प्रकृति काफी रंगीन है। अलग-अलग रंग असंख्य प्राणियों के................
ऐसे ही जब समय के साथ-साथ मनुष्य या अन्य किसी प्राणी का रंग थोड़ा बहुत बदलता है तो भी कोई खास हैरानी नहीं होती। लेकिन अपने आसपास कुछ ऐसे प्राणी भी हैं जिनके शरीर के रंगों में परिवर्तन काफी तेज़ी से होता है। प्रजनन काल में कबूतर या मेंढक के गले का रंग, कुछ खास तरह की मछलियों में रंग, कुछ क्षमता, गिरगिट का रंग बदलना.....कई ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जिन्हें देखकर सवाल उठता है कि इनकी चमड़ी का रंग अचानक कैसे बदल जाता है? कौन-सी रचनाएं इस जादूनुमा खेल को संभव बनाती हैं और क्यों होता है ऐसा।
मनुष्यों में काला या भूरा-सा रंग मेलानिन पैदा करने वाली कोशिकाओं के कारण होता है, यह तो हर कहीं पढ़ने को मिल जाता है परन्तु पशु-पक्षियों में पाए जाने वाले चटकीले-भड़कीड़े रंग का खास तरह की कोशिकाओं की वजह से दिखते हैं। इन कोशिकाओं में रंगीन पदार्थ (पिगमेंट) पाए जाते हैं। क्रोमेटोफोर भी कहते हैं इन कोशिकाओं को।
एकदम से रंग बदल पाना चमड़ी में पाई जाने वाली इन्हीं कोशिकाओं की खासियत है जिसके कारण गिरगिट जैसे जीव क्षणभर में रंग बदल लेते हैं। ये क्रोमेटोफोर कोशिकाएं मुख्यत: तीन तरह की होती हैं। हरेक में रंग बदलने का तरीका कुछ फर्क होता है। एक तरह के क्रोमेटोफोर में उनमें मौजूद रंगीन पदार्थ को कोशिका के बीच में इकठ्टा करके रखा जा सकता है। या फिर पूरी कोशिका में फैलाया जा सकता है। रंगीन पदार्थ को बीच में छोटे से बिंदु में केंद्रित कर देने पर जंतु का रंग हल्का-पीला-सा हो जाता है। परन्तु जब रंगीन पदार्थ पूरी कोशिका में फैला दिया जाए तो जंतु की चमड़ी गाढ़ी रंगीन नज़र आती है।
दूसरे तरह की क्रोमेटोफोर कोशिकाएं अमीबा की तरह अपना आकार बदल सकती हैं। जब रंग हल्का करना हो तो ये कोशिकाएं एकदम संकुचित हो जाती है ताकि अन्य कोशिकाओं का हल्सा-सा रंग ही दिखाई दे। जब गहरा रंग लाना हो तो ये चमड़ी पर चपटी होकर फैल जाती हैं।
तीसरी तरह के क्रोमेटोफोर दूसरी किस्म से काफी मिलते-जुलते हैं। इनका भी आकार बदल सकता है। परंतु वह तभी संभव होता है जब इनसे जुड़े हुए अन्य ऊतक (टिशू) इन्हें चारों तरफ से खींचते हैं।
यह ज़रूरी नहीं है कि किसी प्राणी में केवल एक ही तरह के क्रोमेटोफोर हों, कुछ में तो तीन-चार किस्म के क्रोमेटोफोर एक साथ पाए जाते हैं। ये सब कोशिकाएं एक ही रंग से भरी पड़ी हों यह भी ज़रूरी नहीं है। इन सब कोशिकाओं और रंगों के परिणामी प्रयास से ही जीवजंतुओं का पलक भर में रंग बदलना संभव हो पाता है।
इन रंगी कोशिकाओं का नियंत्रण तंत्रिका तंत्र से भी होता है और हार्मोन्स से भी। इसलिए सब जीव-जंतुओं में रंग परिवर्तन एक ही तरह के कारणों से नहीं होता - भय, उत्तेजना, तापमान, वातावरण के रंग आदि बहुत-सी बातों से प्रभावित होता है यह बदलाव।