पेड़-पौधों में परजीवी का नाम लें तो अमरबेल की छवि एकदम से मन में कौंध जाती है - पीले-पीले से खूब सारे रेशेनुमा तंतु, किसी भी पेड़ की शाखाओं, पत्तियों में उलझे हुए। फिर ख्याल आता है कि अमरबेल के अलावा और भी ऐसे परजीवी होते ही होंगे, और वे सब भी शायद इस जैसे दिखते होंगे।
पर अगर आपको कोई बताए कि चंदन का पेड़ परजीवी है तो क्या आप यकीन करेंगे? स्वाभाविक सवाल उठता है कि आखिर 30-40 फुट का ऊंचा बड़ा-सा दिखने वाला चंदन का पेड़ परजीवी कैसे हो सकता है। और यह भी कभी सुना, देखा नहीं कि चंदन के पेड़ की डालियां अमरबेल की तरह दूसरे पेड़ों से लिपटकर रस चूस रही हों उनका!
चाहे आपको यह विचार तनिक भी न भाए कि चंदन की सौंधी सुगंध देने वाली लकड़ी एक परजीवी पेड़ से मिली है, पर हकीकत यही है। चंदन के पेड़ की जड़ें ज़मीन के अंदर फैलकर कुख खास किस्म के अन्य पेड़-पौधों की जड़ों से जा चिपकती हैं और उनमें से चंदन के पेड़ के इस्तेमाल के लिए पोषक तत्व खींचने लगती हैं। और यह काम करती हैं जड़ों से निकली घंटीनुमा रचनाएं। जिन्हें चूसक-जड़ें या हाउन्टेरिया भी कहा जाता है। अपने मेजबान की जड़ें जा चिपकती हैं।
पर साथ ही यह जानना भी ज़रूरी है कि चंदन पूर्ण परजीवी नहीं है यानी कि अपनी सब ज़रूरतों के लिए वह अन्य पेड़ों पर निर्भर नहीं, कुछ खनिज लवण व पोषक तत्व वह अपने मेजबान से खींच लेता है और कुछ अन्य सीधे ही ज़मीन से भी सोखता है। चंदन खुद अपना भोजन बना पाए इसके लिए बहुत ज़रूरी हैं ये लवण और पोषक तत्व, इसलिए अलग-अलग एकदम स्वतंत्र खड़ा चंदन का पेड़ ज़िंदा नहीं रह सकता।
अपनी शुरुआती ज़िंदगी का पहला साल चंदन का पौधा अपने खुद के बल पर खींच सकता है यानी कि अपने बचपन में चंदन स्वतंत्र रूप से जी सकता है। परन्तु उसके बाद ज़िंदा रहने के लिए चंदन के पेड़ के आसपास शीशम, शिरीष, यूकेलिप्टस, रीठा, कीकर, बबूल, करंज, लेंड़िया, साल, अर्जुन, बहेड़ा, हर्रा, खेर जैसे अन्य पेड़-पौधे हों यह निहायत लाज़िमी है।
अगर आपको अपने बगान-बगीचे में चंदन का पेड़ लगाना हो तो याद रखिएगा कि इनमें से कुछ पेड़-पौधे ज़रूर लगाने पड़ेंगे नहीं तो बचपन में ही दम तोड़ देगा वह!