डॉ. किशोर पंवार
जैव विविधता पर तरह तरह के खतरों और मानवीय हस्तक्षेप के कारण प्रजातियों के ह्यास के बीच हाल में संरक्षणवादियों के लिए दो अच्छी खबरें आई है। गुड़हल की जाति के एक विलुप्त माने जा रहे पौधे को पुन: खोज लिया गया है और रेल समूह के एक पक्षी में विकास की एक दुर्लभ घटना देखी गई है।
एक समाचार यह है कि हिबिस्काडेल्फस वूडी नाम का एक पौधा शायद विलुप्त नहीं हुआ है। वनस्पतिविदों ने हवाई द्वीप पर पाए जाने वाले इस दुर्लभ फूलधारी पौधे को एक बार पुन: खोज लिया है और ऐसा संभव हुआ है एक ड्रोन की सहायता से। गौरतलब है कि ड्रोन बहुत छोटे विमान होते हैं जिन्हें सुदूर संचालन से चलाया जाता है। इनका उपयोग जासूसी कार्य के अलावा प्रकृति के अध्ययन में किया जाता है।
हिबिस्काडेल्फस वूडी हवाई द्वीप के पहाड़ों की खड़ी चट्टानों के मुहाने पर उगता है। यहां उगने के कई फायदे हैं। एक तो भूखी भेड़ें ऐसी चट्टानों पर चढ़कर इसे नहीं खा सकती, और न ही वे लोग यहां पहुंच पाते हैं जो कीमती पौधों को पैरों तले रौंद डालते हैं। हिबिस्काडेल्फस वूडी हमारे जाने पहचाने गुड़हल यानी जासौन की जाति का है। इस पौधे को अंतिम बार 2009 में देखा गया था। अप्रैल 2019 में ड्रोन की मदद से की गई नई खोज का मतलब है कि मात्र एक दशक की अवधि में यह विलुप्त प्रजातियों की सूची से बाहर आ चुका है। हिबिस्काडेल्फस वूडी को ग्रीन हाउस में उगाने के प्रयास बार-बार हुए परंतु सफलता नहीं मिली। कलम लगाना, टिप कटिंग करना और पर-परागण द्वारा भी इसे उगाना संभव नहीं हो पाया था।
सैकड़ों हजारों साल के विकास ने इस पौधे में कुछ विलक्षण गुण उत्पन्न किए हैं। जैसे इसका फूल नलिकाकार है जो उम्र बढ़ने के साथ पीले से गहरा लाल हो जाता है। इसके फूल की रचना वहीं के एक स्थानीय परागणकर्ता हनीक्रीपर नामक पक्षी की चोंच से एकदम मेल खाती है।
इसे पुन: खोजे जाने पर वनस्पति शास्त्री केन वुड का कहना है कि प्रजातियों का विलुप्तिकरण कभी भी एक सटीक विज्ञान नहीं रहा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उन्हें कहां और कैसे खोज रहे हैं। केन वुड ने अपना सारा समय नेशनल ट्रॉपिकल बॉटेनिकल गार्डन में विलुप्तप्राय वनस्पतियों की खोज में बिताया है। वे अक्सर हवाई द्वीपों की कवाई पहाडि़यों की दरारों पर हेलीकॉप्टर से बाहर लटकते हुए ऐसी प्रजातियों को बचाने में लगे रहते हैं जिनके मुश्किल से 5-10 प्रतिनिधि ही बचे हैं। इनमें से कुछ स्थान ऐसे हैं जहां पर वे और उनके साथी स्टीलमैन रस्सियों और हेलीकॉप्टर की सहायता से भी नहीं पहुंच पाए थे। 2016 में ड्रोन विशेषज्ञ बेन नायबर्ग ने नेशनल ट्रॉपिकल बॉटेनिकल गार्डन के साथ कवाई द्वीप की दुर्गम घाटियों में ऐसे स्थानों पर ड्रोन की सहायता से ऐसी दुर्गम घाटियों पर खोजबीन में मदद की। 2019 की फरवरी में एक धूप भरे दिन ड्रोन कैमरे से उन्होंने एक पौधे के झुंड को खोजा जो केलालू घाटी की खड़ी चट्टानों की दरारों से 700 फीट नीचे था। इससे और नीचे पहुंचने के लिए 800 फीट के नीचे उन्होंने वहां अपना ड्रोन उड़ाया और एक पौधे के समूह को अपने मॉनिटर पर देखा। उन्होंने पाया कि हिबिस्काडेल्फस वूडी वहां जीता-जागता खड़ा है।
