लेते। दुनिया के सारे राम और किशनों का, आम की बेतुकी संख्याओं और पैसों के भाग के साथ अंतहीन लेन-देन अब काफी वीभत्स हो चला था।
पिताजी ने अपनी हार स्वीकार करते हुए ऐलान किया, “एक आम का दाम है पन्द्रह बटे दस आने। अब इसे हल करो।”
यहां स्वामीनाथन गणित के सबसे पेचीदा खाइयों की तरफ ले जाया जा रहा था - यानी भिन्न संख्याओं के आधार पर सोचने के लिए उसे मजबूर किया जा रहा था।
“पिताजी, लाओ मुझे स्लेट दो। मैं अभी पता लगाता हूं।” उसने दिमाग लगाया और पन्द्रह मिनट पश्चात यह पतालगाया: “एक आम का दाम है तीन बटा दो आने।” उसे किसी भी क्षण गलत साबित होने की पूरी संभावना लग रही थी। परन्तु पिताजी बोले, “बहुत अच्छे। अब इसे और आगे हल करो।” उसके बाद तो सब कुछ बहुत सहज हो गया। स्वामीनाथन ने एक और कष्टदायक आधा घंटा बिताने के बाद जवाब दिया: “किशन को छह आने देने पडेंगे।” यह कहते हीवो फूट-फूट के रोने लगा।
आर.के.नारायण की किताब 'स्वामी एण्ड हिज़ फ्रेड्स' के ग्यारहवें अध्याय के एक अंश का अनुवाद। मूल किताब अंग्रेज़ी में। अनुवारद - पल्लवी कुमार।
1. संपर्क बिन्दु: सूर्य ग्रहण की शुरूआत के समय और खत्म होने पर जहां सूर्य और चंन्द्रमा हमें एक-दूसरे को छूते हुए नज़र आते हैं, वे बिन्दु। ग्रहण की ठीक-ठीक अवधि का पता तो चलता ही है इनसे, पर उसके अलावा भी और बहुत-से अवलोकनों के लिए इनका महत्व होता है।
2. परछाई की पट्टियां: पूर्ण सूर्य ग्रहण के थोड़ा पहले और बाद में पृथ्वी की सतह पर परछाई और रोशनी की पट्टियां नज़र आती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल की विभिन्न परतों के घनत्व में अतंर की वजह से ये पट्टियां दिखाई देती हैं।
3. मोती जैसी रचनाएं: पूर्ण सूर्य ग्रहण से ठीक पहले या ग्रहण के दौरान या फिर ग्रहण के दौरान या फिर ग्रहण के खत्म होते वक्त अगर सूर्य की किरणें चंद्रमा की किन्हीं खाइयों-घाटियों में से निकलकर हम तक पहुंच रही हों तो वे मोतियों जैसी जमकती दिखाई देती हैं। कई बार ऐसा लगता है मानो चमकीले हार में मोती पिरो दिए गए हों। (बेली के अंग्रेज़ खगोल शास्त्री ने सबसे पहले इनकी तरफ सबका ध्यान आकर्षित किया था, इसलिए इन्हें बेली के मोती भी कहा जाता है।)
4. गोद चमकते छल्ले: पूर्ण ग्रहण के तुरंत बाद जैसे ही सूरज चांद के पीछे से बाहर झांकता है, तो चमकते छल्ले की तरह नज़र आता है।
5. तारे और ग्रह: सूर्य के ढक जाने के कारण दिन में भी बहुत सारे तारे और ग्रह दिखेंगे।
6. सौर लपटें: सूर्य में से लगातार लम्बी-लम्बी ज्वालाएं बाहर की तरफ निकलती रहती हैं। ये लपटें अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर दूर तक उठती हैं। कोरोना में से निकलती हुई ऐसी अग्नि ज्वालाएं पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय दिखाई देंगी।
7. कोरोना: लाखों किलोमीटर तक फैला सूर्य का वातावरण भी पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय ओजस्वी प्रभामंडल जैसा दिखाई देगा। सामान्य स्थितियों में सूर्य के तेज़ प्रकाश के कारण सूर्य का यह वातावरण नज़र नहीं आता।
खग्रास सूर्य ग्रहण देखने मौका ज़िंदगी में बहुत बार नहीं आता इसीलिए इस साल दीवाली के दिन होने वाले इस ग्रहण के दौरान इस अद्भुत नज़ारे को ध्यान से देखने की कोशिश ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग करेंगे ही। उत्साह तो होता ही है ऐसी घटना के बारे में, पर साथ ही सूर्य ग्रहण देखते समय कुछ सावधानियां बरतने की भी ज़रूरत होती है।
वैसे भी चमकते हुए सूर्य की तरफ देखना आंखों के लिए घातक होता है - ऐसे फिल्टर इस्तेमाल करते हुए देखना चाहिए जिनसे सूर्य से आने वाली पराबैंगनी, अवरक्त और दृश्य किरणों की तीव्रता एकदम कम हो जाए। अगर सूर्य की इन किरणों का केवल एक लाखवां हिस्सा ही पहुंचे तो हमारी आंखें सुरक्षित रहती हैं।
इसी तरह सूर्य ग्रहण देखते समय भी सावधानी बरतने की ज़रूरत है - खासतौर पर पूर्ण सूर्य ग्रहण के पहले और बाद में सूर्य की तरफ देखते वक्त। अच्छी तरह से एक्सपोज़ की हुई एक्स-रे या कैमरा फिल्म की दो-दो पट्टियां भी इस्तेमाल की जा सकती हैं।
परन्तु यह ज़रूरी नहीं कि ये आंखों को एकदम सुरक्षित रख पाएं क्योंकि एक्सपोज़ करते वक्त रह जाने वाले बहुत से बारीक छिद्रों में से भी पराबैंगनी किरणें गुज़र सकती हैं। इनसे कहीं ज़्यादा सुरक्षित होती है पॉलीमर की पारदर्शक पट्टी। जिसके दोनों तरफ एल्युमिनियम का एकदम पतला लेप किया हो या पतली परत चढ़ाई हो। सुरक्षित रूप से सूर्य ग्रहण देखने के लिए विशेष प्रकार की पट्टियां और चश्मे भी अक्सर तैयार किए जाते हैं।
सूर्यग्रहण के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:
खगोल मंडल
द्वारा श्री.नंदकुमार वालवे
ए-9 गुरूप्रसाद, स्वास्तिक पार्क, चेंबुर
मुंबई (महाराष्ट्र),
पिन:400071
स्त्रोत : फ़िज़िक्स एजुकेशन, जुलाई सितंबर, 1995