एक पिंजरा और

बालक के खड़े बाल:

फैराडे का एक प्रयोग

संदर्भ के अंक-3 में हमने फैराडे के एक प्रयोग पर आधारित प्रश्न पूछे थे। प्रश्नों को दोहराने से पहले उस प्रयोग के बारे में फिर संक्षेप में बात करके उसे याद कर लेना अच्छा होगा।

फैराडे ने धातु की तार का एक पिंजरा बनाया जो विद्युत का चालक था। इस पिंजरे के कोनों पर झंडियों के झुंड लटके थे। पिंजरे को एक कुचालक पर रखा गया था ताकि पिंजरे का ज़मीन से संपर्क न हो। एक मशीन द्वारा पिंजरे को आवेशित करके फैराडे विद्युत नापने वाले उपकरणों के साथ पिंजरे में घुस गया। पिंजरे के अंदर फैराडे के उपकरण विद्युत प्रभाव का अहसास नहीं कर पाए लेकिन पिंजरे के बाहरी किनारों पर लगी झंडियां बिल्कुल सीधी खड़ी थीं।

हमारा पहला प्रश्न यह था कि पिंजरे के अंदर फैराडे के उपकरणों पर कोई असर क्यों नहीं हुआ?

चित्र 1 और चित्र 2 में एक लड़के को ऐसा ही एक प्रयोग करते दिखाया गया है।

दूसरा प्रश्न था कि पिंजरे के अंदर बैठे हुए लड़के के सिर पर लगी झंडियां और उसके हाथ में पकड़े डंडे पर बंधी हुई झंडियां क्यों लटकी हुई हैं? जबकि पिंजरे के बाहर लगी झंडियां एकदम सीधी खड़ी हैं। (चित्र-1)

इस प्रकार के सवालों को हल करने के लिए लिए भौतिक-शास्त्र के गणितीय सूत्रों का सहारा तो लिया जा सकता है, जिससे आमतौर पर काफी संक्षेप में उत्तर खोजे जा सकते हैं। जवाब खोजने का एक और तरीका है - किसी विषय की बुनियादी अवधारणाओं की समझ और तर्क के आधार पर जवाब की तलाश करना।

हम यहां दूसरी विधि को अपनाकर फैराडे के इस प्रयोग के अवलोकन को समझने की कोशिश करेंगे। ऐसा करने के लिए हमें कई बार सवाल को सरलीकृत करने की ज़रूरत पड़ेगी।

पिंजरा धातु के तारों का बना हुआ है। धातु विद्युत की चालक होती है। धातुओं में एक खास बात यह होती है कि अगर उन्हें आवेशित किया जाए तो एक ही तरह के आवेशों में आपसी विद्युत विकर्षण के कारण आवेश सतह पर फैल जाता है। धातु के अंदर ज़रा भी नहीं रहता। धातु के अंदर धातु खुद का कुल आवेश शुन्य ही रहेगा क्योंकि वहां प्रोटॉनों की संख्या हमेशा इलेक्ट्रॉनों के बराबर होती है। चूंकि पिंजरे को एक विद्युत कुचालक पर रखा गया है तथा पिंजरा धरती के संपर्क में नहीं है इसलिए मशीन से जितना भी आवेश पिंजरे पर चढ़ाया जाएगा वह पिंजरे पर ही रहेगा कहीं और नहीं जा सकेगा।।


*दरअसल इस प्रयोग में हम यह मानकर चल रहे हैं कि पिंजरे पर धनात्मक आवेश डाला गया है। वैसे अगर पिंजरे पर ऋण आवेश चढ़ाया जाए तो भी प्रयोग के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


तार पर आवेश का वितरण - (अ). किसी भी धातु की तार को आवेशित करें तो आवेश तार की बाहरी सतह पर फैल जाता है, क्योंकि एक समान आवेश होने के कारण उनमें विकर्षण होता है जिसके कारण वे एक दूसरे को दूर धकेलने की कोशिश करते हैं। (ब). तार इतना पतला है कि हम ऐसा मान सकते हैं कि जैसे उसकी मोटाई है ही नहीं, केवल आवेशों की एक कतार हैं।

प्रयोग से जुड़े प्रश्नों के सरल विश्लेषण के लिए हमारा यह मानना भी सुविधाजनक होगा कि पिंजरा पतले और बारीक तारों से बना हुआ है जिनकी मोटाई नगण्य है। और चूंकि हम यह पहले से ही मान कर चल रहे हैं कि तारों का जाल काफी महीन है, इसलिए तारों के जाल का यह पिंजरा का ऐसे खोखले डिब्बे के समाने है जिसकी धातु की सतहों की गहराई नगण्य है। ऐसा  मानकर हम असलियत से थोड़ा हट रहे हैं; पर विद्युत बल की दृष्टि से यह फर्क, कम-से-कम फैराडे के प्रयोग के परिणामों के लिए, महत्वपूर्ण नहीं होगा।

