वैसे तो माना जाता है कि ऑटिज़्म के लिए जीन्स ज़िम्मेदार है मगर एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि शायद आंतों में पलने वाले बैक्टीरिया का भी इस स्थिति में योगदान हो सकता है। कहना न होगा कि यह अध्ययन चूहों पर किया गया है और इसके परिणामों को तत्काल मनुष्यों पर लागू नहीं किया जा सकता।
दरअसल, ऑटिज़्म के लक्षण व्यवहार में नज़र आते हैं। जैसे ऑटिज़्म पीड़ित व्यक्ति को सामाजिक सम्बंध बनाने में दिक्कत होती है, उसमें एक ही क्रिया को बार-बार करने की प्रवृत्ति होती है और वह सामान्यत: बोलने-संवाद करने से कतराता है।
आंतों में पल रहे बैक्टीरिया का असर व्यवहार पर देखने के लिए कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के सार्किस मेज़मानियन और उनके साथियों ने चूहों पर कुछ प्रयोग किए। पहले उन्होंने कुछ चूहों को पूरी तरह कीटाणु मुक्त कर दिया। इसके बाद उन्होंने ऑटिज़्म पीड़ित और ऑटिज़्म मुक्त बच्चों के मल के नमूने लिए। कुछ चूहों के पेट में ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों का और कुछ चूहों में ऑटिज़्म मुक्त बच्चों का मल डाला गया। इसके बाद उन्होंने एक ही किस्म के बैक्टीरिया से युक्त चूहों के बीच प्रजनन करवाया। अर्थात इनकी संतानें शुरू से ही एक ही किस्म के बैक्टीरिया के संपर्क में रहीं।
इन संतानों पर कई सारे व्यवहारगत परीक्षण किए गए ताकि ऑटिज़्मनुमा लक्षण पहचाने जा सकें। जैसे यह देखा गया कि अलग-अलग चूहे कितनी बार आवाज़ें निकालते हैं और कितनी बार साथ के चूहों के नज़दीक आते हैं या मेलजोल करते हैं। शोधकर्ताओं ने बार-बार दोहराए जाने वाले व्यवहार को भी परखा। इसके लिए उन्होंने दड़बे में कई कंचे रख दिए थे। देखा यह गया कि कोई चूहा कितने कंचों को मिट्टी में दबाता है।
सेल नामक शोध पत्रिका में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ऑटिज़्म-मुक्त बच्चों के मल की अपेक्षा ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के मल युक्त चूहे कम सामाजिक रहे, और उनमें बार-बार दोहराए जाने वाला व्यवहार भी ज़्यादा देखने को मिला।
इन चूहों का जैव-रासायनिक विश्लेषण भी किया गया। देखा गया कि ऑटिज़्म-उत्पन्न मल वाले चूहों में कई बैक्टीरिया प्रजातियों की संख्या कम थी। यह तो पहले से पता है कि हमारी आंतों के बैक्टीरिया अमीनो अम्लों में फेरबदल करते हैं और कई बार ये अमीनो अम्ल दिमाग तक भी पहुंच सकते हैं। पता यह चला कि दोनों समूहों के चूहों के दिमाग में डीएनए की अभिव्यक्ति में अंतर थे। खास तौर से ऑटिज़्म पीड़ित चूहों में दो अमीनो अम्लों (टॉरीन और 5-अमीनोवेलेरिक अम्ल) की मात्रा कम पाई गई। ये अमीनो अम्ल तंत्रिकाओं से जुड़कर उनकी क्रिया को रोकते हैं। शोधकर्ताओं का ख्याल है कि ये ऑटिज़्म के विकास में महत्वपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि जब उन्होंने अलग से कुछ ऑटिस्टिक चूहों को इन रसायनों की खुराक दी तो उनमें सामाजिक मेलजोल में वृद्धि हुई और बार-बार की जाने वाली क्रियाओं में कमी आई।
बहरहाल, अभी यह शोध काफी प्रारंभिक अवस्था का है और इसके आधार पर यह कहना उचित नहीं होगा कि आंतों के बैक्टीरिया ऑटिज़्म के कारक हैं। इसके अलावा, चूहों में मिले परिणामों को मनुष्यों पर लागू करने में भी सावधानी की ज़रूरत होगी। इसलिए शायद फिलहाल इसके आधार पर सीधे-सीधे किसी उपचार के उभरने की संभावना तो नहीं है किंतु इसने ऑटिज़्म के उपचार की नई संभावनाओं को जन्म अवश्य दिया है। (स्रोत फीचर्स)