एक भरोसेमंद बिजली आपूर्ति काफी महत्वपूर्ण है। वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को सामाजिक और वाणिज्यिक दोनों गतिविधियों की आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए। इस लेख के लेखक प्रयास (ऊर्जा समूह) से संबंधित हैं। यह भारतीय ऊर्जा क्षेत्र के सामने चुनौतियों पर तीन लेखों में से पहला है
इस बात की काफी संभावना है कि केंद्र सरकार घोषित करे कि देश के सभी घरों में बिजली कनेक्शन उपलब्ध है। सौभाग्य वेबसाइट पर प्रकाशित ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में केवल 20,000 परिवार ऐसे हैं जिनके पास बिजली कनेक्शन नहीं है। लेकिन इस बात की खुशी मनाते हुए यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि यह अच्छी शुरुआत भर है। कनेक्शन प्रदान करने की चुनौती को तो शायद पूरा कर लिया गया है, लेकिन बिजली आपूर्ति प्रदान करने की चुनौती अभी भी बनी हुई है। जीवन स्तर में सुधार और आर्थिक गतिविधियों में सहायता के लिए, सस्ती और भरोसेमंद बिजली आपूर्ति ज़रूरी है।
घरेलू कनेक्शन और गांव के विद्युतीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के चक्कर में बिजली आपूर्ति के लक्ष्य की उपेक्षा हुई है। बिजली आपूर्ति का प्रबंधन पैसों की तंगी वाली वितरण कंपनियों द्वारा किया जाता है जिनके पास गरीब ग्रामीणों को बिजली आपूर्ति देने का कोई वित्तीय प्रलोभन नहीं होता है।
इस समस्या को दूर करने के लिए आपूर्ति-केंद्रित ग्रामीण विद्युतीकरण अभियान की आवश्यकता है। आपूर्ति और सेवा के वर्तमान घटिया स्तर से मुक्त होने के लिए ऐसा अभियान आवश्यक है। एक बार उल्लेखनीय सुधार हो गया, तो उपभोक्ताओं की ओर से आपूर्ति की गुणवत्ता के लिए वितरण कंपनियों को जवाबदेह बनाने का दबाव रहेगा, और यह जोश जारी रहेगा।
कनेक्शन से एक कदम आगे
चूंकि पूरा ध्यान कनेक्शनों पर केंद्रित रहा है, इसलिए आपूर्ति की गुणवत्ता को लेकर हमारे पास बहुत कम जानकारी है। जो भी आंकड़े उपलब्ध हैं, उनसे पता चलता है कि शिकायतों की सूची में मीटरिंग, बिलिंग और भुगतान सम्बंधी शिकायतें प्रमुख हैं। नए कनेक्शन वाले घरों के बिल जारी करने में अनावश्यक विलंब होता, बिलों में गलतियां होती है, मीटर में खामियां हैं और बिल भुगतान में कठिनाइयां हैं। बिलों में विलंब या गलतियों से बिल काफी अधिक आता है, जिससे छोटे उपभोक्ताओं को भुगतान करने में मुश्किल होती है और उनके कनेक्शन कट जाते हैं।
दूसरी शिकायत बिजली कटौती को लेकर है। सरकारी रिपोट्र्स में ग्रामीण इलाकों में 16 से 24 घंटे की बिजली आपूर्ति की बात कही गई है। उपभोक्ता सर्वेक्षण और अन्य अध्ययन इससे बहुत कम घंटे बिजली आपूर्ति रिपोर्ट करते हैं। स्मार्टपॉवर के एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि आधे घरों में एक दिन में आठ घंटे बिजली कटौती होती है और लगभग आधे ग्रामीण उद्यम गैर-ग्रिड विकल्प का उपयोग करते हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2017 के राष्ट्रव्यापी ग्राम सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि केवल आधे गांवों में ही 12 घंटे से अधिक बिजली आपूर्ति होती है।