पिंजरे के अंदर

हम मानकर चल रे हें कि पिंजरा धातु के एक बंद खोखले डिब्बे के समान है। डिब्बे की सतहों (जिनकी मोटाई नगण्य है) पर धनात्मक आवेश है। यदि सतह पर आवेश है तो आस-पास विद्युत क्षेत्र भी होगा। और जहां विद्युत क्षेत्र होगा वहां विद्युत रेखाएं भी होंगी। लेकिन विद्युत बल रेखाएं या तो अनंत तक जाती हैं या फिर धनात्मक आवेश से निकल कर ऋणात्मक आवेश पर आकर खत्म हो जाती हैं। इसके अलावा तीसरा विकल्प नहीं है। इस जानकारी के आधार पर आइए हम विचार करें कि क्या डिब्बे (यानी बंद पिंजरे) के अंदर विद्युत बल रेखाएं मौजूद हो सकती है? ज़ाहिर है नहीं। चित्र-5 पर अगर गौर करें तो पाएंगे कि डिब्बे के अंदर बल रेखाओं की मौजूदगी असंभव है क्योंकि:

यदि तारों के पिंजरे में तार बहुत पास-पास हों और तारों की मोटाई को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए तो कह सकते हैं कि पिंजरा आवेशों के खोखले डिब्बे के समान है।

डिब्बे की किन्ही भी चार विपरीत सतहों पर आवेश की स्थिति - अगर इन  आवेशों से बल रेखाएं निकलीं तो जाएगीं कहां, क्योंकि विद्युत बल रेखाएं किसी एक आवेश से शुरू होकर या तो विपरीत आवेश पर खत्म होती हैं या फिर अनंत तक जाती हैं। इस डिब्बे में ऋण आवेश तो है ही नहीं और इसका आयतन भी सीमित जिससे वे अनंत तक जो जा ही नहीं सकतीं। इसलिए डिब्बे के अंदर विद्युत कि अंदर विद्युत बल क्षेत्र मौजूद हो ही नहीं सकता।

  1. सतह पर मौजूद किसी धनात्मक आवेश के अंदर की ओर निकली बल रेखाएं तक नहीं जा सकतीं क्योंकि डिब्बे का आयतन तो आखिर सीमित ही है।
  2. और न ही अंदर की ओर निकली बल रेखाएं किसी ऋणात्मक आवेश पर खत्म हो सकती हैं क्योंकि सभी सतहों के सभी हिस्सों का आवेश धनात्मक ही है। और जहां विद्युत बल रेखाएं नहीं हैं वहां विद्युत क्षेत्र होने का सवाल ही नहीं उठता।

सारांश में कहें तो डिब्बे यानी पिंजरे के अंदर किसी भी बिन्दु पर उपस्थित किसी भी कण पर ज़रा-सा भी विद्युत बन नहीं लगेगा।

यह तथय कूलंब के नियम* के अनुसार भी खरा उतरता है।


कूलंब के नियम के अनुसार कोई भी दो आवेश एक-दूसरे पर विद्युत बल लगाते हैं। यह बल उन आवेशों की मात्रा और उनकी आपस की सीधी दूरी पर निर्भर करता है। गणितीय दृष्टि से इसे कुछ इस तरह लिख सकते हैं:

विद्युत बल का परिमाण क = (ख x ग/द2)

जहां ‘क’ एक स्थिरांक है। जिसका मूल्य सिर्फ उस माध्यम पर निर्भर करता है जिसमें आवेशित वस्तुएं उपस्थित है, जैसे हवा, पानी आदि।

‘ख’ पहजे आवेश की मात्रा, ‘ग’ दूसरे आवेश की मात्रा, ‘द’ दोनों आवेशों के बीच की दूरी इसके अलावा कूलंब नियम के तहत समान आवेशों के बीच प्रतिकर्षण और असमान आवेशों के बीच आकर्षण होता है।


सर्वप्रथम हम देखने की कोशिश करते हैं कि अगर हम पिंजरे के अंदर किसी बिन्दु पर कोई आवेशित कण रखें (चित्र-6) जिसका धनात्मक आवेश ‘क’ इकाई हो तो उस पर आवेशित सतहों द्वारा लगने वाला कुल विद्युत बल कितना होगा। चूंकि ‘क’ कण का और पिंजरे की सभी सतहों का आवेश धनात्मक है इसलिए चारों ओर से उस कण पर विकर्षण बल लगेगा। जैसे उदाहरण के लिए सतह-1 का ‘अ1’ हिस्सा ‘क’ आवेश को एक निश्चित मात्रा के विद्युत बल से अपने से दूर ढकेलेगा। लेकिन इतने ही बल से सतह-4 का ‘अ2’ हिस्सा ‘क’ आवेश को एकदम विपरीत दिशा में ढकेलने की कोशिश करेगा। कूलंब के नियम की मदद से यह सिद्ध किया जा सकता है कि दोनों बल बराबर किंतु विपरीत दिशा में होंगे। फलस्वरूप ‘क’ आवेश पर इन दोनों हिस्सों के द्वारा लगने वाला कुल बल शून्य होगा। इसी तरह हम चाहे किसी भी भाग को क्यों न लें, उसकी विपरीत सतह पर एक ऐसा हिस्सा ज़रूर मिलेगा जो अपने विद्युत बल के द्वारा पहले हिस्से के विद्युत बल को बिल्कुन निष्प्रभावी कर देगा। अब चूंकि ‘प’ बिन्दु कोई भी बिन्दु हो सकता हैं कि पिंजरे के अंदर के आवेशों पर कोई भी विद्युत बल नहीं लगेगा।