यह पहला मौका था जब किसी प्रजाति को खोजने के लिए ड्रोन का उपयोग किया गया। इनका मानना है कि इन जगहों पर कुछ और नई प्रजातियां या ऐसी प्रजातियां भी मिल सकती हैं जिन्हें विलुप्त मान लिया गया है।
दूसरी अच्छी खबर एक पक्षी के बारे में है जो करीब 1 लाख छत्तीस हज़ार साल पहले विलुप्त हो गया था पर फिर नए अवतार में प्रकट हुआ है। इसका नाम है व्हाइट थ्रोटेड रेल। यह मुर्गी के आकार का पक्षी है। यह जैव विकास की एक विलक्षण और दुर्लभ घटना है। ज़ुऑलॉजिकल जर्नल ऑफ लिनियन सोसायटी में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार किस्सा यह है कि व्हाइट थ्रोटेड रेल मेडागास्कर का मूल निवासी है। मगर ये प्रवास करके अलग-अलग दीपों में समुदाय बनाकर रहते थे और संख्या बढ़ने पर ये आसपास के द्वीपों पर माइग्रेट हो जाते थे। इनमें से कई उत्तर और दक्षिण के दीपों पर चले गए जो समुद्र का तल बढ़ने से पानी में डूब कर समाप्त हो गए। जो कुछ अफ्रीका में गए थे वहां उन्हें शिकारियों ने खा लिया। वे पक्षी जो पूर्व की ओर गए वे मारीशस, रीयूनियन द्वीप और अलडबरा द्वीप पर पहुंचे। अलडबरा एक छल्ले के आकार का कोरल द्वीप है जो आज से लगभग 4 लाख वर्ष पूर्व बना था। यहां भोजन प्रचुरता से उपलब्ध था और मारीशस के द्वीपों की तरह यहां पर भी कोई शिकारी नहीं था। अत: ये रेल इस प्रकार विकसित हुए कि अपनी उड़ने की क्षमता खो बैठे।
फिर करीब 1 लाख छत्तीस हज़ार वर्ष पूर्व एक बड़ी बाढ़ के दौरान अलडबरा द्वीप समुद्र में डूब गया था। परिणामस्वरूप यहां की सारी वनस्पतियां तथा कई जंतु मारे गए। इनमें उड़ान-विहीन रेल भी शामिल थे। शोधकर्ताओं ने 1 लाख साल पुराने जीवाश्मों का अध्ययन किया है। यह वह समय था जब हिम युग के कारण समुद्र के तल में गिरावट आई थी। जीवाश्म से पता चला कि यह द्वीप पुन: न उड़ पाने वाले रेल पक्षी समुदाय से बस गया था। द्वीप के डूबने के पूर्व और द्वीप के वापिस उभरने के बाद के रेल पक्षियों के जीवाश्म की हड्डियों की तुलना से पता चलता है कि ये दोनों पक्षी मैडागास्कर से उड़कर यहां पहुंचे थे और दोनों बार इन्होंने उड़ने की क्षमता गंवाई।
इसका अर्थ यह है कि मेडागास्कर की एक ही प्रजाति ने न उड़ने वाली रेल की दो उप-प्रजातियों को अलडबरा में कुछ हजार वर्षों के अंतराल पर जन्म दिया। प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के जूलियन ह्रूम कहते हैं कि ये विशिष्ट जीवाश्म इस बात के अकाट-प्रमाण हैं कि इन द्वीपों पर रेल के दोनों समुदाय मेडागास्कर से ही आए थे, और यहीं आकर अलग-अलग समय पर दो न उड़ने वाले रेल बन गए। यह दोनों घटनाएं दर्शाती है कि जैव विकास के दौरान एक ही गुण का बार-बार प्रकट होना कोई अनहोनी नहीं है। जैव विकास की भाषा में इसे इटरेटिव विकास कहते हैं। इटरेटिव विकास उसे कहते हैं जब वही या मिलती जुलती रचनाएं एक साझा पूर्वज से अलग-अलग समय पर विकसित हों। इसका अर्थ यह है कि एक ही पूर्वज से शुरू करके एक-से जीव वास्तव में दो बार अलग-अलग समय अथवा स्थान पर इस धरती पर विकसित हुए हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि चंद हज़ार सालों के अंतराल पर एक ही पूर्वज प्रजाति से दो उप-प्रजातियां निकली हैं और वे सचमुच अलग-अलग उप प्रजातियां हैं। यह किसी उप प्रजाति का पुनर्जन्म नहीं है। (स्रोत फीचर्स)