बरट्रैण्ड आर.ब्रिानले
भावानुवाद:सुशील जोशी

विज्ञान गल्प

फुरसती वैज्ञानिक क्लब की एक ओर खोज

यूं तो फुरसती वैज्ञानिक क्लब के लोगों को कोई न कोई खुराफात सूझती ही रहती है। लेकिन इस बार बात कुछ अलग थी। क्लब के सदस्यों को मानसरोवर झील के किनारे के दलदल में एक अंडा मिला - वो था डाइनोसौर का अंडा। लेकिन इसे लेकर भी क्या-क्या गुल खिले वो भी कम मज़ेदार नहीं थे।

यदि फुरसती वैज्ञानिक क्लब के उपाध्यक्ष रामनिवास और बम्बई के उस वैज्ञानिक डॉ. पुराजाने की बात सच मान ली जाए तो हो सकता है कि इस वक्त पचमढ़ी की घाटियों में मानसरोवर झील के आसपास एक अजीबो-गरीब प्राणी अठखेलियां कर रहा हो। दरअसल उस दिन जब फुरसती वैज्ञानिक क्लब के सदस्य अपने कबाड़-खाना दफ्तर में मेज़ पर रखी उस फुटबॉलनुमा चीज़ को देख रहे थे तब उन्हें अन्दाज़ नहीं था कि आगे का घटनाक्रम इतना रोमांचक होने वाला है।

“रामनिवास तुमने इसे कितना पुराना बताया था?” गयादीन ने पूछा। “शायद 15 करोड़ बरस” रामनिवास ने गम्भीरता से कहा। जीतू को लग रहा था कि यह कोरी बकवास है। भला इतनी पुरानी भी कोई चीज़ होती है। परन्तु रामनिवास का कहना था कि यह चीज़ वास्तव में किसी डायनोसौर का अण्डा था। कल दिन भर उसने हमें मानसरोवर के किनारे दलदल में खुदाई पर लगाए रखा था। कई फुट गहरा गड्ढा खोदने के बाद यह चीज़ निकली थी, जो अब बल्ब की हल्की रोशनी में थोड़ी डरावनी-सी हमारे सामने थी। सवाल यह था कि इसका करें क्या? इसहाक का खयाल था कि इसकी प्रदर्शनी करना चाहिए और हर नागरिक से एक रूपया लेना चाहिए, जैसे कई बाई दो मुंह वाली गाय का लगता है।

परन्तु रामनिवास का कहना था कि ऐसा सोचना ठीक नहीं है। “यह एक वैज्ञानिक खोज है। इससे कोई पैसा नहीं बनाया जाता। हमें इसे वैज्ञानिकों के सामने रखना चाहिए।” थोड़ा सोचकर रामनिवास ने कहा कि उसके दिमाग में एक विचार आ रहा है। फुरसती वैज्ञानिक क्लब के सभी सदस्य जानते थे कि जब तो तुरन्त नींद पूरी कर लेनी चाहिए क्योंकि रामनिवास का विचार, मतलब भागदोड़ शुरू। सो अण्डे को अलमारी में बंद करके सब सोने चले गए। बस रामनिवास ही कबाड़े को घूरता बैठा रहा।

अगले दिन सुबह फिर महफिल जम गई। सब रामनिवास की ओर ताक रहे थे। उसने पहले तो यह बताया कि उसने बम्बई के एवं प्यूज़ियम को पत्र लिखा है। यह म्यूज़ियम दुनिया भर के प्राणियों, उनके प्राचीन अवशेषों आदि का संग्रह करता है। उसने पत्र में अण्डे का आकार, रंग, वज़न और सारी बातें लिख दी थीं। साथ में अण्डे के फोटो थे और अण्डे के आसपास मिली किरचें भी थीं। सबको एक डिब्बे में सजाकर म्यूज़ियम को भेजने का इन्तज़ाम कर दिया गया।

अब बारी आई अण्डे की। रामनिवास का कहना था कि आखिर में तो हमें यह अण्डा म्यूज़ियम को देना ही पड़ेगा। मगर क्यों न हम इसे सेने का इन्तज़ाम करें और बच्चा पैदा करवाएं।

