पक्षी जगत बड़ी विचित्रताओं से लबरेज है। जहां अधिकतर पक्षी घोंसला बनाने, अंडों को सेने व चूज़ों की परवरिश का ज़िम्मा स्वयं उठाते हैं, वहीं ऐसे भी पक्षी हैं जो यह काम दूसरे पक्षियों को सौंप देते हैं। ऐसे पक्षियों को घोंसला परजीवी कहते हैं। घोंसला परजीवियों में कोयल और पपीहे के अलावा चातक भी हैं।
चातक के बारे में किंवदंती है कि यह मानसून में स्वाति नक्षत्र का ही पानी पीता है। यह किंवदंती क्यों पड़ी होगी? मानसून के दौरान चातक का प्रजनन काल होता है। इस दौरान यह जोड़ा बांधता है। नर चातक मादा को लुभाने के लिए हवा में अठखेलियां करता है। हवा में उड़ते हुए यह पिहु-पिहु की आवाज़ निकालता है। इस दौरान इसकी चोंच आसमान की ओर खुली हुई होती है। ऐसा लगता है मानो यह बरसात की बूंदों को चोंच में ग्रहण कर रहा हो।
परजीवीपन का यह उदाहरण दुनिया भर की लगभग 80 पक्षी प्रजातियों में देखा गया है। इनमें से तीन पक्षी भारत में देखे गए हैं - कोयल, चातक (क्लैमेटर जर्कोबिनस) व पपीहा। चातक कोयल परिवार (cuculinae) का सदस्य है जो जो पेसेराइन (passerine) प्रजातियों के घोंसलों में अंडे देते हैं। चातक बैब्लर पक्षी यानी ‘सात भाई’ (Turdoidesaffinis) के घोंसलों में अंडे देता है। चातक के अंडों का रूप-रंग सात भाई पक्षियों के अंडों से काफी मेल खाता है।
चातक सामान्य मैना के आकार का पक्षी है जबकि पूंछ मैना की पूंछ से लंबी होती है। इसकी पीठ व पंख काले और पेट, छाती व गर्दन वाला हिस्सा सफेद होता है। सिर पर चोटी निकली होती है। काले पंखों में ऊपर की ओर एक अंडाकार सफेद पट्टा-सा होता है जो उड़ते वक्त साफ देखा जा सकता है। नर और मादा एक समान ही होते हैं।
चातक हमारे यहां का बारहमासी पक्षी नहीं है। यह अफ्रीका से भारत में मई के अंत में या जून के पहले सप्ताह में प्रवास करके आता है। इस दौरान यह यहां पर प्रजनन करता है।
चातक का जीव वैज्ञानिक नाम क्लैमेटर जर्कोबिनस है। प्रजनन विस्तार के अनुसार इसकी तीन उप प्रजातियां देखी गई है: क्लैमेटर जर्कोबिनस सेरेटस दक्षिण अफ्रिका व दक्षिणी ज़ांबिया में, क्लैमेटेर जर्कोबिनस पाइका सहारा के दक्षिण में उत्तर ज़ांबिया और मलावी, उत्तर-पश्चिम भारत से नेपाल और म्यांमार तक तथा क्लैमेटर जर्कोबिनस जैकोबिनस दक्षिण भारत, श्रीलंका, दक्षिण म्यांमार में प्रजनन करती हैं। चातक पक्षी की दो उप-प्रजातियां भारत में मिलती हैं। हमारे यहां जो चातक मानसून में दिखाई देता है वह क्लैमेटर जर्कोबिनस सेरेटस है। यह उप-प्रजाति मानसून में अफ्रीका से भारत में प्रजनन के लिए आती है। दूसरी छोटे आकार की जैकोबिनस श्रीलंका व दक्षिण भारत की स्थानीय उप-प्रजाति है।
चातक संपूर्ण भारत समेत पाकिस्तान, बांग्लादेश श्रीलंका तथा बर्मा में पाया जाता है। हिमालय में 8000 फीट की ऊंचाई तक देखा गया है। चातक अधिकतर घने वृक्षों व खुले जंगलों, कस्बों व गांवों की सीमा के भीतर बाग-बगीचों में दिखता है। इसे शहरों में पेड़ों पर भी देखा गया है। इनकी मौजूदगी एक से दूसरे पेड़ पर नर और मादा के बीच पकड़ा-पकड़ी के रूप में देखने को मिलती है। इस दौरान ये पिहू, पिहू... की आवाज़ करते हैं। इनकी आवाज़ को मैंने रात में भी सुना है। ये पूरी तरह से वृक्षवासी हैं जो झाड़ियों व ज़मीन पर कीड़ों को चुगने के लिए चंद पल के लिए उतरते हैं और फिर से उड़कर वृक्ष पर चले जाते हैं। चातक आम तौर पर कीटों व इल्लियों व बेरी फलों को खाते हैं।
