वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए व्यापक तौर पर परीक्षण की आवश्यकता है। लेकिन कई जगहों पर परीक्षण करने के लिए ज़रूरी रसायनों की कमी है। इससे निपटने और समय बचाने के लिए चीन, भारत, अमेरिका और जर्मनी समेत कई देशों में स्वास्थ्य अधिकारी सामूहिक परीक्षण की विधि का उपयोग कर रहे हैं। यह तरीका सबसे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान प्रस्तावित किया गया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि एक साथ कई लोगों के नमूनों का परीक्षण करके समय, रासायनिक अभिकारकों और धन की बचत की जा सकती है। सामूहिक परीक्षण कई तरीकों से किया जा सकता है। इनमें से वर्तमान में उपयोग किए जा रहे चार तरीकों का यहां ज़िक्र किया जा रहा है।
विधि 1
सामूहिक परीक्षण करने का सबसे सहज तरीका अर्थशास्त्री रॉबर्ट डोर्फमैन द्वारा 1940 के दशक में सैनिकों में सिफलिस के परीक्षण के लिए सुझाया गया था।
इस तरीके में, एकत्रित किए गए सभी नमूनों में से एक निश्चित संख्या में नमूने लिए जाते हैं (कोरोनावयरस से संक्रमण के मामले में नाक और गले से एकत्र किए गए फोहे के नमूने)। फिर इन्हें एक साथ मिला लिया जाता है और इन मिश्रित नमूनों का परीक्षण किया जाता है। जिन मिश्रित नमूनों के परीक्षण का परिणाम निगेटिव आता है उस समूह के सारे नमूनों को खारिज कर दिया जाता है। लेकिन यदि किसी मिश्रित नमूने का परिणाम पॉज़िटिव आता है, तो उस समूह के प्रत्येक नमूने का अलग-अलग परीक्षण किया जाता है। एक-एक समूह में कितने नमूने मिश्रित किए जाएंगे इसकी संख्या का अनुमान समुदाय में वायरस के फैलाव के आधार पर लगाया जाता है - ताकि परीक्षण कम से कम बार करना पड़े।
मई में, चीन के वुहान में अधिकारियों ने शहर की आबादी का परीक्षण करने के लिए इसी तरीके का उपयोग किया था। उन्होंने मात्र दो सप्ताह में लगभग एक करोड़ लोगों का परीक्षण कर लिया था। लगभग 23 लाख लोगों के मिश्रित नमूनों का परीक्षण किया गया - प्रत्येक समूह में 5 व्यक्तियों के नमूने थे। परीक्षण में 56 लोग संक्रमित पाए गए थे।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह तरीका तब सबसे अधिक कारगर होता है जब आबादी में संक्रमण कम फैला हो (कुल जनसंख्या के लगभग एक प्रतिशत में), क्योंकि तब संभावना यह होती है कि अधिकांश मिश्रित परीक्षण निगेटिव आएंगे। इस तरह से हम बहुत सारे लोगों का अलग-अलग अनावश्यक परीक्षण करने से बच जाते हैं।
विधि 2
दूसरा तरीका डोर्फमैन के तरीके का थोड़ा परिष्कृत रूप है। इसमें मिश्रित नमूने का परिणाम पॉज़िटिव आने के बाद, हरेक नमूने का अलग-अलग परीक्षण करने से पूर्व, सामूहिक परीक्षण का एक और चरण होता है। किया यह जाता है कि जिस मिश्रित नमूने का परिणाम पॉज़िटिव आया है उसके व्यक्तिगत नमूनों के थोड़े छोटे-छोटे समूह बनाए जाते हैं, और फिर इन छोटे समूहों से जो नमूना पॉज़िटिव परिणाम देता है उसके सारे व्यक्तियों के नमूनों का अलग-अलग परीक्षण किया जाता है। इस तरीके में मिश्रित परीक्षण की संख्या तो बढ़ जाती है लेकिन व्यक्तिगत नमूनों की जांच की संख्या में कमी आती है। सामूहिक परीक्षण का यह तरीका थोड़ा धीमा भी है क्योंकि प्रत्येक चरण के मिश्रित नमूने के परिणाम आने में कई घंटे का समय लगता है। कोविड-19 का संक्रमण तेज़ी से फैलने वाला है इसलिए इस तरह के संक्रमण के मामलों में हमें सामूहिक परीक्षण के उन तरीकों को अपनाना चाहिए जो परीक्षण के नतीजे जल्दी बता पाएं।
विधि 3: बहु-आयामी तरीका