अब तो आप जान गए होंगे कि पिंजरे के अंदर फैराडे के उपकरणों पर उनके अत्यंत संवेदनशील होने के बावजूद कोई असर क्यों नहीं हुआ? जी हां, सिर्फ इसलिए क्योंकि आवेशित सतहें पिंजरे के अंदर मौजूद किसी भी आवेश और किसी भी विद्युत आवेश नापने वाले उपकरण पर ज़रा भी विद्युतीय प्रभाव नहीं डाल सकतीं।

इस आवेशित पिंजरे के अंदर कहीं भी, कोई बिन्दु क्यों न चुन लें - उसके दोनों तरफ समान आवेश के ऐसे क्षेत्र मिल ही जाते हैं जो इस बिन्दु पर रखे हुए आवेश को विपरीत दिशा में, बराबर बल से धकेलते हैं। इसलिए पिंजरे के अंदर रखे हुए किसी भी आवेश पर कुल मिलाकर किसी भी आवेश पर कुल मिलाकर किसी भी तरफ से कोई बल नहीं लगता।

पिंजरे के बाहर

यह तो थीं पिंजरे के अंदर की बात। अब चर्चा करते हैं पिंजरे के बाहर की स्थिति की। पिंजरे के बाहर मौजूद किसी भी आवेशित कण को पिंजरे की आवेशित सतहें या तो पिंजरे से दूर ढकेलेंगी(अगर कण का आवेश धनात्मक है) या फिर विद्युत आकर्षण के कारण पिंजरे की ओर आकर्षित करेंगी। हरेक सतह द्वारा लगाया गया विद्युत बल उस सतह के लगभग हर हिस्से में उस सतह से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए, पिंजरे के बाहर की ओर की दिशा में होगा।

इससे यह बात तो साफ है कि पिंजरे के नज़दीक और बाहर के किसी भी आवेशित कण पर पिंजरे की सतहों के आवेश द्वारा लगने वाला कुल विद्युत बल शून्य नहीं होगा।

विद्युत बल रेखाओं की दृष्टि से भी यह बात स्वाभाविक लगती है क्योंकि सतहों पर मौजूद आवेशों से निकली बल रेखाएं अनंत तक जाएंगी (अगर बीच में कोई ऋणात्मक आवेश न मिल जाए)। बल रेखाओं की उपस्थिति विद्युत क्षेत्र की मौजूदगी की द्योतक है और जहां विद्युत क्षेत्र हो वहां किसी आवेश पर विद्युत बल लगना लाज़िमी है।

अब बारी आती है पिंजरे के बाहर लगी झंडियों की। पिंजरे की आवेशित सतहों द्वारा सृजित विद्युत क्षेत्र इन झंडियों पर ऋणात्मक आवेश प्रेरित कर देता है। इसके कारण झंडियों में आपस में विद्युत विकर्षण होता है यानी झंडियां एक-दूसरे को अपने से दूर ढकेलने का प्रयास करती हैं और इसी कारण पिंजरे से बाहर लटकी झंडियां बिल्कुल सीधी खड़ी हो जाती हैं।

चूंकि बंद पिंजरे के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है इसलिए बंद पिंजरे में मौजूद झंडियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और झंडियां पहले की तरह लटकी रह जाती हैं। लेकिन जब लड़का पिंजरा खोलकर खड़ा हो जाता है और डंडे के साथ बंधी झंडियों को पिंजरे की जाली के बाहर निकाल देता है तो स्थिति काफी भिन्न हो जाती है। इन झंडियों के पिंजरे से बाहर होने के कारण इन पर भी विद्युत क्षेत्र द्वारा ऋणात्मक आवेश प्रेरित हो जाता है। इसके कारण इन झंडियों के बीच विद्युत विकर्षण पैदा हो जाता है और ये भी सीधी खड़ी हो जाती हैं। 

झोंपड़ी या ट्रक

चलिए यह किस्सा तो पूरा हुआ। पर चलते-चलते क्यों न इन सब बातों से जुड़ा हुआ एक छोआ-सा सवाल और हो जाए। क्या पता इस सवाल का जवाब किसी दिन आपकी जान बचा दे।

फर्ज़ कीजिए कि आप कहीं पैदल जा रहे हैं, और अचानक आकाश में बाद घिर आते हैं। कुछ समय बाद बिजली भी गरजने लगती है। अब आपकी छठी इंद्रीय आपको बताती है कि जल्दी ही आपके आस-पास कहीं बिजली गिरने वाली है। आप अब अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर देखते हैं तो दो ही चीज़ें अपने समीप पाते हैं - एक झोंपड़ी और एक खड़ा हुआ ट्रक? बताइए आप अपनी जान बचाने के लिए किस की शरण में जाना पसंद करेंगे - झोंपड़ी में या ट्रक की केबिन में।