चातक का प्रजनन काल जून से अगस्त के दौरान होता है। यह दिलचस्प है कि परजीवी चातक ने अपने अंडों-चूज़ों की परवरिश का ज़िम्मा बैब्लर पक्षी को सौंप दिया है। बैब्लर को हिंदी में सात भाई व अंग्रेज़ी में सेवन सिस्टर्स के नाम से जाना जाता है। आपने अपने आसपास सात भाई पक्षी को ज़रूर देखा होगा। सात भाई छह या अधिक के झुंड में रहते हैं। बैब्लर असम को छोड़कर पूरे भारत में पाए जाते हैं। ये सूखे खुले देहाती क्षेत्रों और कंटीले झाड़-झंखाड़ वाली जगहों में रहना पसंद करते हैं। ये झाड़ियों, बाग-बगीचों में भी देखने को मिलते हैं। आम तौर पर सात भाई ज़मीन पर ही फुदकते दिखते हैं। खतरा होने पर ही ये अपने झुंड के साथ थोड़ी दूरी की उड़ान भरते हैं। इनकी आवाज व्हिच, व्हिच, व्हिक, रि-रि-रि जैसी होती है। सात भाई झाड़ियों में घास-फूस का प्यालेनुमा घोंसला बनाते हैं। इनके घोंसलों में चातक के अलावा भारतीय मूल का स्थाई निवासी पपीहा भी अंडे देता है।
घोंसला परजीविता प्रजनन की एक रणनीति है। घोंसला परजीवी पक्षी दूसरे के घोंसले में अंडे देकर परवरिश के झंझट से मुक्त हो जाते हैं। घोंसला बनाने, अंडों को सेहने व चूज़ों की देखभाल में काफी ऊर्जा खर्च होती है। चातक ने यह ज़िम्मेदारी बैब्लर को सौंप दी। ऐसा नहीं है कि परजीवी प्रजाति का पक्षी किसी भी पक्षी का घोंसला देखे और उसमें अंडे दे दे।
मादा बैब्लर घोंसला बनाकर अंडे देती है। इसी दौरान मादा चातक ताक में होती है और मौका देखकर उसके घोंसले में अंडे दे देती है। रोचक बात यह है कि परजीवी पक्षियों के अंडों का रंग-रूप मेज़बान पक्षी के अंडों से काफी मिलता-जुलता होता है। इतना ही नहीं परजीवी पक्षी का अपने मेज़बान पक्षी के घोंसला बनाने व अंडे देने के वक्त के साथ भी तालमेल दिखता है। जब मेज़बान पक्षी अंडे देगा उसी दौरान परजीवी पक्षी भी अंडे देगा। यह तालमेल जैव विकास की प्रक्रिया में कई पीढ़ियों में पनपा होगा।
मेज़बान पक्षी परजीवी पक्षी के चूज़ों के साथ किस प्रकार का बर्ताव करते हैं, यह शोध का विषय रहा है। चातक के अंडों से चूज़े निकलते हैं तो मेज़बान पक्षी का रवैया सौतेला नहीं होता। उल्टे मेज़बान पक्षी इन पराए चूज़ों का खासा ख्याल रखते हैं। चातक व बैब्लर के अंडों से निकले चूज़ों के अवलोकन से पता चला है कि बैब्लर चातक के चूज़ों की अधिक देखभाल करते हैं।
शोधकर्ताओं ने श्रीलंका में बैब्लर व चातक के चूज़ों के कुछ अवलोकन लिए। ज़मीन पर चातक पक्षी के चूज़े को बैब्लर के झुंड द्वारा चुगाते हुए देखा गया। वहां बैब्लर के चूज़े भी थे। यह भी देखा गया कि चातक का चूज़ा ज़्यादा उड़ भी नहीं पा रहा था। बैब्लर के चूज़े अधिक सक्रिय थे। प्रतीत हो रहा था कि चातक के चूज़ों की तुलना में उनकी अधिक वृद्धि हुई है। दिलचस्प अवलोकन यह भी था कि जंगली बैब्लर का झुंड चातक के चूज़े का खतरों से बचाव भी कर रहा था। कुल दस मिनट के अवलोकन में जंगली बैब्लर ने चातक के चूज़े को दो बार चुगाया।
इसी प्रकार का एक और अवलोकन किया गया। यह अवलोकन शाम के वक्त का है। नारियल के बगीचे में वयस्क जंगली बैब्लर के साथ अवयस्क चूज़े देखे गए। इस समूह में दो चूज़े चातक के भी थे। जंगली बैब्लर को उड़ते हुए देख चातक के चूज़े कुलांचे भरने लगे और उड़ने लगे। वे लगातार चुग्गे (भोजन) की मांग कर रहे थे। वे लंबी उड़ान भरकर शाखा पर बैठ नहीं पा रहे थे। इस दौरान भी जंगली बैब्लर्स चातक के चूज़ों का अधिक ख्याल रख रहे थे।(स्रोत फीचर्स)
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Srote - September 2020
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