सामूहिक परीक्षण का तीसरा तरीका रवांडा के विल्फ्रेड एनडीफॉन और उनके सहयोगियों ने सामूहिक परीक्षण की संख्या को कम करने के लिए डोर्फमैन के तरीके में बदलाव करके विकसित किया है। इस तरीके में परीक्षण का पहला चरण डोर्फमैन के पहले चरण जैसा ही है जिसमें मिश्रित नमूनों का परीक्षण किया जाता है। फिर, सकारात्मक परिणाम वाले समूहों को अगले चरण के सामूहिक परीक्षण के लिए समूहों में इस तरह बांटते हैं कि एक नमूना एक से अधिक समूह में हो। इसे ऐसे समझते हैं। एक नौ इकाइयों वाली मैट्रिक्स की कल्पना कीजिए, जिसमें हर इकाई एक व्यक्ति के नमूने का प्रतिनिधित्व करती है। अब, इस मैट्रिक्स की हर खड़ी पंक्ति नमूनों का एक समूह है, और हर आड़ी पंक्ति भी नमूनों का एक समूह है। आड़ी पंक्ति के नमूनों का मिश्रित परीक्षण किया जाता है। इसी तरह खड़ी पंक्ति से बने समूहों का मिश्रित परीक्षण किया जाता है। यानी कुल 6 परीक्षण हुए। प्रत्येक व्यक्ति का नमूना दो समूहों में है। यदि किसी समूह में एक नमूना संक्रमित है, उन दोनों समूह के परीक्षण परिणाम पॉज़िटिव होंगे जिनमें वह नमूना है। इस तरीके में 9 नमूनों के सिर्फ 6 परीक्षण करके संक्रमित की पहचान की जा सकती है। इसमें कुछ परिवर्तन करके (जैसे वर्गाकार मैट्रिक्स की बजाय घनाकार मैट्रिक्स लेकर) बेहतर दक्षता हासिल की जा सकती है।
एनडिफॉन की टीम का अनुमान है कि सामूहिक परीक्षण का यह तरीका परीक्षण का खर्च प्रति व्यक्ति 9 डॉलर से कम करके मात्र 75 सेंट तक कर सकता है।
जर्मनी के सारलैंड युनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर की आणविक वायरस विज्ञानी सिग्रन स्मोला ने अपने सामूहिक परीक्षण में व्यक्तिगत नमूनों की संख्या 20 तक रखी है। उनका कहना है कि परीक्षण की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए एक सामूहिक परीक्षण में नमूनों की संख्या 30 से अधिक नहीं रखनी चाहिए। समूह में नमूनों की अधिक संख्या पॉज़िटिव परिणाम के नज़रअंदाज़ होने की संभावना बढ़ा देती है।
विधि 4: एक-चरण समाधान
कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि सार्स-कोव-2 जैसे तेज़ी से फैलने वाले वायरस को रोकने के लिए दो चरणीय परीक्षण में लगने वाला समय बहुत अधिक है। आईआईटी मुंबई के कंप्यूटर वैज्ञानिक मनोज गोपालकृष्णन कहते हैं कि इन तरीकों में लैब तकनीशियनों को संक्रमण की पुष्टि करने के लिए कम से कम पहले चरण के नतीजे आने तक का इंतज़ार करना पड़ता है, जिसकी वजह से जांच प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
इसकी बजाय वे एक ही चरण में, एक नमूने को कई समूह में रखते हुए परीक्षण करने की सिफारिश करते हैं। उनका कहना है कि इस तरीके में सामूहिक परीक्षणों की संख्या ज़रूर बढ़ जाएगी, लेकिन समय की बचत होगी हालांकि शुरुआती सेटअप करने में थोड़ा समय लगेगा।
इस तरीके में नमूनों को समूह में बांटने की विधि में एक नमूने को कई समूह में रखकर परीक्षण किया जाता है। इसमें नमूनों को बांटने लिए किर्कमैन तिकड़ियों का उपयोग किया जाता है। इसे समझने के लिए एक ऐसी सपाट मैट्रिक्स की कल्पना कीजिए जिसमें हर आड़ी पंक्ति एक परीक्षण समूह दर्शाती है और हर खड़ी पंक्ति एक व्यक्तिगत नमूने का द्योतक है। सामान्यत: हरेक परीक्षण में समान संख्या में नमूने और सभी नमूनों का परीक्षण समान बार होना चाहिए।
एक-चरण सामूहिक परीक्षण का मतलब है कि बड़ी संख्या में नमूनों पर एक साथ काम करना जो मुश्किल हो सकता है। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए गोपालकृष्णन और उनके साथियों ने एक स्मार्टफोन ऐप विकसित किया है जो परीक्षणकर्ताओं को बताता है कि नमूनों का समूह कैसे बनाना है। इरुााइल में भी शोधकर्ता एक-चरणीय परीक्षण प्रणाली लागू करने के लिए एक स्वचालित प्रणाली और एक ऐप का उपयोग कर रहे हैं।(स्रोत फीचर्स)
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Srote - September 2020
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