"तो उसे खिलाओगे क्या?"  नवनीत ने अपनी चिंता बताई। खैर, धीरे-धीरे क्लब के सभी सदस्य राजी हो गए कि जब तक म्यूज़ियम वाले अण्डा लेने नहीं आते तब अण्डे से बच्चा निकालने की कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं है। तो अण्डे को अलमारी में से निकाला गया। जीतू ने कहा कि कल रात यह बहुत भारी लग रहा था। जिस पर रामनिवास ने उसे समझाया, “कल रात तुम थके हुए थे, इसलिए।”  अण्डे को फिर मेज़ पर विराजमान कर दिया गया। दिन की रोशनी में वह उतना डरावना भी नहीं लग रहा था।

अब सवाल आया कि क्या 15 करोड़ साल पुराना यह अण्डा सड़ नहीं गया होगा। वैसे किसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी पर इतना ज़रूर रामनिवास ने बताया कि एक-डेढ़ हज़ार साल पुराने अण्डों में से मगरमच्छ पैदा हो जाते हैं।

खैर उस अण्डे को वापस उसकी पुरानी जगह ले जाया गया और ठीक से जमा दिया गया। जगह की पहचान के लिए कुछ स्काऊटनुमा। निशान लगा दिए गए। सब लौट आए। किसी को पता नहीं था। डायनोसौर के 15 करोड़ बरस पुराने अण्डे में से बच्चा निकलने में कितने दिन लगेंगे। शायद बरसों लग जाएं।

परन्तु जीतू और इसहाक बरसों हाथ-पर-हाथ धरे इन्तज़ार करने वाले नहीं थे। अगले ही दिन सुबह वे उसी जगह जा पहुंचे। बड़ी मुश्किल जगह थी। झाड़-झंखाड़ में से अपने लगाए निशानों की मदद से जब वे उस जगह पहुंचे तो जीतू के दिन की धड़कन रुक गई। इसहाक को काटो तो खून नहीं। अण्डा वहां नहीं था। जब वापस होश में जाए तो भागे कबाड़खाने की तरफ। हांफते-हांफते दूर से ही चिल्लाए, “अण्डा गायब है।”

जीतू और इसहाक ने अचरज से रामनिवास की ओर देखा। जीतू पत्रकारनुमा अन्दाज़ में बोला, “अण्डा रहस्मय ढंग से गायब हो गया है।”

सबको लगा कि जल्दी वहां पहुंचना चाहिए। सिर्फ रामनिवास को कोई जल्दी नहीं थी। वह अपनी साइकिल की सफाई में मशगूल था। बड़ी मुश्किल से उसे ठेला गया।

फिर वही यात्रा शुरू हो गई। टेढ़े-मेढ़े दलदली रास्ते से, झाड़-झंखाड़ से जूझते हुए, फिसलते-संभलते हुए पूरा दल आखिर वहां पहुंच गया। एक बार फिर जीतू और इसहाक की सांस ऊपर-की-ऊपर, नीचे-की-नीचे रह गई। अण्डा वहां मौजूद था। सब सदस्य उन दोनों पर बरस पड़े कि ये सब जासूसी टी.वी. सीरियल देखने का नतीज़ा है कि उन्हें उल्टे-सीधे विचार आते रहते हैं।

परन्तु जीतू और इसहाक ने कहा कि जब वे आए थे तब अण्डा गायब था और अब किसी ने लाकर वापस रख दिया है। हो न हो यह बदलू की करतूत है। बदलू, जैसा कि सब जानते हैं, क्लब से निकाल दिया गया था और अब वह क्लब को नीचा दिखाने के लिए ऐसी करतूतें किया करता है।

इधर जीतू और इसहाक लगे थे अपनी सफाई देने में और उधर रामनिवास अण्डे को हाथ में लेकर लैंस से उसका अवलोकन कर रहा था। रामनिवास जब भी किसी चीज़ को ध्यान से देखता तो कहता अवलोकन कर रहा हूं। थोड़ी देर देखने के बाद ओंठ मुस्कराने लगे। गयादीन ने उसे मुस्कराते देखा, तो पूछ लिया, “क्यों, क्या डायनोसौर दिखने लगा है।” रामनिवास को भान नहीं था कि कोई उसे देख रहा है। वह थोड़ा सकपका गया। बोला, “नहीं कुछ नहीं, सब ठीक है।”  अण्डे को वापस जमा दिया गया।

