व वकाए गए मिट्टी के बर्तन या उनके टुकड़े पुरातात्विक खुदाई में बड़ी संख्या में मिलते हैं, क्योंकि ये चीजें हज़ारों साल बची रहती हैं। चित्र में दिख रहा है एक कब्रा का दृश्य जो लगभग तीन हज़ार साल पुरानी है और महाराष्ट्र के एक गांव इनामगांव में मिली। जिसमें एक महिला और एक पुरूष का शव, एक साथ कर्त बर्तनों के साथ, दफनाया गया था।
क्या आप सोच सकते हैं कि इस कब्रा में और क्या-क्या चीज़ें रही होंगी जो अब नष्ट हो चुकी हैं?
अब वेदों में आर्यों के रोज़ाना के कामकाज, भोजन के इन्तज़ाम आदि बातों के बारे में साफ-साफ कुछ भी नहीं लिखा। पर जो कुछ लिखा है उसी से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये अन्य कामकाज कैसे होते होंगे। जैसे मैं जब तुम्हें चोर पकड़ने वाली कहानी सुना रही हूं और बीच में कहीं यह कह दूं - “इस बीच मेरी मां पड़ोसियों को बुला लाई।” तो तुम यह अन्दाज़ लगा सकते हो कि चोर पकड़ने में सिर्फ मेरा हाथ नहीं था - मेरी मां व पड़ोसियों ने भी मदद की! और शायद उन्हीं लोगों ने चोर पकड़ा - मैं तो सिर्फ शेखी बघार रही थी!
इस तरह अगर हमें पता हो कि कोई भी चीज़ किसने लिखी है, तो हम कई सवालों के जवाब उस चीज़ को ध्यान से पढ़कर ढूंढ सकते हैं।
जो अज्ञात है और रहेगा
क्या तुम सोच सकते हो कि आर्य जन के साधारण लोग अगर कुछ रचना करते, तो उसमें क्या कहते? हमें उनकी रचनाएं पढ़कर आर्यों के बारे में कौन-कौन-सी बातें पता चलतीं?
‘दस्यु’ लोगों द्वारा लिखा हुआ अगर कुछ मिलता तो उसमें क्या बातें होतीं?
अशोक के द्वारा खुदवाए गए अभिलेख हमें मिलते हैं। कलिंग के साधारण लोगों द्वारा लिखा कुछ मिलता तो किस तरह की बातें पता चलतीं? क्या वे लोग भी वही चीज़ें लिखते जो अशोक ने लिखवाई थीं?
पुरातत्व से . . . .
पुराने समय के बारे में हमें सिर्फ लिखी हुई चीज़ों से पता नहीं चलता।
उस समय के सामान में से कुछ चीज़ें हज़ारों साल बाद भी बची रहती हैं। उन्हें हम आज भी देख सकते हैं और उन के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकालने की कोशिश कर सकते हैं।
तुमने इतिहास के पाठों में ऐसे कौन-कौन से निशानों या अवशेषों के बारे में जाना है?
पुराने समय में लोगों ने जो सामान बनाया था, क्या वो सब वैसा का वैसा बच जाता है?
एक प्रयोग कर के देखो।
ज़मीन में चार छोटे गढ्ढे बनाओं, करीब 6 इंच गहरे। इनमें से एक में 50 पैसे का सिक्का दबाओ, दूसरे में लकड़ी का एक छोटा गुटका, तीसरे में कपड़े का टुकड़ा, चौथे में मिट्टी के घड़े का कोई टूटा हुआ छोटा-सा हिस्सा। गढ्ढों को मिट्टी से ढक दो। और हर गढ्ढे के चारों तरफ छोटे कंकड़ों का घेरा बना दो जिससे तुम्हें ध्यान रहे कि गढ्ढे कहां पर हैं। गढ्ढों पर हर रोज़ पानी डालों। ऐसा 14 दिन तक लगातार करो। 15वें दिन गढ्ढे खोद कर देखों कि उनमें क्या मिलता है।
तुम एक और काम भी कर सकते हो।
अपने घर के आसपास या जहां भी कचरे का ढेर हो, वहां देखों कि कया-क्या पड़ा हुआ है। उसमें से ऐसी चीज़ें छांटों जो 100 साल बाद भी बची रहेंगी। ऐसी बची हुई चीज़ों से भी हम बहुत कुछ पता कर सकते हैं। पर सिर्फ इन अवशेषों के सहारे उस ज़माने के बारे में सब बातें पता नहीं चलतीं।
शिकारी मनुष्य के जो औज़ार, हड्डियां व चित्र मिलते हैं उनके आधार पर हम इनमें से क्या यह पता लगा सकते हैं
- वे किन जानवरों का मांस खाते थे?
- वे क्या भाषा बोलते थे?
- वे एक दूसरे को नाम के बुलाते थे कि नहीं?
- वे कैसे दिखते थे?
- वे शिका कैसे करते थे?
आदिमानव के अवशेषों में हड्डियां व पत्थर के औज़ार प्रमुखता से पाए जाते हैं। अफ्रीका महाद्वीप में नैरोबी के पास एक स्थान पर मिले लाखों साल पुराने आदिमानव के जीवन के अवशेष - पत्थर के औज़ार और बबून की हड्डियां।
इसी तरह वेदों को पढ़कर हमें इनमें से क्या पता चल सकता है कि :
- आर्यों के घरों में कौन-से बर्तन हुआ करते थे?
- वे किस चीज़ पर सोते थे?
- वे एक जगह कितने दिन रहते थे?
- वे घर कैसे बनाते थे?
- वे किस चीज़ के लिए लड़ते थे?
- वे क्या खाते-पीते थे?
यानी, इतिहास की हर रुाोत-सामग्री की अपनी-अपनी उपयोगिता है और अपनी-अपनी सीमाएं भी। बीते समय के बारे में कोई भी जब कुछ बताए तो हमें दो बातों की जांच करने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए - कि बताने वाले किन रुाोतों को आधार बनाया है? और क्या उसने अपने रुाोत की सीमाओं को समझा है?
अब बताओं पूरी-पूरी सच्चाई का दावा करना आसान है क्या? और ‘पूरा-पूरा सच’ कुछ भी सकता है क्या?
कुमकुम रॉय - सत्यवती कॉलेज, दिल्ली।