प्रयास ऊर्जा समूह द्वारा 23 राज्यों में 200 मॉनिटरिंग केंद्रों से एकत्रित डैटा के अनुसार ग्रामीण इलाकों के आधे स्थानों में प्रति माह 15 घंटे से अधिक कटौती और प्रति दिन 2-4 बार व्यवधान का अनुभव होता है।
सामुदायिक सेवाएं
घरों के अलावा, ग्रामीण विद्युतीकरण को कृषि, छोटे व्यवसाय और सामुदायिक सेवाओं जैसे स्ट्रीट लाइटिंग, स्कूलों, आंगनवाड़ियों और स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए। कृषि क्षेत्र के लिए ज़्यादातर राज्यों में केवल सात से आठ घंटे की आपूर्ति प्रदान की जाती है। यह बिजली आपूर्ति ज़्यादातर रात के समय और अक्सर रुक-रुककर दी जाती है। बार-बार होने वाली रुकावटें ग्रामीण क्षेत्रों में वाणिज्यिक उद्यमों के संचालन को हतोत्साहित करती हैं।
वितरण कंपनी का राजस्व सिर्फ तभी बढ़ सकता है जब ऐसे उपभोक्ता अधिक बिजली का उपभोग करें। इससे पहले कि उपभोक्ता ग्रिड द्वारा आपूर्ति में विश्वास खो दें, बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार के लिए कदम उठाना आवश्यक है। सरकारी सर्वेक्षणों की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में, 40 प्रतिशत स्कूलों और 25 प्रतिशत स्वास्थ्य उप-केंद्रों में बिजली कनेक्शन नहीं थे। ग्रामीण वितरण के बुनियादी ढांचे को सुधारना आवश्यक है, जो फिलहाल मात्र घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
बिजली आपूर्ति अभियान
कनेक्शन-उपरांत के मसलों पर ध्यान देना ज़रूरी है। जैसे प्रथम बिल जारी होना, बिजली आपूर्ति के घंटे, वितरण ट्रांसफॉर्मर की विफलता दर और गैर-घरेलू उपभोक्ता कनेक्शन में बढ़ोतरी। एकीकृत उर्जा विकास योजना (आईपीडीएस) वर्तमान में शहरों पर केंद्रित है; इसे ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाया जाना चाहिए। बेकार पड़ी बिजली उत्पादन क्षमता, पुराने पड़ चुके उर्जा संयंत्रों और अप्रयुक्त क्षमता से उत्पन्न बिजली डिस्कॉम्स को रियायती दरों पर दी जा सकती है। इसका उपयोग वे निर्धारित ग्रामीण क्षेत्रों में भरोसेमंद आपूर्ति हेतु कर सकती हैं।
राज्य वितरण कंपनियां मीटरिंग और बिलिंग में सुधार कर सकती हैं और बिल भुगतान के लिए ज़्यादा केंद्र स्थापित कर सकती हैं। इसमें वे पंचायत कार्यालयों, डाकघरों या स्वास्थ्य केंद्रों की मदद ले सकती हैं। मोबाइल ऐप्लिकेशन और जन सुनवाई के माध्यम से शिकायत निवारण प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा सकता है।
घटिया बिजली आपूर्ति के लिए वितरण कंपनियों को नियामक आयोगों द्वारा आर्थिक रूप से दंडित किया जाना चाहिए। आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए, लगभग 300 युनिट की खपत वाले छोटे उद्यमों को सस्ते शुल्क का आश्वासन दिया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य केंद्रों जैसी सामुदायिक सुविधाओं के लिए जहां विश्वसनीय आपूर्ति महत्वपूर्ण है, बैटरी बैकअप वाले छोटे सौर संयंत्र लगाने की योजना बनाई जा सकती है। प्रीपेड मीटर, स्मार्ट मीटर और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण जैसे प्रयासों को बढ़ावा देने से पहले पायलट परियोजनाओं के रूप में आज़माया जाना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)