रामनिवास के लिए ‘सब ठीक’ हो सकता था, मगर जीतू, इसहाक और नवनीत के हिसाब से सब ठीक नहीं था।

बल्कि उन्हें तो रामनिवास का व्यवहार थोड़ा अजीब लग रहा था। उन्होंने सच्चाई का पता लगाने का फैसला कर लिया। उन्हें पूरा शक था कि करतूत बदलू की ही है। अत: उन्होंने बदलू और उसकी विज्ञान सभा पर नज़र रखना तय किया।

बदलू की विज्ञान सभा उनके कबाड़खाने से ज़यादा दूर नहीं थी। बस सीधे जाकर बरगद के पेड़ के पास बाएं मुड़कर जो पुरानी-सी इमारत थी उसी में बदलू की विज्ञान सभा का दफ्तर था। सामने एक बंगला था जहां कोई नहीं रहता था। वहां बैठकर आसानी से विज्ञान सभा पर नज़र रखी जा सकती थी।

तो तीनों वहां जाकर जम गए। थोड़ी देर में क्या देखते हैं कि बदलू का साथी बेनीप्रसाद एक बाल्टी लेकर बाहर आया और बाल्टी में से कुछ चीज़ें कचरे के डिब्बे में डाल दीं। फिर बाल्टी के अन्दर चिपकी परत को भी खुरज-खुरज कर फेंक दिया। सफेद-सफेद कुछ था। जब बेनीप्रसाद अन्दर चला गया तो जीतू से न रहा गया। ह कूदते फांदते विज्ञान सभा के रोशनदान की तरफ वाले छज्जे पर जा पहुंचा। रोशनदान में से जो कुछ उसने देखा वह बताने को जीतू उतावला हो रहा था और बदलू और बेनी थे कि हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। खैर, थोड़ी देर  बाद वे बाहर से ताला लगाकर चले गए। अब जीतू वापस नवनीत और इसहाक के पास जा पहुंचा और पूरा नज़ारा बयान कर दिया। अब वे तीनों अन्दर पहुंचने की जुगाड़ करने लगे। किसी प्रकार से नवीनत को रोशन-दान में से अन्दर किया गया। उसने अन्दर जाकर खिड़की खोली और जीतू व इसहाकर भी अन्दर दाखिल हुए। जीतू ने अपनी टॉर्च चलाई और रोशनी मेज़ पर डाली। वह अण्डा शान से उस मेज़ पर रखा था। अब वे तीनों इधर-उधर नज़र दौड़ाने लगे। वहीं उन्हें प्लास्टर ऑफ पेरिस की दो नाव जैसी दिखीं। ध्यान से देखने पर पता चला कि वह एक सांचा था। यानी बदलू ने अण्डे का सांचा बनाया और उसे चुपके से झील के पास दलदल में रखे अण्डे से बदल दिया।

अब क्या किया जाए? हमारी तिकड़ी ने तय किया कि बदलू को झांसा देने का अच्छा मौका है। वह समझ रहा है कि अब असली अण्डा उसके पास है। हम यदि अण्डा बदल दें तो उसे पता भी नहीं चलेगा। तो मेज़ पर रखे उस अण्डे को एक मोटे झोले में डालकर जीतू और इसहाक चल दिए। उधर नवनीत को निगरानी के लिए छोड़ दिया।

दो घन्टे तो उन्हें दलदल तक पहुंचने में लगे। फिर अण्डा बदलकर यानी असली अण्डा दलदल में रखकर नकली अण्डा वापस लाने में दो घन्टे और लग गए। वापस पहुंचे देर रात। देखा तो नवनीत का कहीं पता न था। दोनों ने सोचा कि पहले अण्डे को वापस मेज़ पर रख दें तो फिर नवनीत को ढूंढा जाए। मन में यह डर भी था कि कहीं इस बीच बदलू को पता न चल गया हो। खैर डरते-डरते अन्दर घुसे। अण्डे को मेज़ पर रखा ही था कि अंधेरे में आवाज़ आई, “बहुत देर लगा दी तुम लोगों ने?”

