लंदन के नेशनल आर्ट म्यूज़ियम में रखी लियोनार्डो दा विंची की बेजोड़ पेंटिंग - दी वर्जिन ऑफ दी रॉक्स - के पीछे एक और तस्वीर छिपी है। हाल ही में उस ओझल तस्वीर के बारे में नई जानकारी सामने आई है। इस पेंटिंग में वर्जिन मैरी, शिशु जीसस और शिशु सेंट जॉन और एक फरिश्ता हैं।
दरअसल 2005 में नेशनल आर्ट गैलरी ने दी वर्जिन ऑफ दी रॉक्स पेंटिंग की इंफ्रारेड रिफ्लेक्टोग्राफी की मदद से इमेंज़िंग की थी जिसमें उन्हें पता चला था कि एक अन्य चित्र इस पेंटिंग के पीछे छिपा हुआ है जिसमें मैरी की आंखे बिलकुल अलग जगह पर बनी हुई थीं जिसे बाद में बनाए गए चित्र के रंगों से पूरा ढंक दिया गया था।
और अब पेंटिंग के पीछे ढंके चित्र के बारे में तफसील से जानने के लिए नेशनल आर्ट गैलरी ने तीन तकनीकों - इंफ्रारेड रेफ्लेक्टोग्राफी, एक्स-रे फ्लोरोसेंस स्केनिंग और हायपर स्पेक्ट्रल इमेंजिंग - की मदद ली है।
इंफ्रारेड रेफ्लेक्टोग्राफी में डाले गए इंफ्रारेड प्रकाश में ऊपरी रंगों के पीछे छिपे वे सभी ब्रश स्ट्रोक भी दिखाई देते हैं जो सामान्य प्रकाश में दिखाई नहीं देते। इनसे पता चलता है कि इस पेंटिंग में कलाकार ने पहले मैरी को बार्इं ओर बनाया था जो शिशु जीसस की ओर देख रही थी, और फरिश्ता दार्इं ओर था। चित्रों से लगता है कि दा विंची ने अंतत: जो पेंटिंग बनाई उसकी दिशा शुरुआती पेंटिंग से एकदम विपरीत है।
इसके अलावा एक्स-रे फ्लोरोसेंस करने पर पता चला कि पीछे छिपे चित्र के रंगो में ज़िंक था। दरअसल ज़िंक के कण एक्स-रे प्रकाश डालने पर चमकने लगते हैं। हायपर स्पेक्ट्रल इमेंजिंग में किसी चीज़ से आने वाली विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा का पता लगता है।
हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि दा विंची ने नीचे वाले चित्र को नई पेंटिंग से क्यों ढंका? वैसे यह पेंटिंग मूल पेंटिंग का दूसरा संस्करण है। उन्होंने अपनी मूल पेंटिंग चर्च के लिए बनाई थी जो किसी विवाद के बाद उन्होंने पेरिस में रहने वाले एक ग्राहक को बेच दी थी। उन्होंने दूसरी पेंटिंग हू-ब-हू पहली पेंटिंग की तरह बनाने की बजाय उसमें थोड़े बदलाव किए थे। जैसे दूसरी पेंटिंग में रंगों से उन्होंने अलग प्रकाश प्रभाव दिया है। चित्र में मौजूद लोगों की मुद्राएं भी थोड़ी अलग हैं। इमेंज़िंग से प्राप्त चित्रों का प्रदर्शन नवंबर से जनवरी के बीच किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - November 2019
- जैसी दिखती है असल में वैसी है नहीं आकाशगंगा!
- सोवियत संघ के विघटन से ग्रीनहाउस गैसों में कमी
- 5जी शुरु होने से मौसम पूर्वानुमान पर असर
- जारी है मौसम की भविष्यवाणी के प्रयास
- पेड़ भोजन-पानी में साझेदारी करते हैं
- जंगल बसाए जा सकते हैं
- वनों में जीएम वृक्ष लगाने देने की अपील
- शहरों का पर्यावरण भी काफी समृद्ध है
- अमेज़न के जंगल बचाना धरती की रक्षा के लिए ज़रूरी
- ओज़ोन परत पर एक और हमला
- क्या बिजली-वाहन प्रदूषण कम करने में कारगर होंगे?
- 50 वर्षों बाद टीबी की नई दवा
- सूक्ष्मजीव कुपोषण से लड़ने में सहायक
- अदरख के अणु सूक्ष्मजीव संसार को बदल देते हैं
- अंगों की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास
- क्या पोलियो जल्दी हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा?
- कानों की सफाई के लिए कपास का इस्तेमाल सुरक्षित नहीं
- कुत्तों और मनुष्य के जुड़ाव में आंखों की भूमिका
- विज्ञान शिक्षण में भेदभाव
- रांगा: प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक
- विशाल क्षुद्रग्रह पृथ्वी के पास से गुज़रने वाला है
- दा विंची की पेंटिंग के पीछे छिपी तस्वीर
- जैव विकास और मनुष्यों की विलुप्त पूंछ
- मन्टा-रे मछलियां दोस्ती भी करती हैं
- दिमाग की कैमेस्ट्री बिगाड़ रही है इंटरनेट की लत
- कहीं आप फफूंद तो नहीं खा रहे