अब दोनों के पैर जम गए। संभलते-संभलते जीतू ने टॉर्च जलाकर रोशनी इधर-उधर फेंकी तो देखा कि उसी बाल्टी को औंधा रखकर उसके ऊपर रामनिवास बैठा है। जीतू सोचने लगा कि यह रामनिवास यहां कैसे आया? इसे कैसे मालूम पड़ा? कहीं ये...पर उसने विचारों पर रोक लगाई।

जीतू ने बस इतना ही पूछा, “तुम यहां कैसे पहुंचे?”  रामनिवास ने कहा “वह सब छोड़ो। अण्डे को मेज़ पर रख दो और चलों यहां से।”

जीतू का अचरज बढ़ता जा रहा था। उसने कहा, “पर यह असली अण्डा नहीं है। असली अण्डा यहां मेज़ पर था। हमने उसे ले जाकर सही जगह रख दिया और वहां से यह नकली अण्डा उठा लाए हैं, जो बदलू ने वहां रखा था। ”

"हो गया अब, चलो जल्दी यहां से।” रामनिवास ने फिर से कहा।

इसके बाद तो रामनिवास का व्यवहार एकदम ही बदल गया1 वह बस दिन भर कबाड़खाने में बैठा रहता और अपने उसी ट्रांसमीटर से खेलता रहता, जिससे उन लोगों ने मानसरोवर का दैत्य चलाया था। अण्डे के बारे में कोई पूछता तो वह बात आगे बढ़ने से पहले ही कह देता कि, “अण्डा ठीक है, चिन्ता मत करो।” परन्तु रामनिवास की चुप्पी ज़यादा न चल सकी। डायनोसौर के अण्डे की खबरों को पर लग चुके थे।

एक खबरची पचमढ़ी आ पहुंचा। उसे दैनिक खबरदार ने वहां भेजा था। उन्हें बम्बई के म्यूज़ियम से खबर मिली थी कि फुरसती वैज्ञानिक क्लब के अण्डे (अण्डा तो वास्तव में डायनोसौर का था) को देखने म्यूज़ियम एक विशेषज्ञ को भेज रहा है। इसलिए वह खबरची पहले ही आ गया था। अगले दिन डॉ. पुराजाने भी आ पहुंचे।

अब हमारे नगरपालिका अध्यक्ष श्री सदरनारायण की नींद टूटी। उन्हें अचानक पचमढ़ी ज़्यादा अच्छा लगने लगा और रामनिवास तो उनका चहेता बन गया। डॉ. पुराजाने के साथ दो-चार खबरची और भी थे। सब लोग फुरसती वैज्ञानिक क्लब के कबाड़खाने में जमा हो गए। बदलू और बेनीप्रसाद भी थे। बदलू हौले-हौले मुस्करा रहा था, बेनीप्रसाद उचक-उचक कर डॉ. पुराजाने की ओर ताक रहा था।

अब डॉ. पुराजाने ने कहा, “प्रोफेसर रामनिवास (क्लब के सदस्यों ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी) आपके द्वारा भेजी गई किरचों की हमने गहन वैज्ञानिक जांच की। हमने कार्बन डेटिंग के अलावा यूरेनियम विधि से भी उन किरचों की जांच की। हमें विश्वास है कि वे किरचें अवश्य ही जुरासिक काल की हैं।”

सदरनारायण जी आश्चर्य से भर गए, “जुरासिक काल की? मगर यह रामनिवास तो कह रहा था डायनोसौर की हैं?”

डॉ. पुराजाने ने उन्हें विस्तार से समझाया कि जुरासिक काल का अर्थ क्या है और डायनोसौर उस काल में पृथ्वी पर थे।

उधर दैनिक भागमभाग के पत्रकार ने यूरेनियम का नाम सुना और उसके कान खड़े हो गए। उसने तुरन्त पूछा लिया कि इस अण्डे में यूरेनियम होने से पचमढ़ी के निवासियों को कोई खतरा तो नहीं है।

इस सबसे निपटकर डॉ. पुराजाने ने प्रोफेसर रामनिवास से कहा कि अब अण्डा देख लेना चाहिए। डॉ. पुराजाने का इतना कहना था कि बस पूरा शहर झील के पीछे जाने वाले रास्ते पर चल पड़ा आगे-आगे सदरनारायण थे। वे बार-बार रामनिवास की पीठ थपथपाते जा रहे थे, उसके सिर पर हाथ फेरते जा रहे थे। उन्होंने हाथ फेर-फेरकर रामनिवास के बाल इतने उलझा दिए थे कि वह सचमुच ‘प्रोफेसर’ दिखने लगा था। वैसे सदरनारायण जी दैत्य वाली बात भूले नहीं थे मगर इस बार तो डॉ. पुराजाने के आ जाने से फुरसती वैज्ञानिक क्लब की धाक जम गई थी।

झील के किनारे पहुंचकर सदरनारायण जी ने भाषण दिया और सब लोगों से कहा कि वे वहीं रुकें। कुछ ही लोग अण्डा देखने को जाएंगे। फुरसती वैज्ञानिक क्लब के सदस्य, डॉ. पुराजाने, पत्रकार, बदलू, बेनीप्रसाद और खुद सदरनारायण जी चल पड़े। पेंट के पायंचे ऊपर उठाकर, बड़ी-बड़ी मुश्किल से कदम जमा-जमाकर, फिसलते-फिसलते, यह दल उस ओर चला। सबसे आगे जीतू और इसहाक थे। वे तो सुबह से ही खूब जोश में थे। अण्डे के स्थान पर पहुंचना था और वे चीख पड़े। “बच्चा अण्डा फोड़कर निकल गया है।” बदलू बेनीप्रसाद की ओर देखकर मुस्करा दिया। मगर जीतू ने देखा कि उन दोनों को देखकर रामनिवास भी रहस्यमय ढंग से मुस्करा रहा है।

फूटे हुए अण्डे के पास सबको जाने से रोक दिया क्योंकि हो सकता है कि बच्चा आसपास ही हो। सिर्फ रामनिवास और डॉ. पुराजाने ही आगे बढ़े। जीतू दूर से ही देखकर चिल्लाया, “सबने देखा कि एक जानवर के पैरों के निशान दलदल में साफ दिखाई पड़ रहे थे। कुछ दूर जाकर निशान गायब हो गए थे क्योंकि उधर रेत सूखी थी।”

डॉ. पुराजाने ने अपना लेंस निकला और उन निशानों को ध्यान में देखने लगे। काफी समय तक देखते रहने (रामनिवास के अनुसार अवलोकन करने) के बाद वे अण्डे की तरफ मुड़े। उन्होंने पहले अण्डे के फोटो खिंच गए तब उन्होंने फूटे अण्डे को हाथ में लिया। ध्यान से देखने के बाद मुस्कराने लगे। अब जीतू करे ही व्यक्ति की मुस्कराहट रहस्यमई लगने लगी।

मुस्कराते हुए डॉ. पुराजाने ने कहा, “बहुत बढ़िया, बहुत बढ़िया, मगर नकली।” उन्होंने अण्डे के छिलके का एक टुकड़ा लिया, ध्यान से देखा और चुटकी में मसल दिया, “शुद्ध प्लास्टर ऑफ पैरिस।”

हम सबको तो जैसे सांप सूंघ गया। सदरनारायण हमें घूर रहे थे, पत्रकार हिकारत से देख रहे थे और बदलू मज़ा ले रहा था। डॉ. पुराजाने फिर पंजों के निशान की ओर बढ़े। बोले, “किसी ने बहुत सफाई से नन्हें ब्राॉन्टोसौर के पंजों की नकल बनाई है। मगर एक जगह चूक गया। ब्राॉन्टोसौर की पूंछ हमेशा ज़मीन से घिसटती रहती थी। इस नकल में पूंछ का निशान बनाना नकलची भूल गया।”

फिर सबकी तरफ मुड़कर कहा, “प्राणी विज्ञान के क्षेत्र में तो हमें ऐसी जालसाजी का रोज़ सामना करना पड़ता है। मगर यहां कुछ घपला है क्योंकि जो किरचें हमें मिली थीं वे यकीनन जुरासिक काल की थी।”  एक पत्रकार ने कहा, हो सकता है कि इन लड़कों को सिर्फ वे किरचें मिलों “हों और इन्होंने अण्डे का किस्सा गढ़ लिया हो।”

तभी बदलू बोल उठा, “जी नहीं, असली अण्डा हमारे पास है। हमने ही अण्डा खोजा था, वह हमारी विज्ञान सभा में रखा है।” बदलू की आंखों में जीत की चमक थी।

जीतू को लग रहा था कि इस बार बदलू बाजी मार ले गया। और उसने रामनिवास की तरफ देखा तो वही रहस्यमई मुस्कराहट। अब पूरा दल विज्ञान सभा के दफ्तर की ओर चल पड़ा। चलने से पहले रामनिवास अण्डे के पास गया और झुककर कुछ उठाकर जेब में डाल लिया।

सदरनारायण जी ने डॉ. पुराजाने को बताया कि बदलू काफी होशियार लड़का है। अब वे बदलू के बाल सहलाकर उसे प्रोफेसर बनाने पर तुले थे। कुछ ही समय बाद पूरा दल बदलू की विज्ञान सभा में हाज़िर था। और वहां मेज पर रखा था वह अण्डा।

डॉ. पुराजाने एक बार फिर लैंस लेकर ‘अवलोकन’ करने लगे। बदलू और बेनीप्रसाद उनके आसपास ही खड़े थे। सदरनारायण जी थोड़ी दूर पड़ी उसी बाल्टी पर बैठ गए। फुरसती वैज्ञानिक क्लब के सदस्य मुंह लटकाए आसपास खड़े तमाशा देख रहे थे। बस रामनिवास सक्रिय था। डॉ. पुराजाने के करीब जाकर उसने कहा, “क्यों न इस अण्डे को वहां खिड़की के पास रोशनी में ले चलें?”  डॉ. पुराजाने ने ‘हां’ कर दिया। रामनिवास ने तत्काल अण्डे को उठा लिया और खिड़की की तरफ चलने लगा। उधर बदलू ने भी हाथ बढ़ाया, अण्डे को उठाने के लिए। रामनिवास सीधा बदलू से टकराया और अण्डा...अण्डा उसके हाथ से फिसल गया। फिसलकर अण्डा फर्श पर गिरा और टूट गया। बदलू कूदकर वहां पहुंचा। रामनिवास माफी वगैरह मांगने लगा।

तभी फूटे अण्डे में एक चमकदार चीज़ की झलक दिखी। बदलू ने तुरन्त उसे उठा लिया और बोल पड़ा, “यह तो मेरी अंगूठी है, उस दिन खो गई थी जब मैं बाल्टी में...?”

बदलू सोच में पड़ गया, “मगर वह अण्डा जो दलदल में रखा था...?”

रामनिवास बोला, “वह नकली था।”

अब डॉ. पुराजाने बोला, से न रहा गया, बोले, “सब साफ-साफ बताओ।”

जीतू जैसे नींद से जागा, “रामनिवास क्या उस रात को हम प्लास्टर ऑफ पैरिस लेकर भागदौड़ कर रहे थे।”

बदलू बोला, “अच्छा बेवकूफ बनाया। मुझे तो लगा था कि तुमने सचमुच डायनोसौर का अण्डा खोज लिया था।”

रामनिवास ने उसे घूरकर कहा, “सो तो हमने खोजा ही था और अभी भी वह हमारे पास है।”

यह तो जैसे बम गिरा हो। सबको डायनोसौर सूंघ गया। (यह मानकर कि डायनोसौर सूंघ सकता था!)

सबसे पहले बोलने वाले डॉ. पुराजाने थे। “तो प्रोफेसर रामनिवास, देर किस बात की? चलिए असली अण्डा देख लिया जाए।”

रामनिवास ने जब बताया कि असली अण्डा तो वहीं दलदल में एक अन्य एक स्थान पर है तो सदरनारायण जी घबरा गए कि अब फिर वहीं कीचड़ में पैर धंसाना होंगे।

जैसे भी हो, पूरा दल फिर दलदल की ओर चल पड़ा। इस बार रामनिवास उस स्थान की ओर मुड़ने की बजाए सीधा चलता गया और थोड़ा आगे जाकर एक जगह ढलान पर उतर गया। पीछे-पीछे पूरा जुलूस था ही। और वह असली अण्डा वहां रखा था, बगैर किसी खतरे के।

डॉ. पुराजाने ने फिर वही किया। पहले फोटो, फिर लेंस। फिर अण्डे को हाथ में लेकर देखा, और बोले, “हां यह असली है। ”  उधर रामनिवास ने सबकी आंख बचाकर कोई चीज़ अण्डे के नीचे से उठा ली। परन्तु खबरची ने देख लिया। “वह क्या है? ”

तब रामनिवास ने पूरी कहानी बताई। उसने बताया कि पहली रात ही उसे मन में शक था कि कोई न कोई इस अण्डे को ज़रूर चुराने की कोशिश करेगा। (सदरनारायण जी ने घूरकर बदलू की ओर देखा।) इसलिए उसने उसी रात अण्डा का प्लास्टर मॉडल बना लिया था। रात को ही जाकर उसने अण्डे को छुपाकर रख दिया थ। सुबह जो अण्डा रखा गया वह तो नकली था।

“तभी वह थोड़ा हल्का लग रहा था।” जीतू बोल उठा। और उस अण्डे के नीचे रामनिवास ने एक इलेक्ट्रॉनिक यंत्र फिट कर दिया था। जैसे ही कोई अण्डे के साथ छेड़छाड़ करता तो उसे पता चल जाता।

“अच्छा तो इसीलिए तुम इतने निश्चित वहां कबाड़ खाने में बैठे रहते थे।”

“परन्तु ये यहां से क्या उठाया आपने?” खबरची से रहा न गया।

“ओह! ये? प्लास्टर मॉडल बनाते समय मैंने उसके अन्दर एक छोटा सा ट्रांसमीटर डाल दिया था। इस नकली अण्डे को जहां भी ले जाया जाता, मुझे घर बैठे मालूम पड़ जाता।”

“तभी तुम्हें पता चल गया था कि उस रात हम अण्डा उठाकर बदलू के दफ्तर में ले गए थे।”

“पर इतना सब करने की ज़रूरत क्या थी? सीधे हमें असली अण्डे की जगह क्यों नहीं ले गए?”

रामनिवास इस सवाल पर गम्भीर हो गया। उसने कहा, “यदि मैं ऐसा करता, तो इतना मज़ा कैसे आता? और पूरी कहानी पता कैसे चलती?”

डॉ.पुराजाने काफी प्रभावित थे। बोले, “हमारे म्यूज़ियम को बहुत खुशी होगी यदि यह अण्डा आप हमें दे दें।”

रामनिवास बोला, “पर पहले हमें अनुमति दीजिए कि हम इससे बच्चा निकालने का प्रयोग कर लें।”

डॉ. पुराजाने ज़ोर से हंस पड़े। हंसते-हंसते बोले, “मुझे कोई आपत्ति नहीं है।” सो अण्डा वहीं छोड़कर सब वापस चल दिए।

आगे की कहानी ऐसी है कि जीतू ने एक दिन आकर बताया कि अण्डा फूट गया है। बच्चा निकल गया है। हम सब वहां पहुंचे तो देखा फूटा अण्डा अपनी जगह पड़ा है। पास ही किसी जानवर के पदचिन्ह भी थी। जीतू ने चीखकर कहा, “देखो इन निशानों में पूंछ का निशान भी है।”

तो क्या डायनोसौर बन गया? रामनिवास कहता है कि वह पक्के तौर पर कुछ नहीं बता सकता। और जहां तक डॉ. पुराजाने का सवाल है तो हमें यकीन है कि यह सब सुनकर वे ठहाका लगा देंगे।


यह भावानुवाद बरट्रैण्ड आर बिनले की पुस्तक मैड साईटिस्ट क्लब की एक कहानी पर